हैदराबाद बलात्कार केस में लिप्त चारों अभियुक्तों को पुलिस द्वारा मुठभेड़ में मार दिए जाने की घटना को आमतौर पर फर्जी मुठभेड़ कहा गया। यह तथ्य इतना आम हो गया कि इसकी जाँच के लिए सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस वी.एस. सिरपुरकर की अगुवाई में तीन सदस्ययी जांच आयोग गठित किया गया। जाँच आयोग से कहा गया है कि वह अपनी रिपोर्ट छः माह के भीतर पेश करे। जाँच आयोग के दूसरे दो सदस्यों के नाम बॉम्बे हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जज जस्टिस रेखा बलदोता और सीबीआई के पूर्व प्रमुख बी. कार्तिकेयन हैं। जाँच आयोग द्वारा की जा रही जाँच के बिल्कुल प्रारंभिक दौर में ये भविष्यवाणी की जा सकती है कि जाँच आयोग इसी नतीजे पर पहुँचेगी कि उक्त मुठभेड़ फर्जी था। वास्तव में जिस तरह चारों अभियुक्तों की मुठभेड़ को अंजाम दिया गया वो पुलिस की बर्बरता को व्यक्त करता है। जैसा कि हम जानते हैं कि पीड़िता के 29 नवंबर 2019 के बलात्कार के दो दिन बाद चारों अभियुक्तों को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। चारों अभियुक्तों की गिरफ्तारी पुलिस विभाग पर देशभर के लोगों द्वारा डाले गए भारी दबाव के नतीजे में हुई। पुलिस पर आरोप लगाया गया कि वो महिलाओं को न तो सुरक्षा प्रदान कर रही है और न ही इस केस के चारों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर रही है। पुलिस इस केस में लगभग 24 घंटे निष्क्रिय बनी रही। जब लोगों का इस पर दबाव पड़ा तो वो सक्रिय हुई और चारों अभियुक्तों को गिरफ्तार किया। अभियुक्तों को एक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया और उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत के लिए रिमांड पर लिया गया। 6 दिसंबर 2019 को 10 पुलिसवालों की एक टीम चारों अभियुक्तों को पीड़िता के साथ हुई बलात्कार की जगह पर लाया गया ताकि वहां से पीड़िता का मोबाईल फोन और उसकी अन्य वस्तुएं खोजी जा सकें, जहाँ चारों अभियुक्तों को गोली मार दी गई। पुलिस ने प्रेस के समक्ष इस घटना को मुठभेड़ (फर्जी) बताया। लोगों ने जब मुठभेड़ में चारों अभियुक्तों के मारे जाने की खबर सुनी तो वे खुशी से झूम उठे और हैदराबाद पुलिस की तारीफ़ का पुल बाँध दिया।
यहाँ यह स्मरणीय है कि हैदराबाद पुलिस द्वारा बयान की गई इस मुठभेड़ की कहानी पर बहुत से लोगों ने यकीन नहीं किया। इन लोगों का विश्वास था कि यह मुठभेड़ फर्जी था और दरअसल यह चारों अभियुक्तों की पुलिस द्वारा निर्मम हत्या थी।
अपराधी विशेषकर बलात्कार के अभियुक्तों को सख्त सजा दी जानी चाहिए ताकि बलात्कार के अपराध को रोका जा सके। देश में जघन्य अपराधों से निपटने के लिए कानून बनाए गए हैं लेकिन ये कानून ऐसे किसी अपराधी की मुठभेड़ के नाम पर निर्मम हत्या की इजाजत नहीं देते हैं। पुलिस का कर्तव्य यह है कि वह अपराधियों को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करे जिन्हें अपराधियों को सजा देने का अधिकार होता है। हमारा कानून कैसे भी जघन्य अपराध करने वाले अपराधियों को सजा देने का अधिकार पुलिस को नहीं देता है। अपराधियों को सजा देने का अधिकार सिर्फ अदालतों के पास है। मुठभेड़ जैसे गलत तरीके को न्यायसम्मत इसलिए नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि अदालतों से किसी मामले का निपटारा बहुत देर में होता है। हर किसी को हमारे न्यायिक व्यवस्था पर विश्वास रखना चाहिए और इसे अपना काम अंजाम दिया जाने देना चाहिए।
