Monday, November 9, 2020

तेजस्वी के सत्ता में आने पर बिहार में विकास का सूर्य उदय होगा

बिहार विधानसभा का ऊँट किस करवट बैठेगा इसकी भविष्यवाणी करना मुश्किल नहीं है। इस चुनाव में टकराव बीजेपी व जेडीयू और आरजेडी व उसके समर्थक दलों के महागठबंधन के बीच में है। चुनाव से पहले ही बिहार में नितीश की सरकार को उखाड़ फेंकने की बात कही जाने लगी थी। इसलिए यह तथ्य सामने आने लगा था कि नितीश सरकार इस बार सत्ता में नहीं लौटेगी। चुनाव शुरू होने पर जब सत्ता पक्ष और विपक्ष के गठबंधन की तस्वीर सामने आई तो यह स्पष्ट होने लगा कि नितीश सरकार बचाव की मुद्रा में है। जबकि विपक्ष का गठबंधन हमलावर मुद्रा में है। इसका कारण यह है कि नितीश की 15 वर्षों की सरकार द्वारा ऐसा कुछ नहीं किया गया जिससे प्रभावित होकर बिहार की जनता उन्हें चौथी बार मुख्यमंत्री बनाने के लिए उतावली है। 


जहाँ तक बिहार विधानसभा चुनाव का संबंध है यह ऐसे समय हो रहा है जिसने राज्य में भाजपा के समर्थन से चल रही नितीश सरकार के सामने बहुत कठिनाईयाँ खड़ी कर दी हैं। इन कठिनाईयों में कोरोना महामारी से और अभी हाल में आई प्रलयकारी बाढ़ से निपटने में नितीश सरकार की पूरी तरह से विफलता शामिल है। इन दोनों मुद्दों पर बिहार की जनता नितीश सरकार से बहुत नाराज़ है और अब इसे कतई बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है। नितीश सरकार द्वारा देशभर में काम कर रहे बिहार के मज़दूरों को लॉकडाउन के कारण बिहार वापस आने वाले मज़दूरों को लाने में कोई दिलचस्पी ना दिखाने के कारण भी बिहार के लोग नितीश सरकार से बहुत ही ख़फा हैं। ऐसी स्थिति में नितीश सरकार के 15 वर्षों की सरकार द्वारा बिहार के विकास के लिए कोई उल्लेखनीय काम ना किया जाना भी नितीश सरकार के लिए महंगा पड़ रहा है। इस चुनाव में 15 वर्ष की अपनी सरकार के कामों के बारे में कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाना नितीश के लिए मुश्क़िल हो रहा है। अगर कोई जवाब है तो यह है कि उनकी सरकार ने बिहार में पक्की सड़कें बनवा दी जिसके परिणामस्वरूप लोग अब 10 घंटे की यात्रा 5 घंटे में तय कर लेते हैं। बिजली की ऐसी व्यवस्था कर दी गई है कि अब हर गाँव में बिजली उपलब्ध है। इन सबसे बढ़कर राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति में बहुत सुधार हुआ है जिसके नतीजे में हर प्रकार के अपराध पर अंकुश लग गया है। अब राज्य में लोग रात में भी बिना खौफ़ आ जा सकते हैं। इन तीनों उपलब्धियों को नितीश कुमार अपनी इतनी बड़ी उपलब्धी मान रहे हैं जिसके लिए वह नोबेल पुरस्कार की कामना करते हैं अर्थात इन तीनों उपलब्धियों के आधार पर वह चौथी बार सत्ता में वापस लाए जाने की अपील कर रहे हैं लेकिन बिहार की जनता बदलाव के मूड में है क्योंकि वह बिहार का समग्र विकास चाहती है जिसपर नितीश सरकार की 15 वर्ष की सरकार द्वारा ध्यान ही नहीं किया गया। इन समस्याओं को हल करने का वादा आरजेडी महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव कर रहे हैं जिनकी ओर बिहार की जनता बहुत ज़्यादा आकर्षित है। जिन्हें लोग बिहार का उगता हुआ सूरज मान रहे हैं जो बिहार के आर्थिक पिछड़ेपन के अँधेरे को दूर कर उन्नति और प्रगति का प्रकाश लाएंगे। 


यद्यपि मोदी और नितीश द्वारा तेजस्वी महागठबंधन पर विभिन्न प्रकार के आरोप लगा रहे हैं और बिहार की जनता को गुमराह करने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं। इनके हमलों में जो बात प्रमुखता से शामिल है उनमें तेजस्वी के सत्ता में आने पर दोबारा जंगलराज कायम हो जाने, भ्रष्टाचार का फिर बोलबाला हो जाने, तेजस्वी की सरकार चलाने की अनुभवहीनता से बिहार का विकास ठप हो जाने और परिवारवाद के बढ़ जाने का आरोप शामिल है। इन आरोपों को बिहार की जनता समझ रही है और इन्हें खोखला मान रही है। यही कारण है कि अब तक की तेजस्वी की चुनावी रैलियों में बिहार की जनता की जो भीड़ नज़र आ रही है वह तेजस्वी की लोकप्रियता को साबित कर रही है। बिहार की जनता बदलाव की बात कर रही है क्योंकि वह नितीश और भाजपा की मिलीजुली निष्क्रिय सरकार से बहुत ज़्यादा नाराज़ है और अब वह इस सरकार को बिलकुल भी बर्दाश्त करने के हक़ में नहीं है। मोदी और नितीश के जंगलराज की वापसी वाले हमले का यह जवाब दिया जा रहा है कि राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) को सत्ता से 15 वर्ष तक दूर रखकर सज़ा दी जा चुकी है और इस सज़ा से आरजेडी ने सबक सीखा है। ऐसी स्थिति में तेजस्वी यादव को एक बार अवसर अवश्य देना चाहिए। क्योंकि यह आरोप लगाना गलत है कि तेजस्वी अपने पिता लालू प्रसाद यादव की तरह ही भ्रष्ट होंगे और बिहार में जंगलराज वापस लाएंगे। वह युवा है और राजनीति में अपनी लंबी पारी खेलने के इच्छुक हैं। ऐसी स्थिति में वह बिहार की जनता की आशाओं और उमंगों को सामने रखकर सरकार चलाएंगे और बिहार को विकास और उन्नति के रास्ते पर ले जाएंगे। जो 15 वर्ष के नितीश सरकार के दौरान संभव नहीं हो पाया है और इस सरकार से आगे भी इसकी संभावना नहीं है। क्योंकि नितीश और भाजपा की मिलीजुली सरकार की नज़र में बिहार के लोगों को सड़क, पानी, बिजली की सुविधाओं को उपलब्ध कराना ही विकास की चरम सीमा है। ऐसी सोच रखने वाला मुख्यमंत्री और उनकी सरकार से बिहार के विकास और उन्नति की उम्मीद नहीं की जा सकती है। जहाँ तक मोदी का सवाल है वह फ्लॉप प्रधानमंत्री साबित हो चुके हैं। उनके अब तक के 6 साल के शासनकाल में विकास और उन्नति की क्या दशा है इससे सारा देश जान रहा है? देश में ऐसा विफ़ल प्रधानमंत्री अब तक नहीं देखा गया। ऐसा विफ़ल प्रधानमंत्री बिहार की जनता को विकास के सपने दिखा रहा है। जिसको बिहार की जनता भरोसे के लायक नहीं मान रही है। वें अब भरोसा कर रहे हैं तो तेजस्वी यादव पर जो युवा है ऊर्जावान हैं और बिहार को विकास के रास्ते पर ले जाने का विचार रखते हैं। इन्हें विश्वास ही नहीं बल्कि यकीन है कि तेजस्वी यादव के आने पर बिहार की किस्मत बदलेगी।




Saturday, October 24, 2020

क्या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यौन और कामवासना के भोगी है?


जब कोई धनवान बनता है तो उसके बाद वह अय्याशियों (कामवासना) में लिप्त हो जाता है। इसके अनगिनत उदाहरण मिल जाएंगे और जब ऐसे व्यक्ति को सत्ता प्राप्त हो जाती है तो वह अपनी वासनापूर्ति के लिए हर रोज़ नई स्त्री चाहता है और जब ऐसा व्यक्ति दिखावे के लिए धर्मगुरु भी हो और किसी मंदिर का मठाधीश हो तब उसकी अय्याशी की कोई सीमा नहीं रहती। कुछ ऐसी ही बातें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बारे में कही और सुनी जाती हैं क्योंकि इनके पास बेहिसाब धन है, इनके पास सत्ता है और वह धर्मगुरु भी हैं। ऐसी स्तिथि में हमें यह जानने का अधिकार है कि उनका निजी जीवन कैसा है? क्योंकि वह राजनीति में सक्रिय हैं और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। इसलिए न केवल प्रदेश के मतदाताओं की बल्कि पूरे देश के मतदाताओं को उनसे उनके निजी जीवन के बारे में पूछने का अधिकार है और इसका जवाब जानने का भी अधिकार है। चूँकि योगी आदित्यनाथ राजनीति में आने के कारण पब्लिक फिगर (सार्वजनिक हस्ती) बन गए हैं इसलिए उनका निजी जीवन उनका अपना नहीं रहा। इनके निजी जीवन के बारे में तो उनसे उसी वक़्त पूछा जाना चाहिए था जब 1998 में इन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और गोरखपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीतकर सांसद बने थे। उस समय वह बिलकुल युवा थे और उनकी आयु लगभग 26 वर्ष की थी। जब इनमें यौन इच्छा और कामवासना का तूफ़ान उठ रहा होगा क्योंकि यही वो समय होता है जब व्यक्ति यौन इच्छा और कामवासना की आपूर्ति के लिए हैवान तक बन जाता है। जिनके अनगिनत उदाहरण मौजूद हैं।

 

हम यहाँ योगी आदित्यनाथ के निजी जीवन में यौन इच्छा और कामवासना की इच्छा की आपूर्ति पर इसलिए बहस करना चाहते हैं क्योंकि वह स्वयं को योगी कहते हैं जिसका अर्थ होता है कि उन्हें अपनी सभी इच्छाओं पर नियंत्रण हासिल है। यहाँ यह सवाल उठता है कि क्या उन्हें वास्तव में अपनी सभी इच्छाओं पर जिनमें यौन इच्छा और कामवासना शामिल है? जहाँ तक एक सच्चे और असली योगी का संबंध है निःसंदेह उसे अपनी सांसारिक इच्छाओं पर जिनमें यौन इच्छा और कामवासना शामिल है, नियंत्रण होता है। आमतौर से योगी ऐसा ही होता है। देश में जो भी योगी हुए हैं वह संसार की मोहमाया से निकलकर परमात्मा के ध्यान में लीन होकर अध्यात्म की बुलंदियों पर पहुंचे और परमात्मा के होकर रह गए। उनमें कोई इच्छा थी तो केवल और केवल परमात्मा के ध्यान में लीन रहने की। सांसारिक जीवन से उनका कोई लेना-देना नहीं रहा। अभी हाल के दौर में पूर्वांचल के देवरिया ज़िले में एक महान योगी का दुनिया ने दर्शन किया जो देवरहा बाबा के नाम से जाने जाते हैं। जो अपनी कुटिया में एक मचान पर रहते थे और अपना दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं को पैर से आशीर्वाद दिया करते थे। एक बार स्व० प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी भी उनके पास आशीर्वाद लेने पहुंची थी तो देवरहा बाबा ने अभय मुद्रा में उन्हें अपना हाथ उठाकर आशीर्वाद दिया और कहा यही तुम्हारा कल्याण करेगा। बाद में देवरहा बाबा देवरिया से लापता हो गए और लोगों ने उन्हें हरिद्वार में देखा। उनकी आयु के बारे में विभिन्न धारणाएं थीं। कोई उन्हें 500 वर्ष का बताता था, कोई उन्हें 300 वर्ष का बताता था तो कोई उन्हें 200 वर्ष का बताता था। ऐसे सच्चे और असली योगी का नाम योगी आदित्यनाथ ने भी सुना होगा। क्या योगी आदित्यनाथ इस महान योगी जैसा स्वयं को सच्चा और असली योगी कह सकते हैं? इनका सारा जीवन इस बात का सबूत है न यह सन्यासी हैं, न यह योगी हैं और न यह धर्मगुरु हैं। उत्तराखंड के पौढ़ी गढ़वाल के पंचुर गाँव में उत्पन्न हुए योगी आदित्यनाथ ने अपनी पढ़ाई-लिखाई उत्तराखंड में की। बाद में वह गोरखपुर स्थित गोरखनाथ मठ पर शोध करने के लिए गोरखपुर आए और महंत अवैधनाथ से उनका संपर्क स्थापित हुआ जो उनके चाचा थे उन्होंने उनसे दीक्षा लिया और सन्यासी बन गए। 1998 में संन्यास छोड़कर राजनीति में कूद गए जो देश का सबसे गन्दा क्षेत्र है। तबसे वह देश के सबसे गंदे क्षेत्र में डुबकी लगा रहे हैं फिर भी वह स्वयं को योगी और धर्मगुरु कहते हैं। उनके द्वारा यह मुखौटा लगाए जाने के कारण कुछ अंधविश्वासी इन्हें अपना भगवान मानते हैं और इस प्रकार यह लोगों को धोखा और फरेब दे रहे हैं। ऐसे ही अंधविश्वासी आसाराम बापू को भी भगवान मान रहे थे जो एक बलात्कारी निकला जो इस आरोप में अभी तक जेल में बंद है। राम रहीम भी कुछ अंधविश्वासियों की नज़र में भगवान था, जब उसकी पोल खुली तो मालूम हुआ कि वह कमसिन लड़कियों से संभोग करने का रसिया था। आज वह भी जेल में है और उसे भी जमानत नहीं मिल पाई है। स्वामी नित्यानंद का भी बड़ा नाम था। यह भी अपने भक्तों में भगवान के रूप में देखा जाता था। इसकी कई वीडियो सामने आ चुकी हैं जिसमें इसके द्वारा लड़कियों से अपने बदन की मालिश करवाते हुए देखा जा सकता है। ऐसे ही 'एक भगवान' चिन्मयानन्द है जिनका एक वीडियो सामने आ चुका है जिसमें यह भगवान निर्वस्त्र होकर लड़कियों से अपनी मालिश करवाता हुआ नजर आता है। यह भगवान भी बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार होकर जेल जा चुका है और महीनों जेल की रोटियां खाने के बाद अब जमानत पर जेल से बाहर आ गया है इसका भव्य स्वागत योगी आदित्यनाथ के समर्थकों द्वारा किया गया। दिलचस्प बात यह है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा पुलिस प्रशासन को इस मंशा का पत्र लिखा गया है कि चिन्मयानन्द के खिलाफ लगाए गए आरोपों को हटा लिया जाए। इससे योगी आदित्यनाथ के महिला विरोधी विचार का प्रदर्शन होता है जो एक बलात्कार के आरोपी को सख्त से सख्त सज़ा देने की सिफारिश करने के बजाए ऐसे बलात्कारी के खिलाफ लगाए गए बलात्कार के आरोप को हटाने के लिए चिट्ठी लिखता है। अगर चिन्मयानन्द बलात्कारी नहीं है तो अदालत द्वारा उसे आरोपमुक्त कर दिया जाएगा लेकिन आदित्यनाथ को अदालत पर भरोसा नहीं है इसलिए उन्होंने पुलिस प्रशासन को चिट्ठी लिखी है। चिन्मयानन्द जैसे बलात्कारी के साथ कोई आम आदमी ऐसी सहानुभूति नहीं रख सकता जैसी सहानुभूति उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा व्यक्त की जा रही है। यह कैसा 'भगवान' है जो एक बलात्कारी को बचाने में इतनी दिलचस्पी ले रहा है। जबकि भगवान बुराई करने वालों को सजा देता है। जो अंधविश्वासी योगी आदित्यनाथ को भगवान मानते हैं वह अपने दिमाग का दरवाज़ा खोलकर योगी आदित्यनाथ की इस महिला विरोधी हरकत को देखें और स्वयं फैसला करें कि कोई भगवान बलात्कारियों को कैसे बचा सकता हैं?

