अगर कहीं मुसलमानों की कोई बैठक हो रही है और उसमें आरिफ़ मोहम्मद ख़ान का उल्लेख आ जाता है तो मुसलमान इस नाम को सुनकर बिदक जाते हैं क्योंकि आरिफ़ मोहम्मद ख़ान शरीय़त विरोधी विचार खुले तौर पर व्यक्त करते रहते हैं। दरअसल मुस्लिम समुदाय में वो इस्लामी शरीयत के घोर विरोधी माने जाते रहे हैं इसलिए मुस्लिम समुदाय उन्हें पसंद नहीं करता है। यही कारण है कि आरिफ़ मोहम्मद ख़ान को मुस्लिम उलेमा के जलसे को संबोधित करने के लिए कभी नहीं बुलाया गया। आरिफ़ मोहम्मद ख़ान की शरीयत छवि राजीव गाँधी सरकार सरकार के दौरान उस वक्त से उभरी जब उन्होंने शाहबानो केस के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन किया और राजीव गाँधी सरकार द्वारा इस फैसले को निरस्त किए जाने का विरोध किया। इस मुद्दे पर अपने विरोध में वो इतना आगे बढ गए कि वहां से पीछे लौटना उनके लिए संभव नहीं था। इस नतीजे में इन्हें राजीव गाँधी मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा देना पड़ा। और जब मोदी सरकार द्वारा तीन तलाक का मुद्दा उठाया गया तो इन्होंने इसका खुलकर समर्थन किया। तब मुसलमानों में यह कहा जाने लगा कि आरिफ़ मोहम्मद ख़ान शरीयत विरोधी हर कदम का खुलकर समर्थन करने में अब हिचकिचाएंगे नहीं। शरीयत विरोधी विचार रखने वाले ऐसे व्यक्ति को मोदी सरकार द्वारा गले लगा लिया जाता है और उसे इनाम से नवाजा जाता है।
- रोहित शर्मा विश्वकर्मा
- रोहित शर्मा विश्वकर्मा
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