Saturday, April 25, 2020

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दिखावा।

इस समय सभी देशवासी लॉकडाउन के नियमों का पालन करते हुए स्वयं को घरों में कैद कर रखा है क्योंकि लॉकडाउन देश में कोरोना वायरस से लड़ने और इसको फैलने से रोकने के लिए एक प्रभावी हथियार माना जा रहा है। ये संतोषजनक बात है कि लॉकडाउन अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में लाभदायक साबित हो रहा है क्योंकि इसके नतीजे में पूरे देश में कोरोना वायरस के फैलाव को कम किया जा सका। हम देशवासियों को सलाम करते हैं कि उन्होंने कोरोना वायरस की लड़ाई को सफल बनाने में लॉकडाउन के नियमों को सख्ती से पालन किया। लॉकडाउन के नियमों में एक नियम फिज़िकल डिस्टेंसिंग का है। अब फिज़िकल डिस्टेंसिंग की व्याख्या करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि अब तक सभी लोग इस शब्द के अर्थ को समझ चुके हैं। लॉकडाउन के नियमों का पालन के साथ सभी सामाजिक और आर्थिक गतिविधियां अंजाम दी जा रही हैं क्योंकि सरकार ने इसकी अनुमति दे रखी है।                

यह दुख की बात है कि इस बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पिता का देहावसन हो गया और उनके अंतिम संस्कार में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शामिल नहीं हुए। योगी आदित्यनाथ ने अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल न होने का कारण लॉकडाउन  को बताया है। यह सच है कि क्षेत्रफल और आबादी दोनों के लिहाज से देश के इस सबसे बड़े प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कोरोना की लड़ाई से संबंधित किए जा रहे प्रबंधों पर बहुत बारीकी से नज़र रखनी पड़ रही है। ऐसी स्थिति में उनके पिता आनंद सिंह बिष्ट (89) दुनिया से चल बसे और योगी आदित्यनाथ लॉकडाउन का हवाला देते हुए उनके अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुए। वास्तव में अपने पिता की अंत्येष्टी में शामिल न होकर योगी आदित्यनाथ ने यह जाहिर किया है कि उनके लिए कोरोना वायरस की लड़ाई से संबंधित प्रबंधों की निगरानी करने का काम प्राथमिकता में शामिल है। लेकिन उनके द्वारा बताया गया ये कारण तर्कसंगत नहीं है। मेरे विचार से योगी का यह अमल देश के लोगों की विशेषकर प्रदेश की जनता की प्रशंसा हासिल करना है। एक पिता की अंत्येष्टी का मौका किसी के जीवन में बार-बार नहीं आता है। इसलिए हर पुत्र अपने पिता की अंत्येष्टी में हर हाल में शामिल होता है और स्वयं को सौभाग्यशाली समझता है। अगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लॉकडाउन के कारण अपने पिता की अंत्येष्टी में शामिल होने को जरूरी नहीं समझा तो इसका मतलब स्पष्ट है कि मृतक से उनका गहरा लगाव नहीं था। अगर उनके अपने मृतक से गहरा लगाव होता तो वो उनकी अंत्येष्टी से अनुपस्थित नहीं रहते। यह इस तथ्य से भी साबित होता है कि योगी आदित्यनाथ इलाज के लिए भर्ती अपने पिता को एम्स (दिल्ली) में भी देखने नहीं आए। कोई उनकी इस बात पर यकीन नहीं करेगा की कोरोना से लड़ाई से संबंधित राज्य सरकार के प्रयासों में व्यस्त होने के कारण वो अपने पिता की अंत्येष्टी में शामिल नहीं हुए। वो जो कह रहे हैं उसकी सच्चाई को ईश्वर ही जानता है।                  

योगी आदित्यनाथ का दिखावा उनके इस कदम से भी साबित होता है जब उन्होंने महाराष्ट्र के पालघर में दो साधुओं और उनके ड्राइवर को उग्र भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मार दिए जाने की घटना पर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से फोन पर बात की और उनसे अभियुक्तों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग की। यहां यह बताना अप्रासंगिक नहीं होगा कि उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा भाजपा शासित किसी अन्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से इस मुद्दे पर बात नहीं की। इससे योगी के हिन्दुत्वा ब्रांड का नेता बनने की ख्वाहिश का पता चलता है। ताकि वो इससे भविष्य में इससे फायदा उठा सकें। वास्तव में हमारे संविधान के संघी ढांचे का अनदेखा किया है जिसमें एक राज्य के मामले में दूसरे राज्य को दखलअंदाजी करने से रोका गया है। चूंकि योगी आदित्यनाथ ने महाराष्ट्र के मामले में दखलअंदाजी करने की गलती की है जो उनका अच्छा व्यवहार नहीं है।            

यहां यह भी ज़िक्र करना अप्रासंगिक नहीं होगा कि योगी के पास उस समय उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और भारत की पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का एम्स में जाकर उन्हें देखने के लिए काफी समय था और जब उनके पिता का इलाज एम्स (दिल्ली) में चल रहा था तो उन्हें देखने के लिए उनके पास समय नहीं था।

- रोहित शर्मा विश्वकर्मा।

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