गत 14-15 जून 2020 की रात में भारत-चीन के सैनिकों के बीच हुई झड़प के बाद से दोनों पड़ोसी देशों के बीच युद्ध की आशंका धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है क्योंकि गलवान घाटी में तनाव बरकरार है। दोनों देशों के आला सैनिक अधिकारियों के बीच हो रही बातचीत के बावजूद, निसंदेह गलवान घाटी में चीनी सैनिकों की बड़ी संख्या में घुसपैठ के कारण दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। चीन ने यह कदम भारत द्वारा अपने क्षेत्र में बनाई जा रही सड़क पर विरोध जताने के बाद उठाया। यह सड़क सामरिक दृष्टि से भारत के लिए बहुत महत्व रखती है क्योंकि इस सड़क के निर्माण के बाद हमारी सेना और सेना के साजो समान को इतनी ऊंचाइयों पर तैनात किया जा रहा है कि चीनी सैनिकों की गतिविधियों पर नजर रखी जा सके। यदि इस सड़क को वांछित स्थान तक निर्मित कर लिया जाएगा तो भारतीय सेना चीनी सैनिकों की पूर्वी लद्दाख में भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ को नाकाम कर सकेगी जिसके कारण चीन बौखला गया है। यही कारण है कि चीन इस क्षेत्र में भारत द्वारा बनाई जा रही सड़क पर यह दावा करते हुए आपत्ति जता रहा है कि पूरा गलवान घाटी क्षेत्र उसके कब्जे का हिस्सा है। दूसरी तरफ भारत ने चीन के इस दावे को खारिज कर वहां अपने सैनिक साजो सामान के साथ भारी संख्या में अपने सैनिकों को तैनात कर दिया है। वास्तव में पूरा गलवान घाटी क्षेत्र 'नो मैंस लैंड' था, जिस पर चीनियों ने हाल में अपना कब्जा जमा लिया। यद्यपि गलवान घाटी क्षेत्र में दोनों पड़ोसी देशों के बीच बने तनाव को समाप्त करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकल रहा है।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने हाउस ऑफ कॉमंस में एक सवाल के जवाब में गलवान घाटी में बनी तनाव की स्थिति पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि लद्दाख में स्थिति गंभीर और चिंताजनक है। हम स्थिति पर गहरी नजर रख रहे हैं और दोनों पड़ोसी देशों से समस्या को बातचीत के जरिए सुलझाने की अपील कर रहे हैं। इसी तरह अमेरिका के डेमोक्रेटिक सीनेटर ब्रैड शेरमन ने गलवान घाटी में तनाव उत्पन्न करने का आरोप चीन पर लगाया है। उन्होंने कहा कि गलवान घाटी में तनाव चीन द्वारा रची गई सुनियोजित साजिश का नतीजा है। जहां तक हमारी सरकार का संबंध है यह भी यह कहती आ रही है कि चीन गलवान घाटी में जमीनी स्थिति को बदलने की कोशिश कर रहा है जिसका जवाब उसी की भाषा में दिया जाएगा। बहरहाल दोनों पड़ोसी देशों के बीच विभिन्न स्तर पर बातचीत का सिलसिला जारी है, साथ में दोनों देश युद्ध की तैयारियों में भी लगे हुए हैं।
गलवान घाटी में दोनों देशों के बीच का तनाव का कारण यह है कि चीन नेे 3 स्थानों पर भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ कर अपना कब्जा जमा लिया है और अपने सैनिकों को तैनात कर दिया है। क्योंकि चीन ने पूरे गलवान घाटी क्षेत्र को अपने क्षेत्र होने का दावा किया है इसलिए वह इस क्षेत्र से पीछे नहीं हट रहा है। यह बताया जा रहा है कि इस क्षेत्र में स्थित फिंगर 4 से फिंगर 8 तक की पहाड़ी पर चीन का कब्जा है जहां से वह भारतीय सैनिकों की गतिविधियों पर नजर रख सकता है और आवश्यकता पड़ने पर उन्हें निशाना बना सकता है। दूसरे शब्दों में गलवान घाटी क्षेत्र में चीन ने