प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूर्वी लद्दाख में स्थित भारत-चीन सीमा के अभी हाल के दौरे के बाद भारत-चीन के बीच मंडराता युद्ध का बादल छंट गया है क्योंकि बताया जाता है कि चीन की फौजें अपने कब्जे में ली गई भारतीय क्षेत्र से पीछे हट गई हैं लेकिन गलवान घाटी को लेकर दोनों पड़ोसी देशों के बीच जो विवाद है वह अभी अनसुलझा है।
गलवान घाटी में गत 14-15 जून की रात में भारत-चीन सेनाओं के बीच हुई झड़प के बाद बना तनाव उस समय युद्ध में बदलते-बदलते रह गया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लेह के दौरे पर गए और वहाँ भारतीय-सेना के जवानों को संबोधित किया। उन्होंने अपने संबोधन में चीन का नाम लिए बगैर उसे चेतावनी दी और कहा कि भारत अपने ऊपर हमला होने का मुँहतोड़ जवाब देगा। भारतीय लोगों ने विशेषकर कुछ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लेह के दौरे को और वहां उनके संबोधन को चीन के विरुद्ध युद्ध की घोषणा का संकेत समझा। जहाँ तक हमारी सेनाओं की तैयारी का संबंध है सरकार ने चीन के हमले का जवाब देने की तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ रखी है। इस संबंध में सीमा पर 30 हज़ार से ज़्यादा भारतीय सैनिक और साज़ोसामान जिनमें तोपें, टैंक, हर प्रकार के लड़ाकू विमान तैनात किए गए हैं। इसके अलावा आसमान में अपनी सीमाओं की रखवाली के लिए भारतीय लड़ाकू विमान हर समय निगरानी कर रहे हैं ताकि हमारी सेना हर समय जवाब देने के लिए सतर्क रहे। प्रधानमंत्री के लेह के दौरे के बाद भारतीय सेना के जवानों का मनोबल तब और बढ़ गया जब प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में उनसे कहा कि यह युद्ध महाभारत की तरह धर्म और अधर्म के बीच का युद्ध होगा। इस परिप्रेक्ष्य में प्रधानमंत्री ने जवानों को याद दिलाया कि हम भगवान 'श्रीकृष्ण' के पुजारी हैं जो 'सुदर्शन चक्र' और 'बाँसुरी' धारी थे।
बहरहाल हमारी तीनों सेनाएं; थल सेना, वायु सेना और जल सेना चीन को उसकी भाषा में जवाब देने को पूरी तरह तैयार है। चूँकि चीन एशिया में अपने अलावा भारत को सैन्य शक्ति के रूप में उभरते देखना पसंद नहीं करता है इसलिए कि वह स्वयं को विश्व की बड़ी आर्थिक ताकत के रूप में देखता है। एक रिपोर्ट के अनुसार चीन की सकल घरेलू उत्पाद 14 ट्रिलियन डॉलर के बराबर है और वह विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति है। चीन की अर्थव्यवस्था को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि इसने विश्व के 150 देशों को क़र्ज़ दे रखा है जबकि चीन एक क़र्ज़ मुक्त देश है। इसके द्वारा विश्व के किसी भी वित्तीय संस्थाओं से कोई क़र्ज़ नहीं लिया गया है। यह बात स्मरणीय है कि चीन ने बहुत से देशों को 'अंतर्राष्ट्रीय वित्त कोष' (आईएमएफ) और 'विश्व बैंक' से भी ज़्यादा क़र्ज़ दे रखा है। इसके अलावा चीन ने कई विकसित देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया, रूस, अमेरिका और यूरोपीय संघ के देशों में भारी निवेश किया है। इसके अतिरिक्त चीन का विश्व के देशों