Sunday, February 7, 2021

हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच की राजनीति कर रहे हैं मोदी और भाजपा।




मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से सत्ताधारी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा रामराज की बातें बहुत ज़ोर-शोर से की जा रही हैं और यह बताने की कोशिश की जा रही है कि रामराज सबसे कल्याणकारी राज होता है जिसमें सारी प्रजा का कल्याण होता है। चारों ओर सुख-शांति होती है, देश उन्नति और विकास के रास्ते पर दौड़ता है। समाज में सौहार्द और भाईचारे का माहौल होता है, समाज में न्याय का बोलबाला होता है, हर ओर ईमानदारी और सच का प्रदर्शन देखने को मिलता है, प्रजा की समस्याओं का तत्काल समाधान हो जाता है, प्रजा पर कोई कानून थोपा नहीं जाता है, प्रजा की इच्छाओं का सम्मान किया जाता है, प्रजा पर किसी तरह के अत्याचार नहीं होता है और अपराधियों व असामाजिक तत्वों के लिए कोई जगह नहीं होती है। वास्तव में असली रामराज के बारे में यही धारणा है। सवाल उठता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), विश्व हिन्दू परिषद् (वीएचपी), बजरंग दाल, हिन्दू युवा वाहिनी, मोदी सरकार, मोदी और भाजपा शासित राज्यों में रामराज के बारे में यही धारणा पाई जाती है। इसका उत्तर नकारात्मक में पाया जाता है। असली रामराज की जगह पर हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच की तुलना की ही नहीं जा सकती क्योंकि हिन्दुत्वा से पैदा हुई सोच दुनिया की सबसे तिरस्कृत सोच है। जिसका उदाहरण 'हिटलर' और 'मुसोलिनी' के शासन से मिलता है। जिस प्रकार आज भी 'हिटलर' और 'मुसोलिनी' के शासन को दुनिया घृणा और नफरत से देखती है, उसी प्रकार हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच से घृणा और नफरत करती है। यह तथ्य मोदी सरकार और भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के क़दमों से साबित होती है। 

यदि हम मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल पर नज़र डालें तो यह सारा कार्यकाल असली रामराज की कसौटी पर कहीं नहीं उतरता। वास्तव में मोदी का पूरा कार्यकाल हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच के कार्यकाल को प्रदर्शित करता है। मोदी के सत्ता में आने से पहले लोगों से यह वादा किया था कि उनकी सरकार देश से कालेधन को समाप्त करेगी और विदेशों में जमा कराए गए देश के काले धन को वापस लाएगी जिसके नतीजे में देश के हर नागरिक को 15 लाख रूपये मिलेंगे। दूसरा प्रमुख वादा मोदी ने हर वर्ष 2 करोड़ लोगों को रोज़गार देने का किया था। तीसरा वादा महंगाई कम करने का किया गया था। यह सारे वादे हवा-हवाई साबित हुए जिससे मोदी की देशवासियों से मक्कारी, झूठ, फरेब, दग़ाबाज़ी और छलकपट का रवैया अपनाने की बात सामने आती है जो असली रामराज में कोई सोच भी नहीं सकता। ऐसा रवैया हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच की विशेषता हो सकती है। इसी प्रकार सत्ता में आने के बाद मोदी द्वारा जो कुछ किया गया और जो कुछ किया जा रहा है, वह सब हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच की राजनीति का गन्दा और भौंदा प्रदर्शन है। उदाहरण स्वरुप देश में काला धन समाप्त करने और आतंकवाद को समाप्त करने के उद्देश्य से नोटेबंदी की गई जिसके परिणामस्वरुप देश की जनता को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ा जो किसी से छुपा नहीं है। इसके अतिरिक्त नोटबंदी के कारण सैंकड़ों लोगों की जान भी गई। इस नोटबंदी का नतीजा क्या निकला सभी जानते हैं? कालाधन नोटबंदी से पहले जितना था वह आज भी मौजूद है और आतंकवाद का सिलसिला भी पहले ही जैसा चल रहा है। आरएसएस के गटर से पैदा हिन्दुत्वा के प्रचारक जो नोटबंदीं के कदम की बड़ी प्रशंसा कर रहे थे वह बताएं कि नोटबंदी का देश को क्या लाभ मिला? बहुत स्पष्ट है कि हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच की कोई चीज़ लाभकारी हो ही नहीं सकती। 


वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) का कानून भी हिंदुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच के विचार का प्रदर्शन है। इस कानून ने देश के व्यापारी वर्गों के साथ-साथ हर छोटे कामकाजी वर्ग की कमर तोड़ दी है। करोड़ों छोटे कामकाजी लोगों को अपना धंधा बंद करना पड़ा जिसके कारण उन्हें भुखमरी का सामना करना पड़ रहा है। इस कानून का भी देशभर में विरोध हुआ था परन्तु मोदी सरकार द्वारा इन विरोधों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया और इस कानून को लागू कर दिया गया। 


कोरोना महामारी के दौरान मोदी सरकार का जो रवैया रहा है वह अत्यंत शर्मनाक रहा है। इस शर्मनाक रवैये पर यदि कुछ मीडिया संस्थानों ने तथ्यों को उजागर किया तो मोदी सरकार द्वारा मीडिया की स्वतंत्रता पर बेशर्मी के साथ ऊँगली उठाई गई और सुप्रीम कोर्ट में इसको सरकार को बदनाम करने का प्रयास बताया। यह भी हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच का प्रदर्शन है। 


इसी सोच का प्रदर्शन 'नागरिकता संशोधन अधिनियम' (सीएए) और 'राष्ट्रव्यापी नागरिक रजिस्टर' (एनआरसी) के संबंध में भी किया गया। दुनियाभर में पाए जाने वाले लगभग 10 करोड़ हिन्दुओं को भारत वापस लाए जाने के उद्देश्य से उक्त दोनों कानून बनाए गए जिसका देशभर में विरोध किया गया और दिल्ली के शाहीन बाग़ में महीनों प्रदर्शन किया गया जिससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की बदनामी हुई। यह सब हिन्दुओं का मसीहा बनने के उद्देश्य से इस सरकार द्वारा किया गया। इस सरकार का यह कदम बताता है कि हिन्दुओं का मसीहा बनने के लिए इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का अपमान होने की कोई परवाह नहीं है। 


अब किसानों के आंदोलन के मामले पर भी इस सरकार द्वारा हिन्दुत्वा के गटर से पैदा हुई सोच का ही प्रदर्शन किया जा रहा है। लगभग ढाई महीने से चल रहे आंदोलन पर यह सरकार संवेदनहीन बनी हुई है और तीनों कृषि कानून को रद्द ना करने पर अड़ी हुई है। इसी के साथ इस सरकार द्वारा किसानों के साथ दमनकारी रवैया भी अपनाया जा रहा है। इन आंदोलनकारी किसानों को खालिस्तानी, पाकिस्तानी और चीनी एजेंट, विघटनकारी तत्व, अराजक तत्व, राष्ट्रविरोधी तत्व और मुट्ठीभर किसानों का आंदोलन बताकर इनका घोर अपमान किया जा रहा है। यह सब यह सरकार उन मीडिया संस्थानों की मदद से कर रही है जो मोदी की चाटुकारिता में कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं और इस कीर्तिमान को स्थापित करने में यह एक-दूसरे से आगे बढ़ जाने के प्रयास में लगे हुए हैं। इनका एजेंडा बस यही है कि यह देश के अन्नदाताओं को लोगों की नजरों में राष्ट्रविरोधी साबित कर दें और इस प्रकार किसानों के आंदोलन की हवा निकाल दी जाए। मोदी का समर्थन करने वाली यह मीडिया उसी प्रकार देश से लोकतंत्र को समाप्त करने में लगी हुई है जिस प्रकार मोदी लोकतंत्र की जड़ें काट रहे हैं। इसका साक्ष्य यह है कि मोदी सरकार के ख़िलाफ़ उठने वाले हर आंदोलन को राष्ट्रविरोधी और देशविरोधी बताकर इन्हें कुचल दिया जाता है और सरकार के इस कदम की यह मीडिया खुलकर समर्थन करता है। इस प्रकार यह मीडिया भी आरएसएस के गटर से पैदा हुई सोच का हिस्सा बना हुआ है। कोई भी अच्छी सोच वाली सरकार किसानों के आंदोलन को समाप्त करने के सिलसिले में ईमानदारी भरा अगर प्रयास करती तब किसानों को कृषि कानून के विरोध में अपना प्रदर्शन लंबा करने के लिए विवश नहीं होना पड़ता। यह मोदी और उनकी सरकार का अहंकार है कि वह इस आंदोलन को मुट्ठीभर किसानों के आंदोलन के रूप में देख रहे हैं क्योंकि उन्हें इस बात का अहंकार है कि उन्हें लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत मिला हुआ है जबकि वास्तविकता यह है कि इस देश के मतदाताओं का मात्र 30/31 प्रतिशत बहुमत इसे हासिल हुआ है जबकि लगभग 70 प्रतिशत मतदाता इस सरकार के ख़िलाफ़ है। जिस दिन यह 70 प्रतिशत मतदाता एकजुट हो गए उस दिन मोदी सरकार हवा में तिनके की तरह उड़ जाएगी। मोदी और उनकी सरकार का अहंकार देश के इन 70 प्रतिशत मतदाताओं को एकजुट करने का रास्ता बना रही है क्योंकि देश की जनता ने कभी भी किसी अहंकारी शासक को सहन नहीं किया है। मोदी और इनकी सरकार को इतिहास से सबक लेना चाहिए और हिन्दुत्वा के गटर से पैदा गंदी सोच का परित्याग कर अच्छी सोच का प्रदर्शन करना चाहिए ताकि किसानों का आंदोलन समाप्त हो सके। अब किसान आंदोलन जिस राह पर निकल पड़ा है। इसे दीवार पर लिखी इबारत के तौर पर देखा जाना चाहिए। दिवार पर लिखी ऐसी इबारतें हर आंदोलन के समय नज़र आती हैं जिन्हें सरकारों द्वारा नज़रअंदाज़ कर दिए जाने की गलती की जाती रही है और इस प्रकार अपने अंत को आमंत्रित करती रही हैं। राकेश टिकैत का यह बयान दीवार पर लिखी इबारत को और स्पष्ट कर देता है कि अभी किसानों की लड़ाई तीनों कृषि कानूनों की वापसी की लड़ाई है, कहीं यह लड़ाई मोदी से गद्दी की वापसी की लड़ाई ना बन जाए।