 

चिन्मयानन्द जैसे बलात्कारी के खिलाफ बलात्कार के आरोप को हटाने के लिए पुलिस प्रशासन को पत्र लिखने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चरित्रहीन होने का सबूत है क्योंकि जो जैसा होता है वह अपने ही जैसे लोगों को पसंद करता है। क्या योगी आदित्यनाथ ने चिन्मयानन्द का वह वीडियों नहीं देखा है जिसमें वह निर्वस्त्र होकर एक लड़की से अपने बदन की मालिश करवाता हुआ नजर आता है? इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि योगी आदित्यनाथ ने चिन्मयानन्द का यह वीडियो नहीं देखा होगा और उन्हें चिन्मयानन्द का अपनी यौन इच्छा और कामवासना की अवैध तरीके से आपूर्ति के लिए महिलाओं से संभोग करने की कहानी का उन्हें पता नहीं होगा? इसके बावजूद योगी आदित्यनाथ चिन्मयानन्द के साथ सहानुभूति रखते हैं तो निश्चित तौर पर निजी जीवन में उनका भी यही खेल होगा। इसका दावा मैं इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि योगी आदित्यनाथ दिखावे के लिए योगी और धर्मगुरु है। वह वास्तव में भोगी अर्थात अपनी यौन इच्छा और कामवासना की आपूर्ति के लिए महिलाओं का भोग करते हैं। मेरा उनसे यहाँ यह प्रश्न है कि क्या उन्होंने अपनी यौन इच्छा और कामवासना की आपूर्ति के लिए आजतक संभोग नहीं किया है। अगर इस प्रश्न का उत्तर वह नकारात्मक देते हैं तो इसका मतलब यह है कि वह नपुंसक हैं और उनके द्वारा यह उत्तर दिए जाने पर मेडिकल टेस्ट होना चाहिए कि वह नपुंसक हैं या पौरूष शक्ति उनमें मौजूद है। आसाराम बापू का मेडिकल टेस्ट होने पर उसमें पौरूष शक्ति के मौजूद होने का पता चला था अर्थात उसमें संभोग करने की क्षमता थी। 


योगी आदित्यनाथ सांसारिक वस्तुओं का हर तरह भोग कर रहे हैं इसका उदाहरण उनका जीवन है। कोई भी व्यक्ति सिवाय अंधविश्वासियों के उनका जीवन देखकर यही कहेगा कि वह धर्म के नाम पर दुनिया को धोखा और फरेब दे रहे हैं। इनके अंदर धर्म का ज़रा भी अंश नहीं पाया जाता है। भगवा कपड़ा पहनकर और धार्मिक बातें कहकर कोई धार्मिक नहीं बन जाता है। धार्मिक वह होता है जिसका हर क्षेत्र में धार्मिक व्यवहार होता है और समाज के लोगों में वह प्यार-मुहब्बत फैलाने की बात करता है। भोगी आदित्यनाथ के जीवन से यह सब गायब है। इस भोगी का धार्मिक मुखौटा तो उस वक़्त उतर गया जब इन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। जैसा कि मैं ऊपर लिख चुका हूँ कि राजनीति से गंदा क्षेत्र कोई नहीं है तो गंदगी के इस दलदल में कोई भी सच्चा धार्मिक व्यक्ति घुसना नहीं चाहेगा। देश के राजनीतिक इतिहास में हम किसी सच्चे धार्मिक व्यक्ति को राजनीति में हिस्सा लेते हुए नहीं पाते अर्थात हम यह नहीं पाते हैं कि कोई सच्चा धार्मिक व्यक्ति विधायक बना हो, सांसद बना हो, मंत्री बना हो, मुख़्यमंत्री बना हो या प्रधानमंत्री बना हो। ऐसा कोई उदाहरण देश में कहीं नहीं मिलता। इस भोगी की गंदी मानसिकता का उदाहरण यही है कि वह धर्म जैसे पवित्र क्षेत्र में रहते हुए भी राजनीति जैसे गंदे क्षेत्र में कूद गए और इस गंदगी का भोग कर रहे हैं। वैसे वह जिस मंदिर के मठाधीश हैं वहाँ भी यह गंदगी का भोग कर रहे हैं। इस तरह के मंदिरों का देश में क्या हाल है इसका उदाहरण लगभग 1 वर्ष पूर्व दक्षिण के एक मंदिर में देवदासी बना दी गई एक लड़की ने अपनी आत्मकथा को व्हाट्सअप पर भेजा था। उसमें उसने देवदासी बना दिए जाने पर उसने मंदिर के महामठाधीश जो बहुत मोटा और भारी भरकम शरीर वाला था द्वारा सबसे पहले अपने साथ हुए संभोग का बगैर हिचकिचाए बारीकी से वर्णन किया है। 13-14 वर्ष की इस देवदासी ने वर्णन किया है कि जब उस मठाधीश ने पहली बार उसके साथ संभोग किया तो वह पीड़ा से चींखती-चिल्लाती रही और वह तीव्र पीड़ा से तड़पती रही। लेकिन इसका ज़रा भी असर उसके साथ संभोग करने वाले महामठाधीश पर नहीं पड़ा। वह अपने साथ किए जा रहे संभोग से उत्पन्न तीव्र पीड़ा से कब बेहोश हो गई उसे पता नहीं चला। होश आने पर उसने स्वयं को निर्वस्त्र पाया और अपनी योनि को ज़ख़्मी पाया और बिस्तर पर भी काफ़ी रक्त पाया। उसने लिखा है कि उसके साथ महीनों हर रात मंदिर के अन्य पुजारी संभोग करते रहे और वह उनके द्वारा किए जा रहे संभोग से उत्पन्न पीड़ा को सहती रही। जब सभी पुजारियों द्वारा बार-बार अपनी वासना की भूख मिटा ली गई तब उसे देह बाज़ार में बेच दिया गया लेकिन वह किसी तरह वहां से बच निकली और अब गुमनाम जीवन बिता रही है। इस तरह इससे पता चलता है कि देवदासी प्रथा आज भी जारी है और यहाँ के मंदिरों के मठाधीश और अन्य पुजारी अपनी यौन इच्छा की आपूर्ति के लिए उनका इस्तेमाल करते हैं। भोगी आदित्यनाथ भी एक प्रसिद्ध मठ के महामठाधीश हैं जहाँ रोज़ाना सैंकड़ों स्त्रियां और युवतियां पूजा-पाठ के लिए आती हैं और कुछ अन्य प्रमुख अवसरों पर यहाँ हज़ारों की संख्या युवतियां और स्त्रियां पूजा-पाठ के लिए आती हैं। यद्यपि इस मठ में युवतियों और स्त्रियों के साथ हुए किसी घृणित अपराध की घटना प्रकाश में नहीं आई हैं। लेकिन यहाँ भी युवतियों और स्त्रियों के साथ हो रहे घृणित अपराध की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। इसकी संभावना इसलिए है कि भोगी आदित्यनाथ अविवाहित हैं और उन्हें अपनी कामवासना की आपूर्ति के लिए अपोज़िट सेक्स की ज़रूरत होती है जो उनके मठ में बहुतायत उपलब्ध होती हैं। वह वहां उपलब्ध जिस अपोज़िट सेक्स की ओर इशारा कर देते होंगे और उनके गुर्गे उनके कक्ष में पहुंचा देते होंगे। बाद में ऐसी अपोज़औिट सेक्स का कोई अता-पता नहीं चलता होगा। यहाँ यही खेल वर्षों से चल रहा होगा। लेकिन हमारा यह दावा है कि यह पाखंडी योगी आदित्यनाथ कामवासना में पूरी तरह लिप्त है। क्योंकि जब महादेव अपनी कामवासना पर नियंत्रण नहीं कर पाए और इसकी आपूर्ति के लिए पार्वती से विवाह किया तो ढोंगी आदित्यनाथ से क्या यह आशा की जा सकती है कि वह अपनी कामवासना पर नियंत्रण कर स्त्रियों का भोग नहीं करते हैं? इस तरह के मठ में स्त्रियों के साथ बलात्कार का ज्वलंत उदाहरण बनारस का विश्वप्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर है। जहाँ इसके एक हिस्से को बादशाह औरंगज़ेब द्वारा ध्वस्त करा दिया गया था और वहां ज्ञानवापी मस्जिद बनवा दी गई थी। इसका कारण यह था कि औरंगज़ेब के एक हिन्दू सेनापति की पत्नी के काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा-पाठ के उद्देश्य से जाने पर उनका अपहरण कर लिया गया और मंदिर के तहखाने में ले जाकर उससे बलात्कार किया गया और उसके जेवरात लुट लिए गए थे। इस घृणित ऐतिहासिक घटना का उल्लेख डॉ० पट्टाभि सीतारमैया द्वारा 1946 में प्रकाशित अपनी पुस्तक 'फीदर्स एंड स्टोन्स' में किया गया है। काशी विश्वनाथ मंदिर में घटी यह घृणित घटना ज़ाहिर है पहली घटना नहीं रही होगी। इस मंदिर में इससे पहले लाखों स्त्रियों और बालिकाओं के साथ बलात्कार किया गया होगा। उनके आभूषण लुटे गए होंगे और संभवतः बहुतों की हत्या भी कर दी गई होगी। हिन्दू धर्म के इस अति महत्वपूर्ण मंदिर में लाखों स्त्रियों के साथ हुई बलात्कार की घटनाओं ने इस पवित्रतम मंदिर को घोर अपवित्र कर दिया जिसे बादशाह औरंगज़ेब बर्दाश्त ना कर सका और उसे ध्वस्त करा दिया गया। यहाँ पर उक्त हिन्दू सेनापति की पत्नी की इच्छा पर ज्ञानवापी मस्जिद बना दी गई। यह है ज्ञानवापी मस्जिद के निर्माण की सच्ची कहानी। जो काशी विश्वनाथ मंदिर मोक्ष प्राप्ति करने का ज़रिया है वहां ऐसे घृणित अपराध हो रहे हों इससे मंदिर के महंतों और पुरोहितों का घृणित चेहरा बेनकाब होता है। बहुत संभव है कि आज भी काशी विश्वनाथ मंदिर में स्त्रियों के साथ वही सब कुछ हो रहा होगा जो बादशाह औरंगज़ेब के ज़माने में हो रहा था। 


भोगी आदित्यनाथ के गोरखनाथ मंदिर में क्या ऐसा नहीं हो रहा होगा इससे इंकार नहीं किया जा सकता? क्योंकि आदित्यनाथ पाखंडी हैं और धर्म का चौला लोगों को दिखाने के लिए पहन रखा है और अपने नाम के आगे योगी शब्द जोड़कर लोगों को यह बता रहे हैं कि यौन इच्छा और कामवासना की आपूर्ति से वह 'बहुत ऊपर' हैं। लेकिन उनका जीवन यह बता रहा है कि वह सांसारिक वस्तुओं का भोग एक सामान्य व्यक्ति की तरह कर रहे हैं जिसमें स्त्रियों का भोग भी शामिल है। अगर ऐसा नहीं है तो भोगी आदित्यनाथ बताएं कि उन्होंने आजतक स्त्री का भोग किया है कि नहीं? अर्थात क्या उन्होंने आजतक अपनी यौन इच्छा और कामवासना की आपूर्ति की या नहीं। क्योंकि वह अविवाहित हैं इसलिए उनके द्वारा किसी से नाजायज तरीके से संभोग किया जा रहा होगा। मुझे यह पोस्ट इसलिए विवश होकर लिखनी पड़ रही है क्योंकि आदित्यनाथ स्वयं को योगी और धर्मगुरु कहते हैं। इसके बावजूद वह सांसारिक गतिविधियों में पूर्ण रूप से लिप्त हैं। जो किसी सच्चे सन्यासी और सच्चे योगी के जीवन में नज़र नहीं आता है। 


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा



नोट : सभी पाठकों से अनुरोध है कि इस पोस्ट को ज़्यादा से ज़्यादा और तब तक शेयर करते रहे जब तक योगी आदित्यनाथ अपने नाम के आगे से योगी शब्द को हटा लें या राजनीति से सन्यास लेलें।


 

Saturday, September 5, 2020

नार्कोटिक कन्ट्रोल ब्यूरो की विफलता से फलफूल रहा है ड्रग का धंधा।


सुशांत सिंह राजपूत की मौत का मामला ड्रग्स की खरीद-फरोख्त की दिशा में हो गया है क्योंकि रिया द्वारा व्हाट्सअप पर किए गए चैट से ड्रग्स की खरीदारी का मामला कथित तौर पर सामने आया जिसकी जांच नार्कोटिक कन्ट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) द्वारा की जा रही है। जांच के दौरान ड्रग्स की सप्लाई करने वाले दो व्यक्ति गिरफ्तार किए गए। इसके बाद रिया के भाई शौविक चक्रवर्ती और सुशांत सिंह राजपूत के हाउस मैनेजर सैमुअल मिरांडा को ड्रग्स खरीदने और इसके प्रयोग के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। सवाल उठता है कि देशभर के शहरों में ड्रग्स की मार्केट में उपलब्धि कैसे संभव होती है? जबकि देशभर में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) का ऑफिस मौजूद है जिसका काम यही है कि वह मार्केट में ड्रग्स की स्मग्लिंग और इसकी उपलब्धिता को रोके। तथ्य बताते हैं कि यह दोनों काम जोर-शोर से चल रहा है  इसलिए युवक और समाज बेधड़क हो रहा है। जाहिर है यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि नार्कोटिक्स कन्ट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) अपनी जिम्मेदारी निभाने में पूरी तरह विफल है क्योंकि ब्यूरो में भ्रष्टाचार व्याप्त है जिसके परिणामस्वरूप ब्यूरो के कर्मचारियों और अधिकारियों की ड्रग का धंधा करने वालों से कथित तौर पर मिलीभगत होती है। इस मिलीभगत के कारण जहां ब्यूरो के लोग करोड़ों-अरबों की उगाही करते हैं वहीं दूसरी तरफ़ देश के युवा और समाज का संपन्न वर्ग ड्रग्स के आदि होकर अपना जीवन बर्बाद कर रहे हैं। अगर एनसीबी हर शहर में ईमानदारी से अभियान चलाए तो हज़ारों लोग हर शहर में ड्रग का प्रयोग करने के आरोप में गिरफ्तार किए जाएंगे। ऐसी स्थिति में रिया चक्रवर्ती के भाई शौविक चक्रवर्ती की ड्रग के प्रयोग के आरोप में गिरफ्तारी ब्यूरो द्वारा अपनी नाकामियों को छुपाने की कोशिश कर रहा है।


