Tuesday, October 19, 2021

पैगंबर मोहम्मद साहब ने मरी हुई इंसानियत को ज़िंदा किया


आज इस्लामी महीने के तीसरे महीने (रबिउल अव्वल) की 12 तारीख़ है और इस दिन पैगंबर मोहम्मद साहब का जन्म हुआ था। जिन्हें मोहसिन-ए-इंसानियत (मानवता पर उपकार करने वाले) के तौर पर जाना जाता है। इसका कारण यह है कि जब पैगंबर मोहम्मद साहब दुनिया में आए, तो उस समय दुनिया बुराइयों के घोर अंधकार में डूबी हुई थी। मारकाट, लूटपाट, आबरूरेज़ी (महिलाओं से बलात्कार), झूठ, दग़ा, फ़रेब, धोख़ा, घृणा, नफ़रत, अशांति और अन्याय का माहौल था। उस समय इंसानियत सिसक रही थी। लेकिन इसके इस हाल पर किसी को कोई परवाह नहीं थी। धर्म और नैतिकता का अंत हो चुका था और 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' का राज था। ऐसे दौर में पैगंबर मोहम्मद साहब का आगमन हुआ और वो सभी प्रकार की बुराइयों को समाप्त कर सभी प्रकार की अच्छाइयों का प्रकाश बनकर उभरे। उन्होंने इंसानियत को उसका भूला हुआ सबक सिखाया जिससे दुनिया में इंसानियत फिर जिंदा हुई और उसका सफ़र आज तक ज़ारी है। 


पैगंबर मोहम्मद साहब अल्लाह के संदेशवाहक थे, ये इस्लाम कहता है। अल्लाह के संदेशवाहक होने के नाते उन्होंने इंसानियत को उन सभी सच्चाइयों का संदेश दिया, जो इंसानियत के अस्तित्व के लिए अनिवार्य है। इस्लाम के अनुसार उनके संदेश उनके मन की उपज नहीं हैं बल्कि वें ईश्वर द्वारा बताए गए संदेश हैं, जिन पर चलकर मानवता की भलाई ही भलाई है। इस्लाम का दावा है कि इस्लाम के संदेशों पर चलकर दुनिया में हमेशा शांति, अमन, चैन, भाईचारा, प्यार व मोहब्बत, प्रगति, उन्नति, विकास और खुशहाली का दौर लाया जा सकता है।


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा



Wednesday, August 4, 2021

'विनाश काले विपरीत बुद्धि' की कहावत पर अग्रसर हैं मोदी।


इन दिनों भाजपा (मोदी-शाह) देशवासियों की नज़र में अपनी सरकार की छवि को बेहतर बनाने के लिए सफ़ेद झूठ, मक्कारी और फरेब देने का रास्ता अपना रही है और इस प्रकार पहले ही से जनता की नज़रों में गिर चुकी भाजपा और गिरती जा रही है और आने वाले हर रोज़ अपने द्वारा किए जा रहे कामों और बयानों से अपने ताबूत में खुद ही कील ठोक रही है। इस संबंध में पुरानी कहावत है कि 'विनाश काले विपरीत बुद्धि' अर्थात जब किसी का विनाश का समय आता है तो उसके द्वारा उसके विनाश से संबंधित कार्य करता है और बयान देता है जिससे उसके विनाश की गति तेज़ हो जाती है। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के साथ 3 अन्य राज्यों और 1 केंद्र शासित क्षेत्र में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि भाजपा (मोदी-शाह) को ईश्वर द्वारा अभिशापित कर दिया गया है। इसलिए अब भविष्य के सभी चुनाव में भाजपा (मोदी-शाह) को शर्मनाक हार का ही सामना करना पड़ेगा। चाहे चुनाव जीतने के लिए भाजपा (मोदी-शाह) एड़ी चोटी का ज़ोर लगा दे। 


