मुहर्रम इस्लामी कैलेन्डर का पहला महीना है। पैगम्बर मोहम्मद साहब के देहांत के 60-70 साल बाद कर्बला की दर्दनाक घटना 1 मुहर्रम से 10 मुहर्रम के बीच घटी। कर्बला की दर्दनाक घटना इस तरह है - यज़ीद जो खुद को इस्लामी विश्व का अमीर (राजा) कहता था तो उस वक्त पैगंबर मोहम्मद साहब के नाती हज़रत इमाम हुसैन ने उसे ललकारा। जब उसने अपने राज्य के समर्थन में उनका समर्थन बलपूर्वक मांगा। यज़ीद समझता था कि उसका शासन मज़बूती से कायम हो जाएगा जब हज़रत हुसैन का उसे समर्थन मिल जाएगा। लेकिन हज़रत हुसैन ने यज़ीद को अमीर मानने से इनकार कर दिया क्योंकि वह इस्लामी तरीके से अमीर नहीं चुना गया था। उसके पिता हज़रत मुआविया ने खुद अपने बेटे को इस्लामी रिवायत को को तोड़ते हुए अमीर बना दिया था। इसके अलावा यज़ीद तमाम बुराईयों में लिप्त था। यज़ीद की इन बुराईयों को देखते हुए हज़रत हुसैन इस्लामी विश्व का अमीर कैसे मान सकते थे। तो हज़रत हुसैन ने यज़ीद के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया। वो इराक़ रवाना हो गए जहां से यज़ीद अपने क्षेत्रों पर शासन करता था। जब हज़रत हुसैन की अगुवाई में उनकी छोटी सी फौज़ जिसमें 72 लेग शामिल थे फ़रात नदी के किनारे पहुँची तो उसे यज़ीद की शक्तिशाली फौज़ ने रोक दिया तब हज़रत हुसैन और उनके साथियों ने वहीं अपना खेमा गाढ़ दिया। इसके बाद हज़रत हुसैन की सेना और यज़ीद की फौज़ के बीच युद्ध होने लगा। ये युद्ध अकेले-अकेले फौजियों के बीच होता था। ये युद्ध 9 मुहर्रम तक चला और इसमें हज़रत हुसैन के साथी दुश्मन के कई फौजियों को मारने के बाद मारे गए और इस तरह हज़रत हुसैन के साथी 9 मुहर्रम तक मारे गए। यहां ये उल्लेख भी ज़रूरी है कि हज़रत हुसैन की छोटी सी फ़ौज में बच्चे और महिलाएं भी शामिल थीं। युद्ध के दौरान जब हज़रत हुसैन के साथियों को प्यास महसूस होती थी तो वे फ़रात नदी से पानी लेने जाते लेकिन उन्हें यज़ीद के फ़ौजी पानी लेने से रोक देते थे और इस प्रकार हज़रत हुसैन के साथी पूरा ही युद्ध बिना पानी पीए ही लड़ते रहे और शहीद कर दिए गए। यहां तक कि बच्चों के लिए भी पानी लेने नहीं लेने दिया गया और एक बच्चे को उस वक्त तीर चलाकर मार दिया गया जब उनके पिता बच्चे को गोद में लेकर फ़रात नदी से पानी लेने गए। ऐसा बर्बरतापूर्वक व्यवहार यज़ीद की फ़ौज ने हज़रत हुसैन के साथियों और उनके साथ किया। मुहर्रम के 10वें दिन हज़रत हुसैन खुद अपने घोड़े पर सवार होकर यज़ीद की फ़ौज की ओर बढ़े और यज़ीद की फ़ौज ने भी उनपर हमला बोल दिया। घमासान युद्ध हुआ और हज़रत हुसैन बड़ी बहादुरी और शान के साथ बढ़ते रहे और दुश्मन के बहुत से फ़ौजियों को मौत के घाट उतार दिया। वो जिस तरफ़ निकल जाते दुश्मनों की लाश बिछ जाती लेकिन अकेले हुसैन कब तक युद्ध करते आख़िर दुश्मनों के हमले में वो शहीद हो गए। तब उनका घोड़ा उनकी लाश को उनके खेमे में ले गया जहां अब सिर्फ महिलाएँ बाकी रह गई थीं। यह कहा जाता है कि युद्ध में हज़रत हुसैन पर इतने हमले हुए कि उनके शरीर का एक इंच हिस्सा भी ज़ख्मों से खाली नहीं था। इसका मतलब है कि हज़रत हुसैन को किस क्रूरता से कत्ल किया गया। ऐसी क्रूरता से उनसे पहले या उनके बाद कोई भी कत्ल नहीं किया गया। संक्षेप में कर्बला की यह कहानी हमें याद दिलाती है कि हमें ज़ालिम के सामने नहीं झुकना चाहिए। हज़रत हुसैन शुरू से ही जानते थे कि यज़ीद की फ़ौज से जंग का नतीजा उनकी अपनी फ़ौज के सफाए के रूप में निकलेगा, लेकिन वो इससे डरे नहीं और यज़ीद की फ़ौज से अपनी छोटी सी फ़ौज के साथ टकरा गए लेकिन उन्होंने अत्याचारी के सामने अपनी पीठ नहीं दिखाई।
- रोहित शर्मा विश्वकर्मा
- रोहित शर्मा विश्वकर्मा
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