Wednesday, August 4, 2021

'विनाश काले विपरीत बुद्धि' की कहावत पर अग्रसर हैं मोदी।


इन दिनों भाजपा (मोदी-शाह) देशवासियों की नज़र में अपनी सरकार की छवि को बेहतर बनाने के लिए सफ़ेद झूठ, मक्कारी और फरेब देने का रास्ता अपना रही है और इस प्रकार पहले ही से जनता की नज़रों में गिर चुकी भाजपा और गिरती जा रही है और आने वाले हर रोज़ अपने द्वारा किए जा रहे कामों और बयानों से अपने ताबूत में खुद ही कील ठोक रही है। इस संबंध में पुरानी कहावत है कि 'विनाश काले विपरीत बुद्धि' अर्थात जब किसी का विनाश का समय आता है तो उसके द्वारा उसके विनाश से संबंधित कार्य करता है और बयान देता है जिससे उसके विनाश की गति तेज़ हो जाती है। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के साथ 3 अन्य राज्यों और 1 केंद्र शासित क्षेत्र में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि भाजपा (मोदी-शाह) को ईश्वर द्वारा अभिशापित कर दिया गया है। इसलिए अब भविष्य के सभी चुनाव में भाजपा (मोदी-शाह) को शर्मनाक हार का ही सामना करना पड़ेगा। चाहे चुनाव जीतने के लिए भाजपा (मोदी-शाह) एड़ी चोटी का ज़ोर लगा दे। 