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा।

Thursday, September 3, 2020

प्रशांत भूषण को दी गई सज़ा सर्वोच्च न्यायालय का संविधान और लोकतंत्र पर हमला।



देश के जाने-माने वकील और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के जजों की आलोचना किए जाने पर उन्हें सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना का दोषी पाया गया और उसके लिए उन्हें 1 रुपये का जुर्माना लगाया गया है। जुर्माना अदा न करने पर 3 माह की जेल की कैद और सर्वोच्च न्यायालय में 3 साल तक प्रेक्टिस पर पाबंदी की सजा सुनाई गई है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने प्रशांत भूषण द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के जजों की की गई आलोचना को बहुत गंभीर माना और इसे सर्वोच्च न्यायालय के अपमान के रूप में देखा। इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय की इस खंडपीठ ने प्रशांत भूषण से माफी मांगने को कहा, लेकिन प्रशांत भूषण ने माफी मांगने से साफ-साफ इंकार कर दिया और कहा कि मुझे जो सजा दी जाएगी, मैं उसे भुगतने के लिए तैयार हूं। अदालत की अवमानना के संबंध में जो कानून है उसमें किसी आरोपी को ₹ 2000 का जुर्माना या तीन माह की कैद की सजा या फिर यह दोनों ही सजा किसी आरोपी को दी जा सकती है। चूंकि प्रशांत भूषण का यह मामला संविधान द्वारा नागरिकों को दी गई अभिव्यक्ति की आज़ादी से संबंधित है। इसलिए प्रशांत भूषण ने इस मामले में माफी मांगने से इंकार कर दिया और संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की आज़ादी की सुरक्षा के लिए खड़े हो गए जिसका देशभर में स्वागत किया गया और यह भी कहा गया कि प्रशांत भूषण हरगिज़ माफ़ी ना मांगे। प्रशांत भूषण के इस अडिग रवैये को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा ऐसी सजा सुनाई गई जिसे मानने के लिए प्रशांत भूषण इसे मानने के लिए विवश हो जाएं। किसी अदालत द्वारा किसी आरोपी को दी गई सजा को भुगतना अलग बात है और किसी सजा को भुगतने के लिए विवश करना अलग बात है अर्थात इस मामले में कोर्ट की अवमानना की सजा या ₹ 2000 जुर्माना या तीन माह की कैद की सज़ा या फिर दोनों सज़ाएं हैं। प्रशांत भूषण माफी ना मांगकर इस सज़ा को भुगतने के लिए तैयार थे लेकिन सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने प्रशांत भूषण के लिए इस कानूनी सज़ा को काफी नहीं समझा। चूंकि खंडपीठ ने प्रशांत भूषण द्वारा जजों की आलोचना को सर्वोच्च न्यायालय के अपमान के रूप में देखा इसलिए वें प्रशांत भूषण द्वारा कानूनी सज़ा को भुगते जाने को सामान्य सज़ा समझते थे।


यह ऐसी सज़ा थी जिससे सर्वोच्च न्यायालय की मंशा नहीं पूरी होती थी। दरअसल सर्वोच्च न्यायालय यह चाहता था कि प्रशांत भूषण को ऐसी सजा दी जाए जो प्रशांत भूषण की आत्मा तक को हिला दे। इस तरह सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने प्रशांत भूषण को ऐसी सजा दी क्योंकि प्रशांत भूषण जुर्माना और कैद की सजा को बिना झिझक भुगत सकते थे लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने वकालत की अपनी प्रेक्टिस पर पाबंदी को नहीं सहन सकते थे। ऐसा लगता है कि कोर्ट की मंशा यह भी थी कि प्रशांत भूषण को अवमानना की कानूनी सज़ा को भुगतने से देश के लोगों की नज़र में इन्हें हीरो बनने से भी रोका जाए। यह बात निश्चित है कि अगर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रशांत भूषण को अवमानना की कानूनी सज़ा दी जाती तो प्रशांत भूषण उस सज़ा को बेझिझक भुगतने को तैयार होते जिसके नतीजे में पूरे देश में संविधान बचाओ उग्र आंदोलन शुरू हो जाता विशेषकर सुप्रीम कोर्ट के जजों और स्वयं सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ भी यह आंदोलन भड़क उठता। इस प्रकार मोदी सरकार के दौरान सुप्रीम कोर्ट काम कर रहा है इससे देश में भारी नाराजगी पाई जा रही है। सर्वोच्च न्यायालय के जज अपने फैसले के जरिए सर्वोच्च न्यायालय की गरिमा को मिट्टी में मिला रहे हैं और संविधान और लोकतंत्र पर कुठाराघात भी कर रहे हैं। जिसको बचाने की इनकी ज़िम्मेदारी थी। अयोध्या विवाद की सुनवाई करने वाली मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने जिस प्रकार न्याय की हत्या करते हुए केंद्र सरकार के इशारे पर हिंदुओं के पक्ष में फैसला दिया उसकी जितनी भी निंदा की जाए कम है क्योंकि इस फैसले ने सर्वोच्च न्यायालय के जजों की औकात को बता दिया है। राम मंदिर के पक्ष में फैसला देने के बदले में मोदी सरकार ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा का मनोनीत सदस्य बना लिया। क्या यह सर्वोच्च न्यायालय के जजों के लिए शर्मनाक बात नहीं है और क्या इससे सर्वोच्च न्यायालय और इसके जजों की गरिमा मिट्टी में नहीं मिलती? सर्वोच्च न्यायालय के जजों को प्रशांत भूषण द्वारा उनकी आलोचना से उनका और सर्वोच्च न्यायालय का अपमान हो जाता है जबकि यह आलोचना संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी का हिस्सा है।


सवाल उठता है कि क्या सर्वोच्च न्यायालय के जज ईश्वर हैं जो उनकी आलोचना नहीं की जा सकती? सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई को उनकी रिटायरमेंट के चंद माह बाद राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किए जाने से सर्वोच्च न्यायालय का जो अपमान हुआ है वह अपमान क्या प्रशांत भूषण को सज़ा देने वाली सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ को नहीं दिखाई पड़ा। पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई का राज्यसभा सदस्य मनोनीत किया जाना सर्वोच्च न्यायालय को रसातल में पहुंचाने के बराबर है। इस घटना ने देश के लोगों का विश्वास सर्वोच्च न्यायालय से उठा दिया है और अब प्रशांत भूषण को सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना का दोषी मानकर जो सज़ा सुनाई गई है उसने संविधान और लोकतंत्र को ढहाने का काम किया है। क्योंकि इस फैसले ने संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदत्त अभिव्यक्ति की आज़ादी को समाप्त करने का दरवाज़ा खोल दिया है।


इस फैसले से सर्वोच्च न्यायालय की तानाशाही भी सामने आती है क्योंकि प्रशांत भूषण को अवमानना की निर्धारित कानूनी सज़ा देने के बजाय उनके वकालत के पेशे पर पाबंदी लगाने की बात कही गई है। यह फैसला सुनाकर खंडपीठ के जजों ने ना सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय का अपमान किया है बल्कि इसकी रही-सही गरिमा को भी मिट्टी में मिला दिया है। प्रशांत भूषण को दी गई सज़ा खंडपीठ के जजों की कुंठा को दर्शाता है ना कि तर्कसंगत न्याय को।


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा। 

Monday, August 31, 2020

गोदी मीडिया चाहती है कि रिया ख़ुदकुशी कर ले।





फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से उनकी प्रेमिका रिया चक्रवर्ती के बारे में गोदी मीडिया ने सुशांत सिंह राजपूत की मौत के लिए इन्हें ज़िम्मेदार ठहराने का अभियान चला रखा है। इसी के साथ उनके द्वारा यह भी बताया जा रहा है कि रिया चक्रवर्ती ने सुशांत सिंह राजपूत का पैसा लूटा। इन दो बिंदुओं को लेकर गोदी मीडिया प्रतिदिन नए-नए एंगल से स्टोरी चला रहे हैं और अपनी 'खोजी' पत्रकारिता का भौंदा प्रदर्शन कर रहे हैं जिसमें झूठ और बेबुनियाद बातों का प्रयोग कर रिया चक्रवर्ती पर खतरनाक से खतरनाक हमला किया जा रहा है जिसका मकसद यही समझ में आ रहा है कि गोदी मीडिया रिया चक्रवर्ती को ख़ुदकुशी करने के लिए मजबूर कर रही है क्योंकि पिछले 75 दिनों से जिस प्रकार गोदी मीडिया रिया चक्रवर्ती के खिलाफ अपना अभियान चला रही है जिसके कारण कोई भी व्यक्ति अपना मानसिक संतुलन खोकर ख़ुदकुशी करने के लिए मजबूर हो सकता था लेकिन यह रिया चक्रवर्ती की हिम्मत और साहस है कि वह इस गोदी मीडिया के इस अत्यंत खतरनाक हमले को सहन कर रही है।


याद रहे कि सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से गोदी मीडिया ने ऐसी हास्यास्पद ख़बरें चलाई हैं जो बेबुनियाद और झूठी साबित होती जा रही है लेकिन इससे उनपर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है। इसके बावजूद यह अपने दर्शकों में रिया चक्रवर्ती के खिलाफ नफरत फैलाने वाली ख़बरें प्रतिदिन प्रसारित कर रहे हैं। अपने प्रतिदिन के प्रसारण में इनका इशारा सिर्फ और सिर्फ रिया चक्रवर्ती होती है जिसका मकसद रिया चक्रवर्ती को सुशांत सिंह राजपूत की मौत का ज़िम्मेदार ठहराना होता है। पिछले 75 दिनों से गोदी मीडिया द्वारा मीडिया ट्रायल के ज़रिए रिया चक्रवर्ती को सुशांत सिंह राजपूत की मौत का आरोपी सिद्ध कर दिया गया है और इस प्रकार मीडिया तक इसको पहुँचने से वंचित कर इस मामले में उसको सफाई देने का भी मौका नहीं दिया जा रहा है। गोदी मीडिया इस मामले को इस प्रकार पेश कर रही है कि जैसे सुशांत सिंह राजपूत की मौत एक अभिनेता की मौत नहीं बल्कि देश के कोई सबसे बड़े राजनातिक, सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों से संबंधित अत्यंत लोकप्रिय व्यक्ति की मौत का मामला है जिसकी ज़िम्मेदार फिल्मों में काम करने वाली एक तुच्छ अभिनेत्री है। जहाँ तक रिया चक्रवर्ती का सुशांत सिंह राजपूत की मौत के लिए ज़िम्मेदार होने का संबंध है इसका खुलासा विभिन्न जांच एजेंसियों द्वारा हो जाएगा। लेकिन जिस प्रकार गोदी मीडिया द्वारा इस मामले को उठाया जा रहा है कि इनके पास कोई मुद्दा नहीं है या जानबूझकर देश की जनता से संबंधित ज्वलंत मुद्दों की नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। इन मुद्दों में देश की अर्थव्यवस्था के चौपट हो जाने, करोड़ों लोगों के बेरोज़गार हो जाने देश के विकास के ठप हो जाने और कोरोना महामारी के बेलगाम हो जाने की समस्या शामिल है। इन ज्वलंत मुद्दों को इनके द्वारा इसलिए नहीं उठाया जा रहा है कि ऐसा करने से मोदी के नेतृत्व वाली मोदी सरकार कठघरे में खड़ी होगी और मोदी सरकार की अलोकप्रियता का जुलूस निकलेगा। गोदी मीडिया द्वारा प्रसारित कार्यक्रमों से कोई भी जागरूक नागरिक और दर्शक को यह समझना मुश्किल नहीं होता है जिनका मकसद सुशांत सिंह राजपूत जैसे मामले को प्रसारित कर दर्शकों को मोदी सरकार की विफलताओं, नाकामियों और कमियों को सामने आने से रोकना है जबकि मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की विफलता का सबसे बड़ा सबूत यह है कि भारत की 130 करोड़ जनता में से 80 करोड़ लोग भिखारी बन चुके हैं जिनके 2 वक़्त के खाने का प्रबंध मोदी सरकार द्वारा प्रतिमाह 5 किलो चावल या 5 किलो आटा और 1 किलो चना उपलब्ध कराया जा रहा है। देश की यह स्थिति इतनी भयावह है जिस पर गोदी मीडिया कोई खबर या कोई रिपोर्ट नहीं प्रसारित करता है। अच्छे दिन लाने का नारा देकर सत्ता में आने वाली सरकार ने देश को ऐसी स्थिति में पहुंचा दिया है जहाँ पहुंचने का किसी ने विचार भी ना किया होगा। दिलचस्प बात यह है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन देश को आर्थिक स्थिति और विकास के चौपट होने और 80 करोड़ लोगों के भिखारी बन जाने के लिए ईश्वर को ज़िम्मेदार ठहरा रही है। भारत दुनिया का पहला देश है और इसकी पहली वित्त मंत्री हैं जो देश की मौजूदा स्थिति के लिए ईश्वर को ज़िम्मेदार ठहरा रही है जबकि कोरोना महामारी से विश्व के सभी देश इस महामारी से लड़ रहे हैं और अपनी जनता को ज़्यादा से ज़्यादा सुविधाएं प्रदान कर उन्हें सम्मानजनक जीने का अवसर प्रदान कर रहे हैं क्योंकि उन्हें अपनी जनता से प्यार है। निर्मला सीतारमन जैसी वित्तमन्त्री ने देश की मौजूदा स्थिति के लिए ईश्वर को ज़िम्मेदार ठहराकर केंद्र सरकार को अपने दायित्व से पलड़ा झाड़ने का इशारा किया है। ऐसी वित्त मंत्री जो वित्त मामले में विशेषज्ञ नहीं है उसके द्वारा ऐसी ही ऊटपटांग बातें करने की आशा की जा सकती है लेकिन वित्त मंत्री ने यह ऊटपटांग बातें ना सिर्फ इनको आलोचना का केंद्र बनाती हैं बल्कि इससे पूरी मोदी सरकार की छवि धूमिल होती है और यह संदेश देती हैं कि मोदी सरकार अयोग्य लोगों की सरकार है जो अपनी कमियों, नाकामियों और विफलताओं के लिए ईश्वर को ज़िम्मेदार ठहरा रही है। इन सब बातों पर गोदी मीडिया आँख मूंदे हुए है और देश की जनता की समस्याओं को उठाने का अपना कर्तव्य भूलकर मोदी सरकार की चाटुकारिता में लगी हुई है। 


