Sunday, August 2, 2020

क्या 5 अगस्त को राम मंदिर निर्माण का शिलान्यास विनाशकारी साबित होगा?

अंततः अयोध्या में बाबरी मस्जिद के स्थान पर एक भव्य राम मंदिर के निर्माण की तारीख निर्धारित कर दी गई है। उस दिन मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन कार्यक्रम का आयोजन किया गया है जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिस्सा लेंगे। राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन कार्यक्रम की तिथि का ऐलान होने पर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने एक बयान जारी कर 5 अगस्त को होने वाले भूमि पूजन कार्यक्रम का विरोध किया है और यह स्पष्ट किया है कि उस दिन राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया जाना विनाशकारी साबित होगा क्योंकि राम मंदिर निर्माण के लिए शिलान्यास का समय अशुभ है क्योंकि यह भाद्रपद मास में होने जा रहा है। भाद्रपद मास में होने वाले काम विनाशकारी होते हैं। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के अतिरिक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनावी क्षेत्र वाराणसी के कई साधु-संतों ने भी 5 अगस्त को राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किए जाने का विरोध किया है। इनमें सुमेरु पीठ के शंकराचार्य नरेंद्रानंद महाराज और वाराणसी के अविमुक्तेश्वरानन्द स्वामी शामिल हैं। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के अनुसार राम मंदिर के निर्माण का काम अगस्त माह में नहीं शुरू किया जा सकता है और अगर ऐसा किया जाता है तो इसका नकारात्मक परिणाम निकलेगा। राम मंदिर निर्माण के लिए निर्धारित की गई भूमि पूजन की तिथि का विरोध किया जाना बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर निर्माण की कार्रवाई को ईश्वर की चेतावनी के रूप में देखा जाना चाहिए क्योंकि बाबरी मस्जिद को अनुचित तरीके से हथियाया गया है। 

जहाँ तक इस देश के कट्टर हिन्दुओं का संबंध है यह क्षण उनके लिए बहुत ही हर्षजनक है क्योंकि वें अयोध्या में बाबरी मस्जिद के स्थान पर भव्य राम मंदिर के निर्माण का सपना देख रहे थे। अयोधया में राम मंदिर की शुरुआत का एक अच्छा पहलू यह होगा कि इससे देश में सौहार्द का वातावरण बनने का रास्ता खुलेगा क्योंकि इस मुद्दे को लेकर देश के हिन्दू और मुसलामानों में घृणा और नफरत का माहौल पाया जाता रहा है, जिसके कारण राम मंदिर निर्माण का आंदोलन आरंभ किये जाने के बाद से देश के विभिन्न भागों में 73 सालों में भड़के साम्प्रदायिक दंगों में हजारों लोग मारे गए। क्योंकि इस विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला दे दिया है जिसे देश के मुस्लिम समुदाय ने कानून का पालन करने वाले नागरिकों के रूप में इसे मान लिया है परन्तु उनका विचार है कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला निष्पक्ष नहीं है। यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद मुसलमानों की तरफ से एक पुनर्विचार याचिका इस उम्मीद से दायर की गई कि सर्वोच्च न्यायालय से फैसला परिवर्तित कराया जा सके। सर्वोच्च न्यायालय ने इस पुनर्विचार याचिका को यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि इसके द्वारा इस विवाद को बहुत ही गहराई से जांचा और परखा गया, इसलिए इस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार मुस्लिम समुदाय को बाबरी मस्जिद पर उनके कानूनी मालिकाना हक़ से वंचित कर दिया गया। उनका विचार है कि यह फैसला उनके साथ नाइंसाफी है और इस नाइंसाफी का बदला 'अल्लाह' उचित समय पर लेगा।

