Monday, February 28, 2022

यूक्रेन रूस का 'आसान निवाला' नहीं बन पाएगा



रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले का आज चौथा दिन है और रूस के इरादों से ऐसा लग रहा है कि रूस अपने हमलों को ज़ारी रखेगा। यद्यपि दुनिया के सारे देश रूस से इस युद्ध को रोकने की अपील कर रहे हैं। लेकिन रूस अपने हमलों को रोकने के लिए तैयार नहीं है। जबकि इस बीच अमेरिका और नाटो देशों द्वारा रूस पर कई प्रकार की पाबंदियां भी लगा दी गई हैं। यह पाबंदियां रूस की कमर तोड़ सकती हैं। लेकिन रूस को यूक्रेन पर अपना हमला रोकने के लिए फ़िलहाल ये पाबंदियां बहुत प्रभावी नहीं हैं। अमेरिका और नाटो देशों द्वारा यूक्रेन में अपनी सेना भेजने के बाद ही रुसी सेना का हमला रुक सकता है या फिर एक बड़े युद्ध (महायुद्ध) में बदल सकता है। दुनिया को महायुद्ध से बचाने के लिए अमेरिका और नाटो देश सैन्य कार्रवाई से अभी बच रहे हैं, लेकिन यह भी तय है कि वें यूक्रेन को रूस का निवाला नहीं बनने देंगे। इसका कारण यह है कि ऐसा होने पर अमेरिका की महाशक्ति की छवि ध्वस्त हो जाएगी और वह इसे सहन करने को तैयार नहीं है। ऐसी स्थिति में यूक्रेन में अमेरिका और नाटो देशों की यूक्रेन में सैन्य कार्रवाई से इंकार नहीं किया जा सकता। 

यूक्रेन में रूस का हमला यूक्रेन की स्वतंत्रता और संप्रभुता पर हमला है, अपने देश पर ऐसे हमले पर कोई देश खामोश नहीं बैठ सकता। वह इसका जवाब देने के लिए खड़ा होगा और यही यूक्रेन कर रहा है। हालाँकि उसकी सैन्य शक्ति रूस की तुलना में 10 प्रतिशत है। चार दिनों के युद्ध के बाद भी रूस को बहुत ज़्यादा कामयाबी नहीं मिली है। उसे ऐसा लग रहा है कि यूक्रेन पर कब्ज़ा करने का उसका उद्देश्य सम्भवतः पूरा नहीं होगा। इसलिए वह अब यूक्रेन की सेनाओं से अपील कर रहा है कि वें अपने राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेन्स्की का तख्ता पलट दें क्यूंकि वह आतंकवादी और नाज़ीवादी हैं। स्पष्ट है कि यूक्रेनवासी रूस की इस अपील पर कोई धयान नहीं देंगे। क्यूंकि अगर यूक्रेनी राष्ट्रपति की छवि ऐसी होती तो इन्हें सत्ता में आने ही नहीं दिया जाता। इन्हें सत्ता में इसीलिए पहुँचाया गया है कि यें घोर रूस विरोधी हैं। इनसे ठीक पहले यूक्रेन का जो राष्ट्रपति (पेट्रो पोरोशेंको) था, वह रूस का पिट्ठू था, जिसे यूक्रेनी लोग पसंद नहीं करते थे। इसलिए उसके खिलाफ बगावत हुई और वह रूस भाग गया। वास्तव में यूक्रेन के लोग सोवियत संघ के विघटन के नतीजे में अपने देश के अलग अस्तित्व में आने के बाद सोवियत संघ के अवशेष रूस से कोई संबंध नहीं रखना चाहते हैं और ना उसके दबाव में रहना चाहते हैं। वें एक संप्रभु और स्वतंत्र देश की तरह जीना चाहते हैं और यह नहीं चाहते कि रूस उनके मामलों में दखलांदाज़ी करे। जबकि रूस यूक्रेन ही में नहीं सोवियत संघ के विघटन के बाद जितने भी देश एक संप्रभु और स्वतंत्र देश की सूरत में अस्तित्व में आए हैं, उनमें अपनी दखलांदाज़ी चाहता है। यह तथ्य उस समय सामने आता है जब रूस ने कहा था कि सोवियत संघ के विघटन के नतीजे में अस्तित्व में आने वाले देश नाटो (नार्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाइजेशन) के सदस्य नहीं बन सकते। उल्लेखनीय है कि अमेरिका की अध्यक्षता वाला यह संगठन अपने अस्तित्व में आने के बाद से सोवियत संघ (अब रूस) का घोर विरोधी है और यह पहले सोवियत संघ को घेरने में लगे रहते थे और अब रूस को घेरने में लगे रहते हैं। ऐसी स्थिति में रूस को लगता है कि यदि सोवियत संघ के विघटन के बाद अस्तित्व में आए देश नाटो के सदस्य बन गए तो नाटो की सेनाएं रूस के दरवाज़े पर आ जाएंगी और उसे चारो ओर से घेर लेंगी। इसी कारण से रूस ने यूक्रेन पर हमला किया। क्यूंकि यूक्रेन नाटो देशों के करीब आ रहा है और उनका सदस्य बनना चाह रहा है। 

जहाँ तक यूक्रेन का संबंध है वह रूस के हमले को बहादुरी के साथ रोक रहा है। शुरू में यह अकेला था लेकिन अब इसकी मदद के लिए नाटो देश खड़े हो गए हैं। इनके द्वारा सैन्य साजो-सामान के अलावा भारी आर्थिक मदद भी शुरू कर दी गई है। यद्यपि यूक्रेन के फौजियों की संख्या रूस के मुक़ाबले चौथाई है, फिर भी यूक्रेनी सेना अपनी पूरी ताकत से यह युद्ध लड़ रही है। इस बीच यूक्रेन के करोड़ों नागरिक भी अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिये इस युद्ध में कूदने लगे हैं। यह स्थिति रूस के लिए बहुत ही निराशाजनक होगी। यूक्रेन के नागरिकों द्वारा युद्ध में कूदे जाने से एक तो यूक्रेन के फौजियों का हौसला बढ़ेगा, दूसरे इससे रुसी फौजों का हौसला टूटेगा। क्यूंकि अब वें यह समझ जाएंगे कि यूक्रेन में अब यह युद्ध गली-गली और मौहल्लो-मौहल्लों में होगा जहाँ वें घेर कर यूक्रेन के नागरिकों द्वारा मारे जाएंगे। यही कारण है कि रूस के राष्ट्रपति पुतिन यूक्रेन के नागरिकों को धमकी दे रहे हैं कि वें युद्ध में ना कूदें, नहीं तो उनका बुरा हश्र होगा। लेकिन यूक्रेन के नागरिकों ने रूस की इस धमकी को सुना-अनसुना कर दिया है और वें अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए सर पर कफ़न बांधकर कूद पड़े हैं। जब विदेशी हमले के बाद हमलावरों से मुक़ाबला करने के लिए जनता युद्ध में कूद पड़ती है तो इतिहास बताता कि हमलावर देश के लिए यह स्थिति बहुत संकटपूर्ण हो जाती है। तब इसका नतीजा यही निकलता है कि हमलावर देश के सनकी राष्ट्र अध्यक्षों को मजबूरन अपनी सेना को अपनी सीमा के अंदर बुलाना पड़ता है। लगता है कि अब यूक्रेन पर हमला किये जाने के बाद रूस को एक बार फिर अपनी सेना अपनी सीमा के अंदर बुलानी पड़ेगी। विदेशी हमलावर युद्ध में स्थानीय लोगों के शामिल होने के बाद किस प्रकार शर्मनाक हार का सामना करके अपनी सीमाओं को अपने देश में बुला लेते हैं, इसका ताज़ा सबूत अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी कब्ज़े और हमला था। अफ़ग़ानिस्तान पर अमेरिका द्वारा लगभग 20 साल तक अपना कब्ज़ा रखने के बाद अफ़ग़ान लोगों द्वारा लगातार इसका सशस्त्र विरोध के बाद आखिरकार यहाँ से अमेरिका को भागना पड़ा। इससे पहले अफ़ग़ानिस्तान पर ही सोवियत संघ (रूस जिसका अवशेष है) द्वारा किये गए कब्ज़े के खिलाफ अफ़ग़ान जनता उठ खड़ी हुई थी और अपने सशस्त्र विरोध से सोवियत संघ को अफ़ग़ानिस्तान पर से अपना कब्ज़ा हटाने के लिए विवश कर दिया था। तो इससे सोवियत संघ के अवशेष मौजूदा रूस को यह जान लेना चाहिए कि अब यूक्रेन पर कब्ज़े का उसका सपना वहां के नागरिकों द्वारा युद्ध में कूद जाने के बाद पूरा नहीं होगा। वर्षों पहले वियतनाम पर अमेरिका द्वारा किये गए कब्ज़े का विरोध वहां के नागरिकों द्वारा किया गया। जिसके कारण अमेरिका को वहां से भी भागना पड़ा था। यूक्रेन पर रूस का अभी कब्ज़ा नहीं हुआ है। इससे पहले ही यूक्रेन के लोग रूस का मुक़ाबला करने के लिए खड़े हो गए हैं, जो इस बात का स्पष्ट इशारा है कि रूस को वहां से भागना पड़ेगा।