सुशांत सिंह राजपूत को जिस तरह गोदी मीडिया अपनी रिपोर्टों में पेश कर रही है उससे लगता है कि सुशांत सिंह राजपूत कोई भला व्यक्ति था और उसमें मानवीय विशेषताएं पाई जाती थी। वह होनहार था, पढ़ा-लिखा था, घर के लोगों से प्यार करने वाला था, सगे-संबंधियों से रिश्तों को निभाने वाला था। इसकी इन कथित अच्छाइयों को गोदी मीडिया प्रसारित कर नहीं थक रही है और अपने दर्शकों में सुशांत सिंह राजपूत के प्रति सहानुभूति की लहर पैदा करने का काम कर रही है जबकि रिया चक्रवर्ती को हत्यारी और लूटेरी बता रही है। वास्तव में गोदी मीडिया इस मामले को आरम्भ से ही जिस तरह पेश कर रही है उसके लिए सुशांत सिंह राजपूत को मानवीय गुणों से सुसज्जित कर रिया चक्रवर्ती को वैम्प (खलनायिका) के तौर पर पेश करना आवश्यक है ताकि यह किसी टीवी धारावाहिक की स्क्रिप्ट की तरह इसे जितना चाहें आगे बढ़ाते रहें और सरकार की उस मंशा को पूरा करते रहें कि देश की जनता के सामने सरकार की हर मोर्चे पर विफलता का तथ्य सामने ना आ सके। जहाँ तक सुशांत सिंह राजपूत की मौत का सीबीआई जांच का संबंध है पिछले 10 दिनों से ऐसा कोई खुलासा नहीं हो पाया है जो इस ओर इशारा कर रहा है कि सुशांत सिंह राजपूत की मौत में रिया का हाथ है। गोदी मीडिया ने इस केस को सुशांत सिंह राजपूत के पिता के. के. सिंह द्वारा पटना में लिखाई गई एफआईआर के बाद से इस केस को विभिन्न दिशाओं में मोड़ दिया है। इस केस में गोदी मीडिया रिया चक्रवर्ती पर सुशांत सिंह राजपूत के करोड़ों रुपयों को लूटने, उसको ज़हर देने और उसको ड्रग्स एडिक्ट बनाने का आरोप लगा रही है और इस प्रकार जांच एजेंसियों को कथित तौर पर सुराग दे रही है जिससे ऐसा लगता है कि जाँच एजेंसियां गोदी मीडिया के आगे जीरो है। इस केस को गोदी मीडिया द्वारा क्या-क्या मोड़ दिया गया इसकी यहाँ झलक प्रस्तुत करना अप्रासंगिक नहीं होगा। आरम्भ में यह कहा गया कि सुशांत सिंह राजपूत की मौत का मामला आत्महत्या नहीं हत्या है जिसमें फिल्म इंडस्ट्री के लोग और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का बेटा आदित्य ठाकरे शामिल है। इस बात के उठाए जाने पर महाराष्ट्र की राजनीति गर्म हो गई और उद्धव ठाकरे से इस्तीफे की मांग की जाने लगी। चंद दिनों के बाद यह मामला शांत हो गया तो गोदी मीडिया ने इस मामले की जांच सीबीआई द्वारा कराने का मुद्दा उठाना शुरू कर दिया। जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहूंचा तो सर्वोच्च न्यायालय इस तथ्य को भलीभाँति जानते हुए भी सीबीआई से जांच कराने का आदेश दे दिया कि सीबीआई केंद्र की कठपुतली है और वह इस मामले में वही रिपोर्ट देगी जो केंद्र चाहेगी। इस तथ्य के मद्देनजर सुशांत सिंह राजपूत मौत के मामले की सीबीआई जांच का नतीजा जो भी निकलेगा वह राजनीति से प्रेरित ही होगा। इसकी निष्पक्षता पर सवालिया निशान खड़ा रहेगा। जहाँ तक रिया चक्रवर्ती द्वारा सुशांत के करोड़ों रुपयों को लूटने का आरोप है यह भी दो दिन पहले सुशांत सिंह राजपूत के बैंक अकाउंट के विवरण के सामने आने से झूठ साबित हो गया है। इस विवरण में सुशांत सिंह राजपूत के 70 करोड़ रुपए का उल्लेख है, उसमें साफ़-साफ़ कहा गया है कि सुशांत सिंह राजपूत राजा की तरह रहता था और राजा की तरह पैसा खर्च करता था। इस बैंक अकाउंट में कहीं भी यह उल्लेख नहीं है कि रिया चक्रवर्ती को उसने करोड़ों रुपये दिए। इस बैंक अकाउंट के विवरण में रिया चक्रवर्ती पर सिर्फ लाखों रूपये खर्च करने की बात कही गई है। यहाँ यह बात उल्लेखनीय है कि सुशांत सिंह राजपूत रिया चक्रवर्ती के हुस्न में गिरफ्तार था और उसके साथ मुंबई में ही वॉटरस्टोन रिसोर्ट में ही रहता था ताकि कोई दख्लअंदाज़ी ना हो। इस रिसोर्ट में वह हफ़्तों रिया के साथ रहता था इसके अलावा वह रिया चक्रवर्ती के साथ लंदन भी गया और वहां भी वह हफ़्तों उसके साथ रहा। यही नहीं वह भारत में भी रिया के साथ लिव इन पार्टनर के तौर पर रहता था। रिया के हुस्न में गिरफ्तार सुशांत सिंह राजपूत उसे अलग नहीं रखता था। ऐसी स्थिति में अगर उसने रिया पर लाखों रुपए खर्च किए तो यह कोई 'मूल्य' नहीं रखते। मोहब्बत में लोग अपना क्या कुछ नहीं लूटा देते हैं। इतिहास में तो प्रेमिका के लिए राजाओं द्वारा अपने 'तख़्त-व-ताज' छोड़ने तक का उदाहरण देता है। लेकिन गोदी मीडिया सुशांत सिंह राजपूत के करोड़ों रुपयों को लूटने का आरोप लगा रही है। बहरहाल सुशांत सिंह राजपूत के अकाउंट के विवरण के सामने आने से यह बात साफ़ हो गई है कि रिया चक्रवर्ती द्वारा सुशांत सिंह राजपूत का पैसा नहीं लूटा। यह तथ्य गोदी मीडिया के लिए शर्मनाक है जिसकी जितनी निंदा की जाए कम है। 


इसी बीच रिया चक्रवर्ती द्वारा व्हाट्सअप पर एक-दो लोगों से गांजे (ड्रग्स) की खरीदारी के बारे में बातचीत का विवरण प्रस्तुत किया गया है और यह बताने का प्रयास किया गया है कि रिया चक्रवर्ती गांजा इस्तेमाल करती है और सुशांत सिंह राजपूत को भी इसका सेवन कराती थी। गोदी मीडिया द्वारा यह आरोप लगाया जा रहा है कि गांजे के इस्तेमाल से सुशांत सिंह राजपूत डिप्रेशन का शिकार हुआ जो रिया चक्रवर्ती की साजिश थी जबकि रिया चक्रवर्ती का कहना है कि सुशांत सिंह राजपूत ड्रग्स का इस्तेमाल उससे (सुशांत) इसकी मुलाक़ात से पहले कर रहा था। अगर रिया चक्रवर्ती ड्रग्स का इस्तेमाल कर रही है और सुशांत सिंह राजपूत ड्रग्स का इस्तेमाल कर रहा था तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। उस सोसाइटी में जिसमें सुशांत सिंह राजपूत रहता था और रिया चक्रवर्ती अब भी जिसका हिस्सा है उसमें ड्रग्स का सेवन आम है। इसको लेकर जिस प्रकार गोदी मीडिया गला फाड़-फाड़कर अपने दर्शकों को बताने का प्रयास कर रही है कि रिया चक्रवर्ती गैर-कानूनी काम में संलिप्त है। यह बड़ा हास्यास्पद है। अगर जांच की जाए तो गोदी मीडिया के मालिकों और इसके पत्रकारों में कई लोग ड्रग्स का सेवन करते हुए पाए जाएंगे। 'खोजी' पत्रकारिता के नाम पर चरित्र हनन करने वाली गोदी मीडिया यह भी आशंका जता रही है कि रिया चक्रवर्ती द्वारा ड्रग्स की बड़े पैमाने पर स्मगलिंग की जा रही है। रिया चक्रवर्ती पर यह आरोप अत्यंत गंभीर है जो बिना सबूत के लगाए जा रहे हैं और इस संबंध में यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि ड्रग्स के स्मगलिंग के इस मामले में बड़े-बड़े लोगों के नामों का पर्दाफाश होगा। गोदी मीडिया की यह घिनौनी मानसिकता अपने दर्शकों की मानसिकता को भी घिनौनी कर रही है और उन्हें एक 'गिरा हुआ' नागरिक बनाने का प्रयास कर रही है। इस केस के आरम्भ में गोदी मीडिया द्वारा फिल्म उद्योग पर भाई-भतीजावाद का आरोप लगाया गया था और इसी को सुशांत सिंह राजपूत की मौत का कारण बताया गया था ऐसी स्थिति में फिल्म उद्योग के कई जाने-माने अभिनेताओं और फिल्म निर्माताओं पर गोदी मीडिया द्वारा ऊँगली उठाई गई थी और उनके ऊपर यह आरोप लगाया गया था कि सुशांत सिंह राजपूत को आगे बढ़ने नहीं देना चाहिए थे इसलिए सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या कर ली। इस केस में इस प्रकार फिल्म उद्योग की हस्तियों से मुंबई पुलिस द्वारा 'अपराधियों' की तरह पूछताछ की गई, वह उनके लिए बड़ी शर्मनाक घटना है। ऐसा पहली बार हुआ जब उन्हें पुलिस थाने जाकर पुलिस के सवालों का जवाब देना पड़ा, उससे फिल्म उद्योग हिल गया। गोदी मीडिया द्वारा पिछले 75 दिनों से रिया चक्रवर्ती के खिलाफ झूठे, काल्पनिक और बेहूदा तथ्यों पर आधारित अभियान चलाया जा रहा है। मीडिया ट्रायल पूरी तरह निराधार साबित हो रहा है। इसके बावजूद उन्हें अपनी रिपोर्टिंग पर कोई शर्म नहीं आ रही है। यह गोदी मीडिया देश को जिस अंधकार में ले जा रही है उसकी कल्पना करना मुश्किल नहीं है। सीबीआई और दूसरी एजेंसियों द्वारा इस केस की जो जांच की जा रही है, उसके नतीजे की कल्पना मुश्किल नहीं है। इस केस में सही जांच का जहाँ तक संबंध है यह होना चाहिए था कि सुशांत सिंह राजपूत की अय्याशी का शिकार कितनी लड़कियां बनी क्योंकि गोदी मीडिया द्वारा उसके व्यक्तित्व पर डाले गए अबतक के प्रकाश से यह तथ्य सामने आता है कि सुशांत सिंह राजपूत एक अय्याश व्यक्ति था। छोटे पर्दे से लेकर बड़े पर्दे तक आने के दौरान उसके सम्पर्क में कई लड़कियां आईं जिनमें अंकिता लोखंडे भी शामिल है। सुशांत सिंह राजपूत के संबंध अंकिता लोखंडे से भी बहुत गहरे थे जो उस वक़्त टूट गए जब रिया चक्रवर्ती से सुशांत सिंह राजपूत के संबंध बने। फिल्म उद्योग में आने पर सुशांत सिंह राजपूत को यह लगा कि लड़कियों से संबंध बनाना बहुत आसान है और वह इस संबंध में आगे बढ़ता गया जिसकी आखरी कड़ी रिया चक्रवर्ती है।


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा 

Friday, August 14, 2020

देश के गद्दारों को जयचंद की उपमा दी जाती है। क्या जयचंद गद्दार था?


यह बात कैसे और किसने प्रचलित की कि महाशौर्य जयचंद ने अपने तत्कालीन राजा पृथ्वीराज चौहान से गद्दारी कर मोहम्मद गौरी को आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था? इतिहास में ऐसा कोई उल्लेख नहीं मिलता की महाप्रतापी राजा जयचंद ने पृथ्वीराज को हरवाने में कोई भूमिका निभाई थी। मुस्लिम आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी की सहायता करने के विपरीत इसने स्वयं मोहम्मद गौरी से युद्ध किया और उस युद्ध में मारा गया। जो लोग जयचंद को मोहम्मद गौरी के हाथों पृथ्वीराज चौहान की हार का कारण मानते हैं उन्हें इतिहास का कोई ज्ञान नहीं है। ऐसे ही लोगों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के  प्रवक्ता संबित पात्रा शामिल हैं। जिनके द्वारा बुधवार 12/8/2020 को एक खबरिया चैनल आजतक पर आयोजित एक 'डिबेट' में संबित पात्रा द्वारा डिबेट में कांग्रेस की ओर से हिस्सा ले रहे इसके राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव त्यागी को बार-बार जयचंद कहा गया अर्थात गद्दार जिससे उनकी मृत्यु हो गई। संबित पात्रा, उनकी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), अन्य हिन्दू संगठनों और कुछ चैनलों द्वारा मोदी सरकार की आलोचना बर्दाश्त नहीं है। यह चाहते हैं कि मोदी सरकार की कोई आलोचना ना की जाए चाहे मोदी सरकार हर मोर्चे पर विफल ही क्यों ना रहे? यह लोग लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका को नगण्य और मोदी का विरोध करने वालों को राष्ट्रविरोधी, देशद्रोही और देश के गद्दार के रूप में देखते हैं जबकि संविधान केंद्र और राज्य सरकारों के मुखरविरोध का अधिकार देता है। आज अपनी सरकार का विरोध सहन ना करने वाले स्वर्गवासी प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की इसलिए आलोचना करते नहीं थकते कि उनके द्वारा विपक्ष का गला घोटने के इरादे से देश में आपातकाल लगा दिया गया था। क्या मोदी राज में विपक्ष द्वारा सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाए जाने पर विपक्ष को गद्दार (जयचंद) कहे जाने का कदम देश में आपातकाल लगाने की शुरुआत तो नहीं है? 