जहाँ तक बलात्कार जैसे जघन्य अपराध का संबंध है ये ऐसा अपराध है जिससे महिलाओं का आत्मसम्मान लुट जाता है और उनके लिए इस घृणित अपराध को जिंदगीभर भूलना असंभव होता है। एक तरफ बलात्कार की पीड़िता खुद को अपवित्र समझती है और दूसरी तरफ समाज उसे वो सम्मान नहीं देता जिसकी वो हकदार है। इसी प्रकार बलात्कार की पीड़िता को दोहरी मानसिक यातनाएं सहनी पड़ती है जिसके लिए वह किसी तरह कसूरवार नहीं है।
बलात्कार समाज में एक पुरानी बुराई है। प्राचीन समय में जमींदार और धनवान लोग किसी भी सुंदर लड़की और औरत का अपहरण अपनी वासना की इच्छापूर्ति के लिए करवा लेते थे जिसका विरोध करने का किसी में साहस नहीं होता था। इसके अलावा अपराधी और बदमाश लोग भी बलात्कार जैसे अपराध को अंजाम देने से नहीं डरते थे और इस प्रकार लड़कियों और औरतों का सतीत्व सुरक्षित नहीं रहता था। उस समय ऐसे अपराधियों को सजा देने का प्रावधान नहीं था या था तो उस पर अमल नहीं किया जाता था। यह बात स्मरणीय है कि वैदिक काल में भी बलात्कार जैसा जघन्य अपराध होता था और ऐसे जघन्य अपराध के लिए सख्त कानून थे जैसे देवताओं के गुरू बृहस्पति बलात्कार के अपराध को जघन्य अपराध मानते थे और इसके लिए अभियुक्त का अंग भंग कर उसे गधे पर बैठाकर पूरे नगर में घुमाने का प्रावधान किया था।
मनुस्मृति के अनुसार बलात्कारियों के लिए जो सजा निर्धारित की गई थी उसमें एक हज़ार का जुर्माना, नगर से निष्कासन और और बलात्कारियों के माथे पर एक विशेष प्रकार का चिन्ह लगाकर उनका समाज से बहिष्कार शामिल था। ये सजा विवाहिता और अविवाहिता दोनों प्रकार की महिलाओं से बलात्कार किए जाने के लिए थीं। लेकिन अगर एक अविवाहित अव्यस्क लड़की से बलात्कार किया जाता था तो अभियुक्त के लिए उसके अंग भंग, हाथ या पैर की दो अंगुलियाँ काटने और हाथ काटने की सजा निर्धारित थी।
'नारदस्मृति' के अनुसार बलात्कार के अपराधी को शारीरिक दंड दिया जाता था।
न्यायशास्त्री 'कात्यायन' ने बलात्कारियों को मौत की सजा दिए जाने की वकालत की थी।
जबकि 'याज्ञवलक्य' ने बलात्कारियों की संपत्ति को जब्त करने और उन्हें मृत्युदंड देने की बात कही थी।
'चाणक्य' ने अपनी पुस्तक 'अर्थशास्त्र' में बलात्कार के अपराधियों की संपत्ति को जला दिए जाने और उन्हें जीवनभर शारीरिक यातना दिए जाने की सजा निर्धारित की थी।
आज हिन्दू धार्मिक पुस्तकों में और 'चाणक्य' द्वारा बलात्कारियों के लिए निर्धारित की गई सजा का किसी को ज्ञान नहीं है। ऐसी स्थिति में इनके लागू किए जाने का प्रश्न नहीं है। यह सरकार का कर्तव्य है कि वह बलात्कार के अपराधियों को सख्त सजा देने का कानून बनाए। लेकिन इस ज़रूरत को नजरअंदाज़ कर रही है। यही कारण है कि बलात्कार के अपराध की घटना दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। अब यह महसूस किया जा रहा है कि बलात्कार के अभियुक्तों को सख्त सजा दी जानी चाहिए और इसकी मांग जनता भी कर रही है। बलात्कार के अपराध को रोकने के लिए समाज को भी अपना कर्तव्य निभाना चाहिए और इस संबंध में इसका यह कर्तव्य है कि वो बलात्कार के अभियुक्त अपने भाई, अपने बेटे और अपने पति को संरक्षण प्रदान न करें।
यहां यह उल्लेख करना असंगत होगा कि हिंदू समाज में 'मनुस्मृति' के 'वर्णव्यवस्था' को पूरी तरह अपना रखा है और आज भी उस पर अमल कर रहा है। यह आश्चर्यजनक है कि हिन्दू समाज 'मनुस्मृति' द्वारा बलात्कार के लिए निर्धारित सजा का उल्लेख भी नहीं करता। अगर हिंदू समाज सच्चा अनुयायी है तो फिर उसे बलात्कारियों के लिए 'मनुस्मृति' में जो सजा निर्धारित है उसका कानून बनवाने का सरकार पर दबाव डालना चाहिए।