अपनी ऐसी स्थिति बना ली है जो उसके लिए लाभदायक है इसलिए चीन यहां से अपना कब्जा नहीं हटाएगा। अगर भारत इस क्षेत्र को चीन से खाली कराना चाहता है तो उसे सैन्य शक्ति का इस्तेमाल करना पड़ेगा। इस बीच भारत के विदेश मंत्रालय ने गलवान घाटी की स्थिति पर चिंता जताई है। जिसमें कहा गया है कि वहां स्थिति बहुत गंभीर है। भारतीय सेना प्रमुख मनोज मुकुंद नरवाने ने भी अभी हाल में लद्दाख का दौरा किया और गलवान घाटी की स्थिति के बारे में जानकारी हासिल की। भारतीय जवानों का उत्साह बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि चीनी सेना के उकसाने पर उन्हें गोली से जवाब दिया जाए।
हमारे देश में चीन के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं और इन रैलियों में चीन निर्मित वस्तुओं को जलाया जा रहा है और चीन निर्मित वस्तुओं के बॉयकॉट की अपील की जा रही है। यह कहा जा रहा है कि अगर चीन को सबक सिखाना है तो वहां की निर्मित वस्तुओं का बहिष्कार कर इसकी आर्थिक कमर तोड़ दी जाए। यहां यह बात स्मरणीय है कि भारत में 3000 से ज्यादा आइटम चीन से आयात किया जाता है जिनकी कीमत 5 लाख करोड़ होती है। अगर भारत-चीन के बीच का तनाव युद्ध में बदल जाता है तो भारत-चीन के बीच के व्यापार का अंत हो जाएगा, जिससे चीन को बहुत भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा। इस भारी आर्थिक नुकसान के मद्देनजर चीन को भारत के साथ किसी सैन्य टकराव से बचना चाहिए। गलवान घाटी क्षेत्र में चीनी दृष्टिकोण के कारण तनाव के चरम सीमा पर पहुंच जाने की स्थिति यह बताती है कि चीन को भारत के व्यापार में होने वाले अपने आर्थिक नुकसान की चिंता नहीं है। इस स्थिति से यह संकेत मिलता है कि चीन गलवान घाटी क्षेत्र में तनाव को कम ना करने पर अड़ा हुआ है। इसका अर्थ यह है कि चीन भारत के प्रति दुर्भावना रखता है क्योंकि चीन के रक्षा विशेषज्ञ यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि यदि अब चीन का भारत से युद्ध हुआ तो चीन भारत को 1962 से भी बुरी तरह हराएगा। ऐसा लगता है कि चीनी जनता और चीनी सरकार को अपने सैन्य शक्ति पर हद से ज्यादा भरोसा है इसलिए वें भारतीय सैन्य क्षमता को कम आंक रहे हैं जो चीन समेत किसी भी दुश्मन के हमले को नाकाम करने में सफलता हासिल करने में सक्षम है। अब पूर्वी लद्दाख में भारतीय सेना पूरी तरह तैयार है और वह भविष्य में चीन से होने वाले युद्ध में चीनी सैनिकों को घुटने टेकने के लिए मजबूर करने में सक्षम है।
वास्तव में चीन पूर्वी लद्दाख में भारत द्वारा बनाई जा रही सड़क को लेकर भयभीत है। इस सड़क के बन जाने पर भारत पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना की गतिविधियों पर नजर रखने की स्थिति में हो जाएगा और हमारी सेना चीन द्वारा किए जाने वाले किसी भी दुस्साहस के समय अपनी सीमा की रक्षा करने के लिए हमेशा तैयार रहेगी। यह निश्चित है कि इस सड़क के निर्माण ना होने के कारण भारतीय सेना गलवान घाटी क्षेत्र में चीनी सैनिकों की गतिविधियों पर नजर नहीं रख सकती थी जिसके नतीजे में चीनी सेना गलवान घाटी में स्थित हमारी सीमा के अंदर बगैर किसी रूकावट के घुसपैठ कर सकता था। आज भारत सभी सेक्टर में चीन से लगी सीमा की सुरक्षा करने में भरपूर तरीके से सक्षम है। भारत शांति के साथ रहना चाहता है और दूसरों को भी शांति से रहने देना