किसी को जयचंद कहा जाना एक बहुत बड़ी गाली समझी जाती है क्योंकि इसका अर्थ यह होता है कि जयचंद कहा जाने वाला व्यक्ति देश का गद्दार है अर्थात किसी को सीधे गद्दार ना कहकर उसे जयचंद कह दिया जाता है। तो सवाल उठता है कि क्या जयचंद देश का गद्दार था? क्योंकि उसने पृथ्वीराज चौहान से अपनी निजी दुश्मनी के कारण मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था। इस संबंध में इतिहास में कोई प्रमाणित सत्य नहीं मिलता है। इतिहासकार आर. सी. मजूददार (अन्सिएंट इंडिया) के अनुसार इस कथन में कोई सत्यता नहीं है कि महाराज जयचंद ने पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिए मोहम्मद गौरी को आमत्रित किया हो। इसी तरह यही बात जे. सी. पोवल ने अपनी पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया' में लिखा है कि पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण करने के लिए मोहम्मद गौरी को आमंत्रित नहीं किया था। एक अन्य इतिहासकार डॉ० राम शंकर त्रिपाठी कहते हैं कि जयचंद पर यह आरोप गलत है क्योंकि समकालीन मुसलमान इतिहासकार इस बात पर पूर्णतया मौन है कि जयचंद ने ऐसा कोई निमंत्रण भेजा हो। इतिहासकार महेंद्र नाथ मिश्र का कहना है कि यह धारणा कि मुसलमानों को पृथ्वीराज पर चढ़ाई करने के लिए जयचंद ने आमंत्रित किया, निराधार है। उस समय के कतिपय ग्रन्थ प्राप्य है किन्तु किसी में भी इस बात का उल्लेख नहीं है। पृथ्वीराज विजय, हमीर महाकाव्य, रम्भा मंजरी, प्रबंध कोश व किसी भी मुसलमान यात्री के वर्णन में ऐसा उल्लेख नहीं है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि जयचंद ने चंदावर में मोहम्मद गौरी से शौर्यपूर्ण युद्ध किया था। तत्कालीन मुस्लिम इतिहासकार इब्न नसीर ने अपनी पुस्तक 'कामिल उल तारीख' (पूर्ण इतिहास) में लिखा है, "यह बात नितांत असत्य है कि जयचंद ने शहाबुद्दीन गौरी को पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया। शहाबुद्दीन गौरी अच्छी तरह जानता था कि जब तक उत्तर भारत में महाशक्तिशाली जयचंद को परास्त ना किया जाएगा दिल्ली और अजमेर आदि भू-भागों पर किया गया अधिकार स्थायी ना होगा क्योंकि जयचंद के पूर्वजों ने और स्वयं जयचंद ने तुर्कों से अनेकों बार मोर्चा लेकर हराया था।" अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया नामक इतिहास विषयक पुस्तक में इतिहासकार स्मिथ ने इस आरोप का कहीं उल्लेख नहीं किया है। डॉ राजबली पाण्डे ने अपनी पुस्तक प्राचीन भारत में लिखा है, "यह विश्वास कि गौरी को जयचंद ने पृथ्वीराज के विरुद्ध निमंत्रण दिया था, ठीक नहीं जान पड़ता क्योंकि मुसलमान लेखकों ने कही भी इसका ज़िक्र नहीं किया है।"

जहाँ तक जयचंद की पृथ्वीराज से शत्रुता के आधार पर पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिए मोहम्मद गौरी को आमंत्रित करने की बात की जाती है वह भी नितांत काल्पनिक है। पृथ्वीराज से जयचंद की शत्रुता का कारण इसकी पुत्री संयोगिता का पृथ्वीराज द्वारा अपहरण कर लिया जाना बताया जाता है इस शत्रुता के कारण जयचंद ने पृथ्वीराज पर कई बार हमला किया और परास्त हुआ। लेकिन शोधकर्ता इतिहासकारों ने इस कहानी को मानने से इंकार कर दिया क्योंकि उनका कहना है कि संयोगिता नाम की जयचंद की कोई पुत्री ही नहीं थी इसलिए संयोगिता हरण की बात पूरी तरह झूठी साबित होती है। हाँ! हो सकता है कि उनके बीच के आपसी मतभेदों की कोई और वजह रही हो, लेकिन उससे संबंधित कोई दस्तावेज भी इतिहास में नहीं मिलता। इसके अलावा जिस बात को लेकर राजा जयचंद को देशद्रोही कहा जाता है यानी गौरी को भारत पर आक्रमण का न्यौता देने वाला तथ्य से संबंधित कोई प्रमाणित लेख नहीं है। मोहम्मद गौरी के पहले आक्रमण के समय तराईन में जो युद्ध हुआ उस समय पृथ्वीराज ने इस युद्ध में उनका साथ देने के लिए जयचंद के अलावा दूसरे राजाओं को युद्ध के लिए आमंत्रित किया। ऐसे में तराईन के पहले युद्ध में जयचंद की कोई भागीदारी नहीं रही। इस युद्ध में पृथ्वीराज ने मोहम्मद गौरी को परास्त कर दिया। मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज से बदला लेने के लिए जब दूसरी बार पृथ्वीराज पर आक्रमण किया तब भी पृथ्वीराज ने जयचंद से मदद नहीं मांगी और पृथ्वीराज की दूसरे तराईन युद्ध में मोहम्मद गौरी से भिड़ंत हुई। इस युद्ध में पृथ्वीराज अपनी 3 लाख की सेना और मोहम्मद गौरी अपनी 1 लाख 20 हज़ार की सेना के साथ एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे थे। आरम्भ में पृथ्वीराज का पलड़ा भारी पड़ रहा था लेकिन मोहम्मद गौरी के घुड़सवार दस्तों के आने के बाद पृथ्वीराज की सेना कमज़ोर हुई और मोहम्मद गौरी के सैनिकों द्वारा पृथ्वीराज की सेना में शामिल हाथियों पर तीरों से हमला किए जाने के कारण हाथियों में भगदड़ मच गई और उन्होंने पृथ्वीराज के हज़ारों सैनिकों को कुचलकर मार दिया। हाथियों की इस भगदड़ का गौरी की सेना ने लाभ उठाया और पृथ्वीराज को परास्त कर बंदी बना लिया गया जिनकी बाद में हत्या कर दी गई। 

जयचंद से संबंधित उक्त ऐतिहासिक तथ्य यह कहीं नहीं बताते कि जयचंद ने पृथ्वीराज या भारत के साथ गद्दारी की। अगर जयचंद ने पृथ्वीराज को हराने में मोहम्मद गौरी की मदद की होती तो मोहम्मद गौरी द्वारा तीसरी बार भारत आने के बाद कन्नौज पर आक्रमण ना किया जाता जहाँ जयचंद का राज था। कन्नौज पर आक्रमण के समय जयचंद का मोहम्मद गौरी से युद्ध हुआ जिसमें जयचंद मारा गया। यह तथ्य बहुत स्पष्ट इस बात की ओर संकेत करता है कि जयचंद ने मोहम्मद गौरी की कोई मदद नहीं की और मोहम्मद गौरी ने अपनी सेना के बलबूते पर पृथ्वीराज की सेना को पराजित किया। इसलिए जयचंद को किसी भी प्रकार से गद्दार नहीं कहा जा सकता। वह एक पराक्रमी और शक्तिशाली राजा था जिसमें राष्ट्रभक्ति और देशभक्ति कूट-कूट कर भरी हुई थी। जयचंद को गद्दार कहने वालों को इतिहास का अवलोकन करना चाहिए।



- रोहित शर्मा विश्वकर्मा। 

Tuesday, August 4, 2020

Will the laying down of the foundation stone of Ram Temple on August 5 proved to be a destructive act?

Lastly the date for construction of Grand Ram Temple in Ayodhya at the site of Babri Mosque decided as August 5, 2020. On this day a program of Bhoomi Poojan will be held in which Prime Minister Narendra Modi will participate. On the announcement of the program relating to the Bhoomi Poojan of the Ram Temple, Jagadguru Shankracharya Swami Swaroopanand Saraswati released a statement making it clear that Bhoomi Poojan for the construction of the Ram Temple on August 5, 2020 will prove to be destructive for the nation as the time of laying down of the foundation stone of the Ram Temple is unauspicious because any work which is started in Bhadrapada Month proves to be destructive . Since the laying down of foundation stone of the Ram Temple starts on August 5 which is unauspicious date. Besides Swami Swaroopanand Saraswati, many Sadhus & Saints of Varanasi also consider August 5, 2020 as unauspicious day for the construction of the Ram Temple. Those Sadhus & Saints who are opposing the laying down of foundation stone of Ram Temple on August 5 include Shankracharya Narendranand Maharaj of Sumeru Peeth and Swami Avimukteshwaranand of Varanasi. According to Avimukteshwaranand Swami no construction of the Ram Temple in the month of August can be started. If it is not done according to the religious scriptures it will invite negative results. These voices of opposition against the date of laying down of foundation stone of Ram Temple should be seen as a warning of god for construction of Ram Temple at the site of Babri Mosque because Babri Mosque grabbed in unjust way. 

As far as the Hardcore Hindus of this country are concerned it will be a pleasant moment for them who have been dreaming for a very Grand Ram Temple to be constructed at the site of Babri Mosque in Ayodhya. A good thing for the whole country after pavement of beginning of construction of Ram Temple is the end of atmosphere of hatred and animosity between Hindu & Muslim communities of the country which have claimed a thousands of lives on having being broken out communal riots in different parts of country during last 73 years after beginning of Ram Temple construction movement. Since this decades long dispute has been finally settled, so the Muslim communities accepted the decision of Apex Court as a law abiding community but they are a views that the decision of Supreme Court is not fair. It is the reason that after judgement of Supreme Court in this dispute, a curative petition had been filed by the Muslims in the court in the hope of getting altered its decision. The Apex Court did not entertain the review petition of the Muslim community and rejected it and said that it had thoroughly looked into the matter. So there is no merit for reviewing its decision. Thus the Muslim community was deprived of its right on Babri Mosque by unfair way. They have been calling this decision as unjustice to themselves and has been saying that Allah knows the facts and he shall do justice in this matter at proper time. 

The Muslim community is of the view that all those peoples who had inflicted harm to the Babri Mosque in the past have been punished by Allah. The list of people who have been punished by Allah includes Ex-Prime Minister Rajiv Gandhi, Ex-Prime Minister P. V. Narasimha Rao, Lal Krishna Advani, Murli Manohar Joshi, Uma Bharti, Kalyan Singh (all BJP leaders ). Muslim leaders like Syed Shahabuddin, Zafaryab Jilani, Javed Habib etc. Lt. Rajiv Gandhi was involved in getting unlocked the door of Babri Mosque and getting laid down the foundation stone of the Ram Temple at the disputed site. He had commited a Himalayan blunder in this case which could not be replaced in its original position. World saw the violent death of Rajiv Gandhi. Ex-Prime Minister Narasimha Rao did not take step for stopping demolition of the Babri Mosque when thousands of Kar Sevaks led by Lal Krishna Advani, Murli Manohar Joshi, Uma Bharti etc. attacked the Babri Mosque and demolish it. Narasimha Rao could deploy army around the Babri Mosque for its protection in the wake of attack of Kar Sevaks on it. He was punished by Allah making him an accused of a cheating case which is known as ‘Lakkhu Bhai Pathak Cheating Case’. It was an extraordinary occasion that an Ex-Prime Minister was chargesheeted in a cheating case which had disrobed his respect & honour. Thus he faced irreparable humiliation. Lal Krishna Advani, Murli Manohar Joshi & Uma Bharti have been facing still all kinds of humiliation. They have been facing criminal cases for hatching a conspiracy for demolition of the Babri Mosque. Since Advani is the main culprit in the demolition of the Babri Mosque, he has been punished severly. For launching an ‘Andolan’ for construction of Ram Temple in Ayodhya at the site of Babri Mosque, he had become hero of Hardcore Hindus. Then it was understood that he would be the Prime Minister of India when Bharatiya Janata Party (BJP) government would be installed at the centre . When BJP government was installed at the centre in 1996 with the help of other parties. Thus he was denied the post of Prime Minister for his image of Hardcore Hindu leader. The allies favoured Atal Bihari Vajpayee in  place of Lal Krishna Advani for the post of Prime Ministership. Thus Atal Bihari Vajpayee became the Prime Minister of India while BJP had emerged as the single largest party after the Loksabha elections on the dint of Ram Temple construction movement in Ayodhya launched by Lal Krishna Advani but this movement could not secure Prime Ministership for Advani. This was actually a big flow for Advani which brought humiliation for him. When BJP came into power at the centre in 1998, Advani was again sidelined as Vajpayee was repeatedly made Prime Minister. During the congress rule from 2004 to 2014 went into oblivion and Narendra Modi emerged as hero of ‘Hindutva’ at the national level. In his leadership when BJP contested the Loksabha election in 2014, the Party won clear majority in the election first time and control of the Central Government came into the hand of BJP with the installation of Modi as a Prime Minister of India. It was very shocking occasion for Lal Krishna Advani, Murli Manohar Joshi and other stalwart BJP leaders for not having been given birth in the Modi cabinet. In the same way former Chief Minister of Uttar Pradesh Kalyan Singh who had allowed Kar Sevaks to demolish the Babri Mosque had become an apple in the eyes of BJP and of Hindus of the country. Later he had quit the party because of the differences developed in the party with him and thus lost respect and honour in the party. He had also formed a Political party named ‘Rashtriya Kranti Party’ before the Loksabha elections of 2009. At that time he had gotten electoral pact striked with his political enemy Mulayam Singh Yadav who had ordered Police firing on Kar Sevaks at Ayodhya during his regime. All these 3 culprits of the Babri Mosque demolition case had to face this humiliation, disrespect and dishonour as a punishment given by Allah. 

Now the attempt of abolishing the existence of the Babri Mosque is under way as August 5, 2020 has been fixed for laying the foundation stone for the construction of Grand Ram Temple at the place of Babri Mosque. Will this exercise of abolishing of existence of Babri Mosque go to be proved destructive? The answer is concealed in future. The punishment given by Allah to Lal Krishna Advani, Murli Manohar Joshi, Kalyan Singh indicates that those who are involved in harming the existence of Babri Mosque have not been spared by God. In fact God has punished these peoples for their crimes of raising the false issue of ‘Ram Janm Bhoomi’ (Birth place of Ram) at the site of Babri Mosque by keeping an idol of Ram in the Mosque which was propagated as a miracle of Ram. Was it really a miracle of Ram or was it a deceitful act of ‘Ram Bhakts’ (Ram devotee) for occupying illegally the site of Babri Mosque. What is the truth about it, God knows well? So he punished all those persons who are involved in harming the Babri Mosque. If we look into the life of Ram, we do not find in him any such quality which indicates him as a God. There are many examples which show that he was a simple man not a god. For example, when a Golden Deer came near their hut during exile in forest, then his wife Sita expressed her wish for bringing after being caught it. If Ram would be God he would never go for hunting the Golden Deer. He would say to Sita that it was trap of Ravan for kidnapping you. But he was not a god, so he went behind the Golden Deer for hunting it. Meanwhile Ravan came and took Sita away. When Ram & Lakshman returned back to their hut, they do not find Sita in the hut. Both of them become worried very much. They search Sita around the hut but this exercise in vain. They decide to go in the forest for searching out Sita. They call out Sita here and there in the forest. But Sita is not found anywhere in the forest. In the way they found Jatayu, a bird in injured condition. He informs them that Ravan, the King of Lanka, has taken away Sita in his Pushpaka Vimana. At that point of time Ram comes to know about the fact of Sita to be taken away by Ravan by his Pushpaka Vimana. If Ram was God, he would not lost his time in searching Sita in the forest and would not come to know the fact about the abduction of Sita by Jatayu, an eagle bird. If he was god, he would has come to know the fact that Ravan has taken away Sita forcibly after returning from the forest. In addition to it when he was fighting the battle with Ravan, he could not know that Ravan had possessed nectar in his womb. It is the reason that Ravan’s head choped off by his attack with arrows again and again, however Ravan did not die. When Vibhishan, brother of Ravan, who had deserted him and join hands with Ram, unravelled the secret of Ravan possessing the nectar in his womb. So he adviced Ram to attack on the womb of Ravan for killing him. Ram did not know the secret of Ravan’s death. If he was God he would certainly know this secret of Ravan. He was simply a common man not God. If Vibhishan would not disclose the secret of Ravan, Ram would never killed Ravan taking birth again and again, while Ravan would remain live till the end of this world because of possessing nectar in his womb. This is also clear from the fact of his battle with Luv and Kush who had stopped the horse related to the Ashwamedh Yagya conducted by Ram establishing his supremacy over all things of the time. Luv and Kush gave challenge to Ram by stopping the horses of Ashwamedh Yagya. Ultimately a battle with Lav & Kush with army of Ram starts. Initially Bharat and Lakshman accepted the challenge of Luv Kush and fought with them who were defeated badly by Luv Kush. Finally Ram came in the battle field and fought battle with Luv Kush. If Ram was god, he would know this fact that Luv Kush are his sons. In this situation he would has not to fight a battle with them. But he fought a battle with them because he did not know that Luv Kush are his sons. These incidents show that Ram was a simply common man not God. He did not performed any miracle in his life and any miracle being performed by him after his death cannot be accepted. As far as Ram’s miracle relating to the idol found in the Babri Mosque in 1949 was totally fake miracle. It has no relation with truth. Since Babri Mosque has been grabbed illegally and forcibly and a Grand Ram Temple of Ram is going to be constructed at the site of Babri Mosque. This act may invite anger of Allah about which Jagadguru Shankracharya Swami Swaroopanand Saraswati has forecasted for a Catastrophe.

