Monday, February 28, 2022

यूक्रेन रूस का 'आसान निवाला' नहीं बन पाएगा



रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले का आज चौथा दिन है और रूस के इरादों से ऐसा लग रहा है कि रूस अपने हमलों को ज़ारी रखेगा। यद्यपि दुनिया के सारे देश रूस से इस युद्ध को रोकने की अपील कर रहे हैं। लेकिन रूस अपने हमलों को रोकने के लिए तैयार नहीं है। जबकि इस बीच अमेरिका और नाटो देशों द्वारा रूस पर कई प्रकार की पाबंदियां भी लगा दी गई हैं। यह पाबंदियां रूस की कमर तोड़ सकती हैं। लेकिन रूस को यूक्रेन पर अपना हमला रोकने के लिए फ़िलहाल ये पाबंदियां बहुत प्रभावी नहीं हैं। अमेरिका और नाटो देशों द्वारा यूक्रेन में अपनी सेना भेजने के बाद ही रुसी सेना का हमला रुक सकता है या फिर एक बड़े युद्ध (महायुद्ध) में बदल सकता है। दुनिया को महायुद्ध से बचाने के लिए अमेरिका और नाटो देश सैन्य कार्रवाई से अभी बच रहे हैं, लेकिन यह भी तय है कि वें यूक्रेन को रूस का निवाला नहीं बनने देंगे। इसका कारण यह है कि ऐसा होने पर अमेरिका की महाशक्ति की छवि ध्वस्त हो जाएगी और वह इसे सहन करने को तैयार नहीं है। ऐसी स्थिति में यूक्रेन में अमेरिका और नाटो देशों की यूक्रेन में सैन्य कार्रवाई से इंकार नहीं किया जा सकता। 

यूक्रेन में रूस का हमला यूक्रेन की स्वतंत्रता और संप्रभुता पर हमला है, अपने देश पर ऐसे हमले पर कोई देश खामोश नहीं बैठ सकता। वह इसका जवाब देने के लिए खड़ा होगा और यही यूक्रेन कर रहा है। हालाँकि उसकी सैन्य शक्ति रूस की तुलना में 10 प्रतिशत है। चार दिनों के युद्ध के बाद भी रूस को बहुत ज़्यादा कामयाबी नहीं मिली है। उसे ऐसा लग रहा है कि यूक्रेन पर कब्ज़ा करने का उसका उद्देश्य सम्भवतः पूरा नहीं होगा। इसलिए वह अब यूक्रेन की सेनाओं से अपील कर रहा है कि वें अपने राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेन्स्की का तख्ता पलट दें क्यूंकि वह आतंकवादी और नाज़ीवादी हैं। स्पष्ट है कि यूक्रेनवासी रूस की इस अपील पर कोई धयान नहीं देंगे। क्यूंकि अगर यूक्रेनी राष्ट्रपति की छवि ऐसी होती तो इन्हें सत्ता में आने ही नहीं दिया जाता। इन्हें सत्ता में इसीलिए पहुँचाया गया है कि यें घोर रूस विरोधी हैं। इनसे ठीक पहले यूक्रेन का जो राष्ट्रपति (पेट्रो पोरोशेंको) था, वह रूस का पिट्ठू था, जिसे यूक्रेनी लोग पसंद नहीं करते थे। इसलिए उसके खिलाफ बगावत हुई और वह रूस भाग गया। वास्तव में यूक्रेन के लोग सोवियत संघ के विघटन के नतीजे में अपने देश के अलग अस्तित्व में आने के बाद सोवियत संघ के अवशेष रूस से कोई संबंध नहीं रखना चाहते हैं और ना उसके दबाव में रहना चाहते हैं। वें एक संप्रभु और स्वतंत्र देश की तरह जीना चाहते हैं और यह नहीं चाहते कि रूस उनके मामलों में दखलांदाज़ी करे। जबकि रूस यूक्रेन ही में नहीं सोवियत संघ के विघटन के बाद जितने भी देश एक संप्रभु और स्वतंत्र देश की सूरत में अस्तित्व में आए हैं, उनमें अपनी दखलांदाज़ी चाहता है। यह तथ्य उस समय सामने आता है जब रूस ने कहा था कि सोवियत संघ के विघटन के नतीजे में अस्तित्व में आने वाले देश नाटो (नार्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाइजेशन) के सदस्य नहीं बन सकते। उल्लेखनीय है कि अमेरिका की अध्यक्षता वाला यह संगठन अपने अस्तित्व में आने के बाद से सोवियत संघ (अब रूस) का घोर विरोधी है और यह पहले सोवियत संघ को घेरने में लगे रहते थे और अब रूस को घेरने में लगे रहते हैं। ऐसी स्थिति में रूस को लगता है कि यदि सोवियत संघ के विघटन के बाद अस्तित्व में आए देश नाटो के सदस्य बन गए तो नाटो की सेनाएं रूस के दरवाज़े पर आ जाएंगी और उसे चारो ओर से घेर लेंगी। इसी कारण से रूस ने यूक्रेन पर हमला किया। क्यूंकि यूक्रेन नाटो देशों के करीब आ रहा है और उनका सदस्य बनना चाह रहा है। 