से व्यापार उसके लिए बहुत लाभदायक है क्योंकि चीन 2.49 ट्रिलियन डॉलर का निर्यात करता है जबकि 2.13 ट्रिलियन डॉलर का आयात करता है। इस प्रकार चीन का विश्व के देशों से कुल व्यापार 4.62 ट्रिलियन डॉलर का है। यह चीन के व्यापार का यह विवरण अत्याधुनिक है। चीन के व्यापार से संबंधित इस विवरण से भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार का अंदाज़ा लगाया जा सकता है, जबकि चीन के सकल व्यापार का आकार 4.62 ट्रिलियन डॉलर है या विश्व के व्यापार का यह 12.4 प्रतिशत है। दूसरी और भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) कुल 2.72 ट्रिलियन डॉलर और भारत के विश्व व्यापार का आकार 844 बिलियन डॉलर है। जहाँ तक चीन के साथ हमारे व्यापार का संबंध है, यह चीन के कुल निर्यात का 4 प्रतिशत है अर्थात भारत चीन से प्रति वर्ष 4 लाख करोड़ डॉलर का आयात करता है। विश्व के देश चीन से 2.5 करोड़ बिलियन डॉलर आयात करते हैं। इस विवरण के मद्देनज़र कोई भी इस नतीजे पर पहुँच सकता है कि चीन की अर्थव्यवस्था के आकर से भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार बहुत छोटा है।
जब पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर तनाव पैदा हुआ तो देश के विभिन्न हिस्सों में चीन के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो गए और चीन से आयातित सामान की होलिका जलाए जाने लगी और चीनी सामान के बहिष्कार की अपील भी की जाने लगी। इस अपील का समर्थन व्यापारियों के कई संगठनों ने किया और यह कहा गया कि चीन के सामान का बॉयकॉट कर उसकी आर्थिक कमर तोड़ सकता है जिससे चीन को 5 लाख करोड़ डॉलर का नुक्सान पहुँचाया जा सकता है। चीन का भारत के साथ व्यापार से संबंधित उपरोक्त विवरण को मद्देनज़र रखकर कोई बेवकूफ़, अनपढ़ और गँवार व्यक्ति ही चीन के सामान का भारत में बॉयकॉट कर उसकी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाने की बात करेगा। 1962 के बाद चीन ने बुद्धि को चकरा देने वाली उन्नति की है जिसके बारे में भारत सोच भी नहीं सकता। उपरोक्त पैराग्राफ में चीन की आर्थिक उन्नति की एक झलक पेश की गई है जिससे यह तथ्य सामने आता है कि चीन आर्थिक उन्नति कर अमेरिका के बाद विश्व की दूसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बन गया है और उसकी कोशिश यह है कि आर्थिक उन्नति में वह अमेरिका को भी पीछे धकेल दे। चीन के सैन्य क्षेत्र में भी बहुत विकास किया है। इस समय चीन का वार्षिक सैन्य बजट 179 बिलियन डॉलर है जो भारत के सैन्य बजट से 3 गुणा है। भारत का वार्षिक सैन्य बजट 66.9 बिलियन डॉलर है। इस विवरण को सामने रखकर कोई भी इस नतीजे पर पहुँच सकता है कि सैन्य शक्ति के मामले में चीन भारत से 3 गुणा ज़्यादा शक्तिशाली है। चीन ने किस प्रकार के हथियारों को विकसित किया है इसका विवरण दुनिया को कम ही मालूम है। दूसरी ओर भारत ने अपने हथियारों के भंडार को अभी हाल में प्रदर्शित कर दिया है और इसने चीन को स्पष्ट संकेत कर दिया है कि भारत पर चीन के हमले को अत्याधुनिक हथियारों की मदद से कुचल दिया