मुस्लिम समुदाय का विचार है कि अतीत में जिन लोगों द्वारा बाबरी मस्जिद को नुकसान पहुंचाया गया उनको अल्लाह ने सज़ा दी। जिन लोगों को अल्लाह ने सज़ा दी उनमें पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी, पूर्व प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव, लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और कल्याण सिंह (सभी भाजपा नेता) शामिल हैं। इनके अलावा सय्यद शाहबुद्दीन, ज़फरयाब जिलानी, जावेद हबीब आदि मुस्लिम नेता भी अल्लाह की सज़ा से नहीं बच पाए। दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गाँधी द्वारा विवादित स्थल का ताला खुलवाया गया और विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण के लिए शिलान्यास भी कराया गया। ऐसा करके उनके द्वारा बहुत बड़ी गलती की गई जिसका सुधार संभव नहीं था और दुनिया ने उनकी हिंसक मौत का मंजर देखा। दिवंगत प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव ने बाबरी मस्जिद को विध्वंस कराने वालों को रोकने के लिए कुछ नहीं किया जब लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती के नेतृत्व में हज़ारों कारसेवकों द्वारा बाबरी मस्जिद पर हमला कर इसका विध्वंस कर दिया गया। नरसिम्हा राव द्वारा बाबरी मस्जिद पर हमला किए जाने से पहले इसे बचाने के लिए वहां फ़ौज को तैनात करना चाहिए था। अल्लाह ने उन्हें इस तरह सज़ा दी कि सत्ता से बाहर होते ही उन्हें एक धोखाधड़ी के एक मामले में अभियुक्त बना दिया। धोखाधड़ी का यह मामला 'लक्खू भाई पाठक धोखाधड़ी केस' के तौर पर जाना जाता है। यह एक असाधारण अवसर था जब एक पूर्व प्रधानमंत्री के खिलाफ धोखाधड़ी का अदालत में मुकदमा चला जिसने इनके सम्मान और आदर को मलियामेट कर दिया। इस प्रकार उन्हें अपूरणीय अपमान झेलना पड़ा। लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती आज भी हर प्रकार का अपमान झेल रहे हैं। यें सभी बाबरी मस्जिद के विध्वंस की साजिश रचने के लिए अभियुक्त बनाए गए हैं और इनके खिलाफ अदालत में मुकदमा चल रहा है। लाल कृष्ण आडवाणी बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में मुख्य अभियुक्त हैं इसलिए अल्लाह द्वारा इन्हें सख्त सज़ा दी गई है। अयोध्या में बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर निर्माण के लिए उनके द्वारा एक आंदोलन चलाया गया जिसमें उन्हें देश के कट्टर हिन्दुओं का हीरो बना दिया। उस समय उनके बारे में यह समझा जा रहा था कि केंद्र में भाजपा की सरकार बनने पर उन्हें प्रधानमंत्री बनाया जाएगा। जब 1996 में दूसरे दलों के समर्थन से केंद्र में भाजपा की सरकार बनी तो उनके प्रधानमंत्री बनने का सपना चूरचूर हो गया क्योंकि समर्थक दलों ने उनके स्थान पर अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री बनाने की शर्त रखी। इस प्रकार उनके कट्टर हिन्दू नेता होने के कारण वह प्रधानमंत्री बनने से वंचित रह गए। जबकि राम मंदिर निर्माण के लिए चलाए गए इनके आंदोलन के कारण ही 1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी लेकिन इसका लाभ आडवाणी को नहीं मिल पाया। यह आडवाणी के लिए बहुत बड़ा आघात था जो उनके अपमान के रूप में सामने आया। अब 1998 में भाजपा केंद्र में फिर सत्ता में आई तब उस समय भी आडवाणी को किनारे कर दिया गया और वाजपेयी को फिर प्रधानमंत्री बना दिया गया। कांग्रेस के केंद्र में 2004 से 2014 तक सत्तासीन रहने के दौरान लाल कृष्ण आडवाणी का राजनीतिक क्षितिज से पतन हो गया और इस दौरान नरेंद्र मोदी भाजपा के कद्दावर नेता के तौर पर उभरे। मोदी के नेतृत्व में अब पार्टी ने जब 2014 में लोकसभा का चुनाव लड़ा तब पार्टी को चुनाव में पहली बार अपने दम पर बहुमत प्राप्त हुआ और पार्टी के हाथ में केंद्र की लगाम पूर्ण रूप से आई और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। उस समय लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और अन्य भाजपा के कद्दावर नेताओं को बड़ा झटका लगा जब मोदी की काबीना में उन्हें स्थान नहीं दिया गया। इसी तरह उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह बाबरी मस्जिद को विध्वंस करने की छूट दिए जाने के कारण भाजपा और कट्टर हिन्दुओं की आँखों का तारा बन गए थे। बाद में उन्हें भाजपा छोड़नी पड़ी क्योंकि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ उनका मतभेद हो गया था और इस प्रकार पार्टी में उन्हें जो आदर और सम्मान प्राप्त था वह समाप्त हो गया। उन्होंने 2009 में लोकसभा चुनाव से पहले अपनी एक राजनीतिक पार्टी बनाई जिसका नाम 'राष्ट्रीय क्रांति पार्टी' था। उन्होंने अपने राजनीतिक शत्रु मुलायम सिंह से चुनावी समझौता किया जिन्होंने उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार के दौरान कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया था जिसके नतीजे में कई कारसेवक मारे गए थे। बाबरी मस्जिद को हानि पहुंचाने वाले इन सभी मुज़रिमों को अल्लाह द्वारा सज़ा दी गई जिनके नतीजे में इनका आदर-सम्मान मलियामेट हो गया।