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा

Monday, November 9, 2020

तेजस्वी के सत्ता में आने पर बिहार में विकास का सूर्य उदय होगा

बिहार विधानसभा का ऊँट किस करवट बैठेगा इसकी भविष्यवाणी करना मुश्किल नहीं है। इस चुनाव में टकराव बीजेपी व जेडीयू और आरजेडी व उसके समर्थक दलों के महागठबंधन के बीच में है। चुनाव से पहले ही बिहार में नितीश की सरकार को उखाड़ फेंकने की बात कही जाने लगी थी। इसलिए यह तथ्य सामने आने लगा था कि नितीश सरकार इस बार सत्ता में नहीं लौटेगी। चुनाव शुरू होने पर जब सत्ता पक्ष और विपक्ष के गठबंधन की तस्वीर सामने आई तो यह स्पष्ट होने लगा कि नितीश सरकार बचाव की मुद्रा में है। जबकि विपक्ष का गठबंधन हमलावर मुद्रा में है। इसका कारण यह है कि नितीश की 15 वर्षों की सरकार द्वारा ऐसा कुछ नहीं किया गया जिससे प्रभावित होकर बिहार की जनता उन्हें चौथी बार मुख्यमंत्री बनाने के लिए उतावली है। 


जहाँ तक बिहार विधानसभा चुनाव का संबंध है यह ऐसे समय हो रहा है जिसने राज्य में भाजपा के समर्थन से चल रही नितीश सरकार के सामने बहुत कठिनाईयाँ खड़ी कर दी हैं। इन कठिनाईयों में कोरोना महामारी से और अभी हाल में आई प्रलयकारी बाढ़ से निपटने में नितीश सरकार की पूरी तरह से विफलता शामिल है। इन दोनों मुद्दों पर बिहार की जनता नितीश सरकार से बहुत नाराज़ है और अब इसे कतई बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है। नितीश सरकार द्वारा देशभर में काम कर रहे बिहार के मज़दूरों को लॉकडाउन के कारण बिहार वापस आने वाले मज़दूरों को लाने में कोई दिलचस्पी ना दिखाने के कारण भी बिहार के लोग नितीश सरकार से बहुत ही ख़फा हैं। ऐसी स्थिति में नितीश सरकार के 15 वर्षों की सरकार द्वारा बिहार के विकास के लिए कोई उल्लेखनीय काम ना किया जाना भी नितीश सरकार के लिए महंगा पड़ रहा है। इस चुनाव में 15 वर्ष की अपनी सरकार के कामों के बारे में कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाना नितीश के लिए मुश्क़िल हो रहा है। अगर कोई जवाब है तो यह है कि उनकी सरकार ने बिहार में पक्की सड़कें बनवा दी जिसके परिणामस्वरूप लोग अब 10 घंटे की यात्रा 5 घंटे में तय कर लेते हैं। बिजली की ऐसी व्यवस्था कर दी गई है कि अब हर गाँव में बिजली उपलब्ध है। इन सबसे बढ़कर राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति में बहुत सुधार हुआ है जिसके नतीजे में हर प्रकार के अपराध पर अंकुश लग गया है। अब राज्य में लोग रात में भी बिना खौफ़ आ जा सकते हैं। इन तीनों उपलब्धियों को नितीश कुमार अपनी इतनी बड़ी उपलब्धी मान रहे हैं जिसके लिए वह नोबेल पुरस्कार की कामना करते हैं अर्थात इन तीनों उपलब्धियों के आधार पर वह चौथी बार सत्ता में वापस लाए जाने की अपील कर रहे हैं लेकिन बिहार की जनता बदलाव के मूड में है क्योंकि वह बिहार का समग्र विकास चाहती है जिसपर नितीश सरकार की 15 वर्ष की सरकार द्वारा ध्यान ही नहीं किया गया। इन समस्याओं को हल करने का वादा आरजेडी महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव कर रहे हैं जिनकी ओर बिहार की जनता बहुत ज़्यादा आकर्षित है। जिन्हें लोग बिहार का उगता हुआ सूरज मान रहे हैं जो बिहार के आर्थिक पिछड़ेपन के अँधेरे को दूर कर उन्नति और प्रगति का प्रकाश लाएंगे। 


यद्यपि मोदी और नितीश द्वारा तेजस्वी महागठबंधन पर विभिन्न प्रकार के आरोप लगा रहे हैं और बिहार की जनता को गुमराह करने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं। इनके हमलों में जो बात प्रमुखता से शामिल है उनमें तेजस्वी के सत्ता में आने पर दोबारा जंगलराज कायम हो जाने, भ्रष्टाचार का फिर बोलबाला हो जाने, तेजस्वी की सरकार चलाने की अनुभवहीनता से बिहार का विकास ठप हो जाने और परिवारवाद के बढ़ जाने का आरोप शामिल है। इन आरोपों को बिहार की जनता समझ रही है और इन्हें खोखला मान रही है। यही कारण है कि अब तक की तेजस्वी की चुनावी रैलियों में बिहार की जनता की जो भीड़ नज़र आ रही है वह तेजस्वी की लोकप्रियता को साबित कर रही है। बिहार की जनता बदलाव की बात कर रही है क्योंकि वह नितीश और भाजपा की मिलीजुली निष्क्रिय सरकार से बहुत ज़्यादा नाराज़ है और अब वह इस सरकार को बिलकुल भी बर्दाश्त करने के हक़ में नहीं है। मोदी और नितीश के जंगलराज की वापसी वाले हमले का यह जवाब दिया जा रहा है कि राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) को सत्ता से 15 वर्ष तक दूर रखकर सज़ा दी जा चुकी है और इस सज़ा से आरजेडी ने सबक सीखा है। ऐसी स्थिति में तेजस्वी यादव को एक बार अवसर अवश्य देना चाहिए। क्योंकि यह आरोप लगाना गलत है कि तेजस्वी अपने पिता लालू प्रसाद यादव की तरह ही भ्रष्ट होंगे और बिहार में जंगलराज वापस लाएंगे। वह युवा है और राजनीति में अपनी लंबी पारी खेलने के इच्छुक हैं। ऐसी स्थिति में वह बिहार की जनता की आशाओं और उमंगों को सामने रखकर सरकार चलाएंगे और बिहार को विकास और उन्नति के रास्ते पर ले जाएंगे। जो 15 वर्ष के नितीश सरकार के दौरान संभव नहीं हो पाया है और इस सरकार से आगे भी इसकी संभावना नहीं है। क्योंकि नितीश और भाजपा की मिलीजुली सरकार की नज़र में बिहार के लोगों को सड़क, पानी, बिजली की सुविधाओं को उपलब्ध कराना ही विकास की चरम सीमा है। ऐसी सोच रखने वाला मुख्यमंत्री और उनकी सरकार से बिहार के विकास और उन्नति की उम्मीद नहीं की जा सकती है। जहाँ तक मोदी का सवाल है वह फ्लॉप प्रधानमंत्री साबित हो चुके हैं। उनके अब तक के 6 साल के शासनकाल में विकास और उन्नति की क्या दशा है इससे सारा देश जान रहा है? देश में ऐसा विफ़ल प्रधानमंत्री अब तक नहीं देखा गया। ऐसा विफ़ल प्रधानमंत्री बिहार की जनता को विकास के सपने दिखा रहा है। जिसको बिहार की जनता भरोसे के लायक नहीं मान रही है। वें अब भरोसा कर रहे हैं तो तेजस्वी यादव पर जो युवा है ऊर्जावान हैं और बिहार को विकास के रास्ते पर ले जाने का विचार रखते हैं। इन्हें विश्वास ही नहीं बल्कि यकीन है कि तेजस्वी यादव के आने पर बिहार की किस्मत बदलेगी।




Saturday, October 24, 2020

क्या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यौन और कामवासना के भोगी है?


