Thursday, February 27, 2020

क्या "फिरोज़शाह कोटला स्टेडियम" नाम बदलकर "अरुण जेटली स्टेडियम" रखना उचित है?


अभी कुछ समय पहले विश्व प्रसिद्ध "फिरोज़शाह कोटला स्टेडियम" का नाम बदलकर "अरुण जेटली स्टेडियम" रख दिया गया है। "फिरोज़शाह कोटला स्टेडियम" का नाम बदलकर "अरुण जेटली स्टेडियम" नाम रखे जाने से लोग हैरान रह गए क्योंकि "अरुण जेटली स्टेडियम" नाम "फिरोज़शाह कोटला स्टेडियम" नाम के स्तर का नहीं है। "फिरोज़शाह कोटला स्टेडियम" का नाम दिल्ली के सुल्तान "फिरोज़शाह तुग़लक" के नाम पर रखा गया जिसने 1351 ई० से 1388 ई० तक दिल्ली पर शासन किया। उसका शासन लोक - कल्याणकारी शासन था जो अपनी प्रजा को ज़्यादा से ज़्यादा सुविधाएं पहुँचाने में लगा रहता था। फिरोज़ाबाद और जौनपुर शहर इसी के द्वारा स्थापित किए गए थे। उसकी एक बड़ी खूबी ये थी कि इसने अपने पूर्वशासकों द्वारा लगाए गए सभी करों को माफ कर दिया था और कोई कर नहीं लगाया था। शायद "फिरोज़शाह कोटला स्टेडियम" का नाम साल 1883 में ब्रिटिश शासकों ने इसके लोक - कल्याणकारी कामों को मद्देनजर रखा होगा। दरअसल "फिरोज़शाह कोटला स्टेडियम" के नाम के आगे "अरुण जेटली स्टेडियम" का नाम बौना सा लगता है। हर आदमी जानता है कि अरुण जेटली लोक - कल्याणकारी काम करने वाले नेता नहीं थे। इसके विपरीत वो जनता के हितों के विपरीत काम करने वाले नेता के रूप में जाने जाते हैं जैसे उनकी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की पॉलिसी है जिसने देशभर के व्यापारियों और छोटे व्यापारियों को बर्बाद कर दिया। इसके अलावा उनका क्रिकेट व अन्य किसी दूसरे खेल में कोई योगदान नहीं है। जबकि दूसरी तरफ जब वो दिल्ली डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन (डीडीसीए) के चेयरमेन के पद पर 15 सालों तक आसीन थे तब उनपर डीडीसीए के फंड में वित्तीय अनियमितताओं, स्टेडियम में अवैध निर्माण कराने व कुप्रबंध के आरोप लगे। हालांकि हाई कोर्ट द्वारा इन मामलों में उन्हें क्लीन चिट दे दी गई थी। वो देश के कभी भी लोकप्रिय नेता के तौर पर नहीं जाने गए। इसलिए "फिरोज़शाह कोटला स्टेडियम" के नाम की जगह "अरुण जेटली स्टेडियम" के नाम किया जाना सरकार का कोई अच्छा कदम नहीं है। इससे सरकार की संकीर्ण मानसिकता का पता चलता है। अन्यथा क्रिकेट के मैदान में कभी न भूलने वाले योगदान करने वाले कई प्रसिद्ध क्रिकेटर मौजूद हैं जिनके नाम पर "फिरोज़शाह कोटला स्टेडियम" का नाम रखा जा सकता था। इनमें मंसूर अली खान पटौदी, सुनील गावस्कर और कपिल देव का नाम शामिल है। इन क्रिकेट खिलाडियों को न सिर्फ क्रिकेट प्रेमी बल्कि आम जनता कभी नहीं भूलेगी और इनका नाम सम्मान के साथ लेगी।

नवाब पटौदी का क्रिकेट में दिया गया योगदान सीमित नहीं है। ये भारतीय टीम के पहले सबसे कम उम्र के कप्तान थे और विश्व में सबसे कम उम्र के कप्तान थे। इन्होंने क्रिकेट के मैदान में कई कीर्तिमान स्थापित किए जबकि वो एक आँख से खेलते थे। उनकी दाहिनी आँख एक हादसे में पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई थी।     

सुनील गावस्कर क्रिकेट की दुनिया में एक बहुत बड़ा नाम है। क्रिकेट में उनकी उपलब्धियों को हमेशा याद किया जाएगा। उन्होंने 100 कैच लेने का रिकॉर्ड स्थापित किया।       

जबकि कपिल देव वो क्रिकेट खिलाड़ी हैं जिनकी कप्तानी में पहली बार भारत ने वर्ल्ड कप ट्रॉफी पर कब्ज़ा किया।     

अगर सरकार ने इन महान क्रिकेट खिलाड़ियों के नाम पर "फिरोज़शाह कोटला स्टेडियम" का नाम बदलकर रखा होता तो क्रिकेट प्रेमी और आम जनता बहुत खुश होती।


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा


No comments:

Post a Comment

यूक्रेन रूस का 'आसान निवाला' नहीं बन पाएगा

रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले का आज चौथा दिन है और रूस के इरादों से ऐसा लग रहा है कि रूस अपने हमलों को ज़ारी रखेगा। यद्यपि दुनिया के सारे देश रू...