Here it will be not irrelevant to cite an incident relating to the punishment of Allah which happen in Mecca before the 40-45 years ago from the birth of the Prophet Muhammad in which a Christian King of Yemen had come to Mecca wth his large force containing a big number of Elephants with the aim of demolishing the most Pious Mosque of Islam ‘Kaba’. At that time Abdul Muttalib, Grandfather of Prophet Muhammad was the caretaker of 'Kaba'. He called a meeting of residence of Mecca for consultants about the protection of 'Kaba'. After long discussion they came to the conclusion that they could not protect the 'Kaba' from the large army of the Christian King of Yemen. So they decided leave the Mecca and take shelter nearby a place thinking it that the Master of the 'Kaba' will himself protect his ‘Home’. When the large army of the Christian King of Yemen advanced near to the 'Kaba' for demolishing it. Allah sent a large herd of tiny birds called Ababil with a tiny grit in its beak. These tiny birds got fell the tiny grits from its beaks on the large army of the Christian King of Yemen especially on the Elephants like a powerful bomb blowing them up into small fleshes presenting the scene as spilling out fodders from mouths of animals. This story has been told in Holy Quran.




- Rohit Sharma Vishwakarma 

Sunday, August 2, 2020

क्या 5 अगस्त को राम मंदिर निर्माण का शिलान्यास विनाशकारी साबित होगा?

अंततः अयोध्या में बाबरी मस्जिद के स्थान पर एक भव्य राम मंदिर के निर्माण की तारीख निर्धारित कर दी गई है। उस दिन मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन कार्यक्रम का आयोजन किया गया है जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिस्सा लेंगे। राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन कार्यक्रम की तिथि का ऐलान होने पर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने एक बयान जारी कर 5 अगस्त को होने वाले भूमि पूजन कार्यक्रम का विरोध किया है और यह स्पष्ट किया है कि उस दिन राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया जाना विनाशकारी साबित होगा क्योंकि राम मंदिर निर्माण के लिए शिलान्यास का समय अशुभ है क्योंकि यह भाद्रपद मास में होने जा रहा है। भाद्रपद मास में होने वाले काम विनाशकारी होते हैं। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के अतिरिक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनावी क्षेत्र वाराणसी के कई साधु-संतों ने भी 5 अगस्त को राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किए जाने का विरोध किया है। इनमें सुमेरु पीठ के शंकराचार्य नरेंद्रानंद महाराज और वाराणसी के अविमुक्तेश्वरानन्द स्वामी शामिल हैं। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के अनुसार राम मंदिर के निर्माण का काम अगस्त माह में नहीं शुरू किया जा सकता है और अगर ऐसा किया जाता है तो इसका नकारात्मक परिणाम निकलेगा। राम मंदिर निर्माण के लिए निर्धारित की गई भूमि पूजन की तिथि का विरोध किया जाना बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर निर्माण की कार्रवाई को ईश्वर की चेतावनी के रूप में देखा जाना चाहिए क्योंकि बाबरी मस्जिद को अनुचित तरीके से हथियाया गया है। 

जहाँ तक इस देश के कट्टर हिन्दुओं का संबंध है यह क्षण उनके लिए बहुत ही हर्षजनक है क्योंकि वें अयोध्या में बाबरी मस्जिद के स्थान पर भव्य राम मंदिर के निर्माण का सपना देख रहे थे। अयोधया में राम मंदिर की शुरुआत का एक अच्छा पहलू यह होगा कि इससे देश में सौहार्द का वातावरण बनने का रास्ता खुलेगा क्योंकि इस मुद्दे को लेकर देश के हिन्दू और मुसलामानों में घृणा और नफरत का माहौल पाया जाता रहा है, जिसके कारण राम मंदिर निर्माण का आंदोलन आरंभ किये जाने के बाद से देश के विभिन्न भागों में 73 सालों में भड़के साम्प्रदायिक दंगों में हजारों लोग मारे गए। क्योंकि इस विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला दे दिया है जिसे देश के मुस्लिम समुदाय ने कानून का पालन करने वाले नागरिकों के रूप में इसे मान लिया है परन्तु उनका विचार है कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला निष्पक्ष नहीं है। यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद मुसलमानों की तरफ से एक पुनर्विचार याचिका इस उम्मीद से दायर की गई कि सर्वोच्च न्यायालय से फैसला परिवर्तित कराया जा सके। सर्वोच्च न्यायालय ने इस पुनर्विचार याचिका को यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि इसके द्वारा इस विवाद को बहुत ही गहराई से जांचा और परखा गया, इसलिए इस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार मुस्लिम समुदाय को बाबरी मस्जिद पर उनके कानूनी मालिकाना हक़ से वंचित कर दिया गया। उनका विचार है कि यह फैसला उनके साथ नाइंसाफी है और इस नाइंसाफी का बदला 'अल्लाह' उचित समय पर लेगा।

मुस्लिम समुदाय का विचार है कि अतीत में जिन लोगों द्वारा बाबरी मस्जिद को नुकसान पहुंचाया गया उनको अल्लाह ने सज़ा दी। जिन लोगों को अल्लाह ने सज़ा दी उनमें पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी, पूर्व प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव, लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और कल्याण सिंह (सभी भाजपा नेता) शामिल हैं। इनके अलावा सय्यद शाहबुद्दीन, ज़फरयाब जिलानी, जावेद हबीब आदि मुस्लिम नेता भी अल्लाह की सज़ा से नहीं बच पाए। दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गाँधी द्वारा विवादित स्थल का ताला खुलवाया गया और विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण के लिए शिलान्यास भी कराया गया। ऐसा करके उनके द्वारा बहुत बड़ी गलती की गई जिसका सुधार संभव नहीं था और दुनिया ने उनकी हिंसक मौत का मंजर देखा। दिवंगत प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव ने बाबरी मस्जिद को विध्वंस कराने वालों को रोकने के लिए कुछ नहीं किया जब लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती के नेतृत्व में हज़ारों कारसेवकों द्वारा बाबरी मस्जिद पर हमला कर इसका विध्वंस कर दिया गया। नरसिम्हा राव द्वारा बाबरी मस्जिद पर हमला किए जाने से पहले इसे बचाने के लिए वहां फ़ौज को तैनात करना चाहिए था। अल्लाह ने उन्हें इस तरह सज़ा दी कि सत्ता से बाहर होते ही उन्हें एक धोखाधड़ी के एक मामले में अभियुक्त बना दिया। धोखाधड़ी का यह मामला 'लक्खू भाई पाठक धोखाधड़ी केस' के तौर पर जाना जाता है। यह एक असाधारण अवसर था जब एक पूर्व प्रधानमंत्री के खिलाफ धोखाधड़ी का अदालत में मुकदमा चला जिसने इनके सम्मान और आदर को मलियामेट कर दिया। इस प्रकार उन्हें अपूरणीय अपमान झेलना पड़ा। लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती आज भी हर प्रकार का अपमान झेल रहे हैं। यें सभी बाबरी मस्जिद के विध्वंस की साजिश रचने के लिए अभियुक्त बनाए गए हैं और इनके खिलाफ अदालत में मुकदमा चल रहा है। लाल कृष्ण आडवाणी बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में मुख्य अभियुक्त हैं इसलिए अल्लाह द्वारा इन्हें सख्त सज़ा दी गई है। अयोध्या में बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर निर्माण के लिए उनके द्वारा एक आंदोलन चलाया गया जिसमें उन्हें देश के कट्टर हिन्दुओं का हीरो बना दिया। उस समय उनके बारे में यह समझा जा रहा था कि केंद्र में भाजपा की सरकार बनने पर उन्हें प्रधानमंत्री बनाया जाएगा। जब 1996 में दूसरे दलों के समर्थन से केंद्र में भाजपा की सरकार बनी तो उनके प्रधानमंत्री बनने का सपना चूरचूर हो गया क्योंकि समर्थक दलों ने उनके स्थान पर अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री बनाने की शर्त रखी। इस प्रकार उनके कट्टर हिन्दू नेता होने के कारण वह प्रधानमंत्री बनने से वंचित रह गए। जबकि राम मंदिर निर्माण के लिए चलाए गए इनके आंदोलन के कारण ही 1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी लेकिन इसका लाभ आडवाणी को नहीं मिल पाया। यह आडवाणी के लिए बहुत बड़ा आघात था जो उनके अपमान के रूप में सामने आया। अब 1998 में भाजपा केंद्र में फिर सत्ता में आई तब उस समय भी आडवाणी को किनारे कर दिया गया और वाजपेयी को फिर प्रधानमंत्री बना दिया गया। कांग्रेस के केंद्र में 2004 से 2014 तक सत्तासीन रहने के दौरान लाल कृष्ण आडवाणी का राजनीतिक क्षितिज से पतन हो गया और इस दौरान नरेंद्र मोदी भाजपा के कद्दावर नेता के तौर पर उभरे। मोदी के नेतृत्व में अब पार्टी ने जब 2014 में लोकसभा का चुनाव लड़ा तब पार्टी को चुनाव में पहली बार अपने दम पर बहुमत प्राप्त हुआ और पार्टी के हाथ में केंद्र की लगाम पूर्ण रूप से आई और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। उस समय लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और अन्य भाजपा के कद्दावर नेताओं को बड़ा झटका लगा जब मोदी की काबीना में उन्हें स्थान नहीं दिया गया। इसी तरह उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह बाबरी मस्जिद को विध्वंस करने की छूट दिए जाने के कारण भाजपा और कट्टर हिन्दुओं की आँखों का तारा बन गए थे। बाद में उन्हें भाजपा छोड़नी पड़ी क्योंकि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ उनका मतभेद हो गया था और इस प्रकार पार्टी में उन्हें जो आदर और सम्मान प्राप्त था वह समाप्त हो गया। उन्होंने 2009 में लोकसभा चुनाव से पहले अपनी एक राजनीतिक पार्टी बनाई जिसका नाम 'राष्ट्रीय क्रांति पार्टी' था। उन्होंने अपने राजनीतिक शत्रु मुलायम सिंह से चुनावी समझौता किया जिन्होंने उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार के दौरान कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया था जिसके नतीजे में कई कारसेवक मारे गए थे। बाबरी मस्जिद को हानि पहुंचाने वाले इन सभी मुज़रिमों को अल्लाह द्वारा सज़ा दी गई जिनके नतीजे में इनका आदर-सम्मान मलियामेट हो गया।

अब बाबरी मस्जिद के अस्तित्व को मिटाने की तैयारी हो रही है क्योंकि बाबरी मस्जिद की जगह पर भव्य राम मंदिर बनाने के लिए शिलान्यास के लिए 5 अगस्त 2020 की तारीख़ निर्धारित हो चुकी है। क्या बाबरी मस्जिद के अस्तित्व को मिटाने से संबंधित यह कार्रवाई विनाशकारी साबित होगी? इसका जवाब भविष्य में छिपा हुआ है। लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह इत्यादि को अल्लाह द्वारा दी गई सज़ा से यह संकेत मिलता है कि जो लोग बाबरी मस्जिद के अस्तित्व को नुकसान पहुंचाने में शामिल थे उन्हें अल्लाह द्वारा छोड़ा नहीं गया। वास्तव में इन लोगों को अल्लाह द्वारा इसलिए भी सज़ा दी गई क्योंकि इन लोगों द्वारा बाबरी मस्जिद को धोखाधड़ी का सहारा लेकर रामजन्मभूमि साबित करने का प्रयास किया गया। इसके लिए बाबरी मस्जिद में राम की मूर्ति रखवाई गई और इसे राम का चमत्कार बताया गया। क्या यह वास्तव में राम का चमत्कार था या फिर यह 'राम भक्तों' की धोखाधड़ी से परिपूर्ण कार्रवाई थी ताकि बाबरी मस्जिद को अवैध तरीके से कब्ज़ा कर लिया जाए? इस संबंध में सच्चाई क्या है वह ईश्वर भलीभांति जानता है और इसीलिए बाबरी मस्जिद को नुकसान पहुँचाने वालों को उसने सज़ा दी। अगर हम राम के जीवन पर नज़र डालते हैं तो पाते हैं कि उनमें ऐसा कोई गुण नहीं है जो उनके भगवान होने की ओर संकेत करता है। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जिनसे यह पता चलता है कि राम एक सामान्य व्यक्ति थे ना कि भगवान। उदाहरणार्थ जब एक सुनहरा हिरण उनकी कुटिया के पास आया तो सीता ने उस हिरण को पकड़ लाने के लिए राम से कहा। अगर राम भगवान होते तो वह उस सुनहरे हिरण का शिकार करने नहीं जाते। वह सीता को बताते कि यह तुम्हें हरण करने की रावण की चाल है। परन्तु वह भगवान नहीं थे इसलिए वह उस सुनहरे हिरण का शिकार करने के लिए निकल पड़े। इस बीच रावण आया और सीता का हरण कर लिया। जब राम और लक्ष्मण अपनी कुटिया के पास वापस आए तो उन्होंने सीता को कुटिया में नहीं पाया। दोनों बहुत चिंतित हुए और कुटिया के आसपास सीता को तलाश किया लेकिन उनकी यह तलाश विफल रही। तब वें जंगल में जाकर सीता को तलाश करने का फैसला करते हैं। वें सीता को जंगल में इधर-उधर पुकारते हैं लेकिन उन्हें जंगल में कहीं भी सीता नहीं मिलती है। रास्ते में उन्हें एक पक्षी जटायु घायल अवस्था में मिलता है। वह उन्हें सूचित करता है कि लंका का राजा रावण सीता को अपने पुष्पक विमान में हरण कर ले गया है। उस समय राम को मालूम होता है कि रावण ने सीता का हरण कर लिया है। अगर राम भगवान होते तो वह सीता को जंगल में तलाश करने में अपना समय व्यर्थ नहीं करते और उन्हें सीता के हरण से तथ्य का पता जटायु से नहीं चलता। अगर वह भगवान होते तो वह खुद जान लेते की सीता का हरण रावण द्वारा किया गया है। इसके अलावा जब वह रावण के साथ युद्ध कर रहे थे तब उन्हें यह नहीं मालूम था कि रावण की नाभि में अमृत है। यही कारण है कि राम के तीरों के हमले से रावण का सिर बार-बार धड़ से अलग होता रहा, लेकिन वह जीवित हो जाता था। रावण के भाई विभीषण ने जो राम से आकर मिल गया था, राम को रावण के अमृत धारक होने की जानकारी दी। उसने राम को रावण की नाभि पर हमला करने का परामर्श दिया। राम रावण की मृत्यु के रहस्य को नहीं जानते थे। अगर वह भगवान होते तो वह रावण की मृत्यु के रहस्य को निश्चित तौर पर जानते। वह एक सामान्य व्यक्ति थे ना कि भगवान। अगर विभीषण ने रावण की मृत्यु का रहस्य राम को ना बताया होता तो राम इस संसार के समाप्त होने तक जंग पर जंग लड़ लेने के बाद भी रावण का संहार नहीं कर सकते थे जबकि रावण अमृत धारक होने के कारण इस संसार के अंत तक जीवित रहता। यह बात राम का लव-कुश के साथ युद्ध करने से भी स्पष्ट होती है कि जिन्होंने राम के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को पकड़ लिया था। इस प्रकार लव-कुश ने राम की सत्ता को चुनौती दी जिसके परिणामस्वरूप लव-कुश और राम की सेना के बीच युद्ध हुआ। शुरू में भरत और लक्ष्मण लव-कुश के साथ युद्ध करने आए और बुरी तरह परास्त हुए। अंत में राम युद्ध के मैदान में आए और लव-कुश के साथ युद्ध किया। अगर राम भगवान होते तो उन्हें ज्ञान होता कि लव-कुश उनके पुत्र हैं। ऐसी स्थिति में वह लव-कुश से युद्ध नहीं करते। लेकिन उन्होंने लव-कुश के साथ युद्ध किया क्योंकि उन्हें नहीं मालूम था कि लव-कुश उनके पुत्र थे। यह घटनाएं बताती हैं कि राम एक सामान्य व्यक्ति थे, भगवान नहीं थे। उन्होंने अपने जीवन में कोई चमत्कार नहीं किया और उनके देहावासन के बाद उनसे किसी चमत्कार को जोड़ना स्वीकार योग्य नहीं है। जहाँ तक 1949 में बाबरी मस्जिद में मूर्ति रखकर राम का चमत्कार बताया जाता है वह पूरी तरह फ़र्ज़ी चमत्कार है। इसका सच्चाई से कोई संबंध नहीं है। क्योंकि बाबरी मस्जिद को अवैध तरीके से हथियाया गया है और उसकी जगह पर एक भव्य राम मंदिर निर्माण किया जा रहा है, यह कदम अल्लाह की नारज़गी को आमंत्रित करने वाला है जिसकी भविष्यवाणी जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने अपने उस बयान में की है कि राम मंदिर का निर्माण अशुभ मुहूर्त में किया जा रहा है जो विनाशकारी साबित होगा।