जहाँ तक बलात्कारियों के लिए इस्लामी सजा का संबंध है वो बहुत सख्त है जो सऊदी अरब और उसके पड़ोसी मुस्लिम देशों में लागू हैं। यही कारण है कि बलात्कार के अपराध की घटना इन देशों में इक्का-दुक्का ही होती है। दरअसल इस्लाम में अपराध और अपराधियों के लिए सख्त सजा के सिद्धांत को इसलिए मानता है कि ये अपराधियों को अपराध करने से रोक सकता है। उदाहरण के लिए इस्लामी कानून में बलात्कार के अभियुक्तों को मौत की सजा है। इसके अनुसार बलात्कार के अभियुक्तों को या तो पत्थर मारकर मार डालने या उन्हें सौ कोढ़े मारने की सजा का प्रावधान है। अगर बलात्कार का अभियुक्त विवाहित है तो उसे पत्थर मारकर मार डालने की सजा दी जाती है और अगर वह अविवाहित है तो उसे 100 कोढ़े मारे जाते हैं। बहुत कम ऐसे अभियुक्त होते हैं जो सौ कोढ़े मारे जाने के बाद भी जीवित रहते है क्योंकि उनमें ज़्यादातर की सौ कौढ़े मारे जाने के दौरान ही मौत हो जाती है। अब बलात्कार के अपराधियों को सख्त सजा दिए जाने की माँग बढ़ती जा रही है क्योंकि लोग इसे अनिवार्य समझने लगे हैं।
- रोहित शर्मा विश्वकर्मा
यहाँ यह स्मरणीय है कि हैदराबाद पुलिस द्वारा बयान की गई इस मुठभेड़ की कहानी पर बहुत से लोगों ने यकीन नहीं किया। इन लोगों का विश्वास था कि यह मुठभेड़ फर्जी था और दरअसल यह चारों अभियुक्तों की पुलिस द्वारा निर्मम हत्या थी।
अपराधी विशेषकर बलात्कार के अभियुक्तों को सख्त सजा दी जानी चाहिए ताकि बलात्कार के अपराध को रोका जा सके। देश में जघन्य अपराधों से निपटने के लिए कानून बनाए गए हैं लेकिन ये कानून ऐसे किसी अपराधी की मुठभेड़ के नाम पर निर्मम हत्या की इजाजत नहीं देते हैं। पुलिस का कर्तव्य यह है कि वह अपराधियों को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करे जिन्हें अपराधियों को सजा देने का अधिकार होता है। हमारा कानून कैसे भी जघन्य अपराध करने वाले अपराधियों को सजा देने का अधिकार पुलिस को नहीं देता है। अपराधियों को सजा देने का अधिकार सिर्फ अदालतों के पास है। मुठभेड़ जैसे गलत तरीके को न्यायसम्मत इसलिए नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि अदालतों से किसी मामले का निपटारा बहुत देर में होता है। हर किसी को हमारे न्यायिक व्यवस्था पर विश्वास रखना चाहिए और इसे अपना काम अंजाम दिया जाने देना चाहिए।
जहाँ तक बलात्कार जैसे जघन्य अपराध का संबंध है ये ऐसा अपराध है जिससे महिलाओं का आत्मसम्मान लुट जाता है और उनके लिए इस घृणित अपराध को जिंदगीभर भूलना असंभव होता है। एक तरफ बलात्कार की पीड़िता खुद को अपवित्र समझती है और दूसरी तरफ समाज उसे वो सम्मान नहीं देता जिसकी वो हकदार है। इसी प्रकार बलात्कार की पीड़िता को दोहरी मानसिक यातनाएं सहनी पड़ती है जिसके लिए वह किसी तरह कसूरवार नहीं है।
बलात्कार समाज में एक पुरानी बुराई है। प्राचीन समय में जमींदार और धनवान लोग किसी भी सुंदर लड़की और औरत का अपहरण अपनी वासना की इच्छापूर्ति के लिए करवा लेते थे जिसका विरोध करने का किसी में साहस नहीं होता था। इसके अलावा अपराधी और बदमाश लोग भी बलात्कार जैसे अपराध को अंजाम देने से नहीं डरते थे और इस प्रकार लड़कियों और औरतों का सतीत्व सुरक्षित नहीं रहता था। उस समय ऐसे अपराधियों को सजा देने का प्रावधान नहीं था या था तो उस पर अमल नहीं किया जाता था। यह बात स्मरणीय है कि वैदिक काल में भी बलात्कार जैसा जघन्य अपराध होता था और ऐसे जघन्य अपराध के लिए सख्त कानून थे जैसे देवताओं के गुरू बृहस्पति बलात्कार के अपराध को जघन्य अपराध मानते थे और इसके लिए अभियुक्त का अंग भंग कर उसे गधे पर बैठाकर पूरे नगर में घुमाने का प्रावधान किया था।