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा

Tuesday, October 19, 2021

पैगंबर मोहम्मद साहब ने मरी हुई इंसानियत को ज़िंदा किया


आज इस्लामी महीने के तीसरे महीने (रबिउल अव्वल) की 12 तारीख़ है और इस दिन पैगंबर मोहम्मद साहब का जन्म हुआ था। जिन्हें मोहसिन-ए-इंसानियत (मानवता पर उपकार करने वाले) के तौर पर जाना जाता है। इसका कारण यह है कि जब पैगंबर मोहम्मद साहब दुनिया में आए, तो उस समय दुनिया बुराइयों के घोर अंधकार में डूबी हुई थी। मारकाट, लूटपाट, आबरूरेज़ी (महिलाओं से बलात्कार), झूठ, दग़ा, फ़रेब, धोख़ा, घृणा, नफ़रत, अशांति और अन्याय का माहौल था। उस समय इंसानियत सिसक रही थी। लेकिन इसके इस हाल पर किसी को कोई परवाह नहीं थी। धर्म और नैतिकता का अंत हो चुका था और 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' का राज था। ऐसे दौर में पैगंबर मोहम्मद साहब का आगमन हुआ और वो सभी प्रकार की बुराइयों को समाप्त कर सभी प्रकार की अच्छाइयों का प्रकाश बनकर उभरे। उन्होंने इंसानियत को उसका भूला हुआ सबक सिखाया जिससे दुनिया में इंसानियत फिर जिंदा हुई और उसका सफ़र आज तक ज़ारी है। 


पैगंबर मोहम्मद साहब अल्लाह के संदेशवाहक थे, ये इस्लाम कहता है। अल्लाह के संदेशवाहक होने के नाते उन्होंने इंसानियत को उन सभी सच्चाइयों का संदेश दिया, जो इंसानियत के अस्तित्व के लिए अनिवार्य है। इस्लाम के अनुसार उनके संदेश उनके मन की उपज नहीं हैं बल्कि वें ईश्वर द्वारा बताए गए संदेश हैं, जिन पर चलकर मानवता की भलाई ही भलाई है। इस्लाम का दावा है कि इस्लाम के संदेशों पर चलकर दुनिया में हमेशा शांति, अमन, चैन, भाईचारा, प्यार व मोहब्बत, प्रगति, उन्नति, विकास और खुशहाली का दौर लाया जा सकता है।


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा



Wednesday, August 4, 2021

'विनाश काले विपरीत बुद्धि' की कहावत पर अग्रसर हैं मोदी।


इन दिनों भाजपा (मोदी-शाह) देशवासियों की नज़र में अपनी सरकार की छवि को बेहतर बनाने के लिए सफ़ेद झूठ, मक्कारी और फरेब देने का रास्ता अपना रही है और इस प्रकार पहले ही से जनता की नज़रों में गिर चुकी भाजपा और गिरती जा रही है और आने वाले हर रोज़ अपने द्वारा किए जा रहे कामों और बयानों से अपने ताबूत में खुद ही कील ठोक रही है। इस संबंध में पुरानी कहावत है कि 'विनाश काले विपरीत बुद्धि' अर्थात जब किसी का विनाश का समय आता है तो उसके द्वारा उसके विनाश से संबंधित कार्य करता है और बयान देता है जिससे उसके विनाश की गति तेज़ हो जाती है। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के साथ 3 अन्य राज्यों और 1 केंद्र शासित क्षेत्र में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि भाजपा (मोदी-शाह) को ईश्वर द्वारा अभिशापित कर दिया गया है। इसलिए अब भविष्य के सभी चुनाव में भाजपा (मोदी-शाह) को शर्मनाक हार का ही सामना करना पड़ेगा। चाहे चुनाव जीतने के लिए भाजपा (मोदी-शाह) एड़ी चोटी का ज़ोर लगा दे। 