जाएगा। भारत में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया चीन को डराने के मकसद से विभिन्न प्रकार के भारतीय हथियारों का विवरण प्रसारित कर रहा है। लेकिन यह नहीं पता चल रहा है कि चीन हमारे हथियारों के प्रदर्शन से डर रहा है या नहीं या वह भारतीय शस्त्रों का मुनासिब जवाब देने में सक्षम है या नहीं। लेकिन हमारे सैन्य विश्लेषक, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सेवानिवृत्त कुछ आला सैन्य अधिकारी यह कह रहे हैं कि हमारे सैन्य शस्त्र चीन के सैन्य से बहुत बेहतर हैं इसलिए भारत-चीन के साथ युद्ध के समय चीन को ऐसा नुकसान पहुँचा सकता है जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। क्या यह भारतीय सेना के जवानों और भारत के लोगों के मनोबल को बढ़ाने से संबंधित कल्पना है या इसमें कोई सच्चाई भी है। बहरहाल यह याद रखने की बात है कि भारत समेत कोई भी देश चीन जैसे अपने दुश्मनों को स्वयं से कमज़ोर समझने की हिमाकत नहीं कर सकता है।
यदि इस बार चीन के साथ युद्ध हुआ तो यह 1962 के युद्ध की तुलना में कई कारणों से बहुत घातक होगा। इसका पहला और सबसे महत्वपूर्ण कारण इस युद्ध में बहुत भारी विध्वंसक नुकसान का होना है जो दोनों ओर से अत्याधुनिक हथियारों के प्रयोग के कारण होगा। यह युद्ध दोनों देशों के शहरों को इसलिए मलवे में बदल देगा क्योंकि जिन शहरों पर बम गिराए जाएंगे वह सटीक निशाने के साथ गिराए जाएंगे। यह युद्ध बहुत ही अत्याधुनिक और विध्वंसक हथियारों से लड़ा जाएगा इसलिए यह युद्ध दोनों पड़ोसी देशों की कमर तोड़ देगा और आर्थिक दृष्टि से दोनों देशों को बहुत पीछे धकेल देगा और इस प्रकार दोनों देशों को होने वाले आर्थिक नुकसान की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन एक बात बहुत ही निश्चित तौर पर कही जा सकती है कि विश्व की 5वीं सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनने का भारत का सपना पूरा नहीं हो सकता। जहाँ तक चीन की सैन्य शक्ति का संबंध है यह अमेरिका से युद्ध होने की संभावना को सामने रखकर किया जा रहा है। इस युद्ध का एक खतरनाक पहलू यह भी है कि भारत-चीन युद्ध होने पर हमारे पडो़सी देश पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका चीन के साथ मिलकर हमारे ख़िलाफ़ युद्ध लड़ सकते हैं। पाकिस्तान वह देश है जो भारत को ज़्यादा से ज़्यादा नुकसान पहुँचाने के लिए अवसर तलाश कर रहा है। वास्तव में पाकिस्तान भारत द्वारा 1972 में अपने पूर्वी हिस्से पूर्वी पाकिस्तान को अलग कर दिए जाने का बदला लेना चाहता है। दुनिया जानती है कि पाकिस्तान कश्मीर में 'आतंकवाद का निर्यात' कर कश्मीर को भारत से अलग करना चाहता है। भारत के हाथों 3 युद्ध में पराजित पाकिस्तान भारत का चीन के साथ युद्ध होने पर वह चीन के साथ मिलकर निश्चित तौर पर भारत के ख़िलाफ़ युद्ध करेगा। तब पाकिस्तान भारत के ख़िलाफ़ अपनी पूरी शक्ति के साथ लड़ेगा जिससे भारत को मजबूर होकर अपना ध्यान पाकिस्तान के साथ युद्ध पर देना पड़ेगा क्योंकि यह पाकिस्तान के लिए कश्मीर पर क़ब्ज़ा करने का