यहाँ अल्लाह द्वारा सज़ा दिए जाने से संबंधित क़ुरान की उस घटना का उल्लेख करना असंगत नहीं होगा जो पैगंबर मुहम्मद साहब के जन्म से 40-45 वर्ष पूर्व मक्का में घटी जिसमें पड़ोसी देश यमन का ईसाई राजा ने एक बड़ी सेना लेकर मक्क़ा पर चढ़ाई की। इस सेना में भारी संख्या में हाथी भी शामिल थे। ईसाई राजा का उद्देश्य था कि मक्क़ा में स्थित पवित्रतम पूजा स्थल 'काबा' को गिरा दिया जाए। जब यह सेना 'काबा' के पास पहुंची तो अल्लाह द्वारा अबाबील नामक एक छोटी चिड़िया का बड़ा झुंड भेजा जिनकी चोंच में बहुत ही छोटी-छोटी कंकड़ियां थीं। इन पक्षियों ने 'काबा' को गिराने आई सेना और इसके हाथियों पर अपनी चोंच की कंकड़ियों को गिराया जो शक्तिशाली बम के रूप में बदल गईं, जिससे हाथियों के चीथड़े बिखर गए। इस तरह वहां का दृश्य जानवरों द्वारा खाए गए चारों को उगल दिए जाने जैसा नजर आ रहा था। इस घटना का उल्लेख पवित्र क़ुरान की सूरह अल फील में हैं।


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा।

Friday, July 24, 2020

Will India has to face combined Military power of China, Pakistan, Bangladesh, Nepal and Sri Lanka on being war flared up with China?

The clouds of war on Indo-China bor
der in Galwan Valley in Eastern Ladakh have been cleared off now after visit of Prime Minister Narendra Modi had visited there as Chinese forces are said to have moved that from the occupied area in Galwan.  But the dispute in Galwan Valley between the two neighbouring countries still remain unsolved. 

The build up of tensions on Indo-China border in Galwan Valley following the clash between Indian and Chinese military personnels on 14-15 June 2020 has been gradually reaching at flash point after visit of Prime Minister Narendra Modi in Leh where he addressing our Jawans posted there had warned China without spelling its name about teaching it a lesson in the wake of attack on India being made by China. People of India especially some of our Electronic Media consider this visit of PM Narendra Modi in Leh an indication of announcement of war with China. As far as Military preparedness in Ladakh  is concerned, our government is not leaving any stone unturned in regard of retaliating any attack from China. All necessary steps in relation with war with China has been taken in which deployment of more than 30 thousand Jawans, Artillery Guns, Tanks and all kinds of fighter aircrafts are included. Besides guarding of our sky by fighter aircrafts is being made all the time, so that our army should be in responsive position there always. The Morale of our Jawans are very high because of the visit of PM Narendra Modi in Leh who has filled a fresh valour and encouragement in our Jawans when he had addressed them and had reminded them also that the would be war will be a war ‘Dharm & Adharm’ like be Mahabharat war. In this context the Prime Minister also reminded that we are worshipper of ‘Lord Shri Krishna’ who wielded ‘Sudarshan Chakra’ and hold ‘Flute’. However our 3 Defence forces; Army, Air force & Navy are fully prepared replying China in Tit-for-Tat way. 

Since China does not like India to be emerged as a big military power in Asia except itself, keeping in view the fact that it has emerged as a big economic power in the world. According to a report the Growth Domestic Production (GDP) of China is 14 Trillion US Dollars and ranked as a second largest economic power of the world. The vastness of Chinese economy can be understood by this fact that China has given loan to 150 countries of the world, while China itself is loan free country. It has not taken any loan from any International monitory organization. It should be remembered here that China has given loans to many countries more in comparisons of loan given by ‘International Monetory Fund’ (IMF) and ‘World Bank’. Not only this China has invested money in very large amount in developed countries like America, Russia, Australia, countries relating european communities.  In addition to it Chinese trade with the world countries are very beneficial for China as China exports its goods worth 2.49 Trillion US Dollars and imports goods worth 2.13 Trillion US Dollars. Thus the total international trade of China is worth 4.62 Trillion US Dollars. This is the latest data about the Chinese international trade. From this data we can compare the size of Indian economy easily while total international trade of China amount worth 4.62 Trillion US Dollars or 12.4 percent of global trade. On the other hand total Indian GDP is only 2.72 Trillion US Dollars and our latest total international trade is worth about 844 Billion US Dollars. As far as our trade with China is concerned India’s import from China is only 4 percent of total import of China. It means we are importing Chinese goods worth about  4 Lakh Crore US Dollars every year. The world's countries import from China is worth about 2.5 Crore Billion US Dollars. Considering these facts and data’s, we can come to this conclusion that size of Indian economy is far behind from the size of Chinese economy. 

When tension between India and China on Line of Actual Control (LAC) in Eastern Ladakh in Galwan Valley had been flared up. Demonstration against China in various parts of the country had been organized as well as Chinese commodities had been burnt by the protestors. Then the issue of boycotting Chinese commodities in India in which many organizations relating to Business & Small trade communities had also supported the demand of boycotting Chinese products in India, expressing this view that the backbone of Chinese economy could be broken by boycotting of Chinese products in India as we could inflict harm China of 5 Lakh Crore US Dollars which counts total trade of India with China. Considering the above trade and Business data with China, a foolish, uneducated and an ignorant person can talk about harming Chinese economy by boycotting total Chinese products in India.

After 1962 China has made puzzling progress about which India cannot think about it. In the above paragraph, I have presented glimpse of economic progress of China which shows that Chinese economy is the second largest economy of the world after America and it is trying to surpass America by reaching on the top position of world economy. China has made manifold progress in Defence field too. Now the Defence budget of China is amounted to around 179 Billion US Dollars which is 3 times more of Indian Defence budget. India’s Defence budget for 2020 is amounted to 66.9 Billion US Dollars. Keeping this data’s in view, anyone can come to this conclusion that China has 3 times more Defence power than India. What kinds of weapons China has developed, world does not know in details about them? On the other hand India has unfolded its weapons of armory recently by demonstrating its weapons in Galwan Valley and it has been given clear signal to China that India has all latest weapons (Aircrafts , Artillery guns, Helicopters, Tanks etc.) for crushing Chinese attack on India. In Indian media also details of all kinds of weapons have been telecasted with the aim of frightening China. But it has not been known whether China has been afraid of the demonstration of our weapons or it has taken serious notice for befitting replies of our Indian weapons. Some of our Defence analyst and experts and retired high military officials have been presenting their views on TV channels that our weapons are far better than Chinese ones. So, India can inflict China harms unimaginable. Is it an only imagination for bolstering encouragement of our army Jawans as well as peoples of India? However it should be remembered that no country including India must not perceived its enemies like China less stronger than itself. 

If a war with China is flared up this time, it will be totally different from the war of 1962 on different reasons. The first and the foremost reason will be the destructions of large scale faced by the both countries due to use of latest weapons of destruction in the war. This war will turn cities of both neighbouring countries into debries as these will be bombed with accurate target. This was will be fought with very advanced destructive weapons, so it will break backs of both neighbouring countries and will destroy economy of both countries resulting in both countries will suffer such an economic loss which can not be presume. But one thing can be said with certainty that it will shatter India’s dream to get it included among 5 top most economic power of the world. As far as Chinese military power is concerned, it has been developing its war of weapons, keeping in view the possibility of a war to be broken out with America. An another dangerous aspect of this war will be the possibility of joining hands by Pakistan, Nepal, Bangladesh and Sri Lanka with China. Pakistan is the country which has been continuously seeking opportunities to inflict India harms as much as it may be possible. In fact Pakistan wants to take revenge from India for East Pakistan being gotten separated from it in 1972. World knows it better that Pakistan is engaged in exporting terrorism in Kashmir with the aim of getting Kashmir separated from India. The defeated Pakistan by India in 3 war will join China certainly, if a war between India and China will start. Pakistan will use all its defence powers against India which will create very big problem for India compelling it to divert its focus on Indo-Pak border too because it will be golden chance for Pakistan for capturing territory of Kashmir. If Pakistan jumps into Indo-China war, it will try its best to capture other territories like Punjab and Rajasthan. Pakistan will attack on India at the time of Indo-China war because of its strong connection with China. To understand Pak-Chinese relation, the China Pakistan Economic Corridor (CPEC) mutual project of China and Pakistan should be kept in view. China has expending 46 Billion US Dollars as this project will provide China surface way to reach Arabean Sea from where it will become able to reach world over countries easily by Sea. This will help China in expending its trade enormously. The CPEC project is related to the construction of a road from Kashgar of Xinjiang Chinese province to Gwader of Baluchistan province of Pakistan.

Like Pakistan other neighbouring countries such as Nepal, Bangladesh & Sri Lanka have also very close relations with China. Nepal is sitting in the lap of China now where Chinese influence can be seen easily. Meanwhile China has invested a very big amount in Nepal in many fields like Road Infrastructure, Railway projects, Hydel projects and Tourism and this trend is continued. In fact China is trying to invest much more capital in Nepal, so that it can influence Nepal as much as it may be possible. Bangladesh is the other country where China has been continuously investing very heavy amount in various projects including many bridges on different rivers in Bangladesh there. Constructions of Port, Constructions of skyscraper buildings, Cement production project etc. The total cost of these projects run near about 107.5 Billion US Dollars. In the same way Sri Lanka has been also getting benefits of Chinese investments. China has constructed a very important Port in Sri Lanka too which is the most busy Port (Hambantota) is controlled fully by China. In other fields Chinese investments in Sri Lanka are making it a developing Nation rapidly. China is the largest lender in Sri Lanka. Investment of China in Sri Lanka can be understood with details related to other Chinese projects being handled by China. China is engaged in building an another Port in capital city of Colombo, a Coal-fired power plant in the North-West of Sri Lanka.

Besides a skyscraper building which is tallest building in South Asia, a 1150-foot-high Lotus Tower, a Concert hall, a Hotel and a Business district apartment have being built by China in Colombo. These projects show the dependency of Sri Lanka on China. In such a situation Sri Lanka will turn into a colony of China soon which will compell Sri Lankan government to follow its terms.         

Despite of talks of many round between high level military officials of India and China held no solution of the problems relating Indo-China border in Galwan Valley still has been come out as India claims that from Finger 1 to Finger 8 of Pangong Tso are its territory while China denies the claim of India and says that Line of Actual Control (LAC) is situated at Finger 2, so the rest finger areas are come under Chinese territory. This is the reason that when the China occupies the Finger 4, then tension between Indo-China begin. They are still possess the Finger 4 to Finger 8 area. It seems China does not want a war to be broken out as this point of time. But it does not mean that the danger of war between India and China has been disappear. As far as tension continues in Galwan Valley area, the possibility of war between the two neighbouring countries remains constantly. Which one of the two countries when starts this war it depends upon the situation?               

Perhaps China does not want to begin a war with India now. It seems that it wants to strengthen more its ties with the above 4 neighbouring countries (Pakistan, Sri Lanka, Nepal, Bangladesh) of India in the hope of getting their full support in the wake of war being flared up with India in future.