शनिवार दिनांक 31/07/2021 को 'सरदार वल्लभ भाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी, हैदराबाद (तेलंगाना) में 144 प्रशिक्षु आईपीएस अधिकारियों को संबोधित करते हुए नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को याद करते हुए कहा कि उन्होंने अपनी 'सत्याग्रह' से भारत में अंग्रेजी शासन की नींव हिला दी थी। अपने इस कथन में मोदी ने यह स्वीकार किया है कि महात्मा गाँधी की 'सत्याग्रह आंदोलन' के सामने अंग्रेज़ो शासन झुक गया और उसके द्वारा भारत को आज़ाद कर दिया गया। लेकिन यही मोदी किसानों द्वारा 3 कृषि कानूनों को समाप्त करने के लिए किए जा रहे 'सत्याग्रह आंदोलन' को पिछले लगभग 8 महीने से ना सिर्फ अनदेखा कर रहे हैं, बल्कि उनके मंत्रियों और पार्टी के लोगों द्वारा इस आंदोलन को बदनाम भी किया जा रहा है। अंग्रेजी सरकार ने गाँधी जी के 'सत्याग्रह आंदोलन' के आगे झुककर भारत पर से अपना कब्ज़ा हटाने का बहुत बड़ा कदम उठाया। लेकिन मोदी सरकार अपने 3 कृषि कानूनों को ख़त्म ना करने पर अड़ी हुई है और अंग्रेजी सरकार से बदतर व्यवहार कर रही है जो कि देश की जनता द्वारा चुनी हुई सरकार है। एक लोकतंत्र में सरकार द्वारा ऐसा रवैया अपनाना बहुत शर्म की बात है क्योंकि इसका रवैया 'किसान आंदोलन' के प्रति गुलामों जैसा है। यदि प्रधानमंत्री मोदी गाँधी जी की 'सत्याग्रह' की ताकत को स्वीकारते हैं तो उन्हें किसानों के 'सत्याग्रह' पर पुनर्विचार करके उनकी मांगों के अनुसार तीनों कृषि कानूनों को तुरंत रद्द कर देना चाहिए। इस प्रकार यह कदम उठाकर मोदी को देशवासियों और दुनिया को यह आभास दिलाना चाहिए कि उनकी सरकार एक लोकतांत्रिक सरकार है। उन्हें इस मुगालते (ग़लतफहमी) से बाहर आ जाना चाहिए कि 'किसानों का सत्याग्रह' अपने आप समाप्त हो जाएगा। आसार बता रहे हैं कि 'किसानों का आंदोलन' अगर समाप्त नहीं हुआ तो ये मोदी सरकार की समाप्ति का कारण बन सकता है। मोदी सरकार अपनी समाप्ति की ओर इस प्रकार बढ़ रही है, इसका अंदाज़ा कई बातों से लगाया जा सकता है। पहली बात यह कि मोदी सरकार द्वारा संसद में यह बयान दिया गया कि कोरोना की दूसरी लहर के शुरू होने के समय ऑक्सीजन की कमी से एक भी कोरोना मरीज़ की मौत नहीं हुई। क्योंकि राज्य सरकारों ने केंद्र में भेजी गई अपनी रिपोर्ट में इसकी पुष्टि नहीं की। ज्ञात हो कि इस समय देश के अधिकांश राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं जिन्होंने अपनी छवि को बचाने के लिए ऑक्सीजन की कमी से कोरोना मरीज़ों की मौत को छिपाया होगा। जिस प्रकार कोरोना से होने वाली मौतों को छिपाया गया। ना सिर्फ़ देशवासियों ने बल्कि पूरी दुनिया ने भारत में कोरोना की दूसरी लहर की शुरुआत में ऑक्सीजन की कमी से होने वाली हाहाकार को टीवी के पर्दों पर देखा और उस दौरान प्रतिदिन ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों को भी टीवी के पर्दों पर देखा और सुना। इसके बावजूद मोदी सरकार द्वारा ऑक्सीजन की कमी से एक भी मौत ना होने का संसद में दिया गया बयान इस सरकार की समाप्ति की ओर बढ़ने का इशारा देती है। इसी प्रकार देश में कोरोना महामारी से मरने वालों की संख्या को जिस बड़े पैमाने पर छिपाया गया, यह कदम भी मोदी सरकार के अंत का संकेत देती है। रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार द्वारा कोरोना से अब तक मरने वालों की संख्या 6 लाख के करीब बताई जाती है। जबकि यह संख्या एक अनुमान के अनुसार 25 लाख और एक दूसरे अनुमान के अनुसार 49 लाख के करीब बताई जाती है अर्थात कोरोना से मरने वालों की इतनी बड़ी संख्या को छिपाकर मोदी सरकार वास्तव में कोरोना से मरने वालों का अपमान कर रही है। जिसके कारण मृतकों के सगे-संबंधों स्वयं को ठगा और आहत महसूस कर रहे हैं। इसी दौरान कोरोना से मरने वालों की सही संख्या की रिपोर्ट छापने वाले अख़बारों के ऑफिसों पर इनकम टैक्स (आईटी) के छापे के कदम ने मोदी सरकार के अंत की ओर बढ़ने की गति को तेज़ कर दिया है। आईटी के इन छापों के संबंध में सरकार अपने बचाव में कुछ भी कह रही हों उस पर विश्वास करना असंभव है। यह कहा जा रहा है कि 'दैनिक भास्कर ग्रुप' द्वारा बड़े पैमाने पर इनकम टैक्स चोरी किए जाने का मामला है। इसलिए इस ग्रुप के कई दफ्तरों पर इनकम टैक्स के छापे मारे गए। सवाल उठता है कि इनकम टैक्स के ये छापे 'दैनिक भास्कर ग्रुप' पर इस समय क्यों मारे गए जब इसके द्वारा कोरोना महामारी से मरने वालों की सही संख्या से संबंधित रिपोर्ट छापी गई? अगर इस मीडिया संस्थान द्वारा टैक्स चोरी का अपराध किया जा रहा है तो ये कई वर्षों से किया जा रहा होगा। ऐसा नहीं है कि इस मीडिया संस्थान द्वारा वर्तमान में टैक्स चोरी का अपराध किया जा रहा है। इन छापों से यह पता चलता है कि इस मीडिया संस्थान ने अभी एक चोरी का अपराध शुरू किया है। इस बात को कोई भी मानने को तैयार नहीं होगा कि अगर यह मीडिया संस्थान टैक्स चोरी का अपराध कर रहा है तो वो यह अपराध पिछले कई वर्षों से कर रहा होगा। ऐसी स्थिति में इस मीडिया संस्थान के खिलाफ टैक्स चोरी का मामला क्यों नहीं उठाया गया और उसके दफ्तरों पर इनकम टैक्स के छापे क्यों नहीं मारे गए? जबकि मोदी सरकार पिछले 7 साल से सत्ता में है। इस मीडिया संस्थान पर कोरोना महामारी से मरने वालों की सही संख्या छापने के बाद मारे गए इनकम टैक्स के छापे इस तथ्य को उजागर करते हैं कि मोदी सरकार सच्चाई का झंडा बुलंद करने वाले मीडिया संस्थानों को भयभीत कर उनसे भी अपना गुणगान कराना चाहती है। मोदी सरकार द्वारा अपनाई गई लोकतंत्र का गला घोंटने वाली इस गंदी नीति को देश की जनता बहुत अच्छी तरह समझ रही है और समय आने पर इसका सिखाने के लिए चुप नहीं रहेगी। देश में लोकतंत्र की खुलेआम हत्या करने वाली मोदी सरकार देश से लोकतंत्र को तो समाप्त नहीं कर सकती लेकिन ऐसा करके वो अपने अंत को आमंत्रण दे रही है। 


मोदी सरकार के ताबूत में 'पेगासस जासूसी कांड' भी कील ठोंकने वाला कदम है। देश के विपक्षी नेताओं, विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले सामाजिक,  कार्यकर्ताओं, सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों और सर्वोच्च न्यायालय के जजों तक की जासूसी कराने वाले इस कांड के सामने आने पर सरकार के ख़िलाफ़ लोगों में गुस्सा और नफ़रत बढ़ गई है। इसलिए इस गंदी सरकार को लोगो द्वारा सहन करना असंभव होता जा रहा है। पेगासस जासूसी उपकरण इज़राइल की एनएसओ कंपनी द्वारा बनाया जाता है जो इस उपकरण को सिर्फ सरकारों को उपलब्ध कराती है ताकि वे इसके द्वारा आतंकवादियों और देशद्रोहियों की गतिविधियों पर नज़र रख सकें और उनका खात्मा कर सकें। 


भारत में इस उपकरण का जिन लोगों के खिलाफ प्रयोग करने का मामला सामने आया है, वो ना तो आतंकवादी हैं और ना ही देशद्रोही हैं। हाँ, सरकार के खिलाफ अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए आवाज़ उठा रहे हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ इस उपकरण का प्रयोग कर मोदी सरकार देश से लोकतंत्र को समाप्त करने का एक और खतरनाक खेल-खेल रही है। विपक्ष इस मुद्दे को लेकर बहुत उग्र है और मोदी सरकार से यह जानना चाहती है कि उसने इस जासूसी उपकरण को बनाने वाली कंपनी एनएसओ से उसे खरीदा है या नहीं। मोदी सरकार इसका जवाब नहीं दे रही है और ना ही इस कांड की जांच कराने को तैयार है। मोदी सरकार का यह रवैया भी इसके अंत की उल्टी गिनती की ओर संकेत दे रहा है। मोदी सरकार इस जासूसी उपकरण का अपने विरोधियों के खिलाफ प्रयोग कर यह आभास करा रही है कि उसके सभी विरोधी आतंकवादी ओर देशद्रोही हैं। मोदी सरकार की मानसिकता इसको बचाने के बजाए इसे इसके अंत की ओर धकेल रही है। जब किसी का अंत करीब होता है तो उस व्यक्ति या सरकार द्वारा गलती पर गलती किए जाने का काम किया जाता है क्योंकि वो सद्बुद्धि से वंचित हो जाता है। उसे लगता है कि वह अपने बचाव में जो कदम उठता है वो इसके लिए लाभदायक साबित होगा लेकिन दूसरों को साफ़ नज़र आता है कि वो अपने लिए गड्ढा खोद रहा है। इसलिए यह कहावत ऐसे लोगों के लिए बहुत प्रचलित है कि 'विनाश काले विपरीत बुद्धि'।


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा। 



Sunday, February 7, 2021

हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच की राजनीति कर रहे हैं मोदी और भाजपा।




मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से सत्ताधारी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा रामराज की बातें बहुत ज़ोर-शोर से की जा रही हैं और यह बताने की कोशिश की जा रही है कि रामराज सबसे कल्याणकारी राज होता है जिसमें सारी प्रजा का कल्याण होता है। चारों ओर सुख-शांति होती है, देश उन्नति और विकास के रास्ते पर दौड़ता है। समाज में सौहार्द और भाईचारे का माहौल होता है, समाज में न्याय का बोलबाला होता है, हर ओर ईमानदारी और सच का प्रदर्शन देखने को मिलता है, प्रजा की समस्याओं का तत्काल समाधान हो जाता है, प्रजा पर कोई कानून थोपा नहीं जाता है, प्रजा की इच्छाओं का सम्मान किया जाता है, प्रजा पर किसी तरह के अत्याचार नहीं होता है और अपराधियों व असामाजिक तत्वों के लिए कोई जगह नहीं होती है। वास्तव में असली रामराज के बारे में यही धारणा है। सवाल उठता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), विश्व हिन्दू परिषद् (वीएचपी), बजरंग दाल, हिन्दू युवा वाहिनी, मोदी सरकार, मोदी और भाजपा शासित राज्यों में रामराज के बारे में यही धारणा पाई जाती है। इसका उत्तर नकारात्मक में पाया जाता है। असली रामराज की जगह पर हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच की तुलना की ही नहीं जा सकती क्योंकि हिन्दुत्वा से पैदा हुई सोच दुनिया की सबसे तिरस्कृत सोच है। जिसका उदाहरण 'हिटलर' और 'मुसोलिनी' के शासन से मिलता है। जिस प्रकार आज भी 'हिटलर' और 'मुसोलिनी' के शासन को दुनिया घृणा और नफरत से देखती है, उसी प्रकार हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच से घृणा और नफरत करती है। यह तथ्य मोदी सरकार और भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के क़दमों से साबित होती है। 

यदि हम मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल पर नज़र डालें तो यह सारा कार्यकाल असली रामराज की कसौटी पर कहीं नहीं उतरता। वास्तव में मोदी का पूरा कार्यकाल हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच के कार्यकाल को प्रदर्शित करता है। मोदी के सत्ता में आने से पहले लोगों से यह वादा किया था कि उनकी सरकार देश से कालेधन को समाप्त करेगी और विदेशों में जमा कराए गए देश के काले धन को वापस लाएगी जिसके नतीजे में देश के हर नागरिक को 15 लाख रूपये मिलेंगे। दूसरा प्रमुख वादा मोदी ने हर वर्ष 2 करोड़ लोगों को रोज़गार देने का किया था। तीसरा वादा महंगाई कम करने का किया गया था। यह सारे वादे हवा-हवाई साबित हुए जिससे मोदी की देशवासियों से मक्कारी, झूठ, फरेब, दग़ाबाज़ी और छलकपट का रवैया अपनाने की बात सामने आती है जो असली रामराज में कोई सोच भी नहीं सकता। ऐसा रवैया हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच की विशेषता हो सकती है। इसी प्रकार सत्ता में आने के बाद मोदी द्वारा जो कुछ किया गया और जो कुछ किया जा रहा है, वह सब हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच की राजनीति का गन्दा और भौंदा प्रदर्शन है। उदाहरण स्वरुप देश में काला धन समाप्त करने और आतंकवाद को समाप्त करने के उद्देश्य से नोटेबंदी की गई जिसके परिणामस्वरुप देश की जनता को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ा जो किसी से छुपा नहीं है। इसके अतिरिक्त नोटबंदी के कारण सैंकड़ों लोगों की जान भी गई। इस नोटबंदी का नतीजा क्या निकला सभी जानते हैं? कालाधन नोटबंदी से पहले जितना था वह आज भी मौजूद है और आतंकवाद का सिलसिला भी पहले ही जैसा चल रहा है। आरएसएस के गटर से पैदा हिन्दुत्वा के प्रचारक जो नोटबंदीं के कदम की बड़ी प्रशंसा कर रहे थे वह बताएं कि नोटबंदी का देश को क्या लाभ मिला? बहुत स्पष्ट है कि हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच की कोई चीज़ लाभकारी हो ही नहीं सकती। 


वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) का कानून भी हिंदुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच के विचार का प्रदर्शन है। इस कानून ने देश के व्यापारी वर्गों के साथ-साथ हर छोटे कामकाजी वर्ग की कमर तोड़ दी है। करोड़ों छोटे कामकाजी लोगों को अपना धंधा बंद करना पड़ा जिसके कारण उन्हें भुखमरी का सामना करना पड़ रहा है। इस कानून का भी देशभर में विरोध हुआ था परन्तु मोदी सरकार द्वारा इन विरोधों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया और इस कानून को लागू कर दिया गया। 


कोरोना महामारी के दौरान मोदी सरकार का जो रवैया रहा है वह अत्यंत शर्मनाक रहा है। इस शर्मनाक रवैये पर यदि कुछ मीडिया संस्थानों ने तथ्यों को उजागर किया तो मोदी सरकार द्वारा मीडिया की स्वतंत्रता पर बेशर्मी के साथ ऊँगली उठाई गई और सुप्रीम कोर्ट में इसको सरकार को बदनाम करने का प्रयास बताया। यह भी हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच का प्रदर्शन है। 


इसी सोच का प्रदर्शन 'नागरिकता संशोधन अधिनियम' (सीएए) और 'राष्ट्रव्यापी नागरिक रजिस्टर' (एनआरसी) के संबंध में भी किया गया। दुनियाभर में पाए जाने वाले लगभग 10 करोड़ हिन्दुओं को भारत वापस लाए जाने के उद्देश्य से उक्त दोनों कानून बनाए गए जिसका देशभर में विरोध किया गया और दिल्ली के शाहीन बाग़ में महीनों प्रदर्शन किया गया जिससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की बदनामी हुई। यह सब हिन्दुओं का मसीहा बनने के उद्देश्य से इस सरकार द्वारा किया गया। इस सरकार का यह कदम बताता है कि हिन्दुओं का मसीहा बनने के लिए इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का अपमान होने की कोई परवाह नहीं है। 


अब किसानों के आंदोलन के मामले पर भी इस सरकार द्वारा हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच का ही प्रदर्शन किया जा रहा है। लगभग ढाई महीने से चल रहे आंदोलन पर यह सरकार संवेदनहीन बनी हुई है और तीनों कृषि कानून को रद्द ना करने पर अड़ी हुई है। इसी के साथ इस सरकार द्वारा किसानों के साथ दमनकारी रवैया भी अपनाया जा रहा है। इन आंदोलनकारी किसानों को खालिस्तानी, पाकिस्तानी और चीनी एजेंट, विघटनकारी तत्व, अराजक तत्व, राष्ट्रविरोधी तत्व और मुट्ठीभर किसानों का आंदोलन बताकर इनका घोर अपमान किया जा रहा है। यह सब यह सरकार उन मीडिया संस्थानों की मदद से कर रही है जो मोदी की चाटुकारिता में कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं और इस कीर्तिमान को स्थापित करने में यह एक-दूसरे से आगे बढ़ जाने के प्रयास में लगे हुए हैं। इनका एजेंडा बस यही है कि यह देश के अन्नदाताओं को लोगों की नजरों में राष्ट्रविरोधी साबित कर दें और इस प्रकार किसानों के आंदोलन की हवा निकाल दी जाए। मोदी का समर्थन करने वाली यह मीडिया उसी प्रकार देश से लोकतंत्र को समाप्त करने में लगी हुई है जिस प्रकार मोदी लोकतंत्र की जड़ें काट रहे हैं। इसका साक्ष्य यह है कि मोदी सरकार के ख़िलाफ़ उठने वाले हर आंदोलन को राष्ट्रविरोधी और देशविरोधी बताकर इन्हें कुचल दिया जाता है और सरकार के इस कदम की यह मीडिया खुलकर समर्थन करता है। इस प्रकार यह मीडिया भी आरएसएस के गटर से पैदा हुई सोच का हिस्सा बना हुआ है। कोई भी अच्छी सोच वाली सरकार किसानों के आंदोलन को समाप्त करने के सिलसिले में ईमानदारी भरा अगर प्रयास करती तब किसानों को कृषि कानून के विरोध में अपना प्रदर्शन लंबा करने के लिए विवश नहीं होना पड़ता। यह मोदी और उनकी सरकार का अहंकार है कि वह इस आंदोलन को मुट्ठीभर किसानों के आंदोलन के रूप में देख रहे हैं क्योंकि उन्हें इस बात का अहंकार है कि उन्हें लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत मिला हुआ है जबकि वास्तविकता यह है कि इस देश के मतदाताओं का मात्र 30/31 प्रतिशत बहुमत इसे हासिल हुआ है जबकि लगभग 70 प्रतिशत मतदाता इस सरकार के ख़िलाफ़ है। जिस दिन यह 70 प्रतिशत मतदाता एकजुट हो गए उस दिन मोदी सरकार हवा में तिनके की तरह उड़ जाएगी। मोदी और उनकी सरकार का अहंकार देश के इन 70 प्रतिशत मतदाताओं को एकजुट करने का रास्ता बना रही है क्योंकि देश की जनता ने कभी भी किसी अहंकारी शासक को सहन नहीं किया है। मोदी और इनकी सरकार को इतिहास से सबक लेना चाहिए और हिन्दुत्वा के गटर से पैदा गंदी सोच का परित्याग कर अच्छी सोच का प्रदर्शन करना चाहिए ताकि किसानों का आंदोलन समाप्त हो सके। अब किसान आंदोलन जिस राह पर निकल पड़ा है। इसे दीवार पर लिखी इबारत के तौर पर देखा जाना चाहिए। दिवार पर लिखी ऐसी इबारतें हर आंदोलन के समय नज़र आती हैं जिन्हें सरकारों द्वारा नज़रअंदाज़ कर दिए जाने की गलती की जाती रही है और इस प्रकार अपने अंत को आमंत्रित करती रही हैं। राकेश टिकैत का यह बयान दीवार पर लिखी इबारत को और स्पष्ट कर देता है कि अभी किसानों की लड़ाई तीनों कृषि कानूनों की वापसी की लड़ाई है, कहीं यह लड़ाई मोदी से गद्दी की वापसी की लड़ाई ना बन जाए।