जब कोई धनवान बनता है तो उसके बाद वह अय्याशियों (कामवासना) में लिप्त हो जाता है। इसके अनगिनत उदाहरण मिल जाएंगे और जब ऐसे व्यक्ति को सत्ता प्राप्त हो जाती है तो वह अपनी वासनापूर्ति के लिए हर रोज़ नई स्त्री चाहता है और जब ऐसा व्यक्ति दिखावे के लिए धर्मगुरु भी हो और किसी मंदिर का मठाधीश हो तब उसकी अय्याशी की कोई सीमा नहीं रहती। कुछ ऐसी ही बातें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बारे में कही और सुनी जाती हैं क्योंकि इनके पास बेहिसाब धन है, इनके पास सत्ता है और वह धर्मगुरु भी हैं। ऐसी स्तिथि में हमें यह जानने का अधिकार है कि उनका निजी जीवन कैसा है? क्योंकि वह राजनीति में सक्रिय हैं और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। इसलिए न केवल प्रदेश के मतदाताओं की बल्कि पूरे देश के मतदाताओं को उनसे उनके निजी जीवन के बारे में पूछने का अधिकार है और इसका जवाब जानने का भी अधिकार है। चूँकि योगी आदित्यनाथ राजनीति में आने के कारण पब्लिक फिगर (सार्वजनिक हस्ती) बन गए हैं इसलिए उनका निजी जीवन उनका अपना नहीं रहा। इनके निजी जीवन के बारे में तो उनसे उसी वक़्त पूछा जाना चाहिए था जब 1998 में इन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और गोरखपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीतकर सांसद बने थे। उस समय वह बिलकुल युवा थे और उनकी आयु लगभग 26 वर्ष की थी। जब इनमें यौन इच्छा और कामवासना का तूफ़ान उठ रहा होगा क्योंकि यही वो समय होता है जब व्यक्ति यौन इच्छा और कामवासना की आपूर्ति के लिए हैवान तक बन जाता है। जिनके अनगिनत उदाहरण मौजूद हैं।

 

हम यहाँ योगी आदित्यनाथ के निजी जीवन में यौन इच्छा और कामवासना की इच्छा की आपूर्ति पर इसलिए बहस करना चाहते हैं क्योंकि वह स्वयं को योगी कहते हैं जिसका अर्थ होता है कि उन्हें अपनी सभी इच्छाओं पर नियंत्रण हासिल है। यहाँ यह सवाल उठता है कि क्या उन्हें वास्तव में अपनी सभी इच्छाओं पर जिनमें यौन इच्छा और कामवासना शामिल है? जहाँ तक एक सच्चे और असली योगी का संबंध है निःसंदेह उसे अपनी सांसारिक इच्छाओं पर जिनमें यौन इच्छा और कामवासना शामिल है, नियंत्रण होता है। आमतौर से योगी ऐसा ही होता है। देश में जो भी योगी हुए हैं वह संसार की मोहमाया से निकलकर परमात्मा के ध्यान में लीन होकर अध्यात्म की बुलंदियों पर पहुंचे और परमात्मा के होकर रह गए। उनमें कोई इच्छा थी तो केवल और केवल परमात्मा के ध्यान में लीन रहने की। सांसारिक जीवन से उनका कोई लेना-देना नहीं रहा। अभी हाल के दौर में पूर्वांचल के देवरिया ज़िले में एक महान योगी का दुनिया ने दर्शन किया जो देवरहा बाबा के नाम से जाने जाते हैं। जो अपनी कुटिया में एक मचान पर रहते थे और अपना दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं को पैर से आशीर्वाद दिया करते थे। एक बार स्व० प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी भी उनके पास आशीर्वाद लेने पहुंची थी तो देवरहा बाबा ने अभय मुद्रा में उन्हें अपना हाथ उठाकर आशीर्वाद दिया और कहा यही तुम्हारा कल्याण करेगा। बाद में देवरहा बाबा देवरिया से लापता हो गए और लोगों ने उन्हें हरिद्वार में देखा। उनकी आयु के बारे में विभिन्न धारणाएं थीं। कोई उन्हें 500 वर्ष का बताता था, कोई उन्हें 300 वर्ष का बताता था तो कोई उन्हें 200 वर्ष का बताता था। ऐसे सच्चे और असली योगी का नाम योगी आदित्यनाथ ने भी सुना होगा। क्या योगी आदित्यनाथ इस महान योगी जैसा स्वयं को सच्चा और असली योगी कह सकते हैं? इनका सारा जीवन इस बात का सबूत है न यह सन्यासी हैं, न यह योगी हैं और न यह धर्मगुरु हैं। उत्तराखंड के पौढ़ी गढ़वाल के पंचुर गाँव में उत्पन्न हुए योगी आदित्यनाथ ने अपनी पढ़ाई-लिखाई उत्तराखंड में की। बाद में वह गोरखपुर स्थित गोरखनाथ मठ पर शोध करने के लिए गोरखपुर आए और महंत अवैधनाथ से उनका संपर्क स्थापित हुआ जो उनके चाचा थे उन्होंने उनसे दीक्षा लिया और सन्यासी बन गए। 1998 में संन्यास छोड़कर राजनीति में कूद गए जो देश का सबसे गन्दा क्षेत्र है। तबसे वह देश के सबसे गंदे क्षेत्र में डुबकी लगा रहे हैं फिर भी वह स्वयं को योगी और धर्मगुरु कहते हैं। उनके द्वारा यह मुखौटा लगाए जाने के कारण कुछ अंधविश्वासी इन्हें अपना भगवान मानते हैं और इस प्रकार यह लोगों को धोखा और फरेब दे रहे हैं। ऐसे ही अंधविश्वासी आसाराम बापू को भी भगवान मान रहे थे जो एक बलात्कारी निकला जो इस आरोप में अभी तक जेल में बंद है। राम रहीम भी कुछ अंधविश्वासियों की नज़र में भगवान था, जब उसकी पोल खुली तो मालूम हुआ कि वह कमसिन लड़कियों से संभोग करने का रसिया था। आज वह भी जेल में है और उसे भी जमानत नहीं मिल पाई है। स्वामी नित्यानंद का भी बड़ा नाम था। यह भी अपने भक्तों में भगवान के रूप में देखा जाता था। इसकी कई वीडियो सामने आ चुकी हैं जिसमें इसके द्वारा लड़कियों से अपने बदन की मालिश करवाते हुए देखा जा सकता है। ऐसे ही 'एक भगवान' चिन्मयानन्द है जिनका एक वीडियो सामने आ चुका है जिसमें यह भगवान निर्वस्त्र होकर लड़कियों से अपनी मालिश करवाता हुआ नजर आता है। यह भगवान भी बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार होकर जेल जा चुका है और महीनों जेल की रोटियां खाने के बाद अब जमानत पर जेल से बाहर आ गया है इसका भव्य स्वागत योगी आदित्यनाथ के समर्थकों द्वारा किया गया। दिलचस्प बात यह है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा पुलिस प्रशासन को इस मंशा का पत्र लिखा गया है कि चिन्मयानन्द के खिलाफ लगाए गए आरोपों को हटा लिया जाए। इससे योगी आदित्यनाथ के महिला विरोधी विचार का प्रदर्शन होता है जो एक बलात्कार के आरोपी को सख्त से सख्त सज़ा देने की सिफारिश करने के बजाए ऐसे बलात्कारी के खिलाफ लगाए गए बलात्कार के आरोप को हटाने के लिए चिट्ठी लिखता है। अगर चिन्मयानन्द बलात्कारी नहीं है तो अदालत द्वारा उसे आरोपमुक्त कर दिया जाएगा लेकिन आदित्यनाथ को अदालत पर भरोसा नहीं है इसलिए उन्होंने पुलिस प्रशासन को चिट्ठी लिखी है। चिन्मयानन्द जैसे बलात्कारी के साथ कोई आम आदमी ऐसी सहानुभूति नहीं रख सकता जैसी सहानुभूति उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा व्यक्त की जा रही है। यह कैसा 'भगवान' है जो एक बलात्कारी को बचाने में इतनी दिलचस्पी ले रहा है। जबकि भगवान बुराई करने वालों को सजा देता है। जो अंधविश्वासी योगी आदित्यनाथ को भगवान मानते हैं वह अपने दिमाग का दरवाज़ा खोलकर योगी आदित्यनाथ की इस महिला विरोधी हरकत को देखें और स्वयं फैसला करें कि कोई भगवान बलात्कारियों को कैसे बचा सकता हैं?

 

चिन्मयानन्द जैसे बलात्कारी के खिलाफ बलात्कार के आरोप को हटाने के लिए पुलिस प्रशासन को पत्र लिखने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चरित्रहीन होने का सबूत है क्योंकि जो जैसा होता है वह अपने ही जैसे लोगों को पसंद करता है। क्या योगी आदित्यनाथ ने चिन्मयानन्द का वह वीडियों नहीं देखा है जिसमें वह निर्वस्त्र होकर एक लड़की से अपने बदन की मालिश करवाता हुआ नजर आता है? इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि योगी आदित्यनाथ ने चिन्मयानन्द का यह वीडियो नहीं देखा होगा और उन्हें चिन्मयानन्द का अपनी यौन इच्छा और कामवासना की अवैध तरीके से आपूर्ति के लिए महिलाओं से संभोग करने की कहानी का उन्हें पता नहीं होगा? इसके बावजूद योगी आदित्यनाथ चिन्मयानन्द के साथ सहानुभूति रखते हैं तो निश्चित तौर पर निजी जीवन में उनका भी यही खेल होगा। इसका दावा मैं इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि योगी आदित्यनाथ दिखावे के लिए योगी और धर्मगुरु है। वह वास्तव में भोगी अर्थात अपनी यौन इच्छा और कामवासना की आपूर्ति के लिए महिलाओं का भोग करते हैं। मेरा उनसे यहाँ यह प्रश्न है कि क्या उन्होंने अपनी यौन इच्छा और कामवासना की आपूर्ति के लिए आजतक संभोग नहीं किया है। अगर इस प्रश्न का उत्तर वह नकारात्मक देते हैं तो इसका मतलब यह है कि वह नपुंसक हैं और उनके द्वारा यह उत्तर दिए जाने पर मेडिकल टेस्ट होना चाहिए कि वह नपुंसक हैं या पौरूष शक्ति उनमें मौजूद है। आसाराम बापू का मेडिकल टेस्ट होने पर उसमें पौरूष शक्ति के मौजूद होने का पता चला था अर्थात उसमें संभोग करने की क्षमता थी। 