मनुस्मृति के अनुसार बलात्कारियों के लिए जो सजा निर्धारित की गई थी उसमें एक हज़ार का जुर्माना, नगर से निष्कासन और और बलात्कारियों के माथे पर एक विशेष प्रकार का चिन्ह लगाकर उनका समाज से बहिष्कार शामिल था। ये सजा विवाहिता और अविवाहिता दोनों प्रकार की महिलाओं से बलात्कार किए जाने के लिए थीं। लेकिन अगर एक अविवाहित अव्यस्क लड़की से बलात्कार किया जाता था तो अभियुक्त के लिए उसके अंग भंग, हाथ या पैर की दो अंगुलियाँ काटने और हाथ काटने की सजा निर्धारित थी।
'नारदस्मृति' के अनुसार बलात्कार के अपराधी को शारीरिक दंड दिया जाता था।
न्यायशास्त्री 'कात्यायन' ने बलात्कारियों को मौत की सजा दिए जाने की वकालत की थी।
जबकि 'याज्ञवलक्य' ने बलात्कारियों की संपत्ति को जब्त करने और उन्हें मृत्युदंड देने की बात कही थी।
'चाणक्य' ने अपनी पुस्तक 'अर्थशास्त्र' में बलात्कार के अपराधियों की संपत्ति को जला दिए जाने और उन्हें जीवनभर शारीरिक यातना दिए जाने की सजा निर्धारित की थी।
आज हिन्दू धार्मिक पुस्तकों में और 'चाणक्य' द्वारा बलात्कारियों के लिए निर्धारित की गई सजा का किसी को ज्ञान नहीं है। ऐसी स्थिति में इनके लागू किए जाने का प्रश्न नहीं है। यह सरकार का कर्तव्य है कि वह बलात्कार के अपराधियों को सख्त सजा देने का कानून बनाए। लेकिन इस ज़रूरत को नजरअंदाज़ कर रही है। यही कारण है कि बलात्कार के अपराध की घटना दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। अब यह महसूस किया जा रहा है कि बलात्कार के अभियुक्तों को सख्त सजा दी जानी चाहिए और इसकी मांग जनता भी कर रही है। बलात्कार के अपराध को रोकने के लिए समाज को भी अपना कर्तव्य निभाना चाहिए और इस संबंध में इसका यह कर्तव्य है कि वो बलात्कार के अभियुक्त अपने भाई, अपने बेटे और अपने पति को संरक्षण प्रदान न करें।
यहां यह उल्लेख करना असंगत होगा कि हिंदू समाज में 'मनुस्मृति' के 'वर्णव्यवस्था' को पूरी तरह अपना रखा है और आज भी उस पर अमल कर रहा है। यह आश्चर्यजनक है कि हिन्दू समाज 'मनुस्मृति' द्वारा बलात्कार के लिए निर्धारित सजा का उल्लेख भी नहीं करता। अगर हिंदू समाज सच्चा अनुयायी है तो फिर उसे बलात्कारियों के लिए 'मनुस्मृति' में जो सजा निर्धारित है उसका कानून बनवाने का सरकार पर दबाव डालना चाहिए।
जहाँ तक बलात्कारियों के लिए इस्लामी सजा का संबंध है वो बहुत सख्त है जो सऊदी अरब और उसके पड़ोसी मुस्लिम देशों में लागू हैं। यही कारण है कि बलात्कार के अपराध की घटना इन देशों में इक्का-दुक्का ही होती है। दरअसल इस्लाम में अपराध और अपराधियों के लिए सख्त सजा के सिद्धांत को इसलिए मानता है कि ये अपराधियों को अपराध करने से रोक सकता है। उदाहरण के लिए इस्लामी कानून में बलात्कार के अभियुक्तों को मौत की सजा है। इसके अनुसार बलात्कार के अभियुक्तों को या तो पत्थर मारकर मार डालने या उन्हें सौ कोढ़े मारने की सजा का प्रावधान है। अगर बलात्कार का अभियुक्त विवाहित है तो उसे पत्थर मारकर मार डालने की सजा दी जाती है और अगर वह अविवाहित है तो उसे 100 कोढ़े मारे जाते हैं। बहुत कम ऐसे अभियुक्त होते हैं जो सौ कोढ़े मारे जाने के बाद भी जीवित रहते है क्योंकि उनमें ज़्यादातर की सौ कौढ़े मारे जाने के दौरान ही मौत हो जाती है। अब बलात्कार के अपराधियों को सख्त सजा दिए जाने की माँग बढ़ती जा रही है क्योंकि लोग इसे अनिवार्य समझने लगे हैं।
- रोहित शर्मा विश्वकर्मा
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