अब बाबरी मस्जिद के अस्तित्व को मिटाने की तैयारी हो रही है क्योंकि बाबरी मस्जिद की जगह पर भव्य राम मंदिर बनाने के लिए शिलान्यास के लिए 5 अगस्त 2020 की तारीख़ निर्धारित हो चुकी है। क्या बाबरी मस्जिद के अस्तित्व को मिटाने से संबंधित यह कार्रवाई विनाशकारी साबित होगी? इसका जवाब भविष्य में छिपा हुआ है। लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह इत्यादि को अल्लाह द्वारा दी गई सज़ा से यह संकेत मिलता है कि जो लोग बाबरी मस्जिद के अस्तित्व को नुकसान पहुंचाने में शामिल थे उन्हें अल्लाह द्वारा छोड़ा नहीं गया। वास्तव में इन लोगों को अल्लाह द्वारा इसलिए भी सज़ा दी गई क्योंकि इन लोगों द्वारा बाबरी मस्जिद को धोखाधड़ी का सहारा लेकर रामजन्मभूमि साबित करने का प्रयास किया गया। इसके लिए बाबरी मस्जिद में राम की मूर्ति रखवाई गई और इसे राम का चमत्कार बताया गया। क्या यह वास्तव में राम का चमत्कार था या फिर यह 'राम भक्तों' की धोखाधड़ी से परिपूर्ण कार्रवाई थी ताकि बाबरी मस्जिद को अवैध तरीके से कब्ज़ा कर लिया जाए? इस संबंध में सच्चाई क्या है वह ईश्वर भलीभांति जानता है और इसीलिए बाबरी मस्जिद को नुकसान पहुँचाने वालों को उसने सज़ा दी। अगर हम राम के जीवन पर नज़र डालते हैं तो पाते हैं कि उनमें ऐसा कोई गुण नहीं है जो उनके भगवान होने की ओर संकेत करता है। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जिनसे यह पता चलता है कि राम एक सामान्य व्यक्ति थे ना कि भगवान। उदाहरणार्थ जब एक सुनहरा हिरण उनकी कुटिया के पास आया तो सीता ने उस हिरण को पकड़ लाने के लिए राम से कहा। अगर राम भगवान होते तो वह उस सुनहरे हिरण का शिकार करने नहीं जाते। वह सीता को बताते कि यह तुम्हें हरण करने की रावण की चाल है। परन्तु वह भगवान नहीं थे इसलिए वह उस सुनहरे हिरण का शिकार करने के लिए निकल पड़े। इस बीच रावण आया और सीता का हरण कर लिया। जब राम और लक्ष्मण अपनी कुटिया के पास वापस आए तो उन्होंने सीता को कुटिया में नहीं पाया। दोनों बहुत चिंतित हुए और कुटिया के आसपास सीता को तलाश किया लेकिन उनकी यह तलाश विफल रही। तब वें जंगल में जाकर सीता को तलाश करने का फैसला करते हैं। वें सीता को जंगल में इधर-उधर पुकारते हैं लेकिन उन्हें जंगल में कहीं भी सीता नहीं मिलती है। रास्ते में उन्हें एक पक्षी जटायु घायल अवस्था में मिलता है। वह उन्हें सूचित करता है कि लंका का राजा रावण सीता को अपने पुष्पक विमान में हरण कर ले गया है। उस समय राम को मालूम होता है कि रावण ने सीता का हरण कर लिया है। अगर राम भगवान होते तो वह सीता को जंगल में तलाश करने में अपना समय व्यर्थ नहीं करते और उन्हें सीता के हरण से तथ्य का पता जटायु से नहीं चलता। अगर वह भगवान होते तो वह खुद जान लेते की सीता का हरण रावण द्वारा किया गया है। इसके अलावा जब वह रावण के साथ युद्ध कर रहे थे तब उन्हें यह नहीं मालूम था कि रावण की नाभि में अमृत है। यही कारण है कि राम के तीरों के हमले से रावण का सिर बार-बार धड़ से अलग होता रहा, लेकिन वह जीवित हो जाता था। रावण के भाई विभीषण ने जो राम से आकर मिल गया था, राम को रावण के अमृत धारक होने की जानकारी दी। उसने राम को रावण की नाभि पर हमला करने का परामर्श दिया। राम रावण की मृत्यु के रहस्य को नहीं जानते थे। अगर वह भगवान होते तो वह रावण की मृत्यु के रहस्य को निश्चित तौर पर जानते। वह एक सामान्य व्यक्ति थे ना कि भगवान। अगर विभीषण ने रावण की मृत्यु का रहस्य राम को ना बताया होता तो राम इस संसार के समाप्त होने तक जंग पर जंग लड़ लेने के बाद भी रावण का संहार नहीं कर सकते थे जबकि रावण अमृत धारक होने के कारण इस संसार के अंत तक जीवित रहता। यह बात राम का लव-कुश के साथ युद्ध करने से भी स्पष्ट होती है कि जिन्होंने राम के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को पकड़ लिया था। इस प्रकार लव-कुश ने राम की सत्ता को चुनौती दी जिसके परिणामस्वरूप लव-कुश और राम की सेना के बीच युद्ध हुआ। शुरू में भरत और लक्ष्मण लव-कुश के साथ युद्ध करने आए और बुरी तरह परास्त हुए। अंत में राम युद्ध के मैदान में आए और लव-कुश के साथ युद्ध किया। अगर राम भगवान होते तो उन्हें ज्ञान होता कि लव-कुश उनके पुत्र हैं। ऐसी स्थिति में वह लव-कुश से युद्ध नहीं करते। लेकिन उन्होंने लव-कुश के साथ युद्ध किया क्योंकि उन्हें नहीं मालूम था कि लव-कुश उनके पुत्र थे। यह घटनाएं बताती हैं कि राम एक सामान्य व्यक्ति थे, भगवान नहीं थे। उन्होंने अपने जीवन में कोई चमत्कार नहीं किया और उनके देहावासन के बाद उनसे किसी चमत्कार को जोड़ना स्वीकार योग्य नहीं है। जहाँ तक 1949 में बाबरी मस्जिद में मूर्ति रखकर राम का चमत्कार बताया जाता है वह पूरी तरह फ़र्ज़ी चमत्कार है। इसका सच्चाई से कोई संबंध नहीं है। क्योंकि बाबरी मस्जिद को अवैध तरीके से हथियाया गया है और उसकी जगह पर एक भव्य राम मंदिर निर्माण किया जा रहा है, यह कदम अल्लाह की नारज़गी को आमंत्रित करने वाला है जिसकी भविष्यवाणी जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने अपने उस बयान में की है कि राम मंदिर का निर्माण अशुभ मुहूर्त में किया जा रहा है जो विनाशकारी साबित होगा।