- Rohit Sharma Vishwakarma 

Thursday, July 23, 2020

क्या भारत-चीन युद्ध होने पर पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका चीन के साथ युद्ध में कूदेंगे?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूर्वी लद्दाख में स्थित भारत-चीन सीमा के अभी हाल के दौरे के बाद भारत-चीन के बीच मंडराता युद्ध का बादल छंट गया है क्योंकि बताया जाता है कि चीन की फौजें अपने कब्जे में ली गई भारतीय क्षेत्र से पीछे हट गई हैं लेकिन गलवान घाटी को लेकर दोनों पड़ोसी देशों के बीच जो विवाद है वह अभी अनसुलझा है।           

गलवान घाटी में गत 14-15 जून की रात में भारत-चीन सेनाओं के बीच हुई झड़प के बाद बना तनाव उस समय युद्ध में बदलते-बदलते रह गया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लेह के दौरे पर गए और वहाँ भारतीय-सेना के  जवानों को संबोधित किया। उन्होंने अपने संबोधन में चीन का नाम लिए बगैर उसे चेतावनी दी और कहा कि भारत अपने ऊपर हमला होने का मुँहतोड़ जवाब देगा। भारतीय लोगों ने विशेषकर कुछ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लेह के दौरे को और वहां उनके संबोधन को चीन के विरुद्ध युद्ध की घोषणा का संकेत समझा। जहाँ तक हमारी सेनाओं की तैयारी का संबंध है सरकार ने चीन के हमले का जवाब देने की तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ रखी है। इस संबंध में सीमा पर 30 हज़ार से ज़्यादा भारतीय सैनिक और साज़ोसामान जिनमें तोपें, टैंक, हर प्रकार के लड़ाकू विमान तैनात किए गए हैं। इसके अलावा आसमान में अपनी सीमाओं की रखवाली के लिए भारतीय लड़ाकू विमान हर समय निगरानी कर रहे हैं ताकि हमारी सेना हर समय जवाब देने के लिए सतर्क रहे। प्रधानमंत्री के लेह के दौरे के बाद भारतीय सेना के जवानों का मनोबल तब और बढ़ गया जब प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में उनसे कहा कि यह युद्ध महाभारत की तरह धर्म और अधर्म के बीच का युद्ध होगा। इस परिप्रेक्ष्य में प्रधानमंत्री ने जवानों को याद दिलाया कि हम भगवान 'श्रीकृष्ण' के पुजारी हैं जो 'सुदर्शन चक्र' और 'बाँसुरी' धारी थे।

बहरहाल हमारी तीनों सेनाएं; थल सेना, वायु सेना और जल सेना चीन को उसकी भाषा में जवाब देने को पूरी तरह तैयार है। चूँकि चीन एशिया में अपने अलावा भारत को सैन्य शक्ति के रूप में उभरते देखना पसंद नहीं करता है इसलिए कि वह स्वयं को विश्व की बड़ी आर्थिक ताकत के रूप में देखता है। एक रिपोर्ट के अनुसार चीन की सकल घरेलू उत्पाद 14 ट्रिलियन डॉलर के बराबर है और वह विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति है। चीन की अर्थव्यवस्था को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि इसने विश्व के 150 देशों को क़र्ज़ दे रखा है जबकि चीन एक क़र्ज़ मुक्त देश है। इसके द्वारा विश्व के किसी भी वित्तीय संस्थाओं से कोई क़र्ज़ नहीं लिया गया है। यह बात स्मरणीय है कि चीन ने बहुत से देशों को 'अंतर्राष्ट्रीय वित्त कोष' (आईएमएफ) और 'विश्व बैंक' से भी ज़्यादा क़र्ज़ दे रखा है। इसके अलावा चीन ने कई विकसित देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया, रूस, अमेरिका और यूरोपीय संघ के देशों में भारी निवेश किया है। इसके अतिरिक्त चीन का विश्व के देशों से व्यापार उसके लिए बहुत लाभदायक है क्योंकि चीन 2.49 ट्रिलियन डॉलर का निर्यात करता है जबकि 2.13 ट्रिलियन डॉलर का आयात करता है। इस प्रकार चीन का विश्व के देशों से कुल व्यापार 4.62 ट्रिलियन डॉलर का है। यह चीन के व्यापार का यह विवरण अत्याधुनिक है। चीन के व्यापार से संबंधित इस विवरण से भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार का अंदाज़ा लगाया जा सकता है, जबकि चीन के सकल व्यापार का आकार 4.62 ट्रिलियन डॉलर है या विश्व के व्यापार का यह 12.4 प्रतिशत है। दूसरी और भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) कुल 2.72 ट्रिलियन डॉलर और भारत के विश्व व्यापार का आकार 844 बिलियन डॉलर है। जहाँ तक चीन के साथ हमारे व्यापार का संबंध है, यह चीन के कुल निर्यात का 4 प्रतिशत है अर्थात भारत चीन से प्रति वर्ष 4 लाख करोड़ डॉलर का आयात करता है। विश्व के देश चीन से 2.5 करोड़ बिलियन डॉलर आयात करते हैं। इस विवरण के मद्देनज़र कोई भी इस नतीजे पर पहुँच सकता है कि चीन की अर्थव्यवस्था के आकर से भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार बहुत छोटा है। 

जब पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर तनाव पैदा हुआ तो देश के विभिन्न हिस्सों में चीन के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो गए और चीन से आयातित सामान की होलिका जलाए जाने लगी और चीनी सामान के बहिष्कार की अपील भी की जाने लगी। इस अपील का समर्थन व्यापारियों के कई संगठनों ने किया और यह कहा गया कि चीन के सामान का बॉयकॉट कर उसकी आर्थिक कमर तोड़ सकता है जिससे चीन को 5 लाख करोड़ डॉलर का नुक्सान पहुँचाया जा सकता है। चीन का भारत के साथ व्यापार से संबंधित उपरोक्त विवरण को मद्देनज़र रखकर कोई बेवकूफ़, अनपढ़ और गँवार व्यक्ति ही चीन के सामान का भारत में बॉयकॉट कर उसकी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाने की बात करेगा। 1962 के बाद चीन ने बुद्धि को चकरा देने वाली उन्नति की है जिसके बारे में भारत सोच भी नहीं सकता। उपरोक्त पैराग्राफ में चीन की आर्थिक उन्नति की एक झलक पेश की गई है जिससे यह तथ्य सामने आता है कि चीन आर्थिक उन्नति कर अमेरिका के बाद विश्व की दूसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बन गया है और उसकी कोशिश यह है कि आर्थिक उन्नति में वह अमेरिका को भी पीछे धकेल दे। चीन के सैन्य क्षेत्र में भी बहुत विकास किया है। इस समय चीन का वार्षिक सैन्य बजट 179 बिलियन डॉलर है जो भारत के सैन्य बजट से 3 गुणा है। भारत का वार्षिक सैन्य बजट 66.9 बिलियन डॉलर है। इस विवरण को सामने रखकर कोई भी इस नतीजे पर पहुँच सकता है कि सैन्य शक्ति के मामले में चीन भारत से 3 गुणा ज़्यादा शक्तिशाली है। चीन ने किस प्रकार के हथियारों को विकसित किया है इसका विवरण दुनिया को कम ही मालूम है। दूसरी ओर भारत ने अपने हथियारों के भंडार को अभी हाल में प्रदर्शित कर दिया है और इसने चीन को स्पष्ट संकेत कर दिया है कि भारत पर चीन के हमले को अत्याधुनिक हथियारों की मदद से कुचल दिया जाएगा। भारत में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया चीन को डराने के मकसद से विभिन्न प्रकार के भारतीय हथियारों का विवरण प्रसारित कर रहा है। लेकिन यह नहीं पता चल रहा है कि चीन हमारे हथियारों के प्रदर्शन से डर रहा है या नहीं या वह भारतीय शस्त्रों का मुनासिब जवाब देने में सक्षम है या नहीं। लेकिन हमारे सैन्य विश्लेषक, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सेवानिवृत्त कुछ आला सैन्य अधिकारी यह कह रहे हैं कि हमारे सैन्य शस्त्र चीन के सैन्य से बहुत बेहतर हैं इसलिए भारत-चीन के साथ युद्ध के समय चीन को ऐसा नुकसान पहुँचा सकता है जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। क्या यह भारतीय सेना के जवानों और भारत के लोगों के मनोबल को बढ़ाने से संबंधित कल्पना है या इसमें कोई सच्चाई भी है। बहरहाल यह याद रखने की बात है कि भारत समेत कोई भी देश चीन जैसे अपने दुश्मनों को स्वयं से कमज़ोर समझने की हिमाकत नहीं कर सकता है। 

यदि इस बार चीन के साथ युद्ध हुआ तो यह 1962 के युद्ध की तुलना में कई कारणों से बहुत घातक होगा। इसका पहला और सबसे महत्वपूर्ण कारण इस युद्ध में बहुत भारी विध्वंसक नुकसान का होना है जो दोनों ओर से अत्याधुनिक हथियारों के प्रयोग के कारण होगा। यह युद्ध दोनों देशों के शहरों को इसलिए मलवे में बदल देगा क्योंकि जिन शहरों पर बम गिराए जाएंगे वह सटीक निशाने के साथ गिराए जाएंगे। यह युद्ध बहुत ही अत्याधुनिक और विध्वंसक हथियारों से लड़ा जाएगा इसलिए यह युद्ध दोनों पड़ोसी देशों की कमर तोड़ देगा और आर्थिक दृष्टि से दोनों देशों को बहुत पीछे धकेल देगा और इस प्रकार दोनों देशों को होने वाले आर्थिक नुकसान की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन एक बात बहुत ही निश्चित तौर पर कही जा सकती है कि विश्व की 5वीं सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनने का भारत का सपना पूरा नहीं हो सकता। जहाँ तक चीन की सैन्य शक्ति का संबंध है यह अमेरिका से युद्ध होने की संभावना को सामने रखकर किया जा रहा है। इस युद्ध का एक खतरनाक पहलू यह भी है कि भारत-चीन युद्ध होने पर हमारे पडो़सी देश पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका चीन के साथ मिलकर हमारे ख़िलाफ़ युद्ध लड़ सकते हैं। पाकिस्तान वह देश है जो भारत को ज़्यादा से ज़्यादा नुकसान पहुँचाने के लिए अवसर तलाश कर रहा है। वास्तव में पाकिस्तान भारत द्वारा 1972 में अपने पूर्वी हिस्से पूर्वी पाकिस्तान को अलग कर दिए जाने का बदला लेना चाहता है। दुनिया जानती है कि पाकिस्तान कश्मीर में 'आतंकवाद का निर्यात' कर कश्मीर को भारत से अलग करना चाहता है। भारत के हाथों 3 युद्ध में पराजित पाकिस्तान भारत का चीन के साथ युद्ध होने पर वह चीन के साथ मिलकर निश्चित तौर पर भारत के ख़िलाफ़ युद्ध करेगा। तब पाकिस्तान भारत के ख़िलाफ़ अपनी पूरी शक्ति के साथ लड़ेगा जिससे भारत को मजबूर होकर अपना ध्यान पाकिस्तान के साथ युद्ध पर देना पड़ेगा क्योंकि यह पाकिस्तान के लिए कश्मीर पर क़ब्ज़ा करने का सुनहरा मौका होगा। चीन के साथ भारत का युद्ध होने पर अगर पाकिस्तान कूदता है तो उसका प्रयास रहेगा कि वह कश्मीर के अलावा भारत के दूसरे हिस्सों पंजाब और राजस्थान को भी अपने कब्ज़े में ले लेगा। पाकिस्तान भारत-चीन युद्ध के अवसर पर इसलिए भी चीन का साथ देगा क्योंकि चीन के साथ उसके बहुत घनिष्ठ संबंध है। जिसका अंदाज़ा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि दोनों देशों के बीच 'चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा' (CPEC) प्रोजेक्ट के तहत एक सड़क का निर्माण किया जा रहा है जो चीन के शिनजियांग राज्य के काश्गर शहर से पाकिस्तान के बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक बनाई जा रही है जिस पर 46 बिलियन डॉलर खर्च किया जा रहा है। इस सड़क के निर्माण के बाद सड़क के माध्यम से चीन अरब सागर तक पहुँच जाएगा। जहाँ से वह अपने उत्पादनों को दुनियाभर में समुद्र के रास्ते आसानी से पहुँचा सकता है। 

पाकिस्तान की ही तरह नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका के भी चीन से घनिष्ठ संबंध है। इस समय नेपाल चीन की गोद में बैठा हुआ है जहाँ चीन का प्रभाव आसानी से देखा जा सकता है। इस बीच चीन ने नेपाल में भारी निवेश किया है। चीन ने यहाँ सड़क निर्माण, बिजली उत्पादन, रेलवे और पर्यटन के क्षेत्र में निवेश कर रहा है और यह रुझान जारी है। वास्तव में चीन नेपाल में अपना अधिक से अधिक निवेश कर उसे पूरी तरह अपने प्रभाव में रखना चाहता है। बांग्लादेश भी ऐसा ही देश है जहाँ चीन बहुत ज़्यादा निवेश कर रहा है। यहाँ वह विभिन्न नदियों पर पुल बना रहा है, बंदरगाह के निर्माण, सीमेंट फैक्ट्री के निर्माण, स्काईस्क्रेपर भवन के निर्माण आदि में निवेश कर रहा है। इन सब परियोजनाओं पर 107.5 बिलियन डॉलर चीन द्वारा खर्च किया जा रहा है। इसी प्रकार श्रीलंका भी चीन के निवेश का लाभ उठा रहा है। चीन ने श्रीलंका में भी एक महत्त्वपूर्ण बंदरगाह (हम्बनटोटा) का निर्माण किया है जो विश्व का व्यस्तम बंदरगाह है जिसे चीन द्वारा पूरी तरह से नियंत्रित किया जा रहा है। दूसरे क्षेत्रों में चीन के निवेश से श्रीलंका एक प्रगतिशील देश के तौर पर उभर रहा है। चीन श्रीलंका को सबसे ज़्यादा क़र्ज़ देने वाला क्षेत्र है। श्रीलंका में चीन के निवेश का अंदाज़ा इन तथ्यों से लगाया जा सकता है कि चीन द्वारा विभिन्न परियोजनाएं चलाई और नियंत्रित की जा रही है। चीन द्वारा राजधानी कोलम्बो में भी एक बंदरगाह बनाया जा रहा है और उत्तर पश्चिम क्षेत्र में एक कोयले से उत्पादित बिजली प्लांट का निर्माण कर रहा है। यही नहीं कोलम्बो में एशिया में सबसे ऊँचा स्काईस्क्रेपर भवन बना रहा है। इसके अलावा लोटस टावर नामक भवन बनाया जा रहा है जिसमें एक होटल, एक कॉन्सर्ट हॉल और एक बिज़नेस अपार्टमेंट का निर्माण शामिल है। लोटस टावर की ऊँचाई 1150 फुट है। इन परियोजनाओं में चीन के निवेश श्रीलंका की चीन पर निर्भरता को दर्शाता है। ऐसी स्थिति में श्रीलंका जल्द ही चीन के उपनिवेश में बदल जाएगा, तब श्रीलंका सरकार चीन की शर्तों को मानने के लिए बाध्य रहेगी। 

भारत-चीन के उच्च सैन्य अधिकारियों के बीच हुई कई दौर की बातचीत होने के बावजूद गलवान घाटी में भारत-चीन सीमा विवाद का हल अभी तक नहीं निकल पाया है क्योंकि जहाँ भारत का यह दावा है कि पैंगोंग त्सो में फिंगर 1 से फिंगर 8 उसका क्षेत्र है जबकि चीन भारत के इस दावे को नकारता है और उसका कहना है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) फिंगर 2 के पास स्थित है इसलिए बाकी क्षेत्र उसकी सीमा के अंदर आता है। यही कारण है कि जब चीन ने फिंगर 4 पर कब्ज़ा किया तो दोनों देशों के बीच तनाव उत्पन्न हुआ। इसके बाद से फिंगर 4 से फिंगर 8 तक चीन का कब्ज़ा है। ऐसा प्रतीत होता है कि चीन फिलहाल भारत से युद्ध लड़ना नहीं चाहता। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि भारत-चीन के बीच युद्ध का ख़तरा समाप्त हो गया है। जब तक गलवान घाटी में दोनों देशों के बीच तनाव बरकरार रहेगा, भारत-चीन युद्ध का खतरा लगातार बना रहेगा। इन दोनों देशों में से कौन सा देश युद्ध की शुरुआत करता है यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है। 

सम्भवतः चीन भारत से अभी इसलिए युद्ध नहीं करना चाहता क्योंकि वह भारत के पड़ोसी देशों पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका के साथ अपने संबंधों को इस उम्मीद में ज़्यादा से ज़्यादा प्रगाढ़ करना चाहता है ताकि भारत के साथ युद्ध के समय वह इन देशों को युद्ध में अपने साथ ला सके।


- (रोहित शर्मा विश्वकर्मा)

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