Thursday, February 27, 2020

क्या महमूद गज़नवी आक्रांता और लुटेरा था?

इतिहास बताता है कि महमूद गज़नवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया और यहां की धन-दौलत बटोरी और गज़नी वापस चला गया। इससे यह पता चलता है कि महमूद गज़नवी निर्भय, साहसी और दृढ निश्चय वाला था। जब भी उसने भारत पर हमला किया उसने यहां के शासकों को हराया और कोई भी उसको नहीं हरा सका। इतिहास में महमूद गज़नवी जैसा हमलावर नहीं पाया जाता जिसने एक देश पर 17 बार हमला किया हो। आमतौर से भारत में इसे आक्रांता, लुटेरा और मूर्तिभंजक कहा जाता है लेकिन यह सही नहीं है क्योंकि जब एक हमलावर किसी शासक को युद्ध में हरा देता है तो युद्ध में हारे हुए शासक का देश और उसके देश की धन-संपत्ति का मालिक वह हमलावर हो जाता है। तब यदि हमलावर हारे हुए देश की संपत्ति अपने देश ले जाता है तो वह कैसे लुटेरा कहा जा सकता है। वो तो अपनी धन-संपत्ति अपने देेश ले जाता है। महमूद गज़नवी के हमलों की विस्तृत जानकारी जानने के बाद हम कह सकते हैं कि भारत पर 17 बार हमले करने का मौका यहां के शासकों ने उपलब्ध कराया। इसके अलावा यहां मंदिरों की अपार धन-संपत्ति ने भी महमूद गज़नवी को भारत पर बार-बार आक्रमण करने का न्यौता दिया। उस समय भारत के सभी शासक इतने सशक्त नहीं थे कि वें अपने देश की रक्षा कर सकते थे। इसलिए सिर्फ गज़नवी को ही भारत पर 17 बार हमला करने का जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता बल्कि इसके लिए तत्कालीन भारतीय शासक पूरी तरह ज़िम्मेदार हैं। भारत पर उसके सैनिक अभियान हमें उसके बारे में विस्तृत जानकारी हासिल करने के लिए विवश करते हैं।     

गज़नवी 998 ई० में गज़नी का शासक बना जो काबूल के पश्चिम में स्थित था। गज़नवी ने भारत पर पहला हमला 1000 ई० में किया। इस हमले में उसने सीमावर्ती भारतीय इलाकों को जीतकर वापस गज़नी चला गया। 1000-1002 ई० में उसने पेशावर और वैहिन्द पर हमला किया और वहां के शासक जयपाल को हराया। इस हमले में जयपाल और उसके सेना प्रमुख गिरफ्तार किए गए और भारी धन लेकर गज़नवी ने उन्हें छोड़ दिया। महमूद गज़नवी ने 1004-1005 ई० में मुल्तान पर हमला किया और वहां के शासक दाऊद जो मुसलमानों के ऐसे संप्रदाय से संबंधित था जिसे गज़नवी मुसलमान नहीं समझता था। जब गज़नवी ने मुल्तान पर चढ़ाई की तो दाऊद ने पेशावर के शासक आनंदपाल से मदद मांगी। इस पर महमूद गज़नवी ने दाऊद पर हमला करने का इरादा बदल दिया और पहले आनंदपाल पर हमला किया और उसे हराकर बंदी बना लिया। दूसरी और दाऊद ने आत्मसमर्पन कर दिया और गज़नवी को 20,000 दिरहम बतौर जुर्माने के अदा किया।           