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा

Monday, November 9, 2020

तेजस्वी के सत्ता में आने पर बिहार में विकास का सूर्य उदय होगा

बिहार विधानसभा का ऊँट किस करवट बैठेगा इसकी भविष्यवाणी करना मुश्किल नहीं है। इस चुनाव में टकराव बीजेपी व जेडीयू और आरजेडी व उसके समर्थक दलों के महागठबंधन के बीच में है। चुनाव से पहले ही बिहार में नितीश की सरकार को उखाड़ फेंकने की बात कही जाने लगी थी। इसलिए यह तथ्य सामने आने लगा था कि नितीश सरकार इस बार सत्ता में नहीं लौटेगी। चुनाव शुरू होने पर जब सत्ता पक्ष और विपक्ष के गठबंधन की तस्वीर सामने आई तो यह स्पष्ट होने लगा कि नितीश सरकार बचाव की मुद्रा में है। जबकि विपक्ष का गठबंधन हमलावर मुद्रा में है। इसका कारण यह है कि नितीश की 15 वर्षों की सरकार द्वारा ऐसा कुछ नहीं किया गया जिससे प्रभावित होकर बिहार की जनता उन्हें चौथी बार मुख्यमंत्री बनाने के लिए उतावली है। 


जहाँ तक बिहार विधानसभा चुनाव का संबंध है यह ऐसे समय हो रहा है जिसने राज्य में भाजपा के समर्थन से चल रही नितीश सरकार के सामने बहुत कठिनाईयाँ खड़ी कर दी हैं। इन कठिनाईयों में कोरोना महामारी से और अभी हाल में आई प्रलयकारी बाढ़ से निपटने में नितीश सरकार की पूरी तरह से विफलता शामिल है। इन दोनों मुद्दों पर बिहार की जनता नितीश सरकार से बहुत नाराज़ है और अब इसे कतई बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है। नितीश सरकार द्वारा देशभर में काम कर रहे बिहार के मज़दूरों को लॉकडाउन के कारण बिहार वापस आने वाले मज़दूरों को लाने में कोई दिलचस्पी ना दिखाने के कारण भी बिहार के लोग नितीश सरकार से बहुत ही ख़फा हैं। ऐसी स्थिति में नितीश सरकार के 15 वर्षों की सरकार द्वारा बिहार के विकास के लिए कोई उल्लेखनीय काम ना किया जाना भी नितीश सरकार के लिए महंगा पड़ रहा है। इस चुनाव में 15 वर्ष की अपनी सरकार के कामों के बारे में कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाना नितीश के लिए मुश्क़िल हो रहा है। अगर कोई जवाब है तो यह है कि उनकी सरकार ने बिहार में पक्की सड़कें बनवा दी जिसके परिणामस्वरूप लोग अब 10 घंटे की यात्रा 5 घंटे में तय कर लेते हैं। बिजली की ऐसी व्यवस्था कर दी गई है कि अब हर गाँव में बिजली उपलब्ध है। इन सबसे बढ़कर राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति में बहुत सुधार हुआ है जिसके नतीजे में हर प्रकार के अपराध पर अंकुश लग गया है। अब राज्य में लोग रात में भी बिना खौफ़ आ जा सकते हैं। इन तीनों उपलब्धियों को नितीश कुमार अपनी इतनी बड़ी उपलब्धी मान रहे हैं जिसके लिए वह नोबेल पुरस्कार की कामना करते हैं अर्थात इन तीनों उपलब्धियों के आधार पर वह चौथी बार सत्ता में वापस लाए जाने की अपील कर रहे हैं लेकिन बिहार की जनता बदलाव के मूड में है क्योंकि वह बिहार का समग्र विकास चाहती है जिसपर नितीश सरकार की 15 वर्ष की सरकार द्वारा ध्यान ही नहीं किया गया। इन समस्याओं को हल करने का वादा आरजेडी महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव कर रहे हैं जिनकी ओर बिहार की जनता बहुत ज़्यादा आकर्षित है। जिन्हें लोग बिहार का उगता हुआ सूरज मान रहे हैं जो बिहार के आर्थिक पिछड़ेपन के अँधेरे को दूर कर उन्नति और प्रगति का प्रकाश लाएंगे। 


यद्यपि मोदी और नितीश द्वारा तेजस्वी महागठबंधन पर विभिन्न प्रकार के आरोप लगा रहे हैं और बिहार की जनता को गुमराह करने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं। इनके हमलों में जो बात प्रमुखता से शामिल है उनमें तेजस्वी के सत्ता में आने पर दोबारा जंगलराज कायम हो जाने, भ्रष्टाचार का फिर बोलबाला हो जाने, तेजस्वी की सरकार चलाने की अनुभवहीनता से बिहार का विकास ठप हो जाने और परिवारवाद के बढ़ जाने का आरोप शामिल है। इन आरोपों को बिहार की जनता समझ रही है और इन्हें खोखला मान रही है। यही कारण है कि अब तक की तेजस्वी की चुनावी रैलियों में बिहार की जनता की जो भीड़ नज़र आ रही है वह तेजस्वी की लोकप्रियता को साबित कर रही है। बिहार की जनता बदलाव की बात कर रही है क्योंकि वह नितीश और भाजपा की मिलीजुली निष्क्रिय सरकार से बहुत ज़्यादा नाराज़ है और अब वह इस सरकार को बिलकुल भी बर्दाश्त करने के हक़ में नहीं है। मोदी और नितीश के जंगलराज की वापसी वाले हमले का यह जवाब दिया जा रहा है कि राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) को सत्ता से 15 वर्ष तक दूर रखकर सज़ा दी जा चुकी है और इस सज़ा से आरजेडी ने सबक सीखा है। ऐसी स्थिति में तेजस्वी यादव को एक बार अवसर अवश्य देना चाहिए। क्योंकि यह आरोप लगाना गलत है कि तेजस्वी अपने पिता लालू प्रसाद यादव की तरह ही भ्रष्ट होंगे और बिहार में जंगलराज वापस लाएंगे। वह युवा है और राजनीति में अपनी लंबी पारी खेलने के इच्छुक हैं। ऐसी स्थिति में वह बिहार की जनता की आशाओं और उमंगों को सामने रखकर सरकार चलाएंगे और बिहार को विकास और उन्नति के रास्ते पर ले जाएंगे। जो 15 वर्ष के नितीश सरकार के दौरान संभव नहीं हो पाया है और इस सरकार से आगे भी इसकी संभावना नहीं है। क्योंकि नितीश और भाजपा की मिलीजुली सरकार की नज़र में बिहार के लोगों को सड़क, पानी, बिजली की सुविधाओं को उपलब्ध कराना ही विकास की चरम सीमा है। ऐसी सोच रखने वाला मुख्यमंत्री और उनकी सरकार से बिहार के विकास और उन्नति की उम्मीद नहीं की जा सकती है। जहाँ तक मोदी का सवाल है वह फ्लॉप प्रधानमंत्री साबित हो चुके हैं। उनके अब तक के 6 साल के शासनकाल में विकास और उन्नति की क्या दशा है इससे सारा देश जान रहा है? देश में ऐसा विफ़ल प्रधानमंत्री अब तक नहीं देखा गया। ऐसा विफ़ल प्रधानमंत्री बिहार की जनता को विकास के सपने दिखा रहा है। जिसको बिहार की जनता भरोसे के लायक नहीं मान रही है। वें अब भरोसा कर रहे हैं तो तेजस्वी यादव पर जो युवा है ऊर्जावान हैं और बिहार को विकास के रास्ते पर ले जाने का विचार रखते हैं। इन्हें विश्वास ही नहीं बल्कि यकीन है कि तेजस्वी यादव के आने पर बिहार की किस्मत बदलेगी।




Saturday, October 24, 2020

क्या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यौन और कामवासना के भोगी है?


