Thursday, February 27, 2020

मोहन भागवत में दूरदर्शिता की कमी।

अहमदाबाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवकों की एक सभा को 16 फरवरी को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुखिया मोहन भागवत ने हिंदू समाज में तलाक के बढ़ते हुए ग्राफ पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इससे हिंदू समाज में बिखराव पैदा हो रहा है। इसका कारण शिक्षा के फैलाव और लोगों में आई संपन्नता है। इससे पता चलता है कि मोहन भागवत की सोच बदलते समाज के खिलाफ है। इससे यह भी पता चलता है कि आरएसएस और इसके मुखिया समाज में हो रहे सकारात्मक परिवर्तन के खिलाफ हैं। यह स्मरणीय रहे कि भारत में हिंदू समाज हिंदू कानून द्वारा संचालित होते हैं न कि परंपरा और रूढ़ियों द्वारा। हिंदू कानून में तलाक का प्रावधान सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान है। जब तलाक का प्रावधान हिंदू समाज में नहीं था तो हिंदू समाज में महिलाओं को जलाए जाने की घटनाएं सामान्य थीं। इस प्रकार हिंदू महिलाएं अमानवीय यातनाओं की शिकार थीं। तलाक के प्रावधान के सामने आने पर हिंदू महिलाओं की स्थिति में बदलाव आया क्योंकि उन्हें उल्लेखनीय मात्रा में स्वतंत्रता प्राप्त हुई। अब हिंदू पुरुष और महिलाएं अपने विवाहित संबंधों को खत्म करने के लिए अदालत का रास्ता अपना रहे हैं अगर वें समझते हैं कि उनका पारिवारिक जीवन सुचारू रूप से नहीं चल पा रहा है क्योंकि वें अब अनचाहे विवाहित जीवन को गुजारने के लिए मजबूर नहीं है। अब जबकि उन्हें अपने संबंधों को समाप्त करने की सुविधा प्राप्त हो गई है तो वें इस सुविधा को शांतिपूर्ण बनाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। सवाल यह उठता है कि श्रीभागवत हिंदू पुरुष और महिलाओं को शांतिपूर्ण विवाहित जीवन गुजारने नहीं देना चाहते जो अदालत अपने संबंधों को विच्छेद कराने के लिए जाते हैं? जीवन से महत्वपूर्ण चीज़ मन और घर के वातावरण की शांति है। अगर ये दोनों शांति नहीं है तो जीवन नरक बन जाता है। इसलिए श्री भागवत को तलाक की बढ़ती हुई घटनाओं पर चिंता व्यक्त करने की अपनी सोच पर पुनर्विचार करना चाहिए क्योंकि तलाक पति-पत्नी के बीच अनसुलझे तनाव के नतीजे में पैदा हुए असहनीय दुखों के खात्मे का शांतिपूर्ण तरीका है।       

मोहन भागवत का यह बयान घोर महिला विरोधी है और घोर संविधान विरोधी भी है क्योंकि संविधान द्वारा महिलाओं को पुरुषों जैसा अधिकार दिया गया है और हिंदू कानून में महिलाओं को तलाक का अधिकार इसीलिए दिया गया है ताकि वें पुरुषों से अपना विवाहित संबंध ऐसी स्थिति में विच्छेद कर सके जब उनके लिए विवाहित जीवन गुजारना असंभव हो जाए।


- रोहित शर्मा विश्वकर्मा


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