अगले वर्ष 1006-1007 ई० में गज़नवी ने भेड़ा राज्य पर आक्रमण किया और वहां के शासक बिजीराय को हराया जिसने अपने को बंदी बनाए जाने के डर से आत्महत्या कर ली। गज़नवी ने भेड़ा राज्य का शासन अपने हाथ में ले लिया और और वहां अपना शासन कायम किया। यह सिंध नदी के पूर्वी तट का पहला क्षेत्र था जो गज़नवी के शासन के तहत आया। महमूद गज़नवी ने आनंदपाल के बेटे सुखपाल को भेड़ा का शासक बना दिया जो इस्लाम धर्म कबूल कर चुका था। भेड़ा का शासक बनने के बाद सुखपाल ने फिर हिन्दू धर्म अपना लिया। इससे नाराज़ होकर गज़नवी ने सुखपाल को पदच्युत कर उसे जेल में डाल दिया। गज़नवी का अगला महत्त्वपूर्ण सैनिक अभियान 1008-1009 ई० में आनंदपाल के खिलाफ था। आनंदपाल ने उज्जैन, कलिंजर, अजमेर, ग्वालियर, कन्नौज और दिल्ली के शासकों से मदद मांगी लेकिन यह संगठित सेना भी गज़नवी को हरा न सकी। इसके बजाय महमूद गज़नवी ने आनंदपाल को हराया और उस पर आत्मसमर्पन करने का दबाव डाला जिसके पास आत्मसमर्पन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। आनंदपाल की संगठित सेना पर जीत ने गज़नवी को नगरकोट पर हमले करने के लिए उत्साहित किया जहां उसने मंदिरों से अपार धन-संपत्ति हासिल हुई।     

1010-1011 ई० में गज़नवी ने मुल्तान पर दोबारा हमला किया और दाऊद को बंदी बना लिया लेकिन मुल्तान का शासन अपने हाथ में नहीं लिया।               

1011-1012 ई० में गज़नवी ने थानेश्वर पर चढ़ाई की और यहां स्थित चक्रास्वामी मंदिर से अपार धन-संपत्ति हासिल किया। इस दौरान आनंदपाल की मृत्यु हो गई और पेशावर का नया शासक त्रिलोचनपाल बना जिसने अपने बेटे भीमपाल की सलाह पर गज़नवी-विरोधी नीति अपनाई। गज़नवी ने त्रिलोचनपाल को भी हरा दिया और निन्दुना के किले पर कब्ज़ा कर लिया। तब भीमपाल ने कश्मीर की ओर भागने का फैसला किया। गज़नवी ने 1015-1016 ई० में कश्मीर में प्रवेश करने की कोशिश की लेकिन भौगोलिक रुकावटों के कारण वो लोहकोट से आगे नहीं बढ़ पाया।         

महमूद गज़नवी 1018 ई० में पहली बार गंगा की घाटी में प्रवेश जहां उसने बारन (बुलंदशहर और महावन) पर चढ़ाई की। बारन के शासक कुलचंद ने खुद को बंदी बनाए जाने के भय से आत्महत्या कर ली। जमुना के दूसरे किनारे पर मथुरा राज्य स्थित था जहाँ उसने कई मंदिरों से धन इकट्ठा किया और उन्हें नष्ट भी किया। इसके बाद वो आगे बढ़ा और कन्नौज पर हमला किया और यहां के राजा राजपाल को उसने हराया जो बिना युद्ध किए भाग गया। इस प्रकार गज़नवी ने कन्नौज, अस्नी और शारवा के क्षेत्रों को जीत लिया| 1019-1020 ई० में गज़नवी ने कलिंजर के शासक नंद जो त्रिलोचनपाल का मित्र था उसको हराया। नंद ने गज़नवी का मुकाबला नहीं किया और भाग गया। यहां महमूद गज़नवी ने अपने सैनिक अभियान को रोकने का फैसला किया और गज़नी वापस चला गया।       

गज़नी वापस पहुंचने के बाद उसने आराम नहीं किया और 1021-1022 ई० में उसने पंजाब पर चढ़ाई की। इस बीच त्रिलोचनपाल का स्वर्गवास हो गया और उसके पुत्र भीमपाल ने अज़मेर में शरण ले ली। गज़नवी ने पंजाब के शासन को अपने हाथ में लेने का फैसला लिया ताकि वहां सैनिक केंद्र स्थापित कर दूर-दराज क्षेत्र पर चढ़ाई कर सके और पंजाब इसके लिए उपयुक्त था।             

1023-1024 ई० में गज़नवी ने फिर कलिंजर पर चढ़ाई कर नंद को हराया और वहां अपना शासन स्थापित किया। उसने ग्वालियर के किले पर भी कब्ज़ा कर लिया।                   