जब कोई धनवान बनता है तो उसके बाद वह अय्याशियों (कामवासना) में लिप्त हो जाता है। इसके अनगिनत उदाहरण मिल जाएंगे और जब ऐसे व्यक्ति को सत्ता प्राप्त हो जाती है तो वह अपनी वासनापूर्ति के लिए हर रोज़ नई स्त्री चाहता है और जब ऐसा व्यक्ति दिखावे के लिए धर्मगुरु भी हो और किसी मंदिर का मठाधीश हो तब उसकी अय्याशी की कोई सीमा नहीं रहती। कुछ ऐसी ही बातें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बारे में कही और सुनी जाती हैं क्योंकि इनके पास बेहिसाब धन है, इनके पास सत्ता है और वह धर्मगुरु भी हैं। ऐसी स्तिथि में हमें यह जानने का अधिकार है कि उनका निजी जीवन कैसा है? क्योंकि वह राजनीति में सक्रिय हैं और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। इसलिए न केवल प्रदेश के मतदाताओं की बल्कि पूरे देश के मतदाताओं को उनसे उनके निजी जीवन के बारे में पूछने का अधिकार है और इसका जवाब जानने का भी अधिकार है। चूँकि योगी आदित्यनाथ राजनीति में आने के कारण पब्लिक फिगर (सार्वजनिक हस्ती) बन गए हैं इसलिए उनका निजी जीवन उनका अपना नहीं रहा। इनके निजी जीवन के बारे में तो उनसे उसी वक़्त पूछा जाना चाहिए था जब 1998 में इन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और गोरखपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीतकर सांसद बने थे। उस समय वह बिलकुल युवा थे और उनकी आयु लगभग 26 वर्ष की थी। जब इनमें यौन इच्छा और कामवासना का तूफ़ान उठ रहा होगा क्योंकि यही वो समय होता है जब व्यक्ति यौन इच्छा और कामवासना की आपूर्ति के लिए हैवान तक बन जाता है। जिनके अनगिनत उदाहरण मौजूद हैं।

 

हम यहाँ योगी आदित्यनाथ के निजी जीवन में यौन इच्छा और कामवासना की इच्छा की आपूर्ति पर इसलिए बहस करना चाहते हैं क्योंकि वह स्वयं को योगी कहते हैं जिसका अर्थ होता है कि उन्हें अपनी सभी इच्छाओं पर नियंत्रण हासिल है। यहाँ यह सवाल उठता है कि क्या उन्हें वास्तव में अपनी सभी इच्छाओं पर जिनमें यौन इच्छा और कामवासना शामिल है? जहाँ तक एक सच्चे और असली योगी का संबंध है निःसंदेह उसे अपनी सांसारिक इच्छाओं पर जिनमें यौन इच्छा और कामवासना शामिल है, नियंत्रण होता है। आमतौर से योगी ऐसा ही होता है। देश में जो भी योगी हुए हैं वह संसार की मोहमाया से निकलकर परमात्मा के ध्यान में लीन होकर अध्यात्म की बुलंदियों पर पहुंचे और परमात्मा के होकर रह गए। उनमें कोई इच्छा थी तो केवल और केवल परमात्मा के ध्यान में लीन रहने की। सांसारिक जीवन से उनका कोई लेना-देना नहीं रहा। अभी हाल के दौर में पूर्वांचल के देवरिया ज़िले में एक महान योगी का दुनिया ने दर्शन किया जो देवरहा बाबा के नाम से जाने जाते हैं। जो अपनी कुटिया में एक मचान पर रहते थे और अपना दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं को पैर से आशीर्वाद दिया करते थे। एक बार स्व० प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी भी उनके पास आशीर्वाद लेने पहुंची थी तो देवरहा बाबा ने अभय मुद्रा में उन्हें अपना हाथ उठाकर आशीर्वाद दिया और कहा यही तुम्हारा कल्याण करेगा। बाद में देवरहा बाबा देवरिया से लापता हो गए और लोगों ने उन्हें हरिद्वार में देखा। उनकी आयु के बारे में विभिन्न धारणाएं थीं। कोई उन्हें 500 वर्ष का बताता था, कोई उन्हें 300 वर्ष का बताता था तो कोई उन्हें 200 वर्ष का बताता था। ऐसे सच्चे और असली योगी का नाम योगी आदित्यनाथ ने भी सुना होगा। क्या योगी आदित्यनाथ इस महान योगी जैसा स्वयं को सच्चा और असली योगी कह सकते हैं? इनका सारा जीवन इस बात का सबूत है न यह सन्यासी हैं, न यह योगी हैं और न यह धर्मगुरु हैं। उत्तराखंड के पौढ़ी गढ़वाल के पंचुर गाँव में उत्पन्न हुए योगी आदित्यनाथ ने अपनी पढ़ाई-लिखाई उत्तराखंड में की। बाद में वह गोरखपुर स्थित गोरखनाथ मठ पर शोध करने के लिए गोरखपुर आए और महंत अवैधनाथ से उनका संपर्क स्थापित हुआ जो उनके चाचा थे उन्होंने उनसे दीक्षा लिया और सन्यासी बन गए। 1998 में संन्यास छोड़कर राजनीति में कूद गए जो देश का सबसे गन्दा क्षेत्र है। तबसे वह देश के सबसे गंदे क्षेत्र में डुबकी लगा रहे हैं फिर भी वह स्वयं को योगी और धर्मगुरु कहते हैं। उनके द्वारा यह मुखौटा लगाए जाने के कारण कुछ अंधविश्वासी इन्हें अपना भगवान मानते हैं और इस प्रकार यह लोगों को धोखा और फरेब दे रहे हैं। ऐसे ही अंधविश्वासी आसाराम बापू को भी भगवान मान रहे थे जो एक बलात्कारी निकला जो इस आरोप में अभी तक जेल में बंद है। राम रहीम भी कुछ अंधविश्वासियों की नज़र में भगवान था, जब उसकी पोल खुली तो मालूम हुआ कि वह कमसिन लड़कियों से संभोग करने का रसिया था। आज वह भी जेल में है और उसे भी जमानत नहीं मिल पाई है। स्वामी नित्यानंद का भी बड़ा नाम था। यह भी अपने भक्तों में भगवान के रूप में देखा जाता था। इसकी कई वीडियो सामने आ चुकी हैं जिसमें इसके द्वारा लड़कियों से अपने बदन की मालिश करवाते हुए देखा जा सकता है। ऐसे ही 'एक भगवान' चिन्मयानन्द है जिनका एक वीडियो सामने आ चुका है जिसमें यह भगवान निर्वस्त्र होकर लड़कियों से अपनी मालिश करवाता हुआ नजर आता है। यह भगवान भी बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार होकर जेल जा चुका है और महीनों जेल की रोटियां खाने के बाद अब जमानत पर जेल से बाहर आ गया है इसका भव्य स्वागत योगी आदित्यनाथ के समर्थकों द्वारा किया गया। दिलचस्प बात यह है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा पुलिस प्रशासन को इस मंशा का पत्र लिखा गया है कि चिन्मयानन्द के खिलाफ लगाए गए आरोपों को हटा लिया जाए। इससे योगी आदित्यनाथ के महिला विरोधी विचार का प्रदर्शन होता है जो एक बलात्कार के आरोपी को सख्त से सख्त सज़ा देने की सिफारिश करने के बजाए ऐसे बलात्कारी के खिलाफ लगाए गए बलात्कार के आरोप को हटाने के लिए चिट्ठी लिखता है। अगर चिन्मयानन्द बलात्कारी नहीं है तो अदालत द्वारा उसे आरोपमुक्त कर दिया जाएगा लेकिन आदित्यनाथ को अदालत पर भरोसा नहीं है इसलिए उन्होंने पुलिस प्रशासन को चिट्ठी लिखी है। चिन्मयानन्द जैसे बलात्कारी के साथ कोई आम आदमी ऐसी सहानुभूति नहीं रख सकता जैसी सहानुभूति उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा व्यक्त की जा रही है। यह कैसा 'भगवान' है जो एक बलात्कारी को बचाने में इतनी दिलचस्पी ले रहा है। जबकि भगवान बुराई करने वालों को सजा देता है। जो अंधविश्वासी योगी आदित्यनाथ को भगवान मानते हैं वह अपने दिमाग का दरवाज़ा खोलकर योगी आदित्यनाथ की इस महिला विरोधी हरकत को देखें और स्वयं फैसला करें कि कोई भगवान बलात्कारियों को कैसे बचा सकता हैं?