शनिवार दिनांक 31/07/2021 को 'सरदार वल्लभ भाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी, हैदराबाद (तेलंगाना) में 144 प्रशिक्षु आईपीएस अधिकारियों को संबोधित करते हुए नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को याद करते हुए कहा कि उन्होंने अपनी 'सत्याग्रह' से भारत में अंग्रेजी शासन की नींव हिला दी थी। अपने इस कथन में मोदी ने यह स्वीकार किया है कि महात्मा गाँधी की 'सत्याग्रह आंदोलन' के सामने अंग्रेज़ो शासन झुक गया और उसके द्वारा भारत को आज़ाद कर दिया गया। लेकिन यही मोदी किसानों द्वारा 3 कृषि कानूनों को समाप्त करने के लिए किए जा रहे 'सत्याग्रह आंदोलन' को पिछले लगभग 8 महीने से ना सिर्फ अनदेखा कर रहे हैं, बल्कि उनके मंत्रियों और पार्टी के लोगों द्वारा इस आंदोलन को बदनाम भी किया जा रहा है। अंग्रेजी सरकार ने गाँधी जी के 'सत्याग्रह आंदोलन' के आगे झुककर भारत पर से अपना कब्ज़ा हटाने का बहुत बड़ा कदम उठाया। लेकिन मोदी सरकार अपने 3 कृषि कानूनों को ख़त्म ना करने पर अड़ी हुई है और अंग्रेजी सरकार से बदतर व्यवहार कर रही है जो कि देश की जनता द्वारा चुनी हुई सरकार है। एक लोकतंत्र में सरकार द्वारा ऐसा रवैया अपनाना बहुत शर्म की बात है क्योंकि इसका रवैया 'किसान आंदोलन' के प्रति गुलामों जैसा है। यदि प्रधानमंत्री मोदी गाँधी जी की 'सत्याग्रह' की ताकत को स्वीकारते हैं तो उन्हें किसानों के 'सत्याग्रह' पर पुनर्विचार करके उनकी मांगों के अनुसार तीनों कृषि कानूनों को तुरंत रद्द कर देना चाहिए। इस प्रकार यह कदम उठाकर मोदी को देशवासियों और दुनिया को यह आभास दिलाना चाहिए कि उनकी सरकार एक लोकतांत्रिक सरकार है। उन्हें इस मुगालते (ग़लतफहमी) से बाहर आ जाना चाहिए कि 'किसानों का सत्याग्रह' अपने आप समाप्त हो जाएगा। आसार बता रहे हैं कि 'किसानों का आंदोलन' अगर समाप्त नहीं हुआ तो ये मोदी सरकार की समाप्ति का कारण बन सकता है। मोदी सरकार अपनी समाप्ति की ओर इस प्रकार बढ़ रही है, इसका अंदाज़ा कई बातों से लगाया जा सकता है। पहली बात यह कि मोदी सरकार द्वारा संसद में यह बयान दिया गया कि कोरोना की दूसरी लहर के शुरू होने के समय ऑक्सीजन की कमी से एक भी कोरोना मरीज़ की मौत नहीं हुई। क्योंकि राज्य सरकारों ने केंद्र में भेजी गई अपनी रिपोर्ट में इसकी पुष्टि नहीं की। ज्ञात हो कि इस समय देश के अधिकांश राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं जिन्होंने अपनी छवि को बचाने के लिए ऑक्सीजन की कमी से कोरोना मरीज़ों की मौत को छिपाया होगा। जिस प्रकार कोरोना से होने वाली मौतों को छिपाया गया। ना सिर्फ़ देशवासियों ने बल्कि पूरी दुनिया ने भारत में कोरोना की दूसरी लहर की शुरुआत में ऑक्सीजन की कमी से होने वाली हाहाकार को टीवी के पर्दों पर देखा और उस दौरान प्रतिदिन ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों को भी टीवी के पर्दों पर देखा और सुना। इसके बावजूद मोदी सरकार द्वारा ऑक्सीजन की कमी से एक भी मौत ना होने का संसद में दिया गया बयान इस सरकार की समाप्ति की ओर बढ़ने का इशारा देती है। इसी प्रकार देश में कोरोना महामारी से मरने वालों की संख्या को जिस बड़े पैमाने पर छिपाया गया, यह कदम भी मोदी सरकार के अंत का संकेत देती है। रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार द्वारा कोरोना से अब तक मरने वालों की संख्या 6 लाख के करीब बताई जाती है। जबकि यह संख्या एक अनुमान के अनुसार 25 लाख और एक दूसरे अनुमान के अनुसार 49 लाख के करीब बताई जाती है अर्थात कोरोना से मरने वालों की इतनी बड़ी संख्या को छिपाकर मोदी सरकार वास्तव में कोरोना से मरने वालों का अपमान कर रही है। जिसके कारण मृतकों के सगे-संबंधों स्वयं को ठगा और आहत महसूस कर रहे हैं। इसी दौरान कोरोना से मरने वालों की सही संख्या की रिपोर्ट छापने वाले अख़बारों के ऑफिसों पर इनकम टैक्स (आईटी) के छापे के कदम ने मोदी सरकार के अंत की ओर बढ़ने की गति को तेज़ कर दिया है। आईटी के इन छापों के संबंध में सरकार अपने बचाव में कुछ भी कह रही हों उस पर विश्वास करना असंभव है। यह कहा जा रहा है कि 'दैनिक भास्कर ग्रुप' द्वारा बड़े पैमाने पर इनकम टैक्स चोरी किए जाने का मामला है। इसलिए इस ग्रुप के कई दफ्तरों पर इनकम टैक्स के छापे मारे गए। सवाल उठता है कि इनकम टैक्स के ये छापे 'दैनिक भास्कर ग्रुप' पर इस समय क्यों मारे गए जब इसके द्वारा कोरोना महामारी से मरने वालों की सही संख्या से संबंधित रिपोर्ट छापी गई? अगर इस मीडिया संस्थान द्वारा टैक्स चोरी का अपराध किया जा रहा है तो ये कई वर्षों से किया जा रहा होगा। ऐसा नहीं है कि इस मीडिया संस्थान द्वारा वर्तमान में टैक्स चोरी का अपराध किया जा रहा है। इन छापों से यह पता चलता है कि इस मीडिया संस्थान ने अभी एक चोरी का अपराध शुरू किया है। इस बात को कोई भी मानने को तैयार नहीं होगा कि अगर यह मीडिया संस्थान टैक्स चोरी का अपराध कर रहा है तो वो यह अपराध पिछले कई वर्षों से कर रहा होगा। ऐसी स्थिति में इस मीडिया संस्थान के खिलाफ टैक्स चोरी का मामला क्यों नहीं उठाया गया और उसके दफ्तरों पर इनकम टैक्स के छापे क्यों नहीं मारे गए? जबकि मोदी सरकार पिछले 7 साल से सत्ता में है। इस मीडिया संस्थान पर कोरोना महामारी से मरने वालों की सही संख्या छापने के बाद मारे गए इनकम टैक्स के छापे इस तथ्य को उजागर करते हैं कि मोदी सरकार सच्चाई का झंडा बुलंद करने वाले मीडिया संस्थानों को भयभीत कर उनसे भी अपना गुणगान कराना चाहती है। मोदी सरकार द्वारा अपनाई गई लोकतंत्र का गला घोंटने वाली इस गंदी नीति को देश की जनता बहुत अच्छी तरह समझ रही है और समय आने पर इसका सिखाने के लिए चुप नहीं रहेगी। देश में लोकतंत्र की खुलेआम हत्या करने वाली मोदी सरकार देश से लोकतंत्र को तो समाप्त नहीं कर सकती लेकिन ऐसा करके वो अपने अंत को आमंत्रण दे रही है। 


