Sunday, February 7, 2021

हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच की राजनीति कर रहे हैं मोदी और भाजपा।




मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से सत्ताधारी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा रामराज की बातें बहुत ज़ोर-शोर से की जा रही हैं और यह बताने की कोशिश की जा रही है कि रामराज सबसे कल्याणकारी राज होता है जिसमें सारी प्रजा का कल्याण होता है। चारों ओर सुख-शांति होती है, देश उन्नति और विकास के रास्ते पर दौड़ता है। समाज में सौहार्द और भाईचारे का माहौल होता है, समाज में न्याय का बोलबाला होता है, हर ओर ईमानदारी और सच का प्रदर्शन देखने को मिलता है, प्रजा की समस्याओं का तत्काल समाधान हो जाता है, प्रजा पर कोई कानून थोपा नहीं जाता है, प्रजा की इच्छाओं का सम्मान किया जाता है, प्रजा पर किसी तरह के अत्याचार नहीं होता है और अपराधियों व असामाजिक तत्वों के लिए कोई जगह नहीं होती है। वास्तव में असली रामराज के बारे में यही धारणा है। सवाल उठता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), विश्व हिन्दू परिषद् (वीएचपी), बजरंग दाल, हिन्दू युवा वाहिनी, मोदी सरकार, मोदी और भाजपा शासित राज्यों में रामराज के बारे में यही धारणा पाई जाती है। इसका उत्तर नकारात्मक में पाया जाता है। असली रामराज की जगह पर हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच की तुलना की ही नहीं जा सकती क्योंकि हिन्दुत्वा से पैदा हुई सोच दुनिया की सबसे तिरस्कृत सोच है। जिसका उदाहरण 'हिटलर' और 'मुसोलिनी' के शासन से मिलता है। जिस प्रकार आज भी 'हिटलर' और 'मुसोलिनी' के शासन को दुनिया घृणा और नफरत से देखती है, उसी प्रकार हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच से घृणा और नफरत करती है। यह तथ्य मोदी सरकार और भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के क़दमों से साबित होती है। 

यदि हम मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल पर नज़र डालें तो यह सारा कार्यकाल असली रामराज की कसौटी पर कहीं नहीं उतरता। वास्तव में मोदी का पूरा कार्यकाल हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच के कार्यकाल को प्रदर्शित करता है। मोदी के सत्ता में आने से पहले लोगों से यह वादा किया था कि उनकी सरकार देश से कालेधन को समाप्त करेगी और विदेशों में जमा कराए गए देश के काले धन को वापस लाएगी जिसके नतीजे में देश के हर नागरिक को 15 लाख रूपये मिलेंगे। दूसरा प्रमुख वादा मोदी ने हर वर्ष 2 करोड़ लोगों को रोज़गार देने का किया था। तीसरा वादा महंगाई कम करने का किया गया था। यह सारे वादे हवा-हवाई साबित हुए जिससे मोदी की देशवासियों से मक्कारी, झूठ, फरेब, दग़ाबाज़ी और छलकपट का रवैया अपनाने की बात सामने आती है जो असली रामराज में कोई सोच भी नहीं सकता। ऐसा रवैया हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच की विशेषता हो सकती है। इसी प्रकार सत्ता में आने के बाद मोदी द्वारा जो कुछ किया गया और जो कुछ किया जा रहा है, वह सब हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच की राजनीति का गन्दा और भौंदा प्रदर्शन है। उदाहरण स्वरुप देश में काला धन समाप्त करने और आतंकवाद को समाप्त करने के उद्देश्य से नोटेबंदी की गई जिसके परिणामस्वरुप देश की जनता को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ा जो किसी से छुपा नहीं है। इसके अतिरिक्त नोटबंदी के कारण सैंकड़ों लोगों की जान भी गई। इस नोटबंदी का नतीजा क्या निकला सभी जानते हैं? कालाधन नोटबंदी से पहले जितना था वह आज भी मौजूद है और आतंकवाद का सिलसिला भी पहले ही जैसा चल रहा है। आरएसएस के गटर से पैदा हिन्दुत्वा के प्रचारक जो नोटबंदीं के कदम की बड़ी प्रशंसा कर रहे थे वह बताएं कि नोटबंदी का देश को क्या लाभ मिला? बहुत स्पष्ट है कि हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच की कोई चीज़ लाभकारी हो ही नहीं सकती। 


वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) का कानून भी हिंदुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच के विचार का प्रदर्शन है। इस कानून ने देश के व्यापारी वर्गों के साथ-साथ हर छोटे कामकाजी वर्ग की कमर तोड़ दी है। करोड़ों छोटे कामकाजी लोगों को अपना धंधा बंद करना पड़ा जिसके कारण उन्हें भुखमरी का सामना करना पड़ रहा है। इस कानून का भी देशभर में विरोध हुआ था परन्तु मोदी सरकार द्वारा इन विरोधों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया और इस कानून को लागू कर दिया गया। 


कोरोना महामारी के दौरान मोदी सरकार का जो रवैया रहा है वह अत्यंत शर्मनाक रहा है। इस शर्मनाक रवैये पर यदि कुछ मीडिया संस्थानों ने तथ्यों को उजागर किया तो मोदी सरकार द्वारा मीडिया की स्वतंत्रता पर बेशर्मी के साथ ऊँगली उठाई गई और सुप्रीम कोर्ट में इसको सरकार को बदनाम करने का प्रयास बताया। यह भी हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच का प्रदर्शन है। 


इसी सोच का प्रदर्शन 'नागरिकता संशोधन अधिनियम' (सीएए) और 'राष्ट्रव्यापी नागरिक रजिस्टर' (एनआरसी) के संबंध में भी किया गया। दुनियाभर में पाए जाने वाले लगभग 10 करोड़ हिन्दुओं को भारत वापस लाए जाने के उद्देश्य से उक्त दोनों कानून बनाए गए जिसका देशभर में विरोध किया गया और दिल्ली के शाहीन बाग़ में महीनों प्रदर्शन किया गया जिससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की बदनामी हुई। यह सब हिन्दुओं का मसीहा बनने के उद्देश्य से इस सरकार द्वारा किया गया। इस सरकार का यह कदम बताता है कि हिन्दुओं का मसीहा बनने के लिए इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का अपमान होने की कोई परवाह नहीं है। 