 

चिन्मयानन्द जैसे बलात्कारी के खिलाफ बलात्कार के आरोप को हटाने के लिए पुलिस प्रशासन को पत्र लिखने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चरित्रहीन होने का सबूत है क्योंकि जो जैसा होता है वह अपने ही जैसे लोगों को पसंद करता है। क्या योगी आदित्यनाथ ने चिन्मयानन्द का वह वीडियों नहीं देखा है जिसमें वह निर्वस्त्र होकर एक लड़की से अपने बदन की मालिश करवाता हुआ नजर आता है? इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि योगी आदित्यनाथ ने चिन्मयानन्द का यह वीडियो नहीं देखा होगा और उन्हें चिन्मयानन्द का अपनी यौन इच्छा और कामवासना की अवैध तरीके से आपूर्ति के लिए महिलाओं से संभोग करने की कहानी का उन्हें पता नहीं होगा? इसके बावजूद योगी आदित्यनाथ चिन्मयानन्द के साथ सहानुभूति रखते हैं तो निश्चित तौर पर निजी जीवन में उनका भी यही खेल होगा। इसका दावा मैं इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि योगी आदित्यनाथ दिखावे के लिए योगी और धर्मगुरु है। वह वास्तव में भोगी अर्थात अपनी यौन इच्छा और कामवासना की आपूर्ति के लिए महिलाओं का भोग करते हैं। मेरा उनसे यहाँ यह प्रश्न है कि क्या उन्होंने अपनी यौन इच्छा और कामवासना की आपूर्ति के लिए आजतक संभोग नहीं किया है। अगर इस प्रश्न का उत्तर वह नकारात्मक देते हैं तो इसका मतलब यह है कि वह नपुंसक हैं और उनके द्वारा यह उत्तर दिए जाने पर मेडिकल टेस्ट होना चाहिए कि वह नपुंसक हैं या पौरूष शक्ति उनमें मौजूद है। आसाराम बापू का मेडिकल टेस्ट होने पर उसमें पौरूष शक्ति के मौजूद होने का पता चला था अर्थात उसमें संभोग करने की क्षमता थी। 


योगी आदित्यनाथ सांसारिक वस्तुओं का हर तरह भोग कर रहे हैं इसका उदाहरण उनका जीवन है। कोई भी व्यक्ति सिवाय अंधविश्वासियों के उनका जीवन देखकर यही कहेगा कि वह धर्म के नाम पर दुनिया को धोखा और फरेब दे रहे हैं। इनके अंदर धर्म का ज़रा भी अंश नहीं पाया जाता है। भगवा कपड़ा पहनकर और धार्मिक बातें कहकर कोई धार्मिक नहीं बन जाता है। धार्मिक वह होता है जिसका हर क्षेत्र में धार्मिक व्यवहार होता है और समाज के लोगों में वह प्यार-मुहब्बत फैलाने की बात करता है। भोगी आदित्यनाथ के जीवन से यह सब गायब है। इस भोगी का धार्मिक मुखौटा तो उस वक़्त उतर गया जब इन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। जैसा कि मैं ऊपर लिख चुका हूँ कि राजनीति से गंदा क्षेत्र कोई नहीं है तो गंदगी के इस दलदल में कोई भी सच्चा धार्मिक व्यक्ति घुसना नहीं चाहेगा। देश के राजनीतिक इतिहास में हम किसी सच्चे धार्मिक व्यक्ति को राजनीति में हिस्सा लेते हुए नहीं पाते अर्थात हम यह नहीं पाते हैं कि कोई सच्चा धार्मिक व्यक्ति विधायक बना हो, सांसद बना हो, मंत्री बना हो, मुख़्यमंत्री बना हो या प्रधानमंत्री बना हो। ऐसा कोई उदाहरण देश में कहीं नहीं मिलता। इस भोगी की गंदी मानसिकता का उदाहरण यही है कि वह धर्म जैसे पवित्र क्षेत्र में रहते हुए भी राजनीति जैसे गंदे क्षेत्र में कूद गए और इस गंदगी का भोग कर रहे हैं। वैसे वह जिस मंदिर के मठाधीश हैं वहाँ भी यह गंदगी का भोग कर रहे हैं। इस तरह के मंदिरों का देश में क्या हाल है इसका उदाहरण लगभग 1 वर्ष पूर्व दक्षिण के एक मंदिर में देवदासी बना दी गई एक लड़की ने अपनी आत्मकथा को व्हाट्सअप पर भेजा था। उसमें उसने देवदासी बना दिए जाने पर उसने मंदिर के महामठाधीश जो बहुत मोटा और भारी भरकम शरीर वाला था द्वारा सबसे पहले अपने साथ हुए संभोग का बगैर हिचकिचाए बारीकी से वर्णन किया है। 13-14 वर्ष की इस देवदासी ने वर्णन किया है कि जब उस मठाधीश ने पहली बार उसके साथ संभोग किया तो वह पीड़ा से चींखती-चिल्लाती रही और वह तीव्र पीड़ा से तड़पती रही। लेकिन इसका ज़रा भी असर उसके साथ संभोग करने वाले महामठाधीश पर नहीं पड़ा। वह अपने साथ किए जा रहे संभोग से उत्पन्न तीव्र पीड़ा से कब बेहोश हो गई उसे पता नहीं चला। होश आने पर उसने स्वयं को निर्वस्त्र पाया और अपनी योनि को ज़ख़्मी पाया और बिस्तर पर भी काफ़ी रक्त पाया। उसने लिखा है कि उसके साथ महीनों हर रात मंदिर के अन्य पुजारी संभोग करते रहे और वह उनके द्वारा किए जा रहे संभोग से उत्पन्न पीड़ा को सहती रही। जब सभी पुजारियों द्वारा बार-बार अपनी वासना की भूख मिटा ली गई तब उसे देह बाज़ार में बेच दिया गया लेकिन वह किसी तरह वहां से बच निकली और अब गुमनाम जीवन बिता रही है। इस तरह इससे पता चलता है कि देवदासी प्रथा आज भी जारी है और यहाँ के मंदिरों के मठाधीश और अन्य पुजारी अपनी यौन इच्छा की आपूर्ति के लिए उनका इस्तेमाल करते हैं। भोगी आदित्यनाथ भी एक प्रसिद्ध मठ के महामठाधीश हैं जहाँ रोज़ाना सैंकड़ों स्त्रियां और युवतियां पूजा-पाठ के लिए आती हैं और कुछ अन्य प्रमुख अवसरों पर यहाँ हज़ारों की संख्या युवतियां और स्त्रियां पूजा-पाठ के लिए आती हैं। यद्यपि इस मठ में युवतियों और स्त्रियों के साथ हुए किसी घृणित अपराध की घटना प्रकाश में नहीं आई हैं। लेकिन यहाँ भी युवतियों और स्त्रियों के साथ हो रहे घृणित अपराध की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। इसकी संभावना इसलिए है कि भोगी आदित्यनाथ अविवाहित हैं और उन्हें अपनी कामवासना की आपूर्ति के लिए अपोज़िट सेक्स की ज़रूरत होती है जो उनके मठ में बहुतायत उपलब्ध होती हैं। वह वहां उपलब्ध जिस अपोज़िट सेक्स की ओर इशारा कर देते होंगे और उनके गुर्गे उनके कक्ष में पहुंचा देते होंगे। बाद में ऐसी अपोज़औिट सेक्स का कोई अता-पता नहीं चलता होगा। यहाँ यही खेल वर्षों से चल रहा होगा। लेकिन हमारा यह दावा है कि यह पाखंडी योगी आदित्यनाथ कामवासना में पूरी तरह लिप्त है। क्योंकि जब महादेव अपनी कामवासना पर नियंत्रण नहीं कर पाए और इसकी आपूर्ति के लिए पार्वती से विवाह किया तो ढोंगी आदित्यनाथ से क्या यह आशा की जा सकती है कि वह अपनी कामवासना पर नियंत्रण कर स्त्रियों का भोग नहीं करते हैं? इस तरह के मठ में स्त्रियों के साथ बलात्कार का ज्वलंत उदाहरण बनारस का विश्वप्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर है। जहाँ इसके एक हिस्से को बादशाह औरंगज़ेब द्वारा ध्वस्त करा दिया गया था और वहां ज्ञानवापी मस्जिद बनवा दी गई थी। इसका कारण यह था कि औरंगज़ेब के एक हिन्दू सेनापति की पत्नी के काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा-पाठ के उद्देश्य से जाने पर उनका अपहरण कर लिया गया और मंदिर के तहखाने में ले जाकर उससे बलात्कार किया गया और उसके जेवरात लुट लिए गए थे। इस घृणित ऐतिहासिक घटना का उल्लेख डॉ० पट्टाभि सीतारमैया द्वारा 1946 में प्रकाशित अपनी पुस्तक 'फीदर्स एंड स्टोन्स' में किया गया है। काशी विश्वनाथ मंदिर में घटी यह घृणित घटना ज़ाहिर है पहली घटना नहीं रही होगी। इस मंदिर में इससे पहले लाखों स्त्रियों और बालिकाओं के साथ बलात्कार किया गया होगा। उनके आभूषण लुटे गए होंगे और संभवतः बहुतों की हत्या भी कर दी गई होगी। हिन्दू धर्म के इस अति महत्वपूर्ण मंदिर में लाखों स्त्रियों के साथ हुई बलात्कार की घटनाओं ने इस पवित्रतम मंदिर को घोर अपवित्र कर दिया जिसे बादशाह औरंगज़ेब बर्दाश्त ना कर सका और उसे ध्वस्त करा दिया गया। यहाँ पर उक्त हिन्दू सेनापति की पत्नी की इच्छा पर ज्ञानवापी मस्जिद बना दी गई। यह है ज्ञानवापी मस्जिद के निर्माण की सच्ची कहानी। जो काशी विश्वनाथ मंदिर मोक्ष प्राप्ति करने का ज़रिया है वहां ऐसे घृणित अपराध हो रहे हों इससे मंदिर के महंतों और पुरोहितों का घृणित चेहरा बेनकाब होता है। बहुत संभव है कि आज भी काशी विश्वनाथ मंदिर में स्त्रियों के साथ वही सब कुछ हो रहा होगा जो बादशाह औरंगज़ेब के ज़माने में हो रहा था। 