योगी आदित्यनाथ सांसारिक वस्तुओं का हर तरह भोग कर रहे हैं इसका उदाहरण उनका जीवन है। कोई भी व्यक्ति सिवाय अंधविश्वासियों के उनका जीवन देखकर यही कहेगा कि वह धर्म के नाम पर दुनिया को धोखा और फरेब दे रहे हैं। इनके अंदर धर्म का ज़रा भी अंश नहीं पाया जाता है। भगवा कपड़ा पहनकर और धार्मिक बातें कहकर कोई धार्मिक नहीं बन जाता है। धार्मिक वह होता है जिसका हर क्षेत्र में धार्मिक व्यवहार होता है और समाज के लोगों में वह प्यार-मुहब्बत फैलाने की बात करता है। भोगी आदित्यनाथ के जीवन से यह सब गायब है। इस भोगी का धार्मिक मुखौटा तो उस वक़्त उतर गया जब इन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। जैसा कि मैं ऊपर लिख चुका हूँ कि राजनीति से गंदा क्षेत्र कोई नहीं है तो गंदगी के इस दलदल में कोई भी सच्चा धार्मिक व्यक्ति घुसना नहीं चाहेगा। देश के राजनीतिक इतिहास में हम किसी सच्चे धार्मिक व्यक्ति को राजनीति में हिस्सा लेते हुए नहीं पाते अर्थात हम यह नहीं पाते हैं कि कोई सच्चा धार्मिक व्यक्ति विधायक बना हो, सांसद बना हो, मंत्री बना हो, मुख़्यमंत्री बना हो या प्रधानमंत्री बना हो। ऐसा कोई उदाहरण देश में कहीं नहीं मिलता। इस भोगी की गंदी मानसिकता का उदाहरण यही है कि वह धर्म जैसे पवित्र क्षेत्र में रहते हुए भी राजनीति जैसे गंदे क्षेत्र में कूद गए और इस गंदगी का भोग कर रहे हैं। वैसे वह जिस मंदिर के मठाधीश हैं वहाँ भी यह गंदगी का भोग कर रहे हैं। इस तरह के मंदिरों का देश में क्या हाल है इसका उदाहरण लगभग 1 वर्ष पूर्व दक्षिण के एक मंदिर में देवदासी बना दी गई एक लड़की ने अपनी आत्मकथा को व्हाट्सअप पर भेजा था। उसमें उसने देवदासी बना दिए जाने पर उसने मंदिर के महामठाधीश जो बहुत मोटा और भारी भरकम शरीर वाला था द्वारा सबसे पहले अपने साथ हुए संभोग का बगैर हिचकिचाए बारीकी से वर्णन किया है। 13-14 वर्ष की इस देवदासी ने वर्णन किया है कि जब उस मठाधीश ने पहली बार उसके साथ संभोग किया तो वह पीड़ा से चींखती-चिल्लाती रही और वह तीव्र पीड़ा से तड़पती रही। लेकिन इसका ज़रा भी असर उसके साथ संभोग करने वाले महामठाधीश पर नहीं पड़ा। वह अपने साथ किए जा रहे संभोग से उत्पन्न तीव्र पीड़ा से कब बेहोश हो गई उसे पता नहीं चला। होश आने पर उसने स्वयं को निर्वस्त्र पाया और अपनी योनि को ज़ख़्मी पाया और बिस्तर पर भी काफ़ी रक्त पाया। उसने लिखा है कि उसके साथ महीनों हर रात मंदिर के अन्य पुजारी संभोग करते रहे और वह उनके द्वारा किए जा रहे संभोग से उत्पन्न पीड़ा को सहती रही। जब सभी पुजारियों द्वारा बार-बार अपनी वासना की भूख मिटा ली गई तब उसे देह बाज़ार में बेच दिया गया लेकिन वह किसी तरह वहां से बच निकली और अब गुमनाम जीवन बिता रही है। इस तरह इससे पता चलता है कि देवदासी प्रथा आज भी जारी है और यहाँ के मंदिरों के मठाधीश और अन्य पुजारी अपनी यौन इच्छा की आपूर्ति के लिए उनका इस्तेमाल करते हैं। भोगी आदित्यनाथ भी एक प्रसिद्ध मठ के महामठाधीश हैं जहाँ रोज़ाना सैंकड़ों स्त्रियां और युवतियां पूजा-पाठ के लिए आती हैं और कुछ अन्य प्रमुख अवसरों पर यहाँ हज़ारों की संख्या युवतियां और स्त्रियां पूजा-पाठ के लिए आती हैं। यद्यपि इस मठ में युवतियों और स्त्रियों के साथ हुए किसी घृणित अपराध की घटना प्रकाश में नहीं आई हैं। लेकिन यहाँ भी युवतियों और स्त्रियों के साथ हो रहे घृणित अपराध की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। इसकी संभावना इसलिए है कि भोगी आदित्यनाथ अविवाहित हैं और उन्हें अपनी कामवासना की आपूर्ति के लिए अपोज़िट सेक्स की ज़रूरत होती है जो उनके मठ में बहुतायत उपलब्ध होती हैं। वह वहां उपलब्ध जिस अपोज़िट सेक्स की ओर इशारा कर देते होंगे और उनके गुर्गे उनके कक्ष में पहुंचा देते होंगे। बाद में ऐसी अपोज़औिट सेक्स का कोई अता-पता नहीं चलता होगा। यहाँ यही खेल वर्षों से चल रहा होगा। लेकिन हमारा यह दावा है कि यह पाखंडी योगी आदित्यनाथ कामवासना में पूरी तरह लिप्त है। क्योंकि जब महादेव अपनी कामवासना पर नियंत्रण नहीं कर पाए और इसकी आपूर्ति के लिए पार्वती से विवाह किया तो ढोंगी आदित्यनाथ से क्या यह आशा की जा सकती है कि वह अपनी कामवासना पर नियंत्रण कर स्त्रियों का भोग नहीं करते हैं? इस तरह के मठ में स्त्रियों के साथ बलात्कार का ज्वलंत उदाहरण बनारस का विश्वप्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर है। जहाँ इसके एक हिस्से को बादशाह औरंगज़ेब द्वारा ध्वस्त करा दिया गया था और वहां ज्ञानवापी मस्जिद बनवा दी गई थी। इसका कारण यह था कि औरंगज़ेब के एक हिन्दू सेनापति की पत्नी के काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा-पाठ के उद्देश्य से जाने पर उनका अपहरण कर लिया गया और मंदिर के तहखाने में ले जाकर उससे बलात्कार किया गया और उसके जेवरात लुट लिए गए थे। इस घृणित ऐतिहासिक घटना का उल्लेख डॉ० पट्टाभि सीतारमैया द्वारा 1946 में प्रकाशित अपनी पुस्तक 'फीदर्स एंड स्टोन्स' में किया गया है। काशी विश्वनाथ मंदिर में घटी यह घृणित घटना ज़ाहिर है पहली घटना नहीं रही होगी। इस मंदिर में इससे पहले लाखों स्त्रियों और बालिकाओं के साथ बलात्कार किया गया होगा। उनके आभूषण लुटे गए होंगे और संभवतः बहुतों की हत्या भी कर दी गई होगी। हिन्दू धर्म के इस अति महत्वपूर्ण मंदिर में लाखों स्त्रियों के साथ हुई बलात्कार की घटनाओं ने इस पवित्रतम मंदिर को घोर अपवित्र कर दिया जिसे बादशाह औरंगज़ेब बर्दाश्त ना कर सका और उसे ध्वस्त करा दिया गया। यहाँ पर उक्त हिन्दू सेनापति की पत्नी की इच्छा पर ज्ञानवापी मस्जिद बना दी गई। यह है ज्ञानवापी मस्जिद के निर्माण की सच्ची कहानी। जो काशी विश्वनाथ मंदिर मोक्ष प्राप्ति करने का ज़रिया है वहां ऐसे घृणित अपराध हो रहे हों इससे मंदिर के महंतों और पुरोहितों का घृणित चेहरा बेनकाब होता है। बहुत संभव है कि आज भी काशी विश्वनाथ मंदिर में स्त्रियों के साथ वही सब कुछ हो रहा होगा जो बादशाह औरंगज़ेब के ज़माने में हो रहा था। 


भोगी आदित्यनाथ के गोरखनाथ मंदिर में क्या ऐसा नहीं हो रहा होगा इससे इंकार नहीं किया जा सकता? क्योंकि आदित्यनाथ पाखंडी हैं और धर्म का चौला लोगों को दिखाने के लिए पहन रखा है और अपने नाम के आगे योगी शब्द जोड़कर लोगों को यह बता रहे हैं कि यौन इच्छा और कामवासना की आपूर्ति से वह 'बहुत ऊपर' हैं। लेकिन उनका जीवन यह बता रहा है कि वह सांसारिक वस्तुओं का भोग एक सामान्य व्यक्ति की तरह कर रहे हैं जिसमें स्त्रियों का भोग भी शामिल है। अगर ऐसा नहीं है तो भोगी आदित्यनाथ बताएं कि उन्होंने आजतक स्त्री का भोग किया है कि नहीं? अर्थात क्या उन्होंने आजतक अपनी यौन इच्छा और कामवासना की आपूर्ति की या नहीं। क्योंकि वह अविवाहित हैं इसलिए उनके द्वारा किसी से नाजायज तरीके से संभोग किया जा रहा होगा। मुझे यह पोस्ट इसलिए विवश होकर लिखनी पड़ रही है क्योंकि आदित्यनाथ स्वयं को योगी और धर्मगुरु कहते हैं। इसके बावजूद वह सांसारिक गतिविधियों में पूर्ण रूप से लिप्त हैं। जो किसी सच्चे सन्यासी और सच्चे योगी के जीवन में नज़र नहीं आता है। 


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा



नोट : सभी पाठकों से अनुरोध है कि इस पोस्ट को ज़्यादा से ज़्यादा और तब तक शेयर करते रहे जब तक योगी आदित्यनाथ अपने नाम के आगे से योगी शब्द को हटा लें या राजनीति से सन्यास लेलें।


 