जहाँ तक यूक्रेन का संबंध है वह रूस के हमले को बहादुरी के साथ रोक रहा है। शुरू में यह अकेला था लेकिन अब इसकी मदद के लिए नाटो देश खड़े हो गए हैं। इनके द्वारा सैन्य साजो-सामान के अलावा भारी आर्थिक मदद भी शुरू कर दी गई है। यद्यपि यूक्रेन के फौजियों की संख्या रूस के मुक़ाबले चौथाई है, फिर भी यूक्रेनी सेना अपनी पूरी ताकत से यह युद्ध लड़ रही है। इस बीच यूक्रेन के करोड़ों नागरिक भी अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिये इस युद्ध में कूदने लगे हैं। यह स्थिति रूस के लिए बहुत ही निराशाजनक होगी। यूक्रेन के नागरिकों द्वारा युद्ध में कूदे जाने से एक तो यूक्रेन के फौजियों का हौसला बढ़ेगा, दूसरे इससे रुसी फौजों का हौसला टूटेगा। क्यूंकि अब वें यह समझ जाएंगे कि यूक्रेन में अब यह युद्ध गली-गली और मौहल्लो-मौहल्लों में होगा जहाँ वें घेर कर यूक्रेन के नागरिकों द्वारा मारे जाएंगे। यही कारण है कि रूस के राष्ट्रपति पुतिन यूक्रेन के नागरिकों को धमकी दे रहे हैं कि वें युद्ध में ना कूदें, नहीं तो उनका बुरा हश्र होगा। लेकिन यूक्रेन के नागरिकों ने रूस की इस धमकी को सुना-अनसुना कर दिया है और वें अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए सर पर कफ़न बांधकर कूद पड़े हैं। जब विदेशी हमले के बाद हमलावरों से मुक़ाबला करने के लिए जनता युद्ध में कूद पड़ती है तो इतिहास बताता कि हमलावर देश के लिए यह स्थिति बहुत संकटपूर्ण हो जाती है। तब इसका नतीजा यही निकलता है कि हमलावर देश के सनकी राष्ट्र अध्यक्षों को मजबूरन अपनी सेना को अपनी सीमा के अंदर बुलाना पड़ता है। लगता है कि अब यूक्रेन पर हमला किये जाने के बाद रूस को एक बार फिर अपनी सेना अपनी सीमा के अंदर बुलानी पड़ेगी। विदेशी हमलावर युद्ध में स्थानीय लोगों के शामिल होने के बाद किस प्रकार शर्मनाक हार का सामना करके अपनी सीमाओं को अपने देश में बुला लेते हैं, इसका ताज़ा सबूत अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी कब्ज़े और हमला था। अफ़ग़ानिस्तान पर अमेरिका द्वारा लगभग 20 साल तक अपना कब्ज़ा रखने के बाद अफ़ग़ान लोगों द्वारा लगातार इसका सशस्त्र विरोध के बाद आखिरकार यहाँ से अमेरिका को भागना पड़ा। इससे पहले अफ़ग़ानिस्तान पर ही सोवियत संघ (रूस जिसका अवशेष है) द्वारा किये गए कब्ज़े के खिलाफ अफ़ग़ान जनता उठ खड़ी हुई थी और अपने सशस्त्र विरोध से सोवियत संघ को अफ़ग़ानिस्तान पर से अपना कब्ज़ा हटाने के लिए विवश कर दिया था। तो इससे सोवियत संघ के अवशेष मौजूदा रूस को यह जान लेना चाहिए कि अब यूक्रेन पर कब्ज़े का उसका सपना वहां के नागरिकों द्वारा युद्ध में कूद जाने के बाद पूरा नहीं होगा। वर्षों पहले वियतनाम पर अमेरिका द्वारा किये गए कब्ज़े का विरोध वहां के नागरिकों द्वारा किया गया। जिसके कारण अमेरिका को वहां से भी भागना पड़ा था। यूक्रेन पर रूस का अभी कब्ज़ा नहीं हुआ है। इससे पहले ही यूक्रेन के लोग रूस का मुक़ाबला करने के लिए खड़े हो गए हैं, जो इस बात का स्पष्ट इशारा है कि रूस को वहां से भागना पड़ेगा।


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा

यूक्रेन रूस का 'आसान निवाला' नहीं बन पाएगा

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