भोगी आदित्यनाथ के गोरखनाथ मंदिर में क्या ऐसा नहीं हो रहा होगा इससे इंकार नहीं किया जा सकता? क्योंकि आदित्यनाथ पाखंडी हैं और धर्म का चौला लोगों को दिखाने के लिए पहन रखा है और अपने नाम के आगे योगी शब्द जोड़कर लोगों को यह बता रहे हैं कि यौन इच्छा और कामवासना की आपूर्ति से वह 'बहुत ऊपर' हैं। लेकिन उनका जीवन यह बता रहा है कि वह सांसारिक वस्तुओं का भोग एक सामान्य व्यक्ति की तरह कर रहे हैं जिसमें स्त्रियों का भोग भी शामिल है। अगर ऐसा नहीं है तो भोगी आदित्यनाथ बताएं कि उन्होंने आजतक स्त्री का भोग किया है कि नहीं? अर्थात क्या उन्होंने आजतक अपनी यौन इच्छा और कामवासना की आपूर्ति की या नहीं। क्योंकि वह अविवाहित हैं इसलिए उनके द्वारा किसी से नाजायज तरीके से संभोग किया जा रहा होगा। मुझे यह पोस्ट इसलिए विवश होकर लिखनी पड़ रही है क्योंकि आदित्यनाथ स्वयं को योगी और धर्मगुरु कहते हैं। इसके बावजूद वह सांसारिक गतिविधियों में पूर्ण रूप से लिप्त हैं। जो किसी सच्चे सन्यासी और सच्चे योगी के जीवन में नज़र नहीं आता है। 


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा



नोट : सभी पाठकों से अनुरोध है कि इस पोस्ट को ज़्यादा से ज़्यादा और तब तक शेयर करते रहे जब तक योगी आदित्यनाथ अपने नाम के आगे से योगी शब्द को हटा लें या राजनीति से सन्यास लेलें।


 

Saturday, September 5, 2020

नार्कोटिक कन्ट्रोल ब्यूरो की विफलता से फलफूल रहा है ड्रग का धंधा।


सुशांत सिंह राजपूत की मौत का मामला ड्रग्स की खरीद-फरोख्त की दिशा में हो गया है क्योंकि रिया द्वारा व्हाट्सअप पर किए गए चैट से ड्रग्स की खरीदारी का मामला कथित तौर पर सामने आया जिसकी जांच नार्कोटिक कन्ट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) द्वारा की जा रही है। जांच के दौरान ड्रग्स की सप्लाई करने वाले दो व्यक्ति गिरफ्तार किए गए। इसके बाद रिया के भाई शौविक चक्रवर्ती और सुशांत सिंह राजपूत के हाउस मैनेजर सैमुअल मिरांडा को ड्रग्स खरीदने और इसके प्रयोग के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। सवाल उठता है कि देशभर के शहरों में ड्रग्स की मार्केट में उपलब्धि कैसे संभव होती है? जबकि देशभर में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) का ऑफिस मौजूद है जिसका काम यही है कि वह मार्केट में ड्रग्स की स्मग्लिंग और इसकी उपलब्धिता को रोके। तथ्य बताते हैं कि यह दोनों काम जोर-शोर से चल रहा है  इसलिए युवक और समाज बेधड़क हो रहा है। जाहिर है यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि नार्कोटिक्स कन्ट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) अपनी जिम्मेदारी निभाने में पूरी तरह विफल है क्योंकि ब्यूरो में भ्रष्टाचार व्याप्त है जिसके परिणामस्वरूप ब्यूरो के कर्मचारियों और अधिकारियों की ड्रग का धंधा करने वालों से कथित तौर पर मिलीभगत होती है। इस मिलीभगत के कारण जहां ब्यूरो के लोग करोड़ों-अरबों की उगाही करते हैं वहीं दूसरी तरफ़ देश के युवा और समाज का संपन्न वर्ग ड्रग्स के आदि होकर अपना जीवन बर्बाद कर रहे हैं। अगर एनसीबी हर शहर में ईमानदारी से अभियान चलाए तो हज़ारों लोग हर शहर में ड्रग का प्रयोग करने के आरोप में गिरफ्तार किए जाएंगे। ऐसी स्थिति में रिया चक्रवर्ती के भाई शौविक चक्रवर्ती की ड्रग के प्रयोग के आरोप में गिरफ्तारी ब्यूरो द्वारा अपनी नाकामियों को छुपाने की कोशिश कर रहा है।


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा।

यूक्रेन रूस का 'आसान निवाला' नहीं बन पाएगा

रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले का आज चौथा दिन है और रूस के इरादों से ऐसा लग रहा है कि रूस अपने हमलों को ज़ारी रखेगा। यद्यपि दुनिया के सारे देश रू...