Saturday, September 5, 2020

नार्कोटिक कन्ट्रोल ब्यूरो की विफलता से फलफूल रहा है ड्रग का धंधा।


सुशांत सिंह राजपूत की मौत का मामला ड्रग्स की खरीद-फरोख्त की दिशा में हो गया है क्योंकि रिया द्वारा व्हाट्सअप पर किए गए चैट से ड्रग्स की खरीदारी का मामला कथित तौर पर सामने आया जिसकी जांच नार्कोटिक कन्ट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) द्वारा की जा रही है। जांच के दौरान ड्रग्स की सप्लाई करने वाले दो व्यक्ति गिरफ्तार किए गए। इसके बाद रिया के भाई शौविक चक्रवर्ती और सुशांत सिंह राजपूत के हाउस मैनेजर सैमुअल मिरांडा को ड्रग्स खरीदने और इसके प्रयोग के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। सवाल उठता है कि देशभर के शहरों में ड्रग्स की मार्केट में उपलब्धि कैसे संभव होती है? जबकि देशभर में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) का ऑफिस मौजूद है जिसका काम यही है कि वह मार्केट में ड्रग्स की स्मग्लिंग और इसकी उपलब्धिता को रोके। तथ्य बताते हैं कि यह दोनों काम जोर-शोर से चल रहा है  इसलिए युवक और समाज बेधड़क हो रहा है। जाहिर है यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि नार्कोटिक्स कन्ट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) अपनी जिम्मेदारी निभाने में पूरी तरह विफल है क्योंकि ब्यूरो में भ्रष्टाचार व्याप्त है जिसके परिणामस्वरूप ब्यूरो के कर्मचारियों और अधिकारियों की ड्रग का धंधा करने वालों से कथित तौर पर मिलीभगत होती है। इस मिलीभगत के कारण जहां ब्यूरो के लोग करोड़ों-अरबों की उगाही करते हैं वहीं दूसरी तरफ़ देश के युवा और समाज का संपन्न वर्ग ड्रग्स के आदि होकर अपना जीवन बर्बाद कर रहे हैं। अगर एनसीबी हर शहर में ईमानदारी से अभियान चलाए तो हज़ारों लोग हर शहर में ड्रग का प्रयोग करने के आरोप में गिरफ्तार किए जाएंगे। ऐसी स्थिति में रिया चक्रवर्ती के भाई शौविक चक्रवर्ती की ड्रग के प्रयोग के आरोप में गिरफ्तारी ब्यूरो द्वारा अपनी नाकामियों को छुपाने की कोशिश कर रहा है।


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा।

Thursday, September 3, 2020

प्रशांत भूषण को दी गई सज़ा सर्वोच्च न्यायालय का संविधान और लोकतंत्र पर हमला।



देश के जाने-माने वकील और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के जजों की आलोचना किए जाने पर उन्हें सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना का दोषी पाया गया और उसके लिए उन्हें 1 रुपये का जुर्माना लगाया गया है। जुर्माना अदा न करने पर 3 माह की जेल की कैद और सर्वोच्च न्यायालय में 3 साल तक प्रेक्टिस पर पाबंदी की सजा सुनाई गई है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने प्रशांत भूषण द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के जजों की की गई आलोचना को बहुत गंभीर माना और इसे सर्वोच्च न्यायालय के अपमान के रूप में देखा। इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय की इस खंडपीठ ने प्रशांत भूषण से माफी मांगने को कहा, लेकिन प्रशांत भूषण ने माफी मांगने से साफ-साफ इंकार कर दिया और कहा कि मुझे जो सजा दी जाएगी, मैं उसे भुगतने के लिए तैयार हूं। अदालत की अवमानना के संबंध में जो कानून है उसमें किसी आरोपी को ₹ 2000 का जुर्माना या तीन माह की कैद की सजा या फिर यह दोनों ही सजा किसी आरोपी को दी जा सकती है। चूंकि प्रशांत भूषण का यह मामला संविधान द्वारा नागरिकों को दी गई अभिव्यक्ति की आज़ादी से संबंधित है। इसलिए प्रशांत भूषण ने इस मामले में माफी मांगने से इंकार कर दिया और संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की आज़ादी की सुरक्षा के लिए खड़े हो गए जिसका देशभर में स्वागत किया गया और यह भी कहा गया कि प्रशांत भूषण हरगिज़ माफ़ी ना मांगे। प्रशांत भूषण के इस अडिग रवैये को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा ऐसी सजा सुनाई गई जिसे मानने के लिए प्रशांत भूषण इसे मानने के लिए विवश हो जाएं। किसी अदालत द्वारा किसी आरोपी को दी गई सजा को भुगतना अलग बात है और किसी सजा को भुगतने के लिए विवश करना अलग बात है अर्थात इस मामले में कोर्ट की अवमानना की सजा या ₹ 2000 जुर्माना या तीन माह की कैद की सज़ा या फिर दोनों सज़ाएं हैं। प्रशांत भूषण माफी ना मांगकर इस सज़ा को भुगतने के लिए तैयार थे लेकिन सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने प्रशांत भूषण के लिए इस कानूनी सज़ा को काफी नहीं समझा। चूंकि खंडपीठ ने प्रशांत भूषण द्वारा जजों की आलोचना को सर्वोच्च न्यायालय के अपमान के रूप में देखा इसलिए वें प्रशांत भूषण द्वारा कानूनी सज़ा को भुगते जाने को सामान्य सज़ा समझते थे।


यह ऐसी सज़ा थी जिससे सर्वोच्च न्यायालय की मंशा नहीं पूरी होती थी। दरअसल सर्वोच्च न्यायालय यह चाहता था कि प्रशांत भूषण को ऐसी सजा दी जाए जो प्रशांत भूषण की आत्मा तक को हिला दे। इस तरह सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने प्रशांत भूषण को ऐसी सजा दी क्योंकि प्रशांत भूषण जुर्माना और कैद की सजा को बिना झिझक भुगत सकते थे लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने वकालत की अपनी प्रेक्टिस पर पाबंदी को नहीं सहन सकते थे। ऐसा लगता है कि कोर्ट की मंशा यह भी थी कि प्रशांत भूषण को अवमानना की कानूनी सज़ा को भुगतने से देश के लोगों की नज़र में इन्हें हीरो बनने से भी रोका जाए। यह बात निश्चित है कि अगर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रशांत भूषण को अवमानना की कानूनी सज़ा दी जाती तो प्रशांत भूषण उस सज़ा को बेझिझक भुगतने को तैयार होते जिसके नतीजे में पूरे देश में संविधान बचाओ उग्र आंदोलन शुरू हो जाता विशेषकर सुप्रीम कोर्ट के जजों और स्वयं सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ भी यह आंदोलन भड़क उठता। इस प्रकार मोदी सरकार के दौरान सुप्रीम कोर्ट काम कर रहा है इससे देश में भारी नाराजगी पाई जा रही है। सर्वोच्च न्यायालय के जज अपने फैसले के जरिए सर्वोच्च न्यायालय की गरिमा को मिट्टी में मिला रहे हैं और संविधान और लोकतंत्र पर कुठाराघात भी कर रहे हैं। जिसको बचाने की इनकी ज़िम्मेदारी थी। अयोध्या विवाद की सुनवाई करने वाली मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने जिस प्रकार न्याय की हत्या करते हुए केंद्र सरकार के इशारे पर हिंदुओं के पक्ष में फैसला दिया उसकी जितनी भी निंदा की जाए कम है क्योंकि इस फैसले ने सर्वोच्च न्यायालय के जजों की औकात को बता दिया है। राम मंदिर के पक्ष में फैसला देने के बदले में मोदी सरकार ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा का मनोनीत सदस्य बना लिया। क्या यह सर्वोच्च न्यायालय के जजों के लिए शर्मनाक बात नहीं है और क्या इससे सर्वोच्च न्यायालय और इसके जजों की गरिमा मिट्टी में नहीं मिलती? सर्वोच्च न्यायालय के जजों को प्रशांत भूषण द्वारा उनकी आलोचना से उनका और सर्वोच्च न्यायालय का अपमान हो जाता है जबकि यह आलोचना संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी का हिस्सा है।


सवाल उठता है कि क्या सर्वोच्च न्यायालय के जज ईश्वर हैं जो उनकी आलोचना नहीं की जा सकती? सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई को उनकी रिटायरमेंट के चंद माह बाद राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किए जाने से सर्वोच्च न्यायालय का जो अपमान हुआ है वह अपमान क्या प्रशांत भूषण को सज़ा देने वाली सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ को नहीं दिखाई पड़ा। पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई का राज्यसभा सदस्य मनोनीत किया जाना सर्वोच्च न्यायालय को रसातल में पहुंचाने के बराबर है। इस घटना ने देश के लोगों का विश्वास सर्वोच्च न्यायालय से उठा दिया है और अब प्रशांत भूषण को सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना का दोषी मानकर जो सज़ा सुनाई गई है उसने संविधान और लोकतंत्र को ढहाने का काम किया है। क्योंकि इस फैसले ने संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदत्त अभिव्यक्ति की आज़ादी को समाप्त करने का दरवाज़ा खोल दिया है।


इस फैसले से सर्वोच्च न्यायालय की तानाशाही भी सामने आती है क्योंकि प्रशांत भूषण को अवमानना की निर्धारित कानूनी सज़ा देने के बजाय उनके वकालत के पेशे पर पाबंदी लगाने की बात कही गई है। यह फैसला सुनाकर खंडपीठ के जजों ने ना सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय का अपमान किया है बल्कि इसकी रही-सही गरिमा को भी मिट्टी में मिला दिया है। प्रशांत भूषण को दी गई सज़ा खंडपीठ के जजों की कुंठा को दर्शाता है ना कि तर्कसंगत न्याय को।