सुनहरा मौका होगा। चीन के साथ भारत का युद्ध होने पर अगर पाकिस्तान कूदता है तो उसका प्रयास रहेगा कि वह कश्मीर के अलावा भारत के दूसरे हिस्सों पंजाब और राजस्थान को भी अपने कब्ज़े में ले लेगा। पाकिस्तान भारत-चीन युद्ध के अवसर पर इसलिए भी चीन का साथ देगा क्योंकि चीन के साथ उसके बहुत घनिष्ठ संबंध है। जिसका अंदाज़ा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि दोनों देशों के बीच 'चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा' (CPEC) प्रोजेक्ट के तहत एक सड़क का निर्माण किया जा रहा है जो चीन के शिनजियांग राज्य के काश्गर शहर से पाकिस्तान के बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक बनाई जा रही है जिस पर 46 बिलियन डॉलर खर्च किया जा रहा है। इस सड़क के निर्माण के बाद सड़क के माध्यम से चीन अरब सागर तक पहुँच जाएगा। जहाँ से वह अपने उत्पादनों को दुनियाभर में समुद्र के रास्ते आसानी से पहुँचा सकता है।
पाकिस्तान की ही तरह नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका के भी चीन से घनिष्ठ संबंध है। इस समय नेपाल चीन की गोद में बैठा हुआ है जहाँ चीन का प्रभाव आसानी से देखा जा सकता है। इस बीच चीन ने नेपाल में भारी निवेश किया है। चीन ने यहाँ सड़क निर्माण, बिजली उत्पादन, रेलवे और पर्यटन के क्षेत्र में निवेश कर रहा है और यह रुझान जारी है। वास्तव में चीन नेपाल में अपना अधिक से अधिक निवेश कर उसे पूरी तरह अपने प्रभाव में रखना चाहता है। बांग्लादेश भी ऐसा ही देश है जहाँ चीन बहुत ज़्यादा निवेश कर रहा है। यहाँ वह विभिन्न नदियों पर पुल बना रहा है, बंदरगाह के निर्माण, सीमेंट फैक्ट्री के निर्माण, स्काईस्क्रेपर भवन के निर्माण आदि में निवेश कर रहा है। इन सब परियोजनाओं पर 107.5 बिलियन डॉलर चीन द्वारा खर्च किया जा रहा है। इसी प्रकार श्रीलंका भी चीन के निवेश का लाभ उठा रहा है। चीन ने श्रीलंका में भी एक महत्त्वपूर्ण बंदरगाह (हम्बनटोटा) का निर्माण किया है जो विश्व का व्यस्तम बंदरगाह है जिसे चीन द्वारा पूरी तरह से नियंत्रित किया जा रहा है। दूसरे क्षेत्रों में चीन के निवेश से श्रीलंका एक प्रगतिशील देश के तौर पर उभर रहा है। चीन श्रीलंका को सबसे ज़्यादा क़र्ज़ देने वाला क्षेत्र है। श्रीलंका में चीन के निवेश का अंदाज़ा इन तथ्यों से लगाया जा सकता है कि चीन द्वारा विभिन्न परियोजनाएं चलाई और नियंत्रित की जा रही है। चीन द्वारा राजधानी कोलम्बो में भी एक बंदरगाह बनाया जा रहा है और उत्तर पश्चिम क्षेत्र में एक कोयले से उत्पादित बिजली प्लांट का निर्माण कर रहा है। यही नहीं कोलम्बो में एशिया में सबसे ऊँचा स्काईस्क्रेपर भवन बना रहा है। इसके अलावा लोटस टावर नामक भवन बनाया जा रहा है जिसमें एक होटल, एक कॉन्सर्ट हॉल और एक बिज़नेस अपार्टमेंट का निर्माण शामिल है। लोटस टावर की ऊँचाई 1150 फुट है। इन परियोजनाओं में चीन के निवेश श्रीलंका की चीन पर निर्भरता को दर्शाता है। ऐसी स्थिति में श्रीलंका जल्द ही चीन के उपनिवेश में बदल जाएगा, तब श्रीलंका सरकार चीन की शर्तों को मानने के लिए बाध्य रहेगी।