मोदी सरकार के ताबूत में 'पेगासस जासूसी कांड' भी कील ठोंकने वाला कदम है। देश के विपक्षी नेताओं, विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले सामाजिक,  कार्यकर्ताओं, सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों और सर्वोच्च न्यायालय के जजों तक की जासूसी कराने वाले इस कांड के सामने आने पर सरकार के ख़िलाफ़ लोगों में गुस्सा और नफ़रत बढ़ गई है। इसलिए इस गंदी सरकार को लोगो द्वारा सहन करना असंभव होता जा रहा है। पेगासस जासूसी उपकरण इज़राइल की एनएसओ कंपनी द्वारा बनाया जाता है जो इस उपकरण को सिर्फ सरकारों को उपलब्ध कराती है ताकि वे इसके द्वारा आतंकवादियों और देशद्रोहियों की गतिविधियों पर नज़र रख सकें और उनका खात्मा कर सकें। 


भारत में इस उपकरण का जिन लोगों के खिलाफ प्रयोग करने का मामला सामने आया है, वो ना तो आतंकवादी हैं और ना ही देशद्रोही हैं। हाँ, सरकार के खिलाफ अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए आवाज़ उठा रहे हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ इस उपकरण का प्रयोग कर मोदी सरकार देश से लोकतंत्र को समाप्त करने का एक और खतरनाक खेल-खेल रही है। विपक्ष इस मुद्दे को लेकर बहुत उग्र है और मोदी सरकार से यह जानना चाहती है कि उसने इस जासूसी उपकरण को बनाने वाली कंपनी एनएसओ से उसे खरीदा है या नहीं। मोदी सरकार इसका जवाब नहीं दे रही है और ना ही इस कांड की जांच कराने को तैयार है। मोदी सरकार का यह रवैया भी इसके अंत की उल्टी गिनती की ओर संकेत दे रहा है। मोदी सरकार इस जासूसी उपकरण का अपने विरोधियों के खिलाफ प्रयोग कर यह आभास करा रही है कि उसके सभी विरोधी आतंकवादी ओर देशद्रोही हैं। मोदी सरकार की मानसिकता इसको बचाने के बजाए इसे इसके अंत की ओर धकेल रही है। जब किसी का अंत करीब होता है तो उस व्यक्ति या सरकार द्वारा गलती पर गलती किए जाने का काम किया जाता है क्योंकि वो सद्बुद्धि से वंचित हो जाता है। उसे लगता है कि वह अपने बचाव में जो कदम उठता है वो इसके लिए लाभदायक साबित होगा लेकिन दूसरों को साफ़ नज़र आता है कि वो अपने लिए गड्ढा खोद रहा है। इसलिए यह कहावत ऐसे लोगों के लिए बहुत प्रचलित है कि 'विनाश काले विपरीत बुद्धि'।


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा। 



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