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा। 

Monday, August 31, 2020

गोदी मीडिया चाहती है कि रिया ख़ुदकुशी कर ले।





फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से उनकी प्रेमिका रिया चक्रवर्ती के बारे में गोदी मीडिया ने सुशांत सिंह राजपूत की मौत के लिए इन्हें ज़िम्मेदार ठहराने का अभियान चला रखा है। इसी के साथ उनके द्वारा यह भी बताया जा रहा है कि रिया चक्रवर्ती ने सुशांत सिंह राजपूत का पैसा लूटा। इन दो बिंदुओं को लेकर गोदी मीडिया प्रतिदिन नए-नए एंगल से स्टोरी चला रहे हैं और अपनी 'खोजी' पत्रकारिता का भौंदा प्रदर्शन कर रहे हैं जिसमें झूठ और बेबुनियाद बातों का प्रयोग कर रिया चक्रवर्ती पर खतरनाक से खतरनाक हमला किया जा रहा है जिसका मकसद यही समझ में आ रहा है कि गोदी मीडिया रिया चक्रवर्ती को ख़ुदकुशी करने के लिए मजबूर कर रही है क्योंकि पिछले 75 दिनों से जिस प्रकार गोदी मीडिया रिया चक्रवर्ती के खिलाफ अपना अभियान चला रही है जिसके कारण कोई भी व्यक्ति अपना मानसिक संतुलन खोकर ख़ुदकुशी करने के लिए मजबूर हो सकता था लेकिन यह रिया चक्रवर्ती की हिम्मत और साहस है कि वह इस गोदी मीडिया के इस अत्यंत खतरनाक हमले को सहन कर रही है।


याद रहे कि सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से गोदी मीडिया ने ऐसी हास्यास्पद ख़बरें चलाई हैं जो बेबुनियाद और झूठी साबित होती जा रही है लेकिन इससे उनपर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है। इसके बावजूद यह अपने दर्शकों में रिया चक्रवर्ती के खिलाफ नफरत फैलाने वाली ख़बरें प्रतिदिन प्रसारित कर रहे हैं। अपने प्रतिदिन के प्रसारण में इनका इशारा सिर्फ और सिर्फ रिया चक्रवर्ती होती है जिसका मकसद रिया चक्रवर्ती को सुशांत सिंह राजपूत की मौत का ज़िम्मेदार ठहराना होता है। पिछले 75 दिनों से गोदी मीडिया द्वारा मीडिया ट्रायल के ज़रिए रिया चक्रवर्ती को सुशांत सिंह राजपूत की मौत का आरोपी सिद्ध कर दिया गया है और इस प्रकार मीडिया तक इसको पहुँचने से वंचित कर इस मामले में उसको सफाई देने का भी मौका नहीं दिया जा रहा है। गोदी मीडिया इस मामले को इस प्रकार पेश कर रही है कि जैसे सुशांत सिंह राजपूत की मौत एक अभिनेता की मौत नहीं बल्कि देश के कोई सबसे बड़े राजनातिक, सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों से संबंधित अत्यंत लोकप्रिय व्यक्ति की मौत का मामला है जिसकी ज़िम्मेदार फिल्मों में काम करने वाली एक तुच्छ अभिनेत्री है। जहाँ तक रिया चक्रवर्ती का सुशांत सिंह राजपूत की मौत के लिए ज़िम्मेदार होने का संबंध है इसका खुलासा विभिन्न जांच एजेंसियों द्वारा हो जाएगा। लेकिन जिस प्रकार गोदी मीडिया द्वारा इस मामले को उठाया जा रहा है कि इनके पास कोई मुद्दा नहीं है या जानबूझकर देश की जनता से संबंधित ज्वलंत मुद्दों की नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। इन मुद्दों में देश की अर्थव्यवस्था के चौपट हो जाने, करोड़ों लोगों के बेरोज़गार हो जाने देश के विकास के ठप हो जाने और कोरोना महामारी के बेलगाम हो जाने की समस्या शामिल है। इन ज्वलंत मुद्दों को इनके द्वारा इसलिए नहीं उठाया जा रहा है कि ऐसा करने से मोदी के नेतृत्व वाली मोदी सरकार कठघरे में खड़ी होगी और मोदी सरकार की अलोकप्रियता का जुलूस निकलेगा। गोदी मीडिया द्वारा प्रसारित कार्यक्रमों से कोई भी जागरूक नागरिक और दर्शक को यह समझना मुश्किल नहीं होता है जिनका मकसद सुशांत सिंह राजपूत जैसे मामले को प्रसारित कर दर्शकों को मोदी सरकार की विफलताओं, नाकामियों और कमियों को सामने आने से रोकना है जबकि मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की विफलता का सबसे बड़ा सबूत यह है कि भारत की 130 करोड़ जनता में से 80 करोड़ लोग भिखारी बन चुके हैं जिनके 2 वक़्त के खाने का प्रबंध मोदी सरकार द्वारा प्रतिमाह 5 किलो चावल या 5 किलो आटा और 1 किलो चना उपलब्ध कराया जा रहा है। देश की यह स्थिति इतनी भयावह है जिस पर गोदी मीडिया कोई खबर या कोई रिपोर्ट नहीं प्रसारित करता है। अच्छे दिन लाने का नारा देकर सत्ता में आने वाली सरकार ने देश को ऐसी स्थिति में पहुंचा दिया है जहाँ पहुंचने का किसी ने विचार भी ना किया होगा। दिलचस्प बात यह है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन देश को आर्थिक स्थिति और विकास के चौपट होने और 80 करोड़ लोगों के भिखारी बन जाने के लिए ईश्वर को ज़िम्मेदार ठहरा रही है। भारत दुनिया का पहला देश है और इसकी पहली वित्त मंत्री हैं जो देश की मौजूदा स्थिति के लिए ईश्वर को ज़िम्मेदार ठहरा रही है जबकि कोरोना महामारी से विश्व के सभी देश इस महामारी से लड़ रहे हैं और अपनी जनता को ज़्यादा से ज़्यादा सुविधाएं प्रदान कर उन्हें सम्मानजनक जीने का अवसर प्रदान कर रहे हैं क्योंकि उन्हें अपनी जनता से प्यार है। निर्मला सीतारमन जैसी वित्तमन्त्री ने देश की मौजूदा स्थिति के लिए ईश्वर को ज़िम्मेदार ठहराकर केंद्र सरकार को अपने दायित्व से पलड़ा झाड़ने का इशारा किया है। ऐसी वित्त मंत्री जो वित्त मामले में विशेषज्ञ नहीं है उसके द्वारा ऐसी ही ऊटपटांग बातें करने की आशा की जा सकती है लेकिन वित्त मंत्री ने यह ऊटपटांग बातें ना सिर्फ इनको आलोचना का केंद्र बनाती हैं बल्कि इससे पूरी मोदी सरकार की छवि धूमिल होती है और यह संदेश देती हैं कि मोदी सरकार अयोग्य लोगों की सरकार है जो अपनी कमियों, नाकामियों और विफलताओं के लिए ईश्वर को ज़िम्मेदार ठहरा रही है। इन सब बातों पर गोदी मीडिया आँख मूंदे हुए है और देश की जनता की समस्याओं को उठाने का अपना कर्तव्य भूलकर मोदी सरकार की चाटुकारिता में लगी हुई है। 