चाहता है लेकिन अगर हमारी संप्रभुता और अखंडता पर हमला होता है तो हम इसकी रक्षा अपनी पूरी ताकत से करते हैं और दुश्मन को धूल चटा सकते हैं। यह बात स्मरणीय है कि 1962 में चीन के साथ युद्ध प्रतिकूल परिस्थितियों में लड़ा था क्योंकि भारत को 14 साल पहले ही आजादी मिली थी जिसके बाद देश के चौतरफा विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया। उस समय चीन ने भारत द्वारा दलाई लामा को शरण दिए जाने के मुद्दे पर सीमा पर समस्याएं खड़ी करनी शुरू कर दी थी। दलाई लामा 1959 में अपनी जान बचाने के लिए भागकर पहले नेपाल आए और उसके बाद भारत आए। भारत द्वारा दलाई लामा को शरण दिए जाने से चीन नाराज़ था। ऐसी स्थिति में वह भारत पर हमला करने का बहाना ढूंढने लगा, जबकि भारत और चीन के मध्य 1954 में 'पंचशील समझौता' हुआ था। जिसमें भारत द्वारा तिब्बत को चीन का हिस्सा स्वीकार कर लिया गया था। उसी समय भारत-चीन के बीच 'पंचशील समझौता' हुआ था जिसमें दोनों देश एक-दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करने, एक दूसरे पर आक्रमण ना करने, एक दूसरे के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप न करने, समानता और परस्पर लाभ की नीति का पालन करने और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति अपनाने पर सहमति हुई थी। इसी समझौते के बाद 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' का नारा लगा था। लेकिन चीन ने 'पंचशील समझौते' को रौंदते हुए सीमा विवाद का बहाना बनाकर 20 अक्टूबर 1962 को भारत पर धोखे से आक्रमण कर दिया। तब भारत ने बिना तैयारी के चीन के हमले का जवाब दिया जो घातक साबित हुआ क्योंकि चीन ने 'अक्साई चीन' और 'अरुणाचल प्रदेश' के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया। बाद में चीन ने अरूणाचल प्रदेश से अपने कब्जे़ को हटा लिया लेकिन अक्साई चीन पर अपना कब्जा़ बरकरार रखा। अब परिस्थितियां बिल्कुल बदल गई हैं क्योंकि भारत इस क्षेत्र में एक बड़ी सैन्य शक्ति के रूप में उभरा है जो अब चीन के किसी भी हमले को कभी भी नाकाम करने की स्थिति में सक्षम है। ना सिर्फ यह कि भारत-चीन के किसी हमले को नाकाम कर देगा बल्कि उसे यह भी याद दिला देगा कि अपनी सैन्य शक्ति को लेकर वह 1962 का भारत नहीं है।
दुनिया चीन की सैन्य शक्ति के बारे में बहुत कुछ नहीं जानती है क्योंकि इसने 1962 में भारत के साथ हुए युद्ध के बाद कोई और महत्वपूर्ण युद्ध नहीं लड़ा। इन परिस्थितियों में चीनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन नहीं हुआ है। इसलिए दुनिया चीन के युद्धकला, रणनीति और उसके सैनिकों की वीरता के बारे में नहीं जानती जबकि दुनिया ने भारत की सैन्य क्षमता का प्रदर्शन एक से ज्यादा बार देखा। 1962 में चीन के साथ युद्ध के बाद भारत को पाकिस्तान के साथ 3 युद्ध लड़ना पड़ा जिनमें भारत ने पाकिस्तान के सैनिकों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। अब पूर्वी लद्दाख में स्थित भारत-चीन सीमा पर तनाव विस्फोटक स्थिति में पहुंच गया है जिससे दोनों पड़ोसी देशों के बीच युद्ध होने की संभावना बहुत बढ़ गई है। यद्यपि युद्ध किसी समस्या का हल नहीं होता है लेकिन उस राष्ट्र के लिए इसका जवाब देना अपरिहार्य हो जाता है जिस पर इसे थोपा जाता है।
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