अब किसानों के आंदोलन के मामले पर भी इस सरकार द्वारा हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच का ही प्रदर्शन किया जा रहा है। लगभग ढाई महीने से चल रहे आंदोलन पर यह सरकार संवेदनहीन बनी हुई है और तीनों कृषि कानून को रद्द ना करने पर अड़ी हुई है। इसी के साथ इस सरकार द्वारा किसानों के साथ दमनकारी रवैया भी अपनाया जा रहा है। इन आंदोलनकारी किसानों को खालिस्तानी, पाकिस्तानी और चीनी एजेंट, विघटनकारी तत्व, अराजक तत्व, राष्ट्रविरोधी तत्व और मुट्ठीभर किसानों का आंदोलन बताकर इनका घोर अपमान किया जा रहा है। यह सब यह सरकार उन मीडिया संस्थानों की मदद से कर रही है जो मोदी की चाटुकारिता में कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं और इस कीर्तिमान को स्थापित करने में यह एक-दूसरे से आगे बढ़ जाने के प्रयास में लगे हुए हैं। इनका एजेंडा बस यही है कि यह देश के अन्नदाताओं को लोगों की नजरों में राष्ट्रविरोधी साबित कर दें और इस प्रकार किसानों के आंदोलन की हवा निकाल दी जाए। मोदी का समर्थन करने वाली यह मीडिया उसी प्रकार देश से लोकतंत्र को समाप्त करने में लगी हुई है जिस प्रकार मोदी लोकतंत्र की जड़ें काट रहे हैं। इसका साक्ष्य यह है कि मोदी सरकार के ख़िलाफ़ उठने वाले हर आंदोलन को राष्ट्रविरोधी और देशविरोधी बताकर इन्हें कुचल दिया जाता है और सरकार के इस कदम की यह मीडिया खुलकर समर्थन करता है। इस प्रकार यह मीडिया भी आरएसएस के गटर से पैदा हुई सोच का हिस्सा बना हुआ है। कोई भी अच्छी सोच वाली सरकार किसानों के आंदोलन को समाप्त करने के सिलसिले में ईमानदारी भरा अगर प्रयास करती तब किसानों को कृषि कानून के विरोध में अपना प्रदर्शन लंबा करने के लिए विवश नहीं होना पड़ता। यह मोदी और उनकी सरकार का अहंकार है कि वह इस आंदोलन को मुट्ठीभर किसानों के आंदोलन के रूप में देख रहे हैं क्योंकि उन्हें इस बात का अहंकार है कि उन्हें लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत मिला हुआ है जबकि वास्तविकता यह है कि इस देश के मतदाताओं का मात्र 30/31 प्रतिशत बहुमत इसे हासिल हुआ है जबकि लगभग 70 प्रतिशत मतदाता इस सरकार के ख़िलाफ़ है। जिस दिन यह 70 प्रतिशत मतदाता एकजुट हो गए उस दिन मोदी सरकार हवा में तिनके की तरह उड़ जाएगी। मोदी और उनकी सरकार का अहंकार देश के इन 70 प्रतिशत मतदाताओं को एकजुट करने का रास्ता बना रही है क्योंकि देश की जनता ने कभी भी किसी अहंकारी शासक को सहन नहीं किया है। मोदी और इनकी सरकार को इतिहास से सबक लेना चाहिए और हिन्दुत्वा के गटर से पैदा गंदी सोच का परित्याग कर अच्छी सोच का प्रदर्शन करना चाहिए ताकि किसानों का आंदोलन समाप्त हो सके। अब किसान आंदोलन जिस राह पर निकल पड़ा है। इसे दीवार पर लिखी इबारत के तौर पर देखा जाना चाहिए। दिवार पर लिखी ऐसी इबारतें हर आंदोलन के समय नज़र आती हैं जिन्हें सरकारों द्वारा नज़रअंदाज़ कर दिए जाने की गलती की जाती रही है और इस प्रकार अपने अंत को आमंत्रित करती रही हैं। राकेश टिकैत का यह बयान दीवार पर लिखी इबारत को और स्पष्ट कर देता है कि अभी किसानों की लड़ाई तीनों कृषि कानूनों की वापसी की लड़ाई है, कहीं यह लड़ाई मोदी से गद्दी की वापसी की लड़ाई ना बन जाए।


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा

2 comments:

  1. *सच में आज का ज्वलंत प्रश्न है! :-*

    *आप कहाँ के हिन्दू हैं?*

    आपने,

    1. चोटियां छोड़ीं
    2. पगड़ी छोड़ी,
    3. तिलक, चंदन छोड़ा
    4. कुर्ता छोड़ा, धोती छोड़ी,
    5. यज्ञोपवीत छोड़ा,
    6. संध्या वंदन छोड़ा
    7. रामायण पाठ, गीता पाठ छोड़ा
    8. महिलाओं, लड़कियों ने साड़ी छोड़ी, बिछिया छोड़े, चूड़ी छोड़ी , दुपट्टा, चुनरी छोड़ी, मांग बिन्दी छोड़ी।
    9. पैसे के लिये, बच्चे छोड़े (अब आया पालती है)
    10. संस्कृत छोड़ी, हिन्दी (भाषा) छोड़ी,
    11. श्लोक छोड़े, लोरी छोड़ी
    12. बच्चों के सारे संस्कार (बचपन के) छोड़े
    13. सुबह शाम मिलने पर राम राम, राधे कृष्ण छोड़ी
    14. पांव लागूं, चरण स्पर्श, पैर छूना छोड़े
    15. घर परिवार छोड़े (अकेले सुख की चाह में संयुक्त परिवार)

    अब कोई रीति या परंपरा बची है आपकी?
    ऊपर से नीचे तक गौर करिये, आप कहां पर हिन्दू हैं? भारतीय हैं, सनातनी हैं, ब्राह्मण हैं, क्षत्रिय हैं, वैश्य हैं या शुद्र हैं।

    कहीं पर भी उंगली रखकर बता दीजिए कि हमारी परंपरा को मैंने ऐसे जीवित रखा है।

    जिस तरह से हम धीरे-धीरे बदल रहे हैं, जल्द ही समाप्त भी हो जाएंगे।

    बौद्धों ने कभी सर मुंड़ाना नहीं छोड़ा।

    सिक्खों ने भी सदैव पगड़ी का पालन किया!