यहाँ अल्लाह द्वारा सज़ा दिए जाने से संबंधित क़ुरान की उस घटना का उल्लेख करना असंगत नहीं होगा जो पैगंबर मुहम्मद साहब के जन्म से 40-45 वर्ष पूर्व मक्का में घटी जिसमें पड़ोसी देश यमन का ईसाई राजा ने एक बड़ी सेना लेकर मक्क़ा पर चढ़ाई की। इस सेना में भारी संख्या में हाथी भी शामिल थे। ईसाई राजा का उद्देश्य था कि मक्क़ा में स्थित पवित्रतम पूजा स्थल 'काबा' को गिरा दिया जाए। जब यह सेना 'काबा' के पास पहुंची तो अल्लाह द्वारा अबाबील नामक एक छोटी चिड़िया का बड़ा झुंड भेजा जिनकी चोंच में बहुत ही छोटी-छोटी कंकड़ियां थीं। इन पक्षियों ने 'काबा' को गिराने आई सेना और इसके हाथियों पर अपनी चोंच की कंकड़ियों को गिराया जो शक्तिशाली बम के रूप में बदल गईं, जिससे हाथियों के चीथड़े बिखर गए। इस तरह वहां का दृश्य जानवरों द्वारा खाए गए चारों को उगल दिए जाने जैसा नजर आ रहा था। इस घटना का उल्लेख पवित्र क़ुरान की सूरह अल फील में हैं।


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा।

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