यह बात कैसे और किसने प्रचलित की कि महाशौर्य जयचंद ने अपने तत्कालीन राजा पृथ्वीराज चौहान से गद्दारी कर मोहम्मद गौरी को आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था? इतिहास में ऐसा कोई उल्लेख नहीं मिलता की महाप्रतापी राजा जयचंद ने पृथ्वीराज को हरवाने में कोई भूमिका निभाई थी। मुस्लिम आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी की सहायता करने के विपरीत इसने स्वयं मोहम्मद गौरी से युद्ध किया और उस युद्ध में मारा गया। जो लोग जयचंद को मोहम्मद गौरी के हाथों पृथ्वीराज चौहान की हार का कारण मानते हैं उन्हें इतिहास का कोई ज्ञान नहीं है। ऐसे ही लोगों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रवक्ता संबित पात्रा शामिल हैं। जिनके द्वारा बुधवार 12/8/2020 को एक खबरिया चैनल आजतक पर आयोजित एक 'डिबेट' में संबित पात्रा द्वारा डिबेट में कांग्रेस की ओर से हिस्सा ले रहे इसके राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव त्यागी को बार-बार जयचंद कहा गया अर्थात गद्दार जिससे उनकी मृत्यु हो गई। संबित पात्रा, उनकी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), अन्य हिन्दू संगठनों और कुछ चैनलों द्वारा मोदी सरकार की आलोचना बर्दाश्त नहीं है। यह चाहते हैं कि मोदी सरकार की कोई आलोचना ना की जाए चाहे मोदी सरकार हर मोर्चे पर विफल ही क्यों ना रहे? यह लोग लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका को नगण्य और मोदी का विरोध करने वालों को राष्ट्रविरोधी, देशद्रोही और देश के गद्दार के रूप में देखते हैं जबकि संविधान केंद्र और राज्य सरकारों के मुखरविरोध का अधिकार देता है। आज अपनी सरकार का विरोध सहन ना करने वाले स्वर्गवासी प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की इसलिए आलोचना करते नहीं थकते कि उनके द्वारा विपक्ष का गला घोटने के इरादे से देश में आपातकाल लगा दिया गया था। क्या मोदी राज में विपक्ष द्वारा सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाए जाने पर विपक्ष को गद्दार (जयचंद) कहे जाने का कदम देश में आपातकाल लगाने की शुरुआत तो नहीं है?
किसी को जयचंद कहा जाना एक बहुत बड़ी गाली समझी जाती है क्योंकि इसका अर्थ यह होता है कि जयचंद कहा जाने वाला व्यक्ति देश का गद्दार है अर्थात किसी को सीधे गद्दार ना कहकर उसे जयचंद कह दिया जाता है। तो सवाल उठता है कि क्या जयचंद देश का गद्दार था? क्योंकि उसने पृथ्वीराज चौहान से अपनी निजी दुश्मनी के कारण मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था। इस संबंध में इतिहास में कोई प्रमाणित सत्य नहीं मिलता है। इतिहासकार आर. सी. मजूददार (अन्सिएंट इंडिया) के अनुसार इस कथन में कोई सत्यता नहीं है कि महाराज जयचंद ने पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिए मोहम्मद गौरी को आमत्रित किया हो। इसी तरह यही बात जे. सी. पोवल ने अपनी पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया' में लिखा है कि पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण करने के लिए मोहम्मद गौरी को आमंत्रित नहीं किया था। एक अन्य इतिहासकार डॉ० राम शंकर त्रिपाठी कहते हैं कि जयचंद पर यह आरोप गलत है क्योंकि समकालीन मुसलमान इतिहासकार इस बात पर पूर्णतया मौन है कि जयचंद ने ऐसा कोई निमंत्रण भेजा हो। इतिहासकार महेंद्र नाथ मिश्र का कहना है कि यह धारणा कि मुसलमानों को पृथ्वीराज पर चढ़ाई करने के लिए जयचंद ने आमंत्रित किया, निराधार है। उस समय के कतिपय ग्रन्थ प्राप्य है किन्तु किसी में भी इस बात का उल्लेख नहीं है। पृथ्वीराज विजय, हमीर महाकाव्य, रम्भा मंजरी, प्रबंध कोश व किसी भी मुसलमान यात्री के वर्णन में ऐसा उल्लेख नहीं है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि जयचंद ने चंदावर में मोहम्मद गौरी से शौर्यपूर्ण युद्ध किया था। तत्कालीन मुस्लिम इतिहासकार इब्न नसीर ने अपनी पुस्तक 'कामिल उल तारीख' (पूर्ण इतिहास) में लिखा है, "यह बात नितांत असत्य है कि जयचंद ने शहाबुद्दीन गौरी को पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया। शहाबुद्दीन गौरी अच्छी तरह जानता था कि जब तक उत्तर भारत में महाशक्तिशाली जयचंद को परास्त ना किया जाएगा दिल्ली और अजमेर आदि भू-भागों पर किया गया अधिकार स्थायी ना होगा क्योंकि जयचंद के पूर्वजों ने और स्वयं जयचंद ने तुर्कों से अनेकों बार मोर्चा लेकर हराया था।" अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया नामक इतिहास विषयक पुस्तक में इतिहासकार स्मिथ ने इस आरोप का कहीं उल्लेख नहीं किया है। डॉ राजबली पाण्डे ने अपनी पुस्तक प्राचीन भारत में लिखा है, "यह विश्वास कि गौरी को जयचंद ने पृथ्वीराज के विरुद्ध निमंत्रण दिया था, ठीक नहीं जान पड़ता क्योंकि मुसलमान लेखकों ने कही भी इसका ज़िक्र नहीं किया है।"
जहाँ तक जयचंद की पृथ्वीराज से शत्रुता के आधार पर पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिए मोहम्मद गौरी को आमंत्रित करने की बात की जाती है वह भी नितांत काल्पनिक है। पृथ्वीराज से जयचंद की शत्रुता का कारण इसकी पुत्री संयोगिता का पृथ्वीराज द्वारा अपहरण कर लिया जाना बताया जाता है इस शत्रुता के कारण जयचंद ने पृथ्वीराज पर कई बार हमला किया और परास्त हुआ। लेकिन शोधकर्ता इतिहासकारों ने इस कहानी को मानने से इंकार कर दिया क्योंकि उनका कहना है कि संयोगिता नाम की जयचंद की कोई पुत्री ही नहीं थी इसलिए संयोगिता हरण की बात पूरी तरह झूठी साबित होती है। हाँ! हो सकता है कि उनके बीच के आपसी मतभेदों की कोई और वजह रही हो, लेकिन उससे संबंधित कोई दस्तावेज भी इतिहास में नहीं मिलता। इसके अलावा जिस बात को लेकर राजा जयचंद को देशद्रोही कहा जाता है यानी गौरी को भारत पर आक्रमण का न्यौता देने वाला तथ्य से संबंधित कोई प्रमाणित लेख नहीं है। मोहम्मद गौरी के पहले आक्रमण के समय तराईन में जो युद्ध हुआ उस समय पृथ्वीराज ने इस युद्ध में उनका साथ देने के लिए जयचंद के अलावा दूसरे राजाओं को युद्ध के लिए आमंत्रित किया। ऐसे में तराईन के पहले युद्ध में जयचंद की कोई भागीदारी नहीं रही। इस युद्ध में पृथ्वीराज ने मोहम्मद गौरी को परास्त कर दिया। मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज से बदला लेने के लिए जब दूसरी बार पृथ्वीराज पर आक्रमण किया तब भी पृथ्वीराज ने जयचंद से मदद नहीं मांगी और पृथ्वीराज की दूसरे तराईन युद्ध में मोहम्मद गौरी से भिड़ंत हुई। इस युद्ध में पृथ्वीराज अपनी 3 लाख की सेना और मोहम्मद गौरी अपनी 1 लाख 20 हज़ार की सेना के साथ एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे थे। आरम्भ में पृथ्वीराज का पलड़ा भारी पड़ रहा था लेकिन मोहम्मद गौरी के घुड़सवार दस्तों के आने के बाद पृथ्वीराज की सेना कमज़ोर हुई और मोहम्मद गौरी के सैनिकों द्वारा पृथ्वीराज की सेना में शामिल हाथियों पर तीरों से हमला किए जाने के कारण हाथियों में भगदड़ मच गई और उन्होंने पृथ्वीराज के हज़ारों सैनिकों को कुचलकर मार दिया। हाथियों की इस भगदड़ का गौरी की सेना ने लाभ उठाया और पृथ्वीराज को परास्त कर बंदी बना लिया गया जिनकी बाद में हत्या कर दी गई।
जयचंद से संबंधित उक्त ऐतिहासिक तथ्य यह कहीं नहीं बताते कि जयचंद ने पृथ्वीराज या भारत के साथ गद्दारी की। अगर जयचंद ने पृथ्वीराज को हराने में मोहम्मद गौरी की मदद की होती तो मोहम्मद गौरी द्वारा तीसरी बार भारत आने के बाद कन्नौज पर आक्रमण ना किया जाता जहाँ जयचंद का राज था। कन्नौज पर आक्रमण के समय जयचंद का मोहम्मद गौरी से युद्ध हुआ जिसमें जयचंद मारा गया। यह तथ्य बहुत स्पष्ट इस बात की ओर संकेत करता है कि जयचंद ने मोहम्मद गौरी की कोई मदद नहीं की और मोहम्मद गौरी ने अपनी सेना के बलबूते पर पृथ्वीराज की सेना को पराजित किया। इसलिए जयचंद को किसी भी प्रकार से गद्दार नहीं कहा जा सकता। वह एक पराक्रमी और शक्तिशाली राजा था जिसमें राष्ट्रभक्ति और देशभक्ति कूट-कूट कर भरी हुई थी। जयचंद को गद्दार कहने वालों को इतिहास का अवलोकन करना चाहिए।
- रोहित शर्मा विश्वकर्मा।
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