    मुसलमानों ने न दाढ़ी छोड़ी और न ही 5 बार नमाज पढ़ना।

    ईसाई भी संडे को चर्च जरूर जाता है।

    फिर हिन्दू अपनी पहचान-संस्कारों से क्यों दूर हुआ?
    कहाँ लुप्त हो गयी - गुरुकुल की शिक्षा, यज्ञ, शस्त्र-शास्त्र, नित्य मंदिर जाने का संस्कार? क्या कोई भी सरकार इसे रोक सकती थीं?

    नहीं, हम स्वयं रुके।

    हम अपने संस्कारों से विमुख हुए, इसी कारण हम विलुप्त हो रहे हैं।

    आप अपनी पहचान बनाओ!
    अपने मूल-संस्कारों को अपनाओ!!!

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  2. *सच में आज का ज्वलंत प्रश्न है! :-*

    *आप कहाँ के हिन्दू हैं?*

    आपने,

    1. चोटियां छोड़ीं
    2. पगड़ी छोड़ी,
    3. तिलक, चंदन छोड़ा
    4. कुर्ता छोड़ा, धोती छोड़ी,
    5. यज्ञोपवीत छोड़ा,
    6. संध्या वंदन छोड़ा
    7. रामायण पाठ, गीता पाठ छोड़ा
    8. महिलाओं, लड़कियों ने साड़ी छोड़ी, बिछिया छोड़े, चूड़ी छोड़ी , दुपट्टा, चुनरी छोड़ी, मांग बिन्दी छोड़ी।
    9. पैसे के लिये, बच्चे छोड़े (अब आया पालती है)
    10. संस्कृत छोड़ी, हिन्दी (भाषा) छोड़ी,
    11. श्लोक छोड़े, लोरी छोड़ी
    12. बच्चों के सारे संस्कार (बचपन के) छोड़े
    13. सुबह शाम मिलने पर राम राम, राधे कृष्ण छोड़ी
    14. पांव लागूं, चरण स्पर्श, पैर छूना छोड़े
    15. घर परिवार छोड़े (अकेले सुख की चाह में संयुक्त परिवार)

    अब कोई रीति या परंपरा बची है आपकी?
    ऊपर से नीचे तक गौर करिये, आप कहां पर हिन्दू हैं? भारतीय हैं, सनातनी हैं, ब्राह्मण हैं, क्षत्रिय हैं, वैश्य हैं या शुद्र हैं।

    कहीं पर भी उंगली रखकर बता दीजिए कि हमारी परंपरा को मैंने ऐसे जीवित रखा है।

    जिस तरह से हम धीरे-धीरे बदल रहे हैं, जल्द ही समाप्त भी हो जाएंगे।

    बौद्धों ने कभी सर मुंड़ाना नहीं छोड़ा।

    सिक्खों ने भी सदैव पगड़ी का पालन किया!

    मुसलमानों ने न दाढ़ी छोड़ी और न ही 5 बार नमाज पढ़ना।

    ईसाई भी संडे को चर्च जरूर जाता है।

    फिर हिन्दू अपनी पहचान-संस्कारों से क्यों दूर हुआ?
    कहाँ लुप्त हो गयी - गुरुकुल की शिक्षा, यज्ञ, शस्त्र-शास्त्र, नित्य मंदिर जाने का संस्कार? क्या कोई भी सरकार इसे रोक सकती थीं?

    नहीं, हम स्वयं रुके।

    हम अपने संस्कारों से विमुख हुए, इसी कारण हम विलुप्त हो रहे हैं।

    आप अपनी पहचान बनाओ!
    अपने मूल-संस्कारों को अपनाओ!!!

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