शनिवार दिनांक 31/07/2021 को 'सरदार वल्लभ भाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी, हैदराबाद (तेलंगाना) में 144 प्रशिक्षु आईपीएस अधिकारियों को संबोधित करते हुए नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को याद करते हुए कहा कि उन्होंने अपनी 'सत्याग्रह' से भारत में अंग्रेजी शासन की नींव हिला दी थी। अपने इस कथन में मोदी ने यह स्वीकार किया है कि महात्मा गाँधी की 'सत्याग्रह आंदोलन' के सामने अंग्रेज़ो शासन झुक गया और उसके द्वारा भारत को आज़ाद कर दिया गया। लेकिन यही मोदी किसानों द्वारा 3 कृषि कानूनों को समाप्त करने के लिए किए जा रहे 'सत्याग्रह आंदोलन' को पिछले लगभग 8 महीने से ना सिर्फ अनदेखा कर रहे हैं, बल्कि उनके मंत्रियों और पार्टी के लोगों द्वारा इस आंदोलन को बदनाम भी किया जा रहा है। अंग्रेजी सरकार ने गाँधी जी के 'सत्याग्रह आंदोलन' के आगे झुककर भारत पर से अपना कब्ज़ा हटाने का बहुत बड़ा कदम उठाया। लेकिन मोदी सरकार अपने 3 कृषि कानूनों को ख़त्म ना करने पर अड़ी हुई है और अंग्रेजी सरकार से बदतर व्यवहार कर रही है जो कि देश की जनता द्वारा चुनी हुई सरकार है। एक लोकतंत्र में सरकार द्वारा ऐसा रवैया अपनाना बहुत शर्म की बात है क्योंकि इसका रवैया 'किसान आंदोलन' के प्रति गुलामों जैसा है। यदि प्रधानमंत्री मोदी गाँधी जी की 'सत्याग्रह' की ताकत को स्वीकारते हैं तो उन्हें किसानों के 'सत्याग्रह' पर पुनर्विचार करके उनकी मांगों के अनुसार तीनों कृषि कानूनों को तुरंत रद्द कर देना चाहिए। इस प्रकार यह कदम उठाकर मोदी को देशवासियों और दुनिया को यह आभास दिलाना चाहिए कि उनकी सरकार एक लोकतांत्रिक सरकार है। उन्हें इस मुगालते (ग़लतफहमी) से बाहर आ जाना चाहिए कि 'किसानों का सत्याग्रह' अपने आप समाप्त हो जाएगा। आसार बता रहे हैं कि 'किसानों का आंदोलन' अगर समाप्त नहीं हुआ तो ये मोदी सरकार की समाप्ति का कारण बन सकता है। मोदी सरकार अपनी समाप्ति की ओर इस प्रकार बढ़ रही है, इसका अंदाज़ा कई बातों से लगाया जा सकता है। पहली बात यह कि मोदी सरकार द्वारा संसद में यह बयान दिया गया कि कोरोना की दूसरी लहर के शुरू होने के समय ऑक्सीजन की कमी से एक भी कोरोना मरीज़ की मौत नहीं हुई। क्योंकि राज्य सरकारों ने केंद्र में भेजी गई अपनी रिपोर्ट में इसकी पुष्टि नहीं की। ज्ञात हो कि इस समय देश के अधिकांश राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं जिन्होंने अपनी छवि को बचाने के लिए ऑक्सीजन की कमी से कोरोना मरीज़ों की मौत को छिपाया होगा। जिस प्रकार कोरोना से होने वाली मौतों को छिपाया गया। ना सिर्फ़ देशवासियों ने बल्कि पूरी दुनिया ने भारत में कोरोना की दूसरी लहर की शुरुआत में ऑक्सीजन की कमी से होने वाली हाहाकार को टीवी के पर्दों पर देखा और उस दौरान प्रतिदिन ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों को भी टीवी के पर्दों पर देखा और