सुशांत सिंह राजपूत को जिस तरह गोदी मीडिया अपनी रिपोर्टों में पेश कर रही है उससे लगता है कि सुशांत सिंह राजपूत कोई भला व्यक्ति था और उसमें मानवीय विशेषताएं पाई जाती थी। वह होनहार था, पढ़ा-लिखा था, घर के लोगों से प्यार करने वाला था, सगे-संबंधियों से रिश्तों को निभाने वाला था। इसकी इन कथित अच्छाइयों को गोदी मीडिया प्रसारित कर नहीं थक रही है और अपने दर्शकों में सुशांत सिंह राजपूत के प्रति सहानुभूति की लहर पैदा करने का काम कर रही है जबकि रिया चक्रवर्ती को हत्यारी और लूटेरी बता रही है। वास्तव में गोदी मीडिया इस मामले को आरम्भ से ही जिस तरह पेश कर रही है उसके लिए सुशांत सिंह राजपूत को मानवीय गुणों से सुसज्जित कर रिया चक्रवर्ती को वैम्प (खलनायिका) के तौर पर पेश करना आवश्यक है ताकि यह किसी टीवी धारावाहिक की स्क्रिप्ट की तरह इसे जितना चाहें आगे बढ़ाते रहें और सरकार की उस मंशा को पूरा करते रहें कि देश की जनता के सामने सरकार की हर मोर्चे पर विफलता का तथ्य सामने ना आ सके। जहाँ तक सुशांत सिंह राजपूत की मौत का सीबीआई जांच का संबंध है पिछले 10 दिनों से ऐसा कोई खुलासा नहीं हो पाया है जो इस ओर इशारा कर रहा है कि सुशांत सिंह राजपूत की मौत में रिया का हाथ है। गोदी मीडिया ने इस केस को सुशांत सिंह राजपूत के पिता के. के. सिंह द्वारा पटना में लिखाई गई एफआईआर के बाद से इस केस को विभिन्न दिशाओं में मोड़ दिया है। इस केस में गोदी मीडिया रिया चक्रवर्ती पर सुशांत सिंह राजपूत के करोड़ों रुपयों को लूटने, उसको ज़हर देने और उसको ड्रग्स एडिक्ट बनाने का आरोप लगा रही है और इस प्रकार जांच एजेंसियों को कथित तौर पर सुराग दे रही है जिससे ऐसा लगता है कि जाँच एजेंसियां गोदी मीडिया के आगे जीरो है। इस केस को गोदी मीडिया द्वारा क्या-क्या मोड़ दिया गया इसकी यहाँ झलक प्रस्तुत करना अप्रासंगिक नहीं होगा। आरम्भ में यह कहा गया कि सुशांत सिंह राजपूत की मौत का मामला आत्महत्या नहीं हत्या है जिसमें फिल्म इंडस्ट्री के लोग और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का बेटा आदित्य ठाकरे शामिल है। इस बात के उठाए जाने पर महाराष्ट्र की राजनीति गर्म हो गई और उद्धव ठाकरे से इस्तीफे की मांग की जाने लगी। चंद दिनों के बाद यह मामला शांत हो गया तो गोदी मीडिया ने इस मामले की जांच सीबीआई द्वारा कराने का मुद्दा उठाना शुरू कर दिया। जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहूंचा तो सर्वोच्च न्यायालय इस तथ्य को भलीभाँति जानते हुए भी सीबीआई से जांच कराने का आदेश दे दिया कि सीबीआई केंद्र की कठपुतली है और वह इस मामले में वही रिपोर्ट देगी जो केंद्र चाहेगी। इस तथ्य के मद्देनजर सुशांत सिंह राजपूत मौत के मामले की सीबीआई जांच का नतीजा जो भी निकलेगा वह राजनीति से प्रेरित ही होगा। इसकी निष्पक्षता पर सवालिया निशान खड़ा रहेगा। जहाँ तक रिया चक्रवर्ती द्वारा सुशांत के करोड़ों रुपयों को लूटने का आरोप है यह भी दो दिन पहले सुशांत सिंह राजपूत के बैंक अकाउंट के विवरण के सामने आने से झूठ साबित हो गया है। इस विवरण में सुशांत सिंह राजपूत के 70 करोड़ रुपए का उल्लेख है, उसमें साफ़-साफ़ कहा गया है कि सुशांत सिंह राजपूत राजा की तरह रहता था और राजा की तरह पैसा खर्च करता था। इस बैंक अकाउंट में कहीं भी यह उल्लेख नहीं है कि रिया चक्रवर्ती को उसने करोड़ों रुपये दिए। इस बैंक अकाउंट के विवरण में रिया चक्रवर्ती पर सिर्फ लाखों रूपये खर्च करने की बात कही गई है। यहाँ यह बात उल्लेखनीय है कि सुशांत सिंह राजपूत रिया चक्रवर्ती के हुस्न में गिरफ्तार था और उसके साथ मुंबई में ही वॉटरस्टोन रिसोर्ट में ही रहता था ताकि कोई दख्लअंदाज़ी ना हो। इस रिसोर्ट में वह हफ़्तों रिया के साथ रहता था इसके अलावा वह रिया चक्रवर्ती के साथ लंदन भी गया और वहां भी वह हफ़्तों उसके साथ रहा। यही नहीं वह भारत में भी रिया के साथ लिव इन पार्टनर के तौर पर रहता था। रिया के हुस्न में गिरफ्तार सुशांत सिंह राजपूत उसे अलग नहीं रखता था। ऐसी स्थिति में अगर उसने रिया पर लाखों रुपए खर्च किए तो यह कोई 'मूल्य' नहीं रखते। मोहब्बत में लोग अपना क्या कुछ नहीं लूटा देते हैं। इतिहास में तो प्रेमिका के लिए राजाओं द्वारा अपने 'तख़्त-व-ताज' छोड़ने तक का उदाहरण देता है। लेकिन गोदी मीडिया सुशांत सिंह राजपूत के करोड़ों रुपयों को लूटने का आरोप लगा रही है। बहरहाल सुशांत सिंह राजपूत के अकाउंट के विवरण के सामने आने से यह बात साफ़ हो गई है कि रिया चक्रवर्ती द्वारा सुशांत सिंह राजपूत का पैसा नहीं लूटा। यह तथ्य गोदी मीडिया के लिए शर्मनाक है जिसकी जितनी निंदा की जाए कम है। 


इसी बीच रिया चक्रवर्ती द्वारा व्हाट्सअप पर एक-दो लोगों से गांजे (ड्रग्स) की खरीदारी के बारे में बातचीत का विवरण प्रस्तुत किया गया है और यह बताने का प्रयास किया गया है कि रिया चक्रवर्ती गांजा इस्तेमाल करती है और सुशांत सिंह राजपूत को भी इसका सेवन कराती थी। गोदी मीडिया द्वारा यह आरोप लगाया जा रहा है कि गांजे के इस्तेमाल से सुशांत सिंह राजपूत डिप्रेशन का शिकार हुआ जो रिया चक्रवर्ती की साजिश थी जबकि रिया चक्रवर्ती का कहना है कि सुशांत सिंह राजपूत ड्रग्स का इस्तेमाल उससे (सुशांत) इसकी मुलाक़ात से पहले कर रहा था। अगर रिया चक्रवर्ती ड्रग्स का इस्तेमाल कर रही है और सुशांत सिंह राजपूत ड्रग्स का इस्तेमाल कर रहा था तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। उस सोसाइटी में जिसमें सुशांत सिंह राजपूत रहता था और रिया चक्रवर्ती अब भी जिसका हिस्सा है उसमें ड्रग्स का सेवन आम है। इसको लेकर जिस प्रकार गोदी मीडिया गला फाड़-फाड़कर अपने दर्शकों को बताने का प्रयास कर रही है कि रिया चक्रवर्ती गैर-कानूनी काम में संलिप्त है। यह बड़ा हास्यास्पद है। अगर जांच की जाए तो गोदी मीडिया के मालिकों और इसके पत्रकारों में कई लोग ड्रग्स का सेवन करते हुए पाए जाएंगे। 'खोजी' पत्रकारिता के नाम पर चरित्र हनन करने वाली गोदी मीडिया यह भी आशंका जता रही है कि रिया चक्रवर्ती द्वारा ड्रग्स की बड़े पैमाने पर स्मगलिंग की जा रही है। रिया चक्रवर्ती पर यह आरोप अत्यंत गंभीर है जो बिना सबूत के लगाए जा रहे हैं और इस संबंध में यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि ड्रग्स के स्मगलिंग के इस मामले में बड़े-बड़े लोगों के नामों का पर्दाफाश होगा। गोदी मीडिया की यह घिनौनी मानसिकता अपने दर्शकों की मानसिकता को भी घिनौनी कर रही है और उन्हें एक 'गिरा हुआ' नागरिक बनाने का प्रयास कर रही है। इस केस के आरम्भ में गोदी मीडिया द्वारा फिल्म उद्योग पर भाई-भतीजावाद का आरोप लगाया गया था और इसी को सुशांत सिंह राजपूत की मौत का कारण बताया गया था ऐसी स्थिति में फिल्म उद्योग के कई जाने-माने अभिनेताओं और फिल्म निर्माताओं पर गोदी मीडिया द्वारा ऊँगली उठाई गई थी और उनके ऊपर यह आरोप लगाया गया था कि सुशांत सिंह राजपूत को आगे बढ़ने नहीं देना चाहिए थे इसलिए सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या कर ली। इस केस में इस प्रकार फिल्म उद्योग की हस्तियों से मुंबई पुलिस द्वारा 'अपराधियों' की तरह पूछताछ की गई, वह उनके लिए बड़ी शर्मनाक घटना है। ऐसा पहली बार हुआ जब उन्हें पुलिस थाने जाकर पुलिस के सवालों का जवाब देना पड़ा, उससे फिल्म उद्योग हिल गया। गोदी मीडिया द्वारा पिछले 75 दिनों से रिया चक्रवर्ती के खिलाफ झूठे, काल्पनिक और बेहूदा तथ्यों पर आधारित अभियान चलाया जा रहा है। मीडिया ट्रायल पूरी तरह निराधार साबित हो रहा है। इसके बावजूद उन्हें अपनी रिपोर्टिंग पर कोई शर्म नहीं आ रही है। यह गोदी मीडिया देश को जिस अंधकार में ले जा रही है उसकी कल्पना करना मुश्किल नहीं है। सीबीआई और दूसरी एजेंसियों द्वारा इस केस की जो जांच की जा रही है, उसके नतीजे की कल्पना मुश्किल नहीं है। इस केस में सही जांच का जहाँ तक संबंध है यह होना चाहिए था कि सुशांत सिंह राजपूत की अय्याशी का शिकार कितनी लड़कियां बनी क्योंकि गोदी मीडिया द्वारा उसके व्यक्तित्व पर डाले गए अबतक के प्रकाश से यह तथ्य सामने आता है कि सुशांत सिंह राजपूत एक अय्याश व्यक्ति था। छोटे पर्दे से लेकर बड़े पर्दे तक आने के दौरान उसके सम्पर्क में कई लड़कियां आईं जिनमें अंकिता लोखंडे भी शामिल है। सुशांत सिंह राजपूत के संबंध अंकिता लोखंडे से भी बहुत गहरे थे जो उस वक़्त टूट गए जब रिया चक्रवर्ती से सुशांत सिंह राजपूत के संबंध बने। फिल्म उद्योग में आने पर सुशांत सिंह राजपूत को यह लगा कि लड़कियों से संबंध बनाना बहुत आसान है और वह इस संबंध में आगे बढ़ता गया जिसकी आखरी कड़ी रिया चक्रवर्ती है।


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा 

Friday, August 14, 2020

देश के गद्दारों को जयचंद की उपमा दी जाती है। क्या जयचंद गद्दार था?