गज़नवी की 1025-1026 ई० में सबसे महत्वपूर्ण चढ़ाई गुजरात पर की। गुजरात के शासकों ने गज़नवी का वीरतापूर्वक मुकाबला किया और कड़े संघर्ष के बाद भी वे गज़नवी को हरा न सके। इस बीच  गुजरात का कमानदार लोगों को बेसहारा छोड़कर भाग खड़ा हुआ। उसने सोमनाथ मंदिर की अपार संपत्ति को हासिल किया और ज्योतिरलिंग समेत मंदिर को नष्ट कर दिया। महमूद गज़नवी ने गुजरात पर चढ़ाई राजपूताना के रास्ते से किया। सोमनाथ मंदिर से उसने अपार संपत्ति हासिल करने के बाद उसने अनहिलवाड़ा पर चढ़ाई की और वहां के शासक परमदेव को हराया। यहां से गज़नवी सोमनाथ मंदिर से हासिल किए गए धन के साथ गज़नी लौटा। वह अपने साथ ज्योतिरलिंग के कुछ हिस्से भी गज़नी ले गया। रास्ते में जाटों (खोखर) ने गज़नवी से धन लूटने की कोशिश की परन्तु वह जाटों (खोखर)के हाथ से धन बचाने में सफल रहा।         

एक वर्ष बाद 1027 ई० में गज़नवी ने जाटों (खोखर) को सबक सिखाने के लिए उन पर हमला किया। यह गज़नवी का आखिरी सैनिक अभियान था क्योंकि 1030 ई० में गज़नी में उसकी मलेरिया से मृत्यु हो गई।           

ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि महमूद गज़नवी ने भारत से जो भी धन हासिल किया उसका प्रयोग उसने मध्य-एशिया में उसने अपने शत्रुओं से युद्ध करने में किया। वास्तव में उसका मकसद मध्य-एशिया में अपने साम्राज्य को फैलाना था। उसका मकसद भारत में अपना शासन स्थापित करना नहीं था। यह सच है कि भारत पर सैनिक अभियान के दौरान गज़नवी ने कई मंदिरों को नष्ट किया जो गैर-इस्लामिक है क्योंकि इस्लाम किसी दूसरे धर्म के पूजा-स्थल को नुकसान पहुँचाने की इजाज़त नहीं देता है। गज़नवी का यह कदम पूरे तौर पर गलत था। क्योंकि गज़नवी ने भारत में अपना शासन कायम नहीं किया इसलिए उसने यहां के लोगों का धर्म इस्लाम में परिवर्तित नहीं कराया सिवाय चंद घटनाओं के जिसे इंकार नहीं किया जा सकता। यद्यपि गज़नवी भारत से बहुत सारा धन गज़नी ले गया परन्तु भारत की समृद्धि फिर भी बरकरार रही। इसका प्रमाण यह है कि 150 वर्षों बाद जब एक दूसरा मुस्लिम हमलावर मोहम्मद गौरी ने भारत पर चढ़ाई की तो उसने भारत को समृद्धशाली पाया।     

इतिहासकार इस बात से सहमत नहीं हैं कि गज़नवी सिर्फ आक्रांता और लूटेरा था। उनके अनुसार वह एक महान योद्धा और विजेता था। इतिहासकार मानते हैं कि गजनवी के  हमले से सोमनाथ मंदिर को कोई खास नुकसान नहीं हुआ यह बात विकिपिडिया में भी उल्लेख है।             

यह हैरत की बात है कि महमूद गज़नवी ने भारत पर जितनी बार भी चढ़ाई की उसने इसमें हर बार किसी ना किसी भारतीय शासक को पराजित किया लेकिन इतिहास में इस बात का उल्लेख कहीं नहीं मिलता कि इसने पराजित शासकों के खज़ानों पर भी कब्ज़ा किया। सवाल उठता है कि जिस गज़नवी ने मंदिरों से अपार धन हासिल किया तो क्या उसने अपने द्वारा पराजित भारतीय शासकों के खज़ानों से धन नहीं हासिल किया? ऐसा लगता है कि सिर्फ मंदिरों से धन इकट्ठा करने की बात कहकर गज़नवी को बदनाम करने की कोशिश की गई है।           

मैंने यह पोस्ट अपनी पहली एक पोस्ट पर किसी के द्वारा ये टिप्पणी किए जाने पर लिखा है कि मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारत पर हमला इसकी दौलत लूटने के लिए किया। इसके अलावा उन्होंने यहां के मंदिरों को तोड़ा और लोगों को जबरन धर्म-परिवर्तन कराकर मुसलमान बनाया।


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा

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