भारत-चीन के उच्च सैन्य अधिकारियों के बीच हुई कई दौर की बातचीत होने के बावजूद गलवान घाटी में भारत-चीन सीमा विवाद का हल अभी तक नहीं निकल पाया है क्योंकि जहाँ भारत का यह दावा है कि पैंगोंग त्सो में फिंगर 1 से फिंगर 8 उसका क्षेत्र है जबकि चीन भारत के इस दावे को नकारता है और उसका कहना है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) फिंगर 2 के पास स्थित है इसलिए बाकी क्षेत्र उसकी सीमा के अंदर आता है। यही कारण है कि जब चीन ने फिंगर 4 पर कब्ज़ा किया तो दोनों देशों के बीच तनाव उत्पन्न हुआ। इसके बाद से फिंगर 4 से फिंगर 8 तक चीन का कब्ज़ा है। ऐसा प्रतीत होता है कि चीन फिलहाल भारत से युद्ध लड़ना नहीं चाहता। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि भारत-चीन के बीच युद्ध का ख़तरा समाप्त हो गया है। जब तक गलवान घाटी में दोनों देशों के बीच तनाव बरकरार रहेगा, भारत-चीन युद्ध का खतरा लगातार बना रहेगा। इन दोनों देशों में से कौन सा देश युद्ध की शुरुआत करता है यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
सम्भवतः चीन भारत से अभी इसलिए युद्ध नहीं करना चाहता क्योंकि वह भारत के पड़ोसी देशों पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका के साथ अपने संबंधों को इस उम्मीद में ज़्यादा से ज़्यादा प्रगाढ़ करना चाहता है ताकि भारत के साथ युद्ध के समय वह इन देशों को युद्ध में अपने साथ ला सके।
- (रोहित शर्मा विश्वकर्मा)
बहुत ही सुन्दर लेख रोहित बाबू! मै आपके मंच से सिर्फ व्यापारी भाईयो से कहना चाहता हूँ कि गौदी मीडिया पर ध्यान देने की बजाये सत्य को समझे और रोहित जी के इस ब्लॉग को ध्यान से पढ़ें तो आपको समझ में आएगा की हम लोगो को केन्द्र सरकार कितना भ्रमित करती है।
ReplyDeleteरोहित जी ने अपने ब्लोग में समझाने की कोशिश की है और पहले भी समझाते आ रहे है कि चीन का निवेश भारत में सबसे ज्यादा है 90%उत्पाद चीन के भारतीय बाजार मे दबदबा है। यदि हम चीनी उत्पादों का बहिष्कार करते है तो भारत की अर्थवयवस्था और व्यापारी का घर सूचारु रूप से कैसे चलेगा?
हमारे मननीय प्रधान-मंत्री मोदी जी जो चिल्ला चिल्ला कर बोलते है कि वो देश के चौकीदार है इन्होंने भारतीय जनता की कमर तोड़ रखी है कभी तो "अच्छे दिन ", कभी "मेक इन इंडिया", कभी "आयुष्मान भारत", कभी "चीनी उत्पादों का बहिष्कार"के नाम पर जनता को खूब गुमराह किया। हालात यहा तक आ गये की पडोसी मूल्क भी हमारे खिलाफ खड़े है। नेपाल जैसा देश हमसे अपनी सीमाऔ को तय करना चाहता है।
ReplyDeleteमै रोहित जी के इस ब्लॉग की सराहना करते हुए सिर्फ यही कहूँगा कि आप की आवाज़ सरकार तक पहुंचे और समझे की 136cr भारतीय जनता के जीवन से ना खेले अन्यथा ऐसा ना हो कि जनता अगली बार मोदी जी का ही बहिष्कार कर दे।
ReplyDeleteरोहित बाबू!आपने इस ब्लॉग पर काफी विश्लेशण और आंकड़ों को इक्कठा करने में बहुत मेहनत की है। मेरा मानना है कि आपके इस आर्टिकल से सरकार को एक नई राह मिलेगी।
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