यह बात कैसे और किसने प्रचलित की कि महाशौर्य जयचंद ने अपने तत्कालीन राजा पृथ्वीराज चौहान से गद्दारी कर मोहम्मद गौरी को आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था? इतिहास में ऐसा कोई उल्लेख नहीं मिलता की महाप्रतापी राजा जयचंद ने पृथ्वीराज को हरवाने में कोई भूमिका निभाई थी। मुस्लिम आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी की सहायता करने के विपरीत इसने स्वयं मोहम्मद गौरी से युद्ध किया और उस युद्ध में मारा गया। जो लोग जयचंद को मोहम्मद गौरी के हाथों पृथ्वीराज चौहान की हार का कारण मानते हैं उन्हें इतिहास का कोई ज्ञान नहीं है। ऐसे ही लोगों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के  प्रवक्ता संबित पात्रा शामिल हैं। जिनके द्वारा बुधवार 12/8/2020 को एक खबरिया चैनल आजतक पर आयोजित एक 'डिबेट' में संबित पात्रा द्वारा डिबेट में कांग्रेस की ओर से हिस्सा ले रहे इसके राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव त्यागी को बार-बार जयचंद कहा गया अर्थात गद्दार जिससे उनकी मृत्यु हो गई। संबित पात्रा, उनकी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), अन्य हिन्दू संगठनों और कुछ चैनलों द्वारा मोदी सरकार की आलोचना बर्दाश्त नहीं है। यह चाहते हैं कि मोदी सरकार की कोई आलोचना ना की जाए चाहे मोदी सरकार हर मोर्चे पर विफल ही क्यों ना रहे? यह लोग लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका को नगण्य और मोदी का विरोध करने वालों को राष्ट्रविरोधी, देशद्रोही और देश के गद्दार के रूप में देखते हैं जबकि संविधान केंद्र और राज्य सरकारों के मुखरविरोध का अधिकार देता है। आज अपनी सरकार का विरोध सहन ना करने वाले स्वर्गवासी प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की इसलिए आलोचना करते नहीं थकते कि उनके द्वारा विपक्ष का गला घोटने के इरादे से देश में आपातकाल लगा दिया गया था। क्या मोदी राज में विपक्ष द्वारा सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाए जाने पर विपक्ष को गद्दार (जयचंद) कहे जाने का कदम देश में आपातकाल लगाने की शुरुआत तो नहीं है? 


किसी को जयचंद कहा जाना एक बहुत बड़ी गाली समझी जाती है क्योंकि इसका अर्थ यह होता है कि जयचंद कहा जाने वाला व्यक्ति देश का गद्दार है अर्थात किसी को सीधे गद्दार ना कहकर उसे जयचंद कह दिया जाता है। तो सवाल उठता है कि क्या जयचंद देश का गद्दार था? क्योंकि उसने पृथ्वीराज चौहान से अपनी निजी दुश्मनी के कारण मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था। इस संबंध में इतिहास में कोई प्रमाणित सत्य नहीं मिलता है। इतिहासकार आर. सी. मजूददार (अन्सिएंट इंडिया) के अनुसार इस कथन में कोई सत्यता नहीं है कि महाराज जयचंद ने पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिए मोहम्मद गौरी को आमत्रित किया हो। इसी तरह यही बात जे. सी. पोवल ने अपनी पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया' में लिखा है कि पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण करने के लिए मोहम्मद गौरी को आमंत्रित नहीं किया था। एक अन्य इतिहासकार डॉ० राम शंकर त्रिपाठी कहते हैं कि जयचंद पर यह आरोप गलत है क्योंकि समकालीन मुसलमान इतिहासकार इस बात पर पूर्णतया मौन है कि जयचंद ने ऐसा कोई निमंत्रण भेजा हो। इतिहासकार महेंद्र नाथ मिश्र का कहना है कि यह धारणा कि मुसलमानों को पृथ्वीराज पर चढ़ाई करने के लिए जयचंद ने आमंत्रित किया, निराधार है। उस समय के कतिपय ग्रन्थ प्राप्य है किन्तु किसी में भी इस बात का उल्लेख नहीं है। पृथ्वीराज विजय, हमीर महाकाव्य, रम्भा मंजरी, प्रबंध कोश व किसी भी मुसलमान यात्री के वर्णन में ऐसा उल्लेख नहीं है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि जयचंद ने चंदावर में मोहम्मद गौरी से शौर्यपूर्ण युद्ध किया था। तत्कालीन मुस्लिम इतिहासकार इब्न नसीर ने अपनी पुस्तक 'कामिल उल तारीख' (पूर्ण इतिहास) में लिखा है, "यह बात नितांत असत्य है कि जयचंद ने शहाबुद्दीन गौरी को पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया। शहाबुद्दीन गौरी अच्छी तरह जानता था कि जब तक उत्तर भारत में महाशक्तिशाली जयचंद को परास्त ना किया जाएगा दिल्ली और अजमेर आदि भू-भागों पर किया गया अधिकार स्थायी ना होगा क्योंकि जयचंद के पूर्वजों ने और स्वयं जयचंद ने तुर्कों से अनेकों बार मोर्चा लेकर हराया था।" अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया नामक इतिहास विषयक पुस्तक में इतिहासकार स्मिथ ने इस आरोप का कहीं उल्लेख नहीं किया है। डॉ राजबली पाण्डे ने अपनी पुस्तक प्राचीन भारत में लिखा है, "यह विश्वास कि गौरी को जयचंद ने पृथ्वीराज के विरुद्ध निमंत्रण दिया था, ठीक नहीं जान पड़ता क्योंकि मुसलमान लेखकों ने कही भी इसका ज़िक्र नहीं किया है।"

जहाँ तक जयचंद की पृथ्वीराज से शत्रुता के आधार पर पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिए मोहम्मद गौरी को आमंत्रित करने की बात की जाती है वह भी नितांत काल्पनिक है। पृथ्वीराज से जयचंद की शत्रुता का कारण इसकी पुत्री संयोगिता का पृथ्वीराज द्वारा अपहरण कर लिया जाना बताया जाता है इस शत्रुता के कारण जयचंद ने पृथ्वीराज पर कई बार हमला किया और परास्त हुआ। लेकिन शोधकर्ता इतिहासकारों ने इस कहानी को मानने से इंकार कर दिया क्योंकि उनका कहना है कि संयोगिता नाम की जयचंद की कोई पुत्री ही नहीं थी इसलिए संयोगिता हरण की बात पूरी तरह झूठी साबित होती है। हाँ! हो सकता है कि उनके बीच के आपसी मतभेदों की कोई और वजह रही हो, लेकिन उससे संबंधित कोई दस्तावेज भी इतिहास में नहीं मिलता। इसके अलावा जिस बात को लेकर राजा जयचंद को देशद्रोही कहा जाता है यानी गौरी को भारत पर आक्रमण का न्यौता देने वाला तथ्य से संबंधित कोई प्रमाणित लेख नहीं है। मोहम्मद गौरी के पहले आक्रमण के समय तराईन में जो युद्ध हुआ उस समय पृथ्वीराज ने इस युद्ध में उनका साथ देने के लिए जयचंद के अलावा दूसरे राजाओं को युद्ध के लिए आमंत्रित किया। ऐसे में तराईन के पहले युद्ध में जयचंद की कोई भागीदारी नहीं रही। इस युद्ध में पृथ्वीराज ने मोहम्मद गौरी को परास्त कर दिया। मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज से बदला लेने के लिए जब दूसरी बार पृथ्वीराज पर आक्रमण किया तब भी पृथ्वीराज ने जयचंद से मदद नहीं मांगी और पृथ्वीराज की दूसरे तराईन युद्ध में मोहम्मद गौरी से भिड़ंत हुई। इस युद्ध में पृथ्वीराज अपनी 3 लाख की सेना और मोहम्मद गौरी अपनी 1 लाख 20 हज़ार की सेना के साथ एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे थे। आरम्भ में पृथ्वीराज का पलड़ा भारी पड़ रहा था लेकिन मोहम्मद गौरी के घुड़सवार दस्तों के आने के बाद पृथ्वीराज की सेना कमज़ोर हुई और मोहम्मद गौरी के सैनिकों द्वारा पृथ्वीराज की सेना में शामिल हाथियों पर तीरों से हमला किए जाने के कारण हाथियों में भगदड़ मच गई और उन्होंने पृथ्वीराज के हज़ारों सैनिकों को कुचलकर मार दिया। हाथियों की इस भगदड़ का गौरी की सेना ने लाभ उठाया और पृथ्वीराज को परास्त कर बंदी बना लिया गया जिनकी बाद में हत्या कर दी गई। 

जयचंद से संबंधित उक्त ऐतिहासिक तथ्य यह कहीं नहीं बताते कि जयचंद ने पृथ्वीराज या भारत के साथ गद्दारी की। अगर जयचंद ने पृथ्वीराज को हराने में मोहम्मद गौरी की मदद की होती तो मोहम्मद गौरी द्वारा तीसरी बार भारत आने के बाद कन्नौज पर आक्रमण ना किया जाता जहाँ जयचंद का राज था। कन्नौज पर आक्रमण के समय जयचंद का मोहम्मद गौरी से युद्ध हुआ जिसमें जयचंद मारा गया। यह तथ्य बहुत स्पष्ट इस बात की ओर संकेत करता है कि जयचंद ने मोहम्मद गौरी की कोई मदद नहीं की और मोहम्मद गौरी ने अपनी सेना के बलबूते पर पृथ्वीराज की सेना को पराजित किया। इसलिए जयचंद को किसी भी प्रकार से गद्दार नहीं कहा जा सकता। वह एक पराक्रमी और शक्तिशाली राजा था जिसमें राष्ट्रभक्ति और देशभक्ति कूट-कूट कर भरी हुई थी। जयचंद को गद्दार कहने वालों को इतिहास का अवलोकन करना चाहिए।



- रोहित शर्मा विश्वकर्मा। 

यूक्रेन रूस का 'आसान निवाला' नहीं बन पाएगा

रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले का आज चौथा दिन है और रूस के इरादों से ऐसा लग रहा है कि रूस अपने हमलों को ज़ारी रखेगा। यद्यपि दुनिया के सारे देश रू...