सुना। इसके बावजूद मोदी सरकार द्वारा ऑक्सीजन की कमी से एक भी मौत ना होने का संसद में दिया गया बयान इस सरकार की समाप्ति की ओर बढ़ने का इशारा देती है। इसी प्रकार देश में कोरोना महामारी से मरने वालों की संख्या को जिस बड़े पैमाने पर छिपाया गया, यह कदम भी मोदी सरकार के अंत का संकेत देती है। रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार द्वारा कोरोना से अब तक मरने वालों की संख्या 6 लाख के करीब बताई जाती है। जबकि यह संख्या एक अनुमान के अनुसार 25 लाख और एक दूसरे अनुमान के अनुसार 49 लाख के करीब बताई जाती है अर्थात कोरोना से मरने वालों की इतनी बड़ी संख्या को छिपाकर मोदी सरकार वास्तव में कोरोना से मरने वालों का अपमान कर रही है। जिसके कारण मृतकों के सगे-संबंधों स्वयं को ठगा और आहत महसूस कर रहे हैं। इसी दौरान कोरोना से मरने वालों की सही संख्या की रिपोर्ट छापने वाले अख़बारों के ऑफिसों पर इनकम टैक्स (आईटी) के छापे के कदम ने मोदी सरकार के अंत की ओर बढ़ने की गति को तेज़ कर दिया है। आईटी के इन छापों के संबंध में सरकार अपने बचाव में कुछ भी कह रही हों उस पर विश्वास करना असंभव है। यह कहा जा रहा है कि 'दैनिक भास्कर ग्रुप' द्वारा बड़े पैमाने पर इनकम टैक्स चोरी किए जाने का मामला है। इसलिए इस ग्रुप के कई दफ्तरों पर इनकम टैक्स के छापे मारे गए। सवाल उठता है कि इनकम टैक्स के ये छापे 'दैनिक भास्कर ग्रुप' पर इस समय क्यों मारे गए जब इसके द्वारा कोरोना महामारी से मरने वालों की सही संख्या से संबंधित रिपोर्ट छापी गई? अगर इस मीडिया संस्थान द्वारा टैक्स चोरी का अपराध किया जा रहा है तो ये कई वर्षों से किया जा रहा होगा। ऐसा नहीं है कि इस मीडिया संस्थान द्वारा वर्तमान में टैक्स चोरी का अपराध किया जा रहा है। इन छापों से यह पता चलता है कि इस मीडिया संस्थान ने अभी एक चोरी का अपराध शुरू किया है। इस बात को कोई भी मानने को तैयार नहीं होगा कि अगर यह मीडिया संस्थान टैक्स चोरी का अपराध कर रहा है तो वो यह अपराध पिछले कई वर्षों से कर रहा होगा। ऐसी स्थिति में इस मीडिया संस्थान के खिलाफ टैक्स चोरी का मामला क्यों नहीं उठाया गया और उसके दफ्तरों पर इनकम टैक्स के छापे क्यों नहीं मारे गए? जबकि मोदी सरकार पिछले 7 साल से सत्ता में है। इस मीडिया संस्थान पर कोरोना महामारी से मरने वालों की सही संख्या छापने के बाद मारे गए इनकम टैक्स के छापे इस तथ्य को उजागर करते हैं कि मोदी सरकार सच्चाई का झंडा बुलंद करने वाले मीडिया संस्थानों को भयभीत कर उनसे भी अपना गुणगान कराना चाहती है। मोदी सरकार द्वारा अपनाई गई लोकतंत्र का गला घोंटने वाली इस गंदी नीति को देश की जनता बहुत अच्छी तरह समझ रही है और समय आने पर इसका सिखाने के लिए चुप नहीं रहेगी। देश में लोकतंत्र की खुलेआम हत्या करने वाली मोदी सरकार देश से लोकतंत्र को तो समाप्त नहीं कर सकती लेकिन ऐसा करके वो अपने अंत को आमंत्रण दे रही है। 


मोदी सरकार के ताबूत में 'पेगासस जासूसी कांड' भी कील ठोंकने वाला कदम है। देश के विपक्षी नेताओं, विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले सामाजिक,  कार्यकर्ताओं, सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों और सर्वोच्च न्यायालय के जजों तक की जासूसी कराने वाले इस कांड के सामने आने पर सरकार के ख़िलाफ़ लोगों में गुस्सा और नफ़रत बढ़ गई है। इसलिए इस गंदी सरकार को लोगो द्वारा सहन करना असंभव होता जा रहा है। पेगासस जासूसी उपकरण इज़राइल की एनएसओ कंपनी द्वारा बनाया जाता है जो इस उपकरण को सिर्फ सरकारों को उपलब्ध कराती है ताकि वे इसके द्वारा आतंकवादियों और देशद्रोहियों की गतिविधियों पर नज़र रख सकें और उनका खात्मा कर सकें। 


भारत में इस उपकरण का जिन लोगों के खिलाफ प्रयोग करने का मामला सामने आया है, वो ना तो आतंकवादी हैं और ना ही देशद्रोही हैं। हाँ, सरकार के खिलाफ अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए आवाज़ उठा रहे हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ इस उपकरण का प्रयोग कर मोदी सरकार देश से लोकतंत्र को समाप्त करने का एक और खतरनाक खेल-खेल रही है। विपक्ष इस मुद्दे को लेकर बहुत उग्र है और मोदी सरकार से यह जानना चाहती है कि उसने इस जासूसी उपकरण को बनाने वाली कंपनी एनएसओ से उसे खरीदा है या नहीं। मोदी सरकार इसका जवाब नहीं दे रही है और ना ही इस कांड की जांच कराने को तैयार है। मोदी सरकार का यह रवैया भी इसके अंत की उल्टी गिनती की ओर संकेत दे रहा है। मोदी सरकार इस जासूसी उपकरण का अपने विरोधियों के खिलाफ प्रयोग कर यह आभास करा रही है कि उसके सभी विरोधी आतंकवादी ओर देशद्रोही हैं। मोदी सरकार की मानसिकता इसको बचाने के बजाए इसे इसके अंत की ओर धकेल रही है। जब किसी का अंत करीब होता है तो उस व्यक्ति या सरकार द्वारा गलती पर गलती किए जाने का काम किया जाता है क्योंकि वो सद्बुद्धि से वंचित हो जाता है। उसे लगता है कि वह अपने बचाव में जो कदम उठता है वो इसके लिए लाभदायक साबित होगा लेकिन दूसरों को साफ़ नज़र आता है कि वो अपने लिए गड्ढा खोद रहा है। इसलिए यह कहावत ऐसे लोगों के लिए बहुत प्रचलित है कि 'विनाश काले विपरीत बुद्धि'।


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा। 



Sunday, February 7, 2021

हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच की राजनीति कर रहे हैं मोदी और भाजपा।




मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से सत्ताधारी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा रामराज की बातें बहुत ज़ोर-शोर से की जा रही हैं और यह बताने की कोशिश की जा रही है कि रामराज सबसे कल्याणकारी राज होता है जिसमें सारी प्रजा का कल्याण होता है। चारों ओर सुख-शांति होती है, देश उन्नति और विकास के रास्ते पर दौड़ता है। समाज में सौहार्द और भाईचारे का माहौल होता है, समाज में न्याय का बोलबाला होता है, हर ओर ईमानदारी और सच का प्रदर्शन देखने को मिलता है, प्रजा की समस्याओं का तत्काल समाधान हो जाता है, प्रजा पर कोई कानून थोपा नहीं जाता है, प्रजा की इच्छाओं का सम्मान किया जाता है, प्रजा पर किसी तरह के अत्याचार नहीं होता है और अपराधियों व असामाजिक तत्वों के लिए कोई जगह नहीं होती है। वास्तव में असली रामराज के बारे में यही धारणा है। सवाल उठता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), विश्व हिन्दू परिषद् (वीएचपी), बजरंग दाल, हिन्दू युवा वाहिनी, मोदी सरकार, मोदी और भाजपा शासित राज्यों में रामराज के बारे में यही धारणा पाई जाती है। इसका उत्तर नकारात्मक में पाया जाता है। असली रामराज की जगह पर हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच की तुलना की ही नहीं जा सकती क्योंकि हिन्दुत्वा से पैदा हुई सोच दुनिया की सबसे तिरस्कृत सोच है। जिसका उदाहरण 'हिटलर' और 'मुसोलिनी' के शासन से मिलता है। जिस प्रकार आज भी 'हिटलर' और 'मुसोलिनी' के शासन को दुनिया घृणा और नफरत से देखती है, उसी प्रकार हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच से घृणा और नफरत करती है। यह तथ्य मोदी सरकार और भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के क़दमों से साबित होती है। 

यदि हम मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल पर नज़र डालें तो यह सारा कार्यकाल असली रामराज की कसौटी पर कहीं नहीं उतरता। वास्तव में मोदी का पूरा कार्यकाल हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच के कार्यकाल को प्रदर्शित करता है। मोदी के सत्ता में आने से पहले लोगों से यह वादा किया था कि उनकी सरकार देश से कालेधन को समाप्त करेगी और विदेशों में जमा कराए गए देश के काले धन को वापस लाएगी जिसके नतीजे में देश के हर नागरिक को 15 लाख रूपये मिलेंगे। दूसरा प्रमुख वादा मोदी ने हर वर्ष 2 करोड़ लोगों को रोज़गार देने का किया था। तीसरा वादा महंगाई कम करने का किया गया था। यह सारे वादे हवा-हवाई साबित हुए जिससे मोदी की देशवासियों से मक्कारी, झूठ, फरेब, दग़ाबाज़ी और छलकपट का रवैया अपनाने की बात सामने आती है जो असली रामराज में कोई सोच भी नहीं सकता। ऐसा रवैया हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच की विशेषता हो सकती है। इसी प्रकार सत्ता में आने के बाद मोदी द्वारा जो कुछ किया गया और जो कुछ किया जा रहा है, वह सब हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच की राजनीति का गन्दा और भौंदा प्रदर्शन है। उदाहरण स्वरुप देश में काला धन समाप्त करने और आतंकवाद को समाप्त करने के उद्देश्य से नोटेबंदी की गई जिसके परिणामस्वरुप देश की जनता को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ा जो किसी से छुपा नहीं है। इसके अतिरिक्त नोटबंदी के कारण सैंकड़ों लोगों की जान भी गई। इस नोटबंदी का नतीजा क्या निकला सभी जानते हैं? कालाधन नोटबंदी से पहले जितना था वह आज भी मौजूद है और आतंकवाद का सिलसिला भी पहले ही जैसा चल रहा है। आरएसएस के गटर से पैदा हिन्दुत्वा के प्रचारक जो नोटबंदीं के कदम की बड़ी प्रशंसा कर रहे थे वह बताएं कि नोटबंदी का देश को क्या लाभ मिला? बहुत स्पष्ट है कि हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच की कोई चीज़ लाभकारी हो ही नहीं सकती। 


वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) का कानून भी हिंदुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच के विचार का प्रदर्शन है। इस कानून ने देश के व्यापारी वर्गों के साथ-साथ हर छोटे कामकाजी वर्ग की कमर तोड़ दी है। करोड़ों छोटे कामकाजी लोगों को अपना धंधा बंद करना पड़ा जिसके कारण उन्हें भुखमरी का सामना करना पड़ रहा है। इस कानून का भी देशभर में विरोध हुआ था परन्तु मोदी सरकार द्वारा इन विरोधों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया और इस कानून को लागू कर दिया गया। 


कोरोना महामारी के दौरान मोदी सरकार का जो रवैया रहा है वह अत्यंत शर्मनाक रहा है। इस शर्मनाक रवैये पर यदि कुछ मीडिया संस्थानों ने तथ्यों को उजागर किया तो मोदी सरकार द्वारा मीडिया की स्वतंत्रता पर बेशर्मी के साथ ऊँगली उठाई गई और सुप्रीम कोर्ट में इसको सरकार को बदनाम करने का प्रयास बताया। यह भी हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच का प्रदर्शन है। 


इसी सोच का प्रदर्शन 'नागरिकता संशोधन अधिनियम' (सीएए) और 'राष्ट्रव्यापी नागरिक रजिस्टर' (एनआरसी) के संबंध में भी किया गया। दुनियाभर में पाए जाने वाले लगभग 10 करोड़ हिन्दुओं को भारत वापस लाए जाने के उद्देश्य से उक्त दोनों कानून बनाए गए जिसका देशभर में विरोध किया गया और दिल्ली के शाहीन बाग़ में महीनों प्रदर्शन किया गया जिससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की बदनामी हुई। यह सब हिन्दुओं का मसीहा बनने के उद्देश्य से इस सरकार द्वारा किया गया। इस सरकार का यह कदम बताता है कि हिन्दुओं का मसीहा बनने के लिए इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का अपमान होने की कोई परवाह नहीं है। 


अब किसानों के आंदोलन के मामले पर भी इस सरकार द्वारा हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच का ही प्रदर्शन किया जा रहा है। लगभग ढाई महीने से चल रहे आंदोलन पर यह सरकार संवेदनहीन बनी हुई है और तीनों कृषि कानून को रद्द ना करने पर अड़ी हुई है। इसी के साथ इस सरकार द्वारा किसानों के साथ दमनकारी रवैया भी अपनाया जा रहा है। इन आंदोलनकारी किसानों को खालिस्तानी, पाकिस्तानी और चीनी एजेंट, विघटनकारी तत्व, अराजक तत्व, राष्ट्रविरोधी तत्व और मुट्ठीभर किसानों का आंदोलन बताकर इनका घोर अपमान किया जा रहा है। यह सब यह सरकार उन मीडिया संस्थानों की मदद से कर रही है जो मोदी की चाटुकारिता में कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं और इस कीर्तिमान को स्थापित करने में यह एक-दूसरे से आगे बढ़ जाने के प्रयास में लगे हुए हैं। इनका एजेंडा बस यही है कि यह देश के अन्नदाताओं को लोगों की नजरों में राष्ट्रविरोधी साबित कर दें और इस प्रकार किसानों के आंदोलन की हवा निकाल दी जाए। मोदी का समर्थन करने वाली यह मीडिया उसी प्रकार देश से लोकतंत्र को समाप्त करने में लगी हुई है जिस प्रकार मोदी लोकतंत्र की जड़ें काट रहे हैं। इसका साक्ष्य यह है कि मोदी सरकार के ख़िलाफ़ उठने वाले हर आंदोलन को राष्ट्रविरोधी और देशविरोधी बताकर इन्हें कुचल दिया जाता है और सरकार के इस कदम की यह मीडिया खुलकर समर्थन करता है। इस प्रकार यह मीडिया भी आरएसएस के गटर से पैदा हुई सोच का हिस्सा बना हुआ है। कोई भी अच्छी सोच वाली सरकार किसानों के आंदोलन को समाप्त करने के सिलसिले में ईमानदारी भरा अगर प्रयास करती तब किसानों को कृषि कानून के विरोध में अपना प्रदर्शन लंबा करने के लिए विवश नहीं होना पड़ता। यह मोदी और उनकी सरकार का अहंकार है कि वह इस आंदोलन को मुट्ठीभर किसानों के आंदोलन के रूप में देख रहे हैं क्योंकि उन्हें इस बात का अहंकार है कि उन्हें लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत मिला हुआ है जबकि वास्तविकता यह है कि इस देश के मतदाताओं का मात्र 30/31 प्रतिशत बहुमत इसे हासिल हुआ है जबकि लगभग 70 प्रतिशत मतदाता इस सरकार के ख़िलाफ़ है। जिस दिन यह 70 प्रतिशत मतदाता एकजुट हो गए उस दिन मोदी सरकार हवा में तिनके की तरह उड़ जाएगी। मोदी और उनकी सरकार का अहंकार देश के इन 70 प्रतिशत मतदाताओं को एकजुट करने का रास्ता बना रही है क्योंकि देश की जनता ने कभी भी किसी अहंकारी शासक को सहन नहीं किया है। मोदी और इनकी सरकार को इतिहास से सबक लेना चाहिए और हिन्दुत्वा के गटर से पैदा गंदी सोच का परित्याग कर अच्छी सोच का प्रदर्शन करना चाहिए ताकि किसानों का आंदोलन समाप्त हो सके। अब किसान आंदोलन जिस राह पर निकल पड़ा है। इसे दीवार पर लिखी इबारत के तौर पर देखा जाना चाहिए। दिवार पर लिखी ऐसी इबारतें हर आंदोलन के समय नज़र आती हैं जिन्हें सरकारों द्वारा नज़रअंदाज़ कर दिए जाने की गलती की जाती रही है और इस प्रकार अपने अंत को आमंत्रित करती रही हैं। राकेश टिकैत का यह बयान दीवार पर लिखी इबारत को और स्पष्ट कर देता है कि अभी किसानों की लड़ाई तीनों कृषि कानूनों की वापसी की लड़ाई है, कहीं यह लड़ाई मोदी से गद्दी की वापसी की लड़ाई ना बन जाए।


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा

यूक्रेन रूस का 'आसान निवाला' नहीं बन पाएगा

रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले का आज चौथा दिन है और रूस के इरादों से ऐसा लग रहा है कि रूस अपने हमलों को ज़ारी रखेगा। यद्यपि दुनिया के सारे देश रू...