जबसे 'नागरिकता संशोधन कानून'(सीएए) और 'राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर'(एनआरसी) का मुद्दा प्रकाश में आया है, तब से पूरा देश भ्रम में डूब गया है क्योंकि इन दोनों मुद्दों की व्याख्या लोग अपने-अपने तरीके से कर रहे हैं। जो लोग 'नागरिकता संशोधन कानून'(सीएए) और 'राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर'(एनआरसी) से संभवतः प्रभावित होंगे इन्हें अपने लिए बहुत खतरनाक समझते हैं। इनके अनुसार 'नागरिकता संशोधन कानून'(सीएए) असंवैधानिक है। इसके अलावा सभी विरोधी पार्टियां इसे असंवैधानिक मानती हैं। यहां हमें जान लेना चाहिए कि 'नागरिकता संशोधन कानून'(सीएए) क्या है? केंद्रीय सरकार द्वारा संसद से पारित कराया गया यह कानून उन हिंदुओं को भारतीय नागरिकता देने के लिए है जो अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न के कारण भागकर भारत आए हुए हैं। इस कानून के दायरे से उपरोक्त देशों से आए हुए या आने वाले मुसलमानों को नागरिकता देने से बाहर रखा गया है। वास्तव में इस कानून से फिलहाल असम में रहने वाले उन 14 लाख हिंदू शरणार्थियों को फायदा मिलेगा जो 1971 में भारत-पाक युद्ध के समय धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत भाग आए थे और जिसके बाद नए देश बांग्लादेश का जन्म हुआ था। उस समय लाखों मुसलमान भी पूर्वी पाकिस्तान से भागकर भारत आ गए थे। असम में इन शरणार्थियों को भारत से निकालने के लिए एक लंबा अभियान चलाया गया और इसके लिए एक उपयुक्त कानून बनाने की मांग की गई। सबसे पहले सरकार ने असम में रहने वाले सभी शरणार्थियों की पहचान की गई और इस प्रक्रिया में कुल 19 लाख शरणार्थियों की पहचान की गई जिनमें 14 लाख हिंदू और 5 लाख मुस्लिम शामिल हैं। इन 19 लाख लोगों के पास भारत में रहने के लिए कोई सरकारी दस्तावेज नहीं हैं। इस वक्त इन शरणार्थियों को भारत से निकालने का खतरा मंडरा रहा है। यहां यह बात याद रखने योग्य है कि इन शरणार्थियों की पहचान के लिए 'राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर'(एनआरसी) सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर बनाया गया। यद्यपि इन घुसपैठियों की पहचान हो चुकी है लेकिन इन्हें देश से अभी तक निकाला नहीं गया है और अब मोदी सरकार ने असम में रहने वाले हिंदू शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने के लिए 'नागरिकता संशोधन कानून'(सीएए) बनाया। लेकिन इस कानून ने देशभर में गुस्से का माहौल पैदा कर दिया क्योंकि इस कानून को सही सोच वाले लोग पक्षपातपूर्ण और असंवैधानिक बता रहे हैं। उनका मानना है कि इस कानून के दायरे में मुसलमानों को बाहर रखना बहुत ही आपत्तिजनक है। अभी तक कोई ऐसा कानून नहीं बना है जो भारतीय नागरिकों के बीच हिन्दू-मुसलमानों के तौर पर देखता है। सभी कानून भारतीय नागरिकों को भारतीय नागरिक के तौर पर देखता है ना कि हिन्दू-मुसलमानों के रूप में। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह इसे तानाशाही वाला कानून नहीं समझते। बल्कि वे इसे प्रजातांत्रिक कानून मानते हैं। सभी कानून विशेषज्ञ और संवैधानिक विशेषज्ञ यह मानते हैं कि सरकार का यह कदम तानाशाही वाला कदम है और इसको वापस लेने की मांग की जा रही है। इस मुद्दे पर पुरे देश में बवाल मचा हुआ है जिसके नतीजे में हिंसक घटनाएं घट रही है जिसमें दर्जनों लोग पुलिस की फायरिंग में मारे गए हैं। प्रदर्शनकारी अपने आंदोलन को रोकने के लिए उस वक़्त तक तैयार नहीं हैं जब तक उनकी मांगे नहीं पूरी हो जाती हैं। ये लोग विशेषकर असम के उन 14 लाख हिन्दू शरणार्थियों को और फिर अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत आए हिन्दू शरणार्थियों को इस कानून के तहत भारत की नागरिकता दिए जाने का विरोध कर रहे हैं। यह बात याद रखने योग्य है कि असम में आए हुए घुसपैठियों और अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता बिना किसी वैध दस्तावेज न रखने के बावजूद दिया जाएगा। असम में रहने वाले शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दिए जाने का इसलिए विरोध कर रहे हैं क्योंकि वे समझते हैं कि ऐसा करने से उनके साहित्य, उनकी संस्कृति, उनके रहन-सहन, उनके रीति-रिवाज़ और उनका समाज विशुद्ध हो जाएगा। उनका कहना है कि जब 19 लाख शरणार्थियों (मुस्लिम समेत) की पहचान हो गई है तो असम से उन्हें हर हाल में निकाल दिया देना चाहिए क्योंकि ये लोग इस अपनी मांग को पूरा किए जाने के लिए लम्बे समय से आंदोलन चला रहे हैं। अब ये लोग इन शरणार्थियों को केंद्र सरकार द्वारा भारत की नागरिकता दिए जाने का विरोध कर रहे हैं। इस मामले पर अगर केंद्रीय सरकार असम में रह रहे 14 लाख हिन्दू घुसपैठियों को भारत की नागरिकता की योजना पर आगे बढ़ती है तो आने वाले समय में हिंसक हालात पैदा होने की संभावना है। जहाँ तक 5 लाख मुस्लिम घुसपैठियों का सवाल है तो केंद्रीय सरकार ने उन्हें असम से निकाल देने का फैसला कर लिया है। यह मुस्लिम और हिन्दू घुसपैठियों के बीच खुला भेदभाव है। ना सिर्फ यह बल्कि लाखों रोहिंग्या मुसलमान भी म्यांमार में धार्मिक उत्पीड़न के कारण भागकर भारत आए हुए हैं और यहाँ शरण ले रखी है लेकिन इन रोहिंग्या मुसलमानों को नागरिकता संशोधन कानून के तहत भारत की नागरिकता नहीं दी जा रही है। यह विडंबना की बात है कि इस नए कानून के तहत अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिन्दू नागरिकों को भारत की नागरिकता दी जाएगी, अगर वो इसके लिए आवेदन करते हैं। इस तरह इन तीनों देशों के हिन्दुओं के सैलाब को भारत में आने का दरवाज़ा खोल दिया गया है।
गृहमंत्री अमित शाह खुद यह बात स्वीकारते हैं कि इस कानून के बन जाने के बाद अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के लगभग 4 करोड़ हिन्दू अपने-अपने देश की नागरिकता छोड़कर भारत आ जाएंगे। दरअसल गृहमंत्री अमित शाह का यही इरादा है कि उपरोक्त देशों के हिन्दुओं को भारत बुला लिया जाए और इस बात का एलान उन्होंने इस कानून को संसद से पारित कराने के दौरान सदन में किया था। अगर यह हुआ तो इसका परिणाम क्या निकलेगा? जैसा कि हम जानते हैं कि हमारी आर्थिक व्यवस्था इतनी मजबूत नहीं है कि वो उपरोक्त देशों से आने वाले हिन्दुओं को उपरोक्त देशों से उपरोक्त संख्या में भारत आने वाले हिन्दुओं को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करा सकें। हम पहले से ही बेरोज़गारी, गरीबी, महंगाई, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, अच्छी शिक्षा, ढांचागत सुविधाओं की कमी, घरों की कमी, शिक्षा संस्थानों के लिए भवनों की कमी, पीने के पानी की उपलब्धता की कमी आदि समस्याओं का सामना कर रहे हैं। ऐसी स्थिति केंद्र सरकार उपरोक्त देशों से भारत आने वाले लगभग 4 करोड़ हिन्दुओं को ये बुनियादी सुविधाएं कैसे उपलब्ध कराएंगी। यह निश्चित है कि देशवासियों द्वारा सामना किए जाने वाली इन समस्याओं का तब और कई गुणा इजाफ़ा हो जाएगा। यह आश्चर्य की बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह इस मामले पर खामोश हैं। ये दोनों अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न के कारण आए या वहां धार्मिक उत्पीड़न को सहन कर रहे हिन्दुओं से प्रेम और उनकी स्थिति से चिंतित होने की भावना का प्रदर्शन कर रहे हैं और स्वयं को इन उत्पीड़ित हिन्दुओं का उद्धारक समझते हैं। हमारे पास मौजूदा आबादी के लिए अनाज, घर और नौकरियां उपलब्ध कराने की व्यवस्था नहीं है। दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को देश के विकास की और देश की समस्याओं को हल करने की कोई चिंता नहीं है। जबसे नरेंद्र मोदी सरकार सत्ता में आई है इसने विकास के क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय काम नहीं किया है। इसलिए यह सरकार अपनी असफलता को छिपाने के लिए 'नागरिकता संशोधन कानून'(सीएए) जैसे संवेदनशील मुद्दे की ओर देशवासियों का ध्यान भटका रही है। इस वक़्त देश खुलकर दो वर्गों में बंट गया है। एक इस कानून के समर्थक वर्ग और दूसरा इसका विरोध करने वाला वर्ग। इसका समर्थन करने वाले कट्टर हैं और इसका विरोध करने वाले सही सोच वाले भारतीय है। दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की इस कानून को लागू करने की मंशा यह है कि अपने हिन्दुत्वा वोट बैंक का विस्तार किया जाए।
वास्तव में इस कानून का विरोध अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से करोड़ों हिन्दुओं को भारत लाने और यहाँ के करोड़ों नागरिकों की नागरिकता को छीनने के डर से किया जा रहा है। यद्यपि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह द्वारा यह आश्वासन दिया जा रहा है कि इस कानून से किसी भारतीय नागरिक को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। ये कानून अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले हिन्दुओं को सिर्फ भारत की नागरिकता दिए जाने से संबंधित है। परन्तु लोग इन बयानों पर नरेंद्र मोदी सरकार और इसके नेताओं की 'दोहरी ज़बान' की वजह से इनके बयानों पर विश्वास नहीं कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की 'दोहरी ज़बान' का उदाहरण 2014 के लोकसभा चुनाव के समय किए गए चुनावी वादे हैं जब यह कहा गया था कि सत्ता में आने के बाद देश का विदेशों में जमा काला धन वापस लाया जाएगा, हर नागरिक के खाते में 15 लाख रुपए जमा कराए जाएंगे, हर वर्ष बेरोज़गारों को 2 करोड़ नौकरियां दी जाएंगी, महंगाई पर रोक लगाई जाएगी। नरेंद्र मोदी द्वारा 2014 के चुनावों के अवसर पर भारत की जनता से किए गए उक्त चार बड़े वादों के आलावा और बहुत से वादे भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) के चुनावी घोषणा पत्र में किए गए थे। केंद्र में सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन सभी वादों को भूल गए और इस प्रकार देश की जनता को मूर्ख बनाया। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने अपने उक्त वादों को आज तक पूरा न करने के लिए देश की जनता से खेद तक न व्यक्त किया। क्या इन दोनों द्वारा देश की जनता से की गई इस खुली वादाखिलाफ़ी को उनके विश्वास को धोखा देना नहीं कहा जाएगा? इस प्रकार हम प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के इन बयानों पर कैसे विश्वास कर सकते हैं कि 'नागरिकता संशोधन कानून'(सीएए) किसी भी भारतीय नागरिक के लिए किसी भी तरह से हानिकारक नहीं है और 'राष्ट्रिय नागरिक रजिस्टर'(एनआरसी) को भविष्य में लागू नहीं किया जाएगा।
यह याद रखने योग्य है कि 'नागरिकता संशोधन कानून'(सीएए) और 'राष्ट्रिय नागरिक रजिस्टर'(एनआरसी) भारत के मुसलमानों, दलितों, आदिवासियों, सभी समुदायों के निर्धन लोगों के लिए बहुत खतरनाक है क्योंकि ये सभी लोग भारत की नागरिकता से संबंधित कानूनी दस्तावेज उपलब्ध कराने में असमर्थ होंगे। यही कारण है कि 'नागरिकता संशोधन कानून'(सीएए) 'राष्ट्रिय नागरिक रजिस्टर'(एनआरसी) का विरोध करने वालों में मुसलमान, दलित, आदिवासी, सभी निर्धन लोग शामिल हैं। इसके अलावा इनका विरोध करने वालों में पढ़े-लिखे लोगों की भारी संख्या है जिनमें छात्र, अध्यापक, प्रोफेसर, अधिवक्ता, बुद्धिजीवी आदि शामिल हैं जो इनके दुष्परिणामों को अच्छी तरह जानते हैं।
जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह यह दावा कर रहे हैं कि इनका विरोध अनपढ़ लोग कर रहे हैं जो इनके बारे में कुछ नहीं जानते। वास्तव में 'नागरिकता संशोधन कानून'(सीएए) और 'राष्ट्रिय नागरिक रजिस्टर'(एनआरसी) हमारे देश के लिए किसी भी हालत में लाभकारी नहीं है और ये हम सभी के लिए अहितकर है इसलिए इसका समर्थन किसी भी हालत में नहीं जाना चाहिए।
यहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के इस बयान का उल्लेख अप्रसंगिक नहीं होगा कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दूसरे नेताओं ने 'नागरिकता संशोधन कानून'(सीएए) बनाने 'राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर'(एनआरसी) लागू करने की ज़रूरत की वकालत की थी। निःसंदेह ये नेता भी चाहते थे कि 'नागरिकता संशोधन कानून'(सीएए) जैसा कानून और प्रस्तावित 'राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर'(एनआरसी) को लागू किया जाए लेकिन अगर यें लोग 'नागरिकता संशोधन कानून'(सीएए) और प्रस्तावित 'राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर'(एनआरसी) लागू करते तो वो मौजूदा 'नागरिकता संशोधन कानून'(सीएए) से बिलकुल भिन्न होता क्योंकि उसके दायरे से किसी समुदाय को बाहर नहीं रखा जाता। चूँकि 'नागरिकता संशोधन कानून'(सीएए) बनाने का मकसद अच्छा नहीं है इसलिए इस कानून के लागू होना का नतीजा बुरा ही होगा।
- रोहित शर्मा विश्वकर्मा
गृहमंत्री अमित शाह खुद यह बात स्वीकारते हैं कि इस कानून के बन जाने के बाद अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के लगभग 4 करोड़ हिन्दू अपने-अपने देश की नागरिकता छोड़कर भारत आ जाएंगे। दरअसल गृहमंत्री अमित शाह का यही इरादा है कि उपरोक्त देशों के हिन्दुओं को भारत बुला लिया जाए और इस बात का एलान उन्होंने इस कानून को संसद से पारित कराने के दौरान सदन में किया था। अगर यह हुआ तो इसका परिणाम क्या निकलेगा? जैसा कि हम जानते हैं कि हमारी आर्थिक व्यवस्था इतनी मजबूत नहीं है कि वो उपरोक्त देशों से आने वाले हिन्दुओं को उपरोक्त देशों से उपरोक्त संख्या में भारत आने वाले हिन्दुओं को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करा सकें। हम पहले से ही बेरोज़गारी, गरीबी, महंगाई, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, अच्छी शिक्षा, ढांचागत सुविधाओं की कमी, घरों की कमी, शिक्षा संस्थानों के लिए भवनों की कमी, पीने के पानी की उपलब्धता की कमी आदि समस्याओं का सामना कर रहे हैं। ऐसी स्थिति केंद्र सरकार उपरोक्त देशों से भारत आने वाले लगभग 4 करोड़ हिन्दुओं को ये बुनियादी सुविधाएं कैसे उपलब्ध कराएंगी। यह निश्चित है कि देशवासियों द्वारा सामना किए जाने वाली इन समस्याओं का तब और कई गुणा इजाफ़ा हो जाएगा। यह आश्चर्य की बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह इस मामले पर खामोश हैं। ये दोनों अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न के कारण आए या वहां धार्मिक उत्पीड़न को सहन कर रहे हिन्दुओं से प्रेम और उनकी स्थिति से चिंतित होने की भावना का प्रदर्शन कर रहे हैं और स्वयं को इन उत्पीड़ित हिन्दुओं का उद्धारक समझते हैं। हमारे पास मौजूदा आबादी के लिए अनाज, घर और नौकरियां उपलब्ध कराने की व्यवस्था नहीं है। दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को देश के विकास की और देश की समस्याओं को हल करने की कोई चिंता नहीं है। जबसे नरेंद्र मोदी सरकार सत्ता में आई है इसने विकास के क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय काम नहीं किया है। इसलिए यह सरकार अपनी असफलता को छिपाने के लिए 'नागरिकता संशोधन कानून'(सीएए) जैसे संवेदनशील मुद्दे की ओर देशवासियों का ध्यान भटका रही है। इस वक़्त देश खुलकर दो वर्गों में बंट गया है। एक इस कानून के समर्थक वर्ग और दूसरा इसका विरोध करने वाला वर्ग। इसका समर्थन करने वाले कट्टर हैं और इसका विरोध करने वाले सही सोच वाले भारतीय है। दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की इस कानून को लागू करने की मंशा यह है कि अपने हिन्दुत्वा वोट बैंक का विस्तार किया जाए।
वास्तव में इस कानून का विरोध अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से करोड़ों हिन्दुओं को भारत लाने और यहाँ के करोड़ों नागरिकों की नागरिकता को छीनने के डर से किया जा रहा है। यद्यपि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह द्वारा यह आश्वासन दिया जा रहा है कि इस कानून से किसी भारतीय नागरिक को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। ये कानून अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले हिन्दुओं को सिर्फ भारत की नागरिकता दिए जाने से संबंधित है। परन्तु लोग इन बयानों पर नरेंद्र मोदी सरकार और इसके नेताओं की 'दोहरी ज़बान' की वजह से इनके बयानों पर विश्वास नहीं कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की 'दोहरी ज़बान' का उदाहरण 2014 के लोकसभा चुनाव के समय किए गए चुनावी वादे हैं जब यह कहा गया था कि सत्ता में आने के बाद देश का विदेशों में जमा काला धन वापस लाया जाएगा, हर नागरिक के खाते में 15 लाख रुपए जमा कराए जाएंगे, हर वर्ष बेरोज़गारों को 2 करोड़ नौकरियां दी जाएंगी, महंगाई पर रोक लगाई जाएगी। नरेंद्र मोदी द्वारा 2014 के चुनावों के अवसर पर भारत की जनता से किए गए उक्त चार बड़े वादों के आलावा और बहुत से वादे भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) के चुनावी घोषणा पत्र में किए गए थे। केंद्र में सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन सभी वादों को भूल गए और इस प्रकार देश की जनता को मूर्ख बनाया। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने अपने उक्त वादों को आज तक पूरा न करने के लिए देश की जनता से खेद तक न व्यक्त किया। क्या इन दोनों द्वारा देश की जनता से की गई इस खुली वादाखिलाफ़ी को उनके विश्वास को धोखा देना नहीं कहा जाएगा? इस प्रकार हम प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के इन बयानों पर कैसे विश्वास कर सकते हैं कि 'नागरिकता संशोधन कानून'(सीएए) किसी भी भारतीय नागरिक के लिए किसी भी तरह से हानिकारक नहीं है और 'राष्ट्रिय नागरिक रजिस्टर'(एनआरसी) को भविष्य में लागू नहीं किया जाएगा।
यह याद रखने योग्य है कि 'नागरिकता संशोधन कानून'(सीएए) और 'राष्ट्रिय नागरिक रजिस्टर'(एनआरसी) भारत के मुसलमानों, दलितों, आदिवासियों, सभी समुदायों के निर्धन लोगों के लिए बहुत खतरनाक है क्योंकि ये सभी लोग भारत की नागरिकता से संबंधित कानूनी दस्तावेज उपलब्ध कराने में असमर्थ होंगे। यही कारण है कि 'नागरिकता संशोधन कानून'(सीएए) 'राष्ट्रिय नागरिक रजिस्टर'(एनआरसी) का विरोध करने वालों में मुसलमान, दलित, आदिवासी, सभी निर्धन लोग शामिल हैं। इसके अलावा इनका विरोध करने वालों में पढ़े-लिखे लोगों की भारी संख्या है जिनमें छात्र, अध्यापक, प्रोफेसर, अधिवक्ता, बुद्धिजीवी आदि शामिल हैं जो इनके दुष्परिणामों को अच्छी तरह जानते हैं।
जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह यह दावा कर रहे हैं कि इनका विरोध अनपढ़ लोग कर रहे हैं जो इनके बारे में कुछ नहीं जानते। वास्तव में 'नागरिकता संशोधन कानून'(सीएए) और 'राष्ट्रिय नागरिक रजिस्टर'(एनआरसी) हमारे देश के लिए किसी भी हालत में लाभकारी नहीं है और ये हम सभी के लिए अहितकर है इसलिए इसका समर्थन किसी भी हालत में नहीं जाना चाहिए।
यहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के इस बयान का उल्लेख अप्रसंगिक नहीं होगा कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दूसरे नेताओं ने 'नागरिकता संशोधन कानून'(सीएए) बनाने 'राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर'(एनआरसी) लागू करने की ज़रूरत की वकालत की थी। निःसंदेह ये नेता भी चाहते थे कि 'नागरिकता संशोधन कानून'(सीएए) जैसा कानून और प्रस्तावित 'राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर'(एनआरसी) को लागू किया जाए लेकिन अगर यें लोग 'नागरिकता संशोधन कानून'(सीएए) और प्रस्तावित 'राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर'(एनआरसी) लागू करते तो वो मौजूदा 'नागरिकता संशोधन कानून'(सीएए) से बिलकुल भिन्न होता क्योंकि उसके दायरे से किसी समुदाय को बाहर नहीं रखा जाता। चूँकि 'नागरिकता संशोधन कानून'(सीएए) बनाने का मकसद अच्छा नहीं है इसलिए इस कानून के लागू होना का नतीजा बुरा ही होगा।
- रोहित